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गुरुवार, 23 सितंबर 2021

बवासीर Piles क्या है क्या उपाय करें?

 अर्श ( बवासीर ) Piles, Hemorrhoids


अर्श Piles बीमारी क्या है?


अर्श की निरुक्ति:-

,,,अरिवत्प्राणान् शृणाति इति अर्श।।"


शत्रू के समान जो प्राणों को कष्ट करें, उसे अर्श कहते हैं।
अर्श गुदा स्थान में होने वाला एक रोग है, आयुर्वेद में अर्श का व्यापक अर्थ है। 
चरक के अनुसार,,

अर्शासीत्यधिमांविकाराह्।"

अर्श अधिमांस विकार है।अर्थात अर्श मांस में ही अधिष्ठात है।
 इस प्रकार मूत्रेन्द्रिय, योनि, गला मुख,नासिका,कर्ण, नेत्रों के वत्र्भ और त्वचा स्थान भी अधिमांस के क्षेत्र है।
इन में उत्पन्न होने वाले मासान्कुर को अर्श कहते हैं।
आचार्य चरक ने गुदा में उत्पन्न मांसांकुर को ही अर्श माना है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान गुदा में होने वाले मांसांन्कुर को ही अर्श Haemorrhoids or Piles तथा किसी अंग में होने वाले मांसांन्कुर को पोलिप्स कहते हैं।
यहां पर हम गुदा में होने वाले मांसांन्कुर को अर्श कहेंगे।
आयुर्वेद के महऋषियों के अनुसार जब वातादि दोष कुपित होता है तब त्वचा मांस और मेद को दूषित करते हैं और परिणामस्वरूप गुदा के आसपास किनारे पर अथवा मल द्वार के अभ्यान्तर नाना प्रकार की आकृति वाले मांसान्कुर उत्पन्न हो जाते है, जिन्हें अर्श मस्से बवासीर कहते हैं।

"दोषस्त्वम् मासां मेदांसि संदूष्य विविधाकृतीन।

मांसांकुरान पानादौ कुर्वन्त्यर्शासि तांजगुह्।।”
अर्श का अधिष्ठान गुदा होने से गुदा की संरचना संक्षिप्त में समझ लें तो आसानी होगी। 
सुश्रुत निदान स्थान के द्वितीय अध्याय के अनुसार स्थूलान्त्र के आखिरी भाग के साथ संयुक्त अर्धांगुल सहित पांच अर्थात सवा चार अंगुल की गुदा होती है। 
उसमे डेढ़ डेढ़ अंगुल की तीन बलिया होती है।
1,,प्रवाहणी,,,मल का प्रवाहण करने वाली।
2,,विसर्जनी,,, गुदा का विस्फारण करने वाली।
3,,संवरणी,,, गुदा के चारों ओर से गुदा को संकोच करने वाली,गुदोष्ठ से एक अंगुल पर आधुनिक प्रत्यक्ष शरीर के अनुसार साढ़े चार अंगुल गुदा के निम्न भाग हैं
,,,
1 गुदौष्ठ Anus 2 गुदनलिका  Anal Cannal 3 मलाशय Rectum ।"
मलाशय का आखिरी इंच भर हिस्से को जिसमें अर्थात छल्ले झुर्रियां या सलवटें हुस्टन वाल्व Houston Valves कहते हैं।

अर्श के होने के कारण:-

- शारीरिक श्रम न करना।
 - गरिष्ट पदार्थ का सेवन करना।
- मिर्च मसाला,चट पटी वस्तु का अधिक सेवन करना।
 -अधिक आराम से बैठे रहना।अधिक मात्रा में शराब पीना।
- कब्ज की अधिकतर शिकायत रहना।
- रात्रि जागरण।
- यकृत की विकृतियां।
- स्त्रियों में गर्भ च्युति होना।
- वृद्धावस्था में प्रोस्टेट  
- ग्रंथि के बढ़ जाने पर।
-चाय अधिक सेवन करने से।
- साईकिल की अधिक सवारी करने से।

ये अर्श रोग के प्रधान हेतु हैं।

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। 

बवासीर 2 प्रकार की होती है। 

आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। 
बादी बवासीर में 
गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन
 खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रकाल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है।
आयुर्वेदिक उपचार
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 इसका इलाज चार अवस्थाओं में होता है।                      
फर्स्ट डिग्री : दवाओं से
सेकेंड डिग्री : क्षार कर्म (क्षार लेप) से।
क्षार सुत्र:- इसके लिए थोड़ा अपामार्ग क्षार, 10 एमएल थुअर पौधे का दूध और एक ग्राम हल्दी को मिलाकर पेस्ट बनाते हैं। इसके बाद एक मेडिकेटेड धागे पर लगाकर सुखा लेते हैं और मस्सों पर बांधते हैं।
थर्ड डिग्री : एलोवेरा की मदद से  अग्निकर्म चिकित्सा की जाती है।
फोर्थ डिग्री : इसमें शल्य चिकित्सा से मस्सों को हटाते हैं।

औषधियां :-

- कांकायन वटी (2 गोली सुबह व शाम)।
 - अर्श कुठार रस (1 गोली सुबह व शाम)।
 - अभ्यारिष्ट व द्राक्षासव (4-4 चम्मच भोजन के बाद, बराबर मात्रा में पानी मिलाकर)।
-  कुटज धन वटी (1 गोली सुबह व शाम)।
मस्सों पर लगाने के लिए
- कासीसादि तेल व 
-जात्यादि तेल मस्सों पर लगाएं।
 इसके अलावा गुनगुने पानी में हल्दी डालकर सेक करें।


बुधवार, 22 सितंबर 2021

उल्टीयां हो रही है तो क्या करें ?

 उल्टीयां (वमन )हो रही है तो क्या करें ? Dr.Virender Madhan.in hindi.

उल्टी क्या है ?

उल्टीयां के कारण क्या है? 

और उल्टीयां हो तो क्या करें उपाय ? 


उल्टी क्या है?

What is vomiting?

उल्टीयां क्यों होती है ?

उल्टीयां (वमन ) कितने प्रकार की होती है?

"जब भोजन पेट से अनैच्छिक रूप से या स्वेच्छा से मुंह से बाहर आ जाता है, तो उसे उल्टी कहा जाता है। ”

उल्टी (वमन ) कई कारणों से होता है जैसे - 
मोशन सिकनेस / सीसिकनेस।

गर्भावस्था की पहली तिमाही । 
भावनात्मक तनाव।
पित्ताशय की बीमारी।
 संक्रमण। दिल का दौरा।
अधिक भोजन करना।
 ब्रेन ट्यूमर।
 कैंसर या अल्सर।
 बुलिमिया और 
विषाक्त पदार्थों का सेवन या अधिक शराब पीना आदि में उल्टीयां होती है।

बीमार होने पर हमें उल्टी क्यों होती है?
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उल्टी शरीर मे बैक्टीरिया। 
वायरस ,जहर, या कुछ परेशान करने वाले पदार्थ के बाहरी खतरे से शरीर की रक्षा करने का तरीका है। 
"उल्टी का उद्देश्य पेट की सामग्री को खाली करना है जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है।”

आयुर्वेद में वमन ( उल्टीयां ) को 5 प्रकार का कहा है
1-वातज।  2- पित्तज
3- कफज।  4- सन्निपातज
5- आगन्तुक 
पहले 4 शारिरिक दोषो के बिगडने से 5वां बाहरी कारणों से जैसे चोट लगना , गलत आहार करना, विष खाना आदि।

ल्टी ( वमन ) के कई कारण होते है ।
 
- फ़ूड पॉइज़निंग:-
संक्रमित भोजन करना । बैक्टीरिया, वायरस से दूषित भोजन का सेवन आमतौर पर फ़ूड पॉइज़निंग का कारण बनता है। इसके लक्षण बहुत गंभीर नहीं होते हैं लेकिन अगर स्थिति बनी रहती है तो व्यक्ति को डॉक्टर के पास जाने की जरूरत होती है।
- अपच:-
मंदाग्नि होकर भोजन न पचना । अजीर्ण रोग कुपच का ही रूप है । यह एक बहुत ही सामान्य स्थिति है जो आजकल दूषित भोजन या कुछ पुरानी पाचन समस्याओं के कारण सभी को होती है।
 - वायरल या बैक्टिरिया के कारण उदर मे विकृति हो जाती है गैस्ट्रोएंटेराइटिस के रूप में भी जाना जाता है, यह तब होता है जब पेट और आंत में सूजन होती है।
- गैस्ट्राइटिस: :-
 उसमें जलन पैदा करती हैं। इससे उल्टी और जी मिचलाने की भावना पैदा होती है।
- अधिक खाना।
- विरुद्ध आहार करना 
- प्रकृति विरूद्ध आहार करने से।

- घृणित पदार्थो के देखने से उल्टी (वमन ) हो जाता है ।

- सफर के कारण भी बहुत से लोगों को उल्टी हो जाती है।
- दुर्गंधयुक्त पदार्थों को देखने मात्र से, सुंघने मात्र से ऊल्टी हो जाती है।
- कैंसर के रोगी को कीमोथरेपी के बाद वमन यानि उल्टियाँ होती है।
- पत्थरी रोग मे भी उल्टीयां होती है ।
- पेप्टिक अल्सर के कारण भी उल्टीयां होती है ।
- आंतों में संक्रमण के कारण भी उल्टीयां होती है।
- टी.बी. , न्युमोनिया आदि रोगों मे भी उल्टीयां हो सकती है।

उल्टी के लक्षण:

* पेट में दर्द ।
 * दस्त, बुखार हो सकते है ।
* चक्कर आना ।
* अत्यधिक पसीना आना ।
* मुंह सूखना ।
* पेशाब में कमी होना ।
* बेहोशी, चिंता, डिप्रेशन, भ्रम होना ।
* नींद न आना ।

 उल्टी के कुछ सामान्य लक्षण हैं।

* स्त्रियों में गर्भावस्था मे उल्टीयां हो सकती है।

* मानसिक रोगों में, तनाव मे भी उल्टीयां होते देखा गया है ।


उल्टी ( वमन ) Vomiting हो तो क्या करें ?

छोटे मात्रा में भोजन करें।
* कम से कम 3घण्टे सेे 6घण्टे  के बड़े अंतराल पर करना चाहिए।

* सामान्य आहार और मसालेदार या तैलीय खाद्य पदार्थों के स्थान पर नरम खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

* आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे कम फाइबर, कम वसा और कम चीनी वाले खाद्य पदार्थ।
*  केला, चावल, सेब की चटनी और टोस्ट या सोडा क्रैकर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

* निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन) से निपटने के लिए तरल पदार्थ का सेवन बढ़ाना चाहिए।

* शराब, कैफीन, दूध, पनीर, खट्टे फल और जूस से बचना चाहिए।

* अगर उल्टीयां अधिक है तो अपने चिकित्सक को जरुर दिखायें।

* उल्टी होना अपने आपमें रोग नही है यह किसी दूसरे रोगों का लक्षण होता है अतः उल्टीयां हो तो कारण का पता करें कि किस रोग के कारण उल्टीयां हो रही है।

आप उल्टी कैसे रोक सकते हैं?

उल्टी - वह तरीका है जिसके द्वारा शरीर अपशिष्ट पदार्थ को बाहर निकालता है। मस्तिष्क और पेट शरीर को दूषित भोजन को शरीर से बाहर निकालने की अनुमति देते हैं। हालांकि कई बार शरीर को उल्टी की आवश्यकता होती है, इसे रोकने की जरूरत है ।

- गहरी साँस लेना:
यदि किसी व्यक्ति को उल्टी का अनुभव हो रहा है तो उसे फेफड़ों और नाक के माध्यम से गहरी साँस लेने की कोशिश करनी चाहिए और साँस लेते समय आपके फेफड़ों में विस्तार होना चाहिए। यह उल्टी के समय मदद करता है। 

- शोधों में यह देखा गया है कि गहरी सांसें चिंता को शांत करने में भी मदद करती हैं जो उल्टी का एक और कारण है।

उल्टीयां रोकने के कुछ अन्य उपाय :-

1. अदरक – अदरक में पेट की हर समस्या से निपटने का इलाज होता है। इसके एक टुकड़े को कूचकर पानी में मिला लीजिए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन कीजिए। उल्टी से तुरंत लाभ मिलेगा।

2. लौंग – उल्टी आने की स्थिति में दो चार लौंग लेकर दांतो के नीचे दबा लें और इसका रस चूसते रहें। 

3. सौंफ – दिन में कई बार सौंफ चबाना उल्टी में बेहद फायदेमंद है। यह मुंह के स्वाद को बदलने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसे खाने के बाद उल्टी से काफी राहत मिलती है। इसमे मिश्री मिला कर खाने से शीध्र लाभ मिलता है।

4. संतरे का जूस – ताजा संतरे का जूस उल्टी में काफी लाभदायक है। इसके कई अन्य फायदे भी हैं। जैसे, यह शरीर में ब्लड प्रेशर के नियंत्रण के लिए भी बेहद लाभदायक है।

5. पुदीना – कभी भी उल्टी आने पर पुदीने की चाय बनाकर पी लीजिए या फिर केवल उसकी पत्ती को चबाइए। उल्टी से तुरंत राहत मिल जाएगी।

6. नींबू – उल्टी जैसा जी होने पर नींबू का एक टुकड़ा मुंह में रख लें। इससे उल्टी में काफी राहत मिलती है।

अपने चिकित्सक से सलाह जरुर करें ।
😀

7. इलायची – पेट की एसिडिटी शांत रखने के लिए तथा खाना हजम करने के लिए इलायची भी काफी कारगर उपाय है।







रविवार, 22 अगस्त 2021

ब्रहमी वटी और ब्रनिका सीरप

 ब्रह्मी वटी और ब्रनिका सीरप

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ब्राह्मी वटी का परिचय (Introduction of Brahmi Vati)


 ब्राह्मी वटी का उपयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। सदियों से आयुर्वेदाचार्य ब्राह्मी वटी के इस्तेमाल से रोगों को ठीक करने का काम कर रहे हैं।आयुर्वेद में यह बताया गया है कि ब्राह्मी वटी मानव मस्तिष्क के लिए अमृत के समान औषधि है। यह हिमालय की तराइयों में पाए जाने वाले ब्राह्मी पौधे से तैयार किया जाता है।


इसके पौधे नदियों के किनारे या अन्य नम स्थानों पर भी पाए जाते हैं। आइए जानते हैं कि आप ब्राह्मी वटी का प्रयोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं और स्वास्थ्य लाभ पा सकते हैं।

ब्रहमी के अनेक उत्पादन बाजार मे है जिनमे से मुख्य औषधि ब्रह्मीवटी और ़ Brainica syrup है ।


**  ब्राह्मी वटी क्या है? 

(What is Brahmi Vati?)


ब्राह्मी वटी (brahmi benefits )

- तनाव से छुटकारा दिलाने में मदद करती है, 

-सांसों की बीमारी, 

-विष के प्रभाव को ठीक करती है। 

-इसके साथ ही यह रोग प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) को मजबूत करती है। 

-यह मष्तिस्क तथा स्मरण शक्ति को स्वस्थ बनाती है।


-ब्राह्मी वटी का सेवन याद्दाश्त बढ़ाने के लिए फायदेमंद है।

-ब्राह्मी वटी के सेवन से मस्तिष्क की दुर्बलता एवं मस्तिष्क संबंधी सभी विकार नष्ट होते हैं। 

-ब्राह्मी वटी स्मरण शक्ति एवं बुद्धि को भी बढ़ाती (brahmi uses) है।

- मस्तिष्क संबंधी कार्य अधिक करने वाले लोगों जैसे- विद्यार्थी, अध्यापक आदि को ब्राह्मी वटी के साथ Brainica syrup सेवन जरूर करना चाहिए।उत्तम लाभ मिलता है।


- हृदय रोगों में फायदेमंद ब्राह्मी वटी का प्रयोग ।

- कई लोगों को ह्रदय संबंधी विकार होते रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए ब्राह्मी वटी का सेवन रोज करना चाहिए। इससे वातनाड़ियों तथा हृदय से संबंधित रोग तुरंत ठीक हो जाते है


- अनिद्रा की परेशानी में ब्राह्मी वटी का उपयोग लाभदायक (Brahmi Vati Uses to Cure Insomnia in Hindi)


-जो मरीज नींद ना आने की परेशानी से ग्रस्त हैं उनको ब्राह्मी वटी का प्रयोग (brahmi uses) करना चाहिए। इसके लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से Brainica Syrup व ब्राह्मी वटी के इस्तेमाल की जानकारी जरूर लें।


- ब्राह्मी वटी और Brainica syrup के योग से हिस्टीरिया में बहुत लाभदायक होती है। हिस्टीरिया से ग्रस्त मरीज ब्राह्मी वटी के उपयोग से लाभ पा सकते हैं।


- मूर्च्छा या मिर्गी में करें ब्राह्मी वटी का सेवन किया जाता है।


जो रोगी बार-बार बेहोश हो जाते हैं या जिनको मिर्गी आती है उन्हें ब्राह्मी वटी का सेवन करना चाहिए। 

इसके साथ–साथ सुबह–शाम ब्राह्मी घी 3-6 माशे तक दूध में मिलाकर पीना चाहिए। साथ मे Brainica Syrup  2-3 चम्मच भी पीना चाहिए। इससे बहुत लाभ है।


- स्नायु तंत्र को स्वस्थ बनाती है ब्राह्मी वटी और ब्रनिका का योग।

- Brainica Syrup मानव स्नायु तंत्र के लिए टॉनिक का काम करती है। यह मस्तिष्क को शांति प्रदान करने के अलावा स्नायु कोषों का पोषण भी करती है, ताकि आपको स्फूर्ति मिले।


** उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) में फायदा पहुंचाती है 

ब्राह्मी वटी और ब्रनिका सीरप


- हाई ब्लडप्रेशर आज आम बीमारी हो गई है। अनेकों लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसमें ब्राह्मी वटी का यह योग इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।


 ब्राह्मी वटी और Brainca Syrup का सेवन किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के दिशा-निर्देश में ही करना चाहिए।


अनुपान – गुलकन्द, दूध, मधु, मक्खन, आँवले का मुरब्बा, ब्राह्मी, शर्बत।

रविवार, 1 अगस्त 2021

बाल काले करने के उपाय

 >Gharelu upaye>ayurvedic treatment>herbal treatments

[बाल काले कैसे करें ?]

#Dr.Virender Madhan.

>>बालों को काला करने के कुछ उपाय।

#रीठा

** 1. बालों को काला करेगा रीठा

रीठा केश्य है । रीठा बालों के लिए प्राचीन काल से ही प्रयोग किया जाता रहा है।वैसे तो रीठा को हेयर ग्रोथ यानि बालों को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके आयुर्वेदिक गुण बालों को काला करने के लिए भी कारगर माने जाते हैं. इस आयुर्वेदिक औषधि में एंटी इफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो स्कैल्प में होने वाली खुजली को दूर करने में भी मददगार माने जाते हैं. रीठा से बालों को दोने के बाद बाल कोमल बनते हैं. एक तरह से रीठा कंडीशनर का काम करता है. यह बालों की सफेदी को दूर करने में मददगार माना जाता है.


** 2. आंवला

आंवला भी बालों को काला करने में फायदेमंद है ।आंवला एक रसायन है । यह मानव के लिए अमृत समान है ।आंवला कई स्वास्थ्य लाभों को लिए जाना जाता है. यह स्किन से लेकर बालों तक कई कमाल के फायदे देता है. आंवला में कई हर्बल गुण पाए जाते हैं. आंवला में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं. इसके साथ ही आंवला में विटामिन ए भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है. आंवला अल्फा-5 रिडक्टेस की गतिविधि को रोककर बालों के विकास में फायदेमंद माना जाता है. यह बालों का झड़ना रोकने के लिए भी कारगर माना जाता है. यह बालों की गुणवत्ता को बेहतर करने में मददगार माना जाता है.


** 3. शिकाकाई 

यह नेचुरल औषधि बालों को कई फायदे देती है. बालों की कई समस्याओं को दूर करने के लिए शिकाकाई को काफी कारगर माना जाता है. यह सफेद बालों से राहत दिलाने में भी मददगार मानी जाती है. इसके साथ ही यह बालों का झड़ना रोकने में भी फायदेमंद हो सकती है. शिकाकाई का ऑयल बालों की स्कैल्प से गंदगी को दूर करने में भी मदद करता है


> कैसे करें इन तीनों का इस्तेमाल?

बालों को नेचुरल तरीके से  ये तीनों बालों को काला करने के साथ बालों का झड़ना और डैंड्रफ से भी राहत दिला सकते हैं. इन तीनों का इस्तेमाल आप हेयर मास्क या शैम्पू के रूप में भी कर सकते है।

मंगलवार, 22 जून 2021

अवसाद का आयुर्वेदिक इलाज

 "अवसाद"

** क्या है अवसाद?


-- इस बारे में आयुर्वेदिक चिकित्सिक डॉ०वीरेंद्र मढान का मानना है कि आयुर्वेद में #अवसाद को मानसिक रोग की श्रेणी में रखा जाता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे बहुत अधिक #तनाव, लंबे समय तक कोई रोग, कमजोरी, बहुत अधिक दवाओं का सेवन, #वात दोष (मस्तिष्क एवं नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली) आदि।


"आयुर्वेद में उपचार"


-- आयुर्वेद में #अवसाद से उपचार तीन बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है। 1--अवसादग्रस्त व्यक्ति को उसकी शक्ति व क्षमताओं का बोध कराना,

 2-- व्यक्ति जो देख या समझ रहा है वह असलियत में भी वही है या नहीं इसका बोध कराना और 

--उसकी #स्मृति को मजबूत बनाना जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़े और अवसाद दूर हटे।

** आयुर्वेद में अवसाद से उपचार के लिए कुछ औषधियों और ब्रेन टॉनिक्स को अगर किसी चिकित्सक के परामर्श से लिया जाए तो कम समय में इसे दूर करना संभव है। 

** ब्राह्मी, 

** मंडूक पुष्पी, 

** स्वर्ण भस्म आदि से मस्तिष्क को बल मिलता है और मन को शांति। इनका उपयोग अवसाद के उपचार में किया जाता है।

#Change your life style#

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खानपान में करें बदलाव

आयुर्वेद में अवसाद दूर करने के लिए खानपान में भी बदलाव करने पर बल दिया जाता है। डॉ.वीरेंद्र मढान के अनुसार, 'रोगी को हल्का और सुपाच्य भोजन खाने चाहिए। दही और खट्टी चीजों से परहेज करना जरूरी है। इसके अलावा,फास्ट फुड,भारी, तली चीजें, मांसाहार, उड़द की दाल, चने आदि का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है।'



**पंचकर्म और अवसाद**


पंचकर्म से भी अवसाद के उपचार में सहायता मिलती है। शिरोधारा, शिरोबस्ति, शिरो अभ्यंग और नस्य जैसे पंचकर्म अवसाद से मुक्ति दिलाने में मददगार हैं लेकिन इन्हें किसी प्रशिक्षित विशेषज्ञ के परामर्श से करना ही ठीक है।


-- अभ्यंग (मसाज) भी है लाभदायक

-- अवसाद से निजात के लिए आयुर्वेद में मसाज थेरेपी का भी सहारा लेते हैं। 

चंदनबला, लाक्षादि तेल, ब्राह्मी तेल, अश्वगंधा, बला तेल आदि से मसाज की सलाह दी जाती है जो तनाव दूर करते हैं और अवसाद से मुक्ति दिलाते हैं।

अवसाद Depression आयुर्वेद

  Depression

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"अवसाद"

डा०वीरेंद्र मढान


तनाव या स्टरेस Stress से हर व्यक्ति जूझता है। यह हमारे मन से संबंधी रोग होता है। हमारी मनस्थिति एवं बाहरी परिस्थिति के बीज असंतुलन एवं सामंजस्य न बनने के कारण तनाव उत्पन्न होता है। तनाव के कारण व्यक्ति में अनेक मनोविकार पैदा होते हैं। वह हमेशा अशांत एवं अस्थिर रहता है। तनाव एक द्वन्द की तरह है जो व्यक्ति के मन एवं भावनाओं में अस्थिरता पैदा करता है। तनाव से ग्रस्त व्यक्ति कभी भी किसी भी काम में एकाग्र नहीं हो पाता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सामान्य दिनचर्या में थोड़ी मात्रा में तनाव होना परेशान होने की बात नहीं होती क्योंकि इतना तनाव सामान्य व्यक्तित्व के विकास के आवश्यक होता है परन्तु यह यदि हमारे भावनात्मक और शारीरिक जीवन का हिस्सा बन जाए तो यह रोग बन जाता है।


*** डिप्रेशन क्या होता है? (What is Depression in Hindi)

थोड़ी मात्रा में तनाव या स्ट्रेस होना हमारे जीवन का एक हिस्सा होता है। यह कभी-कभी फायदेमंद भी होता है जैसे, किसी कार्य को करने के लिए हम स्वयं को हल्के दबाव में महसूस करते हैं जिससे कि हम अपने कार्य को अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं और कार्य करते वक्त उत्साह भी बना रहता है। परन्तु जब यह तनाव अधिक और अनियंत्रित हो जाता है तो यह हमारे मस्तिष्क और शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और यह कब अवसाद (Depression) में बदल जाता है, व्यक्ति को पता नहीं चलता है। डिप्रेशन उस व्यक्ति को होता है जो हमेशा तनाव में रहता है। प्राय: व्यक्ति जिस चीज के प्रति डरता है या जिस स्थिति पर उसका नियंत्रण नहीं रहता वह तनाव महसूस करने लगता है, जिस कारण उसके ऊपर एक दबाव बनने लगता है। अगर व्यक्ति लम्बे समय तक इन परिस्थितियों में रहता है तो धीरे-धीरे वह तनावग्रस्त जीवन जीने की पद्धति का आदी हो जाता हो तब यदि उसे तनावग्रस्त स्थिति न मिले तो वह इस बात से भी तनाव महसूस करने लगता है। यह अवसाद होने की प्रारम्भिक स्थिति होती है।


*** डिप्रेशन क्यों होता है? (Causes of Depression)

डिप्रेशन होने के बहुत सारे कारण होते हैं, 

=-जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन आना जैसे कोई दुर्घटना, जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन या संघर्ष, किसी पारिवारिक सदस्य या प्रियजन को खो देना, आर्थिक समस्या होना या ऐसे ही किन्हीं गम्भीर बदलावों के कारण।


=- हार्मोन में आए बदलाव के कारण जैसे- रजोनिवृत्ति (Menopause), प्रसव, थायरॉइड की समस्या आदि।


=- कभी-कभी मौसम में परिवर्तन के कारण भी अवसाद हो जाता है। कई लोग सर्दियों में जब दिन छोटे होते हैं या धूप नहीं निकलती तो सुस्ती, थकान और रोजमर्रा के कार्यों में अरूचि महसूस करते हैं। परन्तु यह स्थिति सर्दियां खत्म होने पर ठीक हो जाती हैं।


=- हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स(Neurotransmitters) होते हैं जो विशेष रूप से

सेरोटोनिन(Serotonin),डोपामाइन (Dopamine) या नोरेपाइनफिरिन (Norepinephrine) खुशी और आनंद की भावनाओं को प्रभावित करते हैं लेकिन अवसाद की स्थिति में यह असंतुलित हो सकते हैं। इनके असंतुलित होने से व्यक्ति में अवसाद हो सकता है परन्तु यह क्यों संतुलन से बाहर निकल जाते हैं इसका अभी तक पता नहीं चला है।


=- कुछ मामलों में अवसाद का कारण अनुवांशिकी भी हो सकता है। यदि परिवार में पहले से यह समस्या रही हो अगली पीढ़ी को यह होने की आशंका बढ़ जाती है परन्तु इसमें कौन-सा जीन शामिल होता है इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है।


" symptoms of depression "

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* अवसाद एक मानसिक स्वास्थ्य विकार होता है जो कुछ दिनों की समस्या न होकर एक लम्बी बीमारी होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अवसाद दुनिया भर में होने वाली सबसे सामान्य बीमारी होती है। विश्व में लगभग 350 मिलियन लोग अवसाद से प्रभावित होते हैं। अवसाद जैसी ही एक और समस्या हमारे जीवन में होती है। हमारे मूड का उतार-चढ़ाव जिन्हें मूड स्विंग्स कहा जाता है परन्तु यह अवसाद से अलग होता है। सभी लोग अपने सामान्य जीवन में मूड स्विंग्स का अनुभव करते हैं। यह कुछ लोगों में कम और कुछ में थोड़ा ज्यादा देखा जाता है परन्तु यह अवसाद की श्रेणी में नहीं आता। हमारे दैनिक जीवन के प्रति हमारी अस्थायी भावुक प्रतिक्रियाएं मूड स्विंग्स के अन्तर्गत आती है लेकिन यही अस्थायी भावुक प्रतिक्रियाएं या कोई दुख जब लम्बे समय तक किसी व्यक्ति में बरकरार रहे तो यह अवसाद में परिवर्तित हो सकता है। अवसाद के कारण व्यक्ति में वजन बढ़ना जैसी समस्या हो सकती है इसके थायरॉइड हार्मोन्स में आए असंतुलन के कारण व्यक्ति में थायरॉइड से संबंधित समस्याएं हो जाती हैं। अवसाद का लम्बे समय तक चलना एक गम्भीर समस्या है। अवसाद से ग्रस्त धीरे-धीरे समाज से कट जाते हैं एवं उनके दिमाग में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं। अवसाद के कारण व्यक्ति गम्भीर बीमारियों से भी घिर सकता है क्योंकि अवसाद में व्यक्ति के शरीर में गम्भीर हार्मोनल असंतुलन हो जाता है जिस कारण उसे भूख अधिक लगना या बिल्कुल न लगना, विभिन्न तरह के अस्वस्थ खाद्य पदार्थों के प्रति रूचि उत्पन्न होना, यह लक्षण दिखाई देते हैं। व्यक्ति का पाचन तंत्र भी खराब रहता है उसे कब्ज जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वजन बढ़ना अवसाद के रोगी की एक आम समस्या है। अवसाद से जुड़ी सबसे गम्भीर बीमारी साइकोटिक डिप्रेशन होता है। यह अवसाद के गम्भीर रूप से जुड़ी एक प्रकार की मनोविकृति है जो साइकोटिक डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है। यह बहुत ही कम लोगों में तथा अवसाद की गम्भीर अवस्था में पाया जाता है। साइकोटिक डिप्रेशन में लोगों को खुद ही ऐसी आवाजें सुनाई देती है कि वह किसी काम के नहीं है या असफल हैं। रोगी को ऐसा लगता है कि वह खुद अपने विचारों को सुन सकता है। वह हमेशा अपने बारे में नकारात्मक विचार सुनता रहता है और वह व्यक्ति वैसे ही कार्य करने लगता है, वह बहुत जल्दी व्याकुल हो जाता है और आसान चीजें करने में भी बहुत वक्त लगाता है। उसे लगातार ऐसी चीजें सुनाई और दिखाई देती है जो असल में नहीं होती। इन रोगियों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है।


** डिप्रेशन के लक्षण (Symptoms of Depression)

जैसा कि सभी जानते हैं कि डिप्रेशन में लोग हमेशा चिंताग्रस्त रहते हैं, इसके अलावा और भी लक्षण होते हैं-


-अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति हमेशा उदास रहता है।


-व्यक्ति हमेशा स्वयं उलझन में एवं हारा हुआ महसूस करता है।


-अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।


-किसी भी कार्य में ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी होती है।


-अवसाद का रोगी खुद को परिवार एवं भीड़ वाली जगहों से अलग रखने की कोशिश करता है। वह ज्यादातर अकेले रहना पसन्द करता है।


-खुशी के वातावरण में या खुशी देने वाली चीजों के होने पर भी वह व्यक्ति उदास ही रहता है।

-अवसाद का रोगी हमेशा चिड़चिड़ा रहता है तथा बहुत कम बोलता है।

-अवसाद के रोगी भीतर से हमेशा बेचैन प्रतीत होते हैं तथा हमेशा चिन्ता में डूबे हुए दिखाई देते हैं।

-यह कोई भी निर्णय लेने पर स्वयं को असमर्थ पाते हैं तथा हमेशा भ्रम की स्थिति में रहते हैं।

-अवसाद का रोगी अस्वस्थ भोजन की ओर ज्यादा आसक्त रहता है।

-अवसाद के रोगी कोई भी समस्या आने पर बहुत जल्दी हताश हो जाते हैं।


-कुछ अवसाद के रोगियों में बहुत अधिक गुस्सा आने की भी समस्या देखी जाती है।


-हर समय कुछ बुरा होने की आशंका से घिरे रहना।


डिप्रेशन से बचने के उपाय (Prevention Tips for Depression)

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**- डिप्रेशन के प्रभाव से बचने के लिए जीवनशैली और आहार में कुछ बदलाव लाने की ज़रूरत होती है।


आहार-


-अवसाद के रोगी को भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए तथा ऐसे फलों और सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो।


-पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिए जिसमें शरीर के लिए जरूरी सभी विटामिन्स और खनिज हो।


-हरी पत्तेदार सब्जियाँ एवं मौसमी फलों का सेवन अधिक करें।


-चुकन्दर (Beetroot) का सेवन जरूर करें, इसमें उचित मात्रा में पोषक तत्व होते हैं जैसे विटामिन्स, फोलेट,यूराडाइन और मैग्निशिय आदि। यह हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स की तरह काम करते हैं जो कि अवसाद के रोगी में मूड को बदलने का कार्य करते हैं।


-अपने भोजन में ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करें। इसमें उचित मात्रा में एंटी-ऑक्सिडेट्स और मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड्स पाये जाते हैं, यह हृदय रोग तथा अवसाद को दूर करने में मददगार साबित होते हैं।


-अवसाद के रोगी में अस्वस्थ भोजन एवं अधिक भोजन करने की प्रवृत्ति होती है। अतः अवसाद के रोगी को जितना हो सके जंक फूड और बासी भोजन से दूर रहना चाहिए । इसकी बजाय घर पर बना पोषक तत्वों से भरपूर और सात्विक भोजन करना चाहिए।


-अपने भोजन में एवं सलाद के रूप में टमाटर का सेवन करें। टमाटर में लाइकोपीन नाम का एंटी-ऑक्सिडेंट पाया जाता है जो अवसाद से लड़ने में मदद करता है। एक शोध के अनुसार जो लोग सप्ताह में 4-6 बार टमाटर खाते हैं वे सामान्य की तुलना में कम अवसाद ग्रस्त होते हैं।


-जंक फूड का सेवन पूरी तरह छोड़ दें।


-अधिक चीनी एवं अधिक नमक का सेवन।


-मांसाहार और बासी भोजन।


-धूम्रपान, मद्यसेवन या किसी भी प्रकार का नशे का सर्वथा त्याग करना चाहिए।


-कैफीनयुक्त पदार्थ जैसे चाय, कॉफी का अधिक सेवन।


जीवनशैली

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**-अवसाद से ग्रस्त रोगी उचित खान-पान के साथ अच्छी जीवनशैली का भी पालन करना चाहिए जैसे व्यक्ति को अपने परिवार और दोस्तों के साथ अधिक बिताना चाहिए। अपने किसी खास दोस्त से मन की बातों को कहना चाहिए।


**-अवसाद से निकलने के लिए व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग एवं ध्यान को अवश्य जगह देनी चाहिए। यह अवसाद के रोगी के मस्तिष्क को शान्त करते हैं तथा उनमें हार्मोनल असंतुलन को ठीक करते हैं।


**-व्यक्ति को सुबह उठकर सैर पर जाना चाहिए उसके बाद योगासन और प्राणायाम करना चाहिए।


**-अवसाद के रोगी को ध्यान या मेडिटेशन करना चाहिए। प्राय: व्यक्ति खुद को एकाग्र करने में असफल पाता है लेकिन शुरूआत में थोड़े समय के लिए ही ध्यान लगाने की कोशिश करनी चाहिए।


** -यदि किसी व्यक्ति को कोई दुर्घटना या किसी खास कारण की वजह से अवसाद हुआ है तो उसे ऐसे कारणों और जगह से दूर रखना चाहिए।


**-अवसाद के रोगी को प्राकृतिक एवं शान्ति प्रदान करने वाली जगहों पर जाना चाहिए साथ ही मधुर संगीत एवं सकारात्मक विचारों से युक्त किताबें पढ़नी चाहिए।

**-स्वयं को सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रखना चाहिए और अकेले रहने की आदत से बचना चाहिए।


Dr.ViernderMadham


GuruAyurvedaInFaridabad

रविवार, 20 जून 2021

मानसिक रोग और आयुर्वेद

{मानसिक रोग और आयुर्वेद}

#डा०वीरेंद्र मढान 

आयुर्वेद के अनुसार तीन मानसिक दोष होते हैं जैसे कि सत्‍व, रजस और तमस। सत्‍व दोष मस्तिष्‍क की शुद्धता और गुणवत्ता का प्रतीक है, रजस दोष मस्तिष्‍क की गतिशीलता और सक्रियता जबकि तमस दोष अंधकार और निष्‍क्रियता को दर्शाता है। माना जाता है कि अधिकतर मानसिक रोग इन मानसिक भावों के खराब होने पर ही होते हैं।

<< मानसिक रोग कौन कौन से होते है?

मानसिक रोगों मे 

-शोक (दुख), 

- मन (गर्व), 

-भय (डर), 

-क्रोध (गुस्‍सा), 

उद्वेग (अशांत रहना),

-  अतत्त्वाभिनिवेष (सनक), 

- तंद्रा ,

- भ्रम (वर्ट्टीगो – सिर चकराना),

-  ईर्ष्‍या (जलन), 

- मोह और लोभ (लालच) मानसिक रोगों जैसे कि 

- विषाद, 

-चित्तोद्वेग,

- अनिद्रा, 

-मद और उन्‍माद के लक्षण हैं।


* आचार रसायन (आचार संहिता के नियमों का पालन) में मानसिक रोगों को नियंत्रित करने के लिए ध्यान एवं योग, पंचकर्म थेरेपी के साथ सादा भोजन, जड़ी बूटियों और हर्बल मिश्रणों की मदद लेने के लिए प्रेरित किया गया है। 


  • विरेचन कर्म
    • पंचकर्म थेरेपी में से एक विरेचन कर्म है जिसमें कड़वी रेचक जड़ी बूटियों जैसे कि सनाय-सेन्‍ना या रूबर्ब से विरेचन करवाई जाती है।
    • जड़ी बूटियां शरीर के विभिन्‍न अंगों जैसे कि पित्ताशय, छोटी आंत और लिवर में जमा अआम को साफ करती हैं।
    • इसका इस्‍तेमाल प्रमुख तौर पर पित्तज उन्‍माद (खराब पित्त दोष के कारण उत्‍पन्‍न हुआ उन्‍माद) से ग्रस्‍त लोगों में किया जाता है।

    • स्नेहन व स्वेदन:-


    • सिजोफ्रेनिया की स्थिति में स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि) और स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) के बाद शिरोविरेचन किया जाता है।
       
  • शिरोधारा
    • शिरोधारा में औषधीय तेल या क्‍वाथ (काढ़े) को मरीज़ के सिर के ऊपर से डाला जाता है। ये सिर, नाक, कान और गले से संबंधित रोगों के इलाज में मदद करता है।
    • चिंता, डिप्रेशन, अनिद्रा और अन्‍य मानसिक रोगों से ग्रस्‍त मरीज़ में शिरोधारा चिकित्‍सा के लिए औषधीय तेलों का उपयोग किया जाता है।
       
  • रसायन
    • रसायन चिकित्‍सा में शरीर के सभी सात धातुओं (रस धातु से लेकर शुक्र धातु तक) को साफ और पोषण प्रदान किया जाता है। इसके अलावा शरीर की नाडियों में परिसंचरण को भी बेहतर किया जाता है।

    • जड़ी बूटियां मेध्‍य रसायन या दिमाग के लिए शक्‍तिवर्द्धक के तौर पर कार्य करती हैं। इन जड़ी बूटियों में 
    • * ब्राह्मी, 
    • * शंखपुष्पीऔर 
    • * अश्‍वगंधा का नाम शामिल है 
    • जो कि मस्तिष्‍क के कार्य में सुधार और याददाश्‍त को बढ़ाने का काम करती हैं। 
    • - रसायन जड़ी बूटियां शरीर को ठीक तरह से कार्य करने में मदद करती हैं और इम्‍युनिटी को भी बढ़ाती हैं।
    • - आचार रसायन चिकित्‍सा से दिनचर्या में कुछ बदलाव लाकर और योग की मदद से सेहत में सुधार लाया जाता है। सच बोलने और साफ-सफाई का ध्‍यान रखना भी इसमें शामिल है।
    • - आचार्य रसायन में मेवे फल खााने की सलाह दी जाती है। 
    • इन खाद्य पदार्थों में सिरोटोनिन, ट्रिप्टोफेन और अन्‍य घटक मौजूद होते हैं जो कि दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर पर काम करते हैं।
       
  • सत्वावजय चिकित्‍सा
    • ये चिकित्‍सा भावनाओं के आहत होने के कारण हुए मानसिक रोगों के इलाज में उपयोगी है।
    • सत्वावजय चिकित्‍सा भावनाओं, सोच और नकारात्‍मक विकारों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
    • - ये आत्‍म ज्ञान, 
    • - कुल ज्ञान (परिवार के प्रति जिम्‍मेदारियों का अहसास), - - शक्‍ति ज्ञान (आत्‍म–क्षमता के बारे में पता होना), 
    •  - बल ज्ञान (अपनी शक्‍ति का पता होना) और 
    • - कल ज्ञान (मौसम के हिसाब से परहेज़ करने और मौसम का ज्ञान होना) को बढ़ाती है।

    • आयुर्वेद के अनुसार, ये चिकित्‍सा सेहत और ज्ञान के बीच संतुलन में सुधार लाकर मानसिक रोगों के इलाज में मदद करती है।

मानसिक रोगों के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • *ब्राहृमी
    • आयुर्वेद में ब्राह्मी को दिमाग के टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है। ब्राह्मी से दिमाग की कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है।
    • ये याददाश्‍त में सुधार लाती है और इस वजह से याददाश्‍त कमजोर होने से संबंधित मानसिक रोग के इलाज में ब्राह्मी असरकारी होती है।
    • आप ब्राह्मी को क्‍वाथ, अर्क, घी, घी के साथ पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।

    • * अश्‍वगंधा

    • अश्‍वगंधा दिमाग के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में काम करती है और ये इम्‍युनिटी को बढ़ाने वाली जड़ी बूटी है। इसमें एंटी-एजिंग (बढ़ती उम्र के निशान दूर करने) गुण होते हैं और ये नकारात्‍मक विचारों को दूर करती है। अश्‍वगंधा हार्मोन्स को पुर्नजीवित करने और कमजोर एवं दुर्बल व्‍यक्‍ति की सेहत में सुधार लाने में मदद करती है।
    • ये अनिद्रा, चिंता, न्‍यूरोसिस (बहुत दुखी रहना), बाईपोलर डिसओर्डर और डिजनरेटिव सेरेबेलर अटेक्सिया के इलाज में उपयोगी है।
    • आप अश्‍वगंधा को पाउडर या घी, तेल, क्‍वाथ आसव के रूप में या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • * जटामांसी
    • खट्टे-मीठे स्‍वाद वाली जटामांसी में सुगंधक, ऐंठन-रोधी और खून को साफ करने वाले गुण होते हैं।ये मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करती है।
    • शामक (नींद लाने वाली) और दिमाग को शक्‍ति देने वाले गुणों से युक्‍त ये जड़ी बूटी अनेक मानसिक विकारों जैसे कि हिस्‍टीरिया, मिर्गी, अनिद्रा और सिजोफ्रेनिया के इलाज में उपयोगी है
    • आप जटामांसी को पाउडर या अर्क के रूप में या चिकित्‍सक के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • * हरिद्रा (हल्‍दी)
    • हरिद्रा पाचक, जीवाणु-रोधी, वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), उत्तेजक, सुगंधक और कृमिनाशक गुण होते हैं।
    • आमतौर पर हरिद्रा त्वचा विकारो, मूत्राशय रोगों और सुुजन से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में उपयोगी है। ये पेट में गट फ्लोरा को भी बेहतर करती है।
    • हरिद्रा शरीर को दिव्‍य ऊर्जा प्रदान करती है और मिर्गी एवं अल्जाइमर के इलाज में उपयोगी है।
    • आप हरिद्रा को क्‍वाथ, अर्क, पाउडर या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • * सर्पगंधा
    • सर्पगंधा हाईब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए इस्‍तेमाल की जाती है।
    • ये उन्‍मांद और हिंसक दौरो को कम करने में मदद करती है।
    • सर्पगंधा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है और अनिद्रा एवं सिजोफ्रेनिया के इलाज में सहायक है।
    • ये तनाव को भी कम करती है।आप सर्पगंधा को गोली, क्‍वाथ, पाउडर के रूप में या चिकित्‍सक के बताए अनुसार ले सकते हैं।
    •  
  • * शंखपुष्‍पी
    • शंखपुष्‍पी का इस्‍तेमाल अनिद्रा और उलझन के ईलाज में मेध्‍य (दिमाग के लिए शक्तिवर्द्धक) के रूप में किया जाता है।
    • शंखपुष्‍पी में याददाश्‍त बढ़ाने वाले तत्‍व होते हैं इसलिए इसे दिमाग के टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है।
    • शंखपुष्‍पी में मौजूद फाइटो-घटक कोर्टिसोल के स्‍तर को भी कम करते हैं जिससे तनाव में कमी आती है।
       
  • * गुडूची
    • कड़वे स्‍वाद वाली गुडुची में मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
    • ये जड़ी बूटी वात, पित्त और कफ वाले व्‍यक्‍ति में इम्‍युनिटी मजबूत करने में लाभकारी है।
    • ये शरीर में ओजस (जीवन के लिए महत्‍वपूर्ण तत्‍व) को बढ़ाती है। इसलिए मानिसक विकारों के इलाज में गुडूची उपयोगी है।
    • गुडूची अनेक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि गठीया,पीलिया बवासीर, पेचिश और त्‍वचा रोगों के इलाज में मदद करती है।
    • गुडूची को रस या पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।

[ मानसिक रोग के लिए आयुर्वेदिक औषधियां कौन कौन सी है ?]

  • सारस्वतारिष्ट
    • सारस्वतारिष्ट एक हर्बल मिश्रण है जिसे 23 हर्बल सामग्रियों जैसे कि अश्‍वगंधा, शहद, गुडूची, संसाधित स्‍वर्ण और शतावरी से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि याददाश्‍त और मानसिक शांति में सुधार कर मानसिक रोगों के इलाज में मदद करती है।
    • भय (डर) में भी इसकी सलाह दी जाती है। यह हकलाहट मे भी लाभदायक होती है।आप सारस्वतारिष्ट को पानी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
    •  
  • * अश्‍वगंधारिष्‍ट
    • अश्‍वगंधा, ईलायची, हल्‍दी, मुलहठी, वचऔर 28 अन्‍य सामग्रियों से अश्‍वगंधारिष्‍ट हर्बल मिश्रण को तैयार किया गया है।यह ताकत और शारीरिक मजबूती को बढ़ाने में उपयोगी है।
    • *** मिर्गी और अनिद्रा के इलाज में अश्‍वगंधारिष्‍ट का इस्‍तेमाल किया जाता है। 
    • ** - ये रुमेटिज्‍म और ह्रदय संबंधित समस्‍याओं के इलाज में भी लाभकारी है।
       
  • * स्‍मृति सागर रस
    • इस रस को पारद, ताम्र (तांबा) और गंधक में ब्राह्मी रस, वच क्‍वाथ और ज्योतिष्मती तेल मिलाकर तैयार किया गया है।
    • ** ये औषधि प्रमुख तौर पर मानसिक विकारों में लाभकारी होती है।
    • ** ये अपस्मार (मिर्गी) को कम करने और याददाश्‍त बढ़ाने में मदद करता है।
       
  • * उन्माद गजकेशरी रस
    • इस रस को पारद, गंधक, धतूरे के बीजों और मनशिला से तैयार किया गया है। उपयोग से पहले इस मिश्रण में रसना क्‍वाथ और वच क्‍वाथ मिलाया जाता है।
    • ** उन्माद गजकेशरी रस उलझन और पागलपन के इलाज में सबसे ज्‍यादा असरकारी होता है।
       
  • * ब्राह्मी घृत
    • इस मिश्रण को 12 जड़ी बूटियों से बनाया गया है जिसमें त्रिकटु (पिपली, शुंथि और मारीच का मिश्रण), आरग्‍वध और ब्राह्मी शामिल हैं।
    • ब्राह्मी घृत दौरे, फोबिया,उन्‍माद, डिप्रेशन और मिर्गी के इलाज में उपयोगी है।
    • ये स्‍मरण शक्‍ति और एकाग्रता में सुधार लाता है।ब्राह्मी घृत नींद में पेशाब करने और हकलाहट को भी दूर करने में मदद करता है।व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें

    • #आयुर्वेद के अनुसार मानसिक रोग होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Mental Disorder hone par kya kare kya na kare?

*क्‍या करें?

  • सात्‍विक और संतुलित आहार का पालन करें।
  • केला, शतावरी, लाल चावल, पिस्ता, गाजर, दूध, सेब, बादाम, लहसुन, ब्रोकली, अनानास और सूखे मेवे खाएं।
  • मौसमी फलों का सेवन करें।
  • ** अपने आसपास, घर और वाहनों में साफ-सफाई का ध्‍यान करें।
  • ** नियमित व्‍यायाम करें।
  • **अपने परिवार के लिए जीने की कोशिश करें।
  • ** काम में मन लगाएं।
  • ** योग (खासतौर पर पद्मासन), मंत्र उच्‍चारण और ध्‍यान से एकाग्रता में सुधार होगा।

*क्‍या न करें?

  • -- झूठ ना बोलें।
  • -- हिंसक विचारों और कामों से दूर रहें।

मस्तिष्‍क के कार्य पर ब्राह्मी के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया। इस अध्‍ययन में ये साबित हुआ कि ब्राह्मी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाती है और मानसिक विकारों के लक्षणों को दूर करने में मदद करती है।

अल्‍जाइमर के इलाज में पौधों से मिलने वाले तत्‍वों के प्रभाव का पता लगाने के लिए एक अन्‍य स्‍टडी में पाया गया कि ब्राहृमी के फाइटो-घटक जैसे कि बैकोसाइड और फ्लेवोन ग्लाइकोसाइड में सूजन-रोधी, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सुरक्षा देने, एमिलॉइड-रोधी, एंटीओक्सिडंट और बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इसलिए ये अल्‍जाइमर रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में लाभकारी साबित हुई।

कुछ पौधों जैसे कि जटामांसी के चिकित्‍सकीय प्रभावों की जांच के लिए हुई एक स्‍टडी में पाया गया कि जटामांसी में एंटी-ऑक्‍सीडेंट और कोलीनेस्टेरेस-रोधी गुण होते हैं जिसकी वजह से ये बौद्धिक क्षमता में सुधार लाने में मदद कर सकती है।

गुडची स्‍वरस के चिकित्‍सकीय प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया। विभिन्न प्रयोगशाला प्रक्रियाओं के दौरान ये बात सामने आई कि गुडूची मस्तिष्‍क में डोपामाइन के स्‍तर को कम करती है और सेरोटोनिन के लेवल को बढ़ाती है जिससे मूड बेहतर होता है एवं ड्रिपेशन में कमी आती है।

अनुभवी चिकित्‍सक की देख-रेख में आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार लेना सुरक्षित रहता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति और दोष के आधार पर कुछ जड़ी बूटियों और उपचार के दुष्‍प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर,

  • टीबी, दस्त, अल्‍सर, खराब पाचन और हाल ही में बुखाार से ठीक हुए व्‍यक्‍ति पर विरेचन नहीं करना चाहिए। यूट्रेस प्रोलैप्‍स या पाचन तंत्र में प्रोलैप्‍स होने पर विरेचन लेना हानिकारक साबित हो सकता है। कमजोर और वृद्ध व्‍यक्‍ति पर भी विरेचन कर्म का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने की वजह से खुजली, सिरदर्द की समस्‍या हो सकती है।कफ जमने की स्थिति में अश्‍वगंधा नहीं लेना चाहिए।

  • जटामांसी से नींद और सुस्‍ती आ सकती है

  •  इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देख-रेख में ही इसका सेवन करें।
  • पित्त स्‍तर के अत्‍यधिक बढ़ने पर हरिद्रा नहीं लेनी चाहिए।