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शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

बसंत ऋतु में होने वाले रोग


 बसंत ऋतु में होने वाले रोग

#डा०वीरेंद्र मढान

#बसंत ऋतु:-

यह ऋतु सर्दी और गर्मी का मिश्रण होता है,

इस ऋतु के आने पर मौसम सुहावना हो जाता है, सर्दी कम हो जाती है,  पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं । इस कारण से राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है इस ऋतु को ऋतुराज कहा गया है।

#बसंत ऋतु मे कौनसे रोग होते है:–

इस ऋतु में कफ से कुपित होने के कारण से 

- खांसी, सर्दी, जुकाम, श्वास, भूख न लगना, अपच, स्रोतों का अवरोध, गले की खराश, त्वचा रोग, बुखार, शरीर में भारीपन, अतिनिंद्रा, दस्त, खसरा आदि का खास प्रकोप होता है। 

वसंत ऋतु में सबसे आम बीमारियाँ मौसमी एलर्जी, अस्थमा आदि रोग होते है

एडेनोवायरस के कारण होने वाली श्वसन संबंधी बीमारी और एलर्जी संबंधी गुलाबी आँख हैं 

बाहरी परागकण और फफूंद समस्याएँ पैदा कर सकते हैं, लेकिन पालतू जानवरों की रूसी और धूल के कण जैसे इनडोर ट्रिगर भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

#बसंत ऋतु के रोगों के नाम:–

1-अस्थमा

2-फ्लू

3-पेट में दर्द

4-खांसी

5-गले में दर्द

6-आंख आना

7-कीड़े-मकोड़े की एलर्जी

8-पेट में अल्सर

9-नाक बंद होना

10-छाती में जकड़न

11-सिरदर्द

12-पेट में गैस बनना, आदि


#वसंत में आहार विहार :–

#क्या करें?

 वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कही है।

 वसंत ऋतु दरअसल शीत और ग्रीष्म का संधिकाल होती है। संधि का समय होने से वसंत ऋतु में थोड़ा-थोड़ा असर दोनों ऋतुओं का होता है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है क्योंकि प्राणीजगत शीतकाल को छोड़ने और वसंत ऋतु में कफ  की समस्या अधिक रहती है। अतः इस मौसम में जौ, चना, ज्वार, गेहूं, चावल, मूंग,  अरहर, मसूर की दाल, बैंगन, मूली, बथुआ, परवल, करेला, तोरई, अदरक, सब्जियां, केला, खीरा, संतरा, शहतूत, हींग, मेथी, जीरा, हल्दी, आंवला आदि कफ नाशक पदार्थों का सेवन करें।  इसके अलावा मूंग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ  का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं जो हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। 

इस ऋतु में कड़वे नीम में नई कोंपलें फूटती हैं। नीम की 15-20 कोंपलें, 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। 15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्ष भर चर्म रोग, रक्त विकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवं आरोग्यता की रक्षा होती है। इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। 

धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान अलौने व्रत बिना नमक के व्रत करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप, हाई बीपी, गुर्दा, किडनी आदि के रोग नहीं होते। वसंत ऋतु में दही का सेवन न करें क्योंकि वसंत ऋतु में कफ का स्वाभाविक प्रकोप होता है एवं दही  कफ  को बढ़ाता है।  शीत एवं वसंत ऋतु में श्वास, जुकाम, खांसी आदि जैसे कफजन्य रोग उत्पन्न होते हैं। उन रोगों में हल्दी का प्रयोग उत्तम होता है। हल्दी शरीर की व्याधि रोधक क्षमता को बढ़ाती है, जिससे शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम होता है। मौसम के अनुसार भोजन हमारे  शरीर और मन दोनों के लिए हितकारी होता है। मौसम के अनुसार भोजन में परिवर्तन करके आहार लेने वाले लोग सर्वथा स्वस्थ और प्रसन्नचित रहते हैं। उन्हें बीमार होने का भय नहीं रहता।

#क्या न करें?

वसंत में खट्टा, बहुत ज्यादा नमकीन या तैलीय भोजन भी नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से कफ दोष बढ़ सकता है. -इस मौसम में उड़द दाल का सेवन नहीं करना चाहिए. – इस मौसम में पूड़ी-कचौड़ी जैसे हैवी फूड से भी बचना चाहिए.

अधिक मात्रा में जौ, दलिया और ओट्स जैसे आनजों का सेवन करने से बचें। रेफ्रिजरेटर में जमी हुईं और ठंडी खाने वाली चीज़ों को भी भोजन में शामिल न करें।

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