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बुधवार, 18 सितंबर 2019

शरीर में दोषों (वात -पित्त- कफ ) का चय ,कोप,शम काल।। डा॰वीरेन्द्र मढान।

शरीर में दोषों का चय,कोप,शम काल। जब शरीर में तीनो दोष वात,पित्त, कफ समान मात्रा में रहते है।हम स्वस्थ रहते है।जब य़े दोष विषम मात्रा मे या विकृत अवस्था में होते है तो शरीर में विकृति यानि रोग उत्पन्न हो जाते है। आओ जानते है।किस किस मौसम में इन दोषो का संचय होता है कब प्रकोप होता है और कब इनका शमन होता है। ग्रीष्मे सन्चीयते वायु: प्रावृटकाले प्रकुप्यति।। वर्षासु चीयते पित्तम् शरत्काले प्रकुप्यति । हेमन्ते चीयते श्लेष्मा वसन्ते च प्रकुप्यति ।। प्रायेण प्रशमं याति स्वयमेव समीरण । शरत्काले वसन्ते च पित्तं प्रावृड् ॠतौ कफं।।शा॰स॰_41-43।। अर्थात् गर्मी के मौसम मे वायु का संचय होता है।प्रावृट यानि वर्षा के मौसम मे प्रकोप होता है ।याने वात रोग कारक होते है।इसी वर्षा के मौसम में पित्तदोष का संचय होता है।और शरद ऋतु में पित्त दोष प्रकुपित होता है।हेमन्त में कफदोष का संचय होता है और यह कफदोष बसन्त ऋतु मे प्रकुपित हो जाता है। अतः जब दोष का संचय काल हो तो उस दोष के बर्ध्दक पदार्थ न ले।

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