{मानसिक रोग और आयुर्वेद}
#डा०वीरेंद्र मढान
[आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मानसिक रोग - Ayurveda ke anusar Mental Disorder]
#मानसिक दोष कौन से होते है?
आयुर्वेद के अनुसार तीन मानसिक दोष होते हैं जैसे कि सत्व, रजस और तमस। सत्व दोष मस्तिष्क की शुद्धता और गुणवत्ता का प्रतीक है, रजस दोष मस्तिष्क की गतिशीलता और सक्रियता जबकि तमस दोष अंधकार और निष्क्रियता को दर्शाता है। माना जाता है कि अधिकतर मानसिक रोग इन मानसिक भावों के खराब होने पर ही होते हैं।
<< मानसिक रोग कौन कौन से होते है?
मानसिक रोगों मे
-शोक (दुख),
- मन (गर्व),
-भय (डर),
-क्रोध (गुस्सा),
उद्वेग (अशांत रहना),
- अतत्त्वाभिनिवेष (सनक),
- तंद्रा ,
- भ्रम (वर्ट्टीगो – सिर चकराना),
- ईर्ष्या (जलन),
- मोह और लोभ (लालच) मानसिक रोगों जैसे कि
- विषाद,
-चित्तोद्वेग,
- अनिद्रा,
-मद और उन्माद के लक्षण हैं।
* आचार रसायन (आचार संहिता के नियमों का पालन) में मानसिक रोगों को नियंत्रित करने के लिए ध्यान एवं योग, पंचकर्म थेरेपी के साथ सादा भोजन, जड़ी बूटियों और हर्बल मिश्रणों की मदद लेने के लिए प्रेरित किया गया है।
> मानसिक बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज - Mansik rog ka ayurvedic ilaj
- विरेचन कर्म
- पंचकर्म थेरेपी में से एक विरेचन कर्म है जिसमें कड़वी रेचक जड़ी बूटियों जैसे कि सनाय-सेन्ना या रूबर्ब से विरेचन करवाई जाती है।
- जड़ी बूटियां शरीर के विभिन्न अंगों जैसे कि पित्ताशय, छोटी आंत और लिवर में जमा अआम को साफ करती हैं।
- इसका इस्तेमाल प्रमुख तौर पर पित्तज उन्माद (खराब पित्त दोष के कारण उत्पन्न हुआ उन्माद) से ग्रस्त लोगों में किया जाता है।
- स्नेहन व स्वेदन:-
- सिजोफ्रेनिया की स्थिति में स्नेहन (तेल लगाने की विधि) और स्वेदन (पसीना निकालने की विधि) के बाद शिरोविरेचन किया जाता है।
- शिरोधारा
- शिरोधारा में औषधीय तेल या क्वाथ (काढ़े) को मरीज़ के सिर के ऊपर से डाला जाता है। ये सिर, नाक, कान और गले से संबंधित रोगों के इलाज में मदद करता है।
- चिंता, डिप्रेशन, अनिद्रा और अन्य मानसिक रोगों से ग्रस्त मरीज़ में शिरोधारा चिकित्सा के लिए औषधीय तेलों का उपयोग किया जाता है।
- रसायन
- रसायन चिकित्सा में शरीर के सभी सात धातुओं (रस धातु से लेकर शुक्र धातु तक) को साफ और पोषण प्रदान किया जाता है। इसके अलावा शरीर की नाडियों में परिसंचरण को भी बेहतर किया जाता है।
- जड़ी बूटियां मेध्य रसायन या दिमाग के लिए शक्तिवर्द्धक के तौर पर कार्य करती हैं। इन जड़ी बूटियों में
- * ब्राह्मी,
- * शंखपुष्पीऔर
- * अश्वगंधा का नाम शामिल है
- जो कि मस्तिष्क के कार्य में सुधार और याददाश्त को बढ़ाने का काम करती हैं।
- - रसायन जड़ी बूटियां शरीर को ठीक तरह से कार्य करने में मदद करती हैं और इम्युनिटी को भी बढ़ाती हैं।
- - आचार रसायन चिकित्सा से दिनचर्या में कुछ बदलाव लाकर और योग की मदद से सेहत में सुधार लाया जाता है। सच बोलने और साफ-सफाई का ध्यान रखना भी इसमें शामिल है।
- - आचार्य रसायन में मेवे फल खााने की सलाह दी जाती है।
- इन खाद्य पदार्थों में सिरोटोनिन, ट्रिप्टोफेन और अन्य घटक मौजूद होते हैं जो कि दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर पर काम करते हैं।
- सत्वावजय चिकित्सा
- ये चिकित्सा भावनाओं के आहत होने के कारण हुए मानसिक रोगों के इलाज में उपयोगी है।
- सत्वावजय चिकित्सा भावनाओं, सोच और नकारात्मक विकारों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- - ये आत्म ज्ञान,
- - कुल ज्ञान (परिवार के प्रति जिम्मेदारियों का अहसास), - - शक्ति ज्ञान (आत्म–क्षमता के बारे में पता होना),
- - बल ज्ञान (अपनी शक्ति का पता होना) और
- - कल ज्ञान (मौसम के हिसाब से परहेज़ करने और मौसम का ज्ञान होना) को बढ़ाती है।
- आयुर्वेद के अनुसार, ये चिकित्सा सेहत और ज्ञान के बीच संतुलन में सुधार लाकर मानसिक रोगों के इलाज में मदद करती है।
#मानसिक रोग की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Mansik bimari ki ayurvedic dawa aur aushadhi
मानसिक रोगों के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- *ब्राहृमी
- आयुर्वेद में ब्राह्मी को दिमाग के टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है। ब्राह्मी से दिमाग की कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है।
- ये याददाश्त में सुधार लाती है और इस वजह से याददाश्त कमजोर होने से संबंधित मानसिक रोग के इलाज में ब्राह्मी असरकारी होती है।
- आप ब्राह्मी को क्वाथ, अर्क, घी, घी के साथ पाउडर के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- * अश्वगंधा
- अश्वगंधा दिमाग के लिए शक्तिवर्द्धक के रूप में काम करती है और ये इम्युनिटी को बढ़ाने वाली जड़ी बूटी है। इसमें एंटी-एजिंग (बढ़ती उम्र के निशान दूर करने) गुण होते हैं और ये नकारात्मक विचारों को दूर करती है। अश्वगंधा हार्मोन्स को पुर्नजीवित करने और कमजोर एवं दुर्बल व्यक्ति की सेहत में सुधार लाने में मदद करती है।
- ये अनिद्रा, चिंता, न्यूरोसिस (बहुत दुखी रहना), बाईपोलर डिसओर्डर और डिजनरेटिव सेरेबेलर अटेक्सिया के इलाज में उपयोगी है।
- आप अश्वगंधा को पाउडर या घी, तेल, क्वाथ आसव के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- * जटामांसी
- खट्टे-मीठे स्वाद वाली जटामांसी में सुगंधक, ऐंठन-रोधी और खून को साफ करने वाले गुण होते हैं।ये मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करती है।
- शामक (नींद लाने वाली) और दिमाग को शक्ति देने वाले गुणों से युक्त ये जड़ी बूटी अनेक मानसिक विकारों जैसे कि हिस्टीरिया, मिर्गी, अनिद्रा और सिजोफ्रेनिया के इलाज में उपयोगी है
- आप जटामांसी को पाउडर या अर्क के रूप में या चिकित्सक के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- * हरिद्रा (हल्दी)
- हरिद्रा पाचक, जीवाणु-रोधी, वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), उत्तेजक, सुगंधक और कृमिनाशक गुण होते हैं।
- आमतौर पर हरिद्रा त्वचा विकारो, मूत्राशय रोगों और सुुजन से संबंधित समस्याओं के इलाज में उपयोगी है। ये पेट में गट फ्लोरा को भी बेहतर करती है।
- हरिद्रा शरीर को दिव्य ऊर्जा प्रदान करती है और मिर्गी एवं अल्जाइमर के इलाज में उपयोगी है।
- आप हरिद्रा को क्वाथ, अर्क, पाउडर या चिकित्सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- * सर्पगंधा
- सर्पगंधा हाईब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
- ये उन्मांद और हिंसक दौरो को कम करने में मदद करती है।
- सर्पगंधा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है और अनिद्रा एवं सिजोफ्रेनिया के इलाज में सहायक है।
- ये तनाव को भी कम करती है।आप सर्पगंधा को गोली, क्वाथ, पाउडर के रूप में या चिकित्सक के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- * शंखपुष्पी
- शंखपुष्पी का इस्तेमाल अनिद्रा और उलझन के ईलाज में मेध्य (दिमाग के लिए शक्तिवर्द्धक) के रूप में किया जाता है।
- शंखपुष्पी में याददाश्त बढ़ाने वाले तत्व होते हैं इसलिए इसे दिमाग के टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है।
- शंखपुष्पी में मौजूद फाइटो-घटक कोर्टिसोल के स्तर को भी कम करते हैं जिससे तनाव में कमी आती है।
- * गुडूची
- कड़वे स्वाद वाली गुडुची में मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
- ये जड़ी बूटी वात, पित्त और कफ वाले व्यक्ति में इम्युनिटी मजबूत करने में लाभकारी है।
- ये शरीर में ओजस (जीवन के लिए महत्वपूर्ण तत्व) को बढ़ाती है। इसलिए मानिसक विकारों के इलाज में गुडूची उपयोगी है।
- गुडूची अनेक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि गठीया,पीलिया बवासीर, पेचिश और त्वचा रोगों के इलाज में मदद करती है।
- गुडूची को रस या पाउडर के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
[ मानसिक रोग के लिए आयुर्वेदिक औषधियां कौन कौन सी है ?]
- सारस्वतारिष्ट
- सारस्वतारिष्ट एक हर्बल मिश्रण है जिसे 23 हर्बल सामग्रियों जैसे कि अश्वगंधा, शहद, गुडूची, संसाधित स्वर्ण और शतावरी से तैयार किया गया है।
- ये औषधि याददाश्त और मानसिक शांति में सुधार कर मानसिक रोगों के इलाज में मदद करती है।
- भय (डर) में भी इसकी सलाह दी जाती है। यह हकलाहट मे भी लाभदायक होती है।आप सारस्वतारिष्ट को पानी के साथ या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- * अश्वगंधारिष्ट
- अश्वगंधा, ईलायची, हल्दी, मुलहठी, वचऔर 28 अन्य सामग्रियों से अश्वगंधारिष्ट हर्बल मिश्रण को तैयार किया गया है।यह ताकत और शारीरिक मजबूती को बढ़ाने में उपयोगी है।
- *** मिर्गी और अनिद्रा के इलाज में अश्वगंधारिष्ट का इस्तेमाल किया जाता है।
- ** - ये रुमेटिज्म और ह्रदय संबंधित समस्याओं के इलाज में भी लाभकारी है।
- * स्मृति सागर रस
- इस रस को पारद, ताम्र (तांबा) और गंधक में ब्राह्मी रस, वच क्वाथ और ज्योतिष्मती तेल मिलाकर तैयार किया गया है।
- ** ये औषधि प्रमुख तौर पर मानसिक विकारों में लाभकारी होती है।
- ** ये अपस्मार (मिर्गी) को कम करने और याददाश्त बढ़ाने में मदद करता है।
- * उन्माद गजकेशरी रस
- इस रस को पारद, गंधक, धतूरे के बीजों और मनशिला से तैयार किया गया है। उपयोग से पहले इस मिश्रण में रसना क्वाथ और वच क्वाथ मिलाया जाता है।
- ** उन्माद गजकेशरी रस उलझन और पागलपन के इलाज में सबसे ज्यादा असरकारी होता है।
- * ब्राह्मी घृत
- इस मिश्रण को 12 जड़ी बूटियों से बनाया गया है जिसमें त्रिकटु (पिपली, शुंथि और मारीच का मिश्रण), आरग्वध और ब्राह्मी शामिल हैं।
- ब्राह्मी घृत दौरे, फोबिया,उन्माद, डिप्रेशन और मिर्गी के इलाज में उपयोगी है।
- ये स्मरण शक्ति और एकाग्रता में सुधार लाता है।ब्राह्मी घृत नींद में पेशाब करने और हकलाहट को भी दूर करने में मदद करता है।व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें
- #आयुर्वेद के अनुसार मानसिक रोग होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Mental Disorder hone par kya kare kya na kare?
*क्या करें?
- सात्विक और संतुलित आहार का पालन करें।
- केला, शतावरी, लाल चावल, पिस्ता, गाजर, दूध, सेब, बादाम, लहसुन, ब्रोकली, अनानास और सूखे मेवे खाएं।
- मौसमी फलों का सेवन करें।
- ** अपने आसपास, घर और वाहनों में साफ-सफाई का ध्यान करें।
- ** नियमित व्यायाम करें।
- **अपने परिवार के लिए जीने की कोशिश करें।
- ** काम में मन लगाएं।
- ** योग (खासतौर पर पद्मासन), मंत्र उच्चारण और ध्यान से एकाग्रता में सुधार होगा।
*क्या न करें?
- -- झूठ ना बोलें।
- -- हिंसक विचारों और कामों से दूर रहें।
*मानसिक बीमारी में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Mental disorder ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
मस्तिष्क के कार्य पर ब्राह्मी के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में ये साबित हुआ कि ब्राह्मी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाती है और मानसिक विकारों के लक्षणों को दूर करने में मदद करती है।
अल्जाइमर के इलाज में पौधों से मिलने वाले तत्वों के प्रभाव का पता लगाने के लिए एक अन्य स्टडी में पाया गया कि ब्राहृमी के फाइटो-घटक जैसे कि बैकोसाइड और फ्लेवोन ग्लाइकोसाइड में सूजन-रोधी, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सुरक्षा देने, एमिलॉइड-रोधी, एंटीओक्सिडंट और बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इसलिए ये अल्जाइमर रोग से ग्रस्त व्यक्ति में लाभकारी साबित हुई।
कुछ पौधों जैसे कि जटामांसी के चिकित्सकीय प्रभावों की जांच के लिए हुई एक स्टडी में पाया गया कि जटामांसी में एंटी-ऑक्सीडेंट और कोलीनेस्टेरेस-रोधी गुण होते हैं जिसकी वजह से ये बौद्धिक क्षमता में सुधार लाने में मदद कर सकती है।
गुडची स्वरस के चिकित्सकीय प्रभाव की जांच के लिए एक अध्ययन किया गया। विभिन्न प्रयोगशाला प्रक्रियाओं के दौरान ये बात सामने आई कि गुडूची मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर को कम करती है और सेरोटोनिन के लेवल को बढ़ाती है जिससे मूड बेहतर होता है एवं ड्रिपेशन में कमी आती है।
<मानसिक रोग की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Mental Disorder ki ayurvedic dawa ke side effects
अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार लेना सुरक्षित रहता है। हालांकि, व्यक्ति की प्रकृति और दोष के आधार पर कुछ जड़ी बूटियों और उपचार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर,
- टीबी, दस्त, अल्सर, खराब पाचन और हाल ही में बुखाार से ठीक हुए व्यक्ति पर विरेचन नहीं करना चाहिए। यूट्रेस प्रोलैप्स या पाचन तंत्र में प्रोलैप्स होने पर विरेचन लेना हानिकारक साबित हो सकता है। कमजोर और वृद्ध व्यक्ति पर भी विरेचन कर्म का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने की वजह से खुजली, सिरदर्द की समस्या हो सकती है।कफ जमने की स्थिति में अश्वगंधा नहीं लेना चाहिए।
- जटामांसी से नींद और सुस्ती आ सकती है
- इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख-रेख में ही इसका सेवन करें।
- पित्त स्तर के अत्यधिक बढ़ने पर हरिद्रा नहीं लेनी चाहिए।
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