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रविवार, 2 अगस्त 2020

Hyper Thyroid और अतिकृशता।Dr.Virender Madhan in hindi.

Hyper Thyroid और अतिकृशता ।Dr.virender Madhan.in hindi.
Hyper thyroid की आप अतिकृशता से तुलना कर सकते है।

लक्षण देखे :-

weight loss
sweating
fatigue
hand tremors
nervousness
irritability
rapid heart rate
shallow respiration
aching joints
insomia
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Treatment of ati krishta (hyper thyroid )--------------

**अभ्यंग ( तैल मालिस)
**दुग्ध और उसके विकार
**आॅवला-मेथी-तुलसी-सिरस-गिलोय-चन्दन-गोक्षुरू
इन द्रव्यो का भैषज कल्पना कर  प्रयोग अपने अनुभवानुसार करे।
****रोगी की immunity बढाये।
-अश्वगन्धा
-शतावरी
-नागबला
-शॅखपुष्पी आदि का प्रयोग करे
## स्वर्ण मालनी रस
##कामदूधा रस
##स्वर्ण भस्म या इसके योग
##प्रवाल पिष्टी
॰॰॰
--कल्याण धृत
--महातिक्त धृत
**विदारीयादि कषाय
** द्राक्षादि कषाय
--द्राक्षासाव
--लोहासव
कुमार्यासव प्रयोग करे।
धन्यवाद----

श्वेत कुष्ठ (leucoderma). Dr.Virender Madhan.in hindi.

श्वेत कुष्ठ (leucoderma) Dr.Viernder Madhan.in hindi.
***श्वेत कुष्ट जिसे हम कहते है वास्तव मे कुष्ट नही होताहै।
इसे हम किलास कहते है।

यह कुष्ठ की तरह ही रक्त-माॅस-मेद मे आश्रित वात-पित-कफ तीनो दोषो से त्वचा मे विकृति पैदा कर देता है।

ध्यान रखें :-

कुष्ठ कृमिजन्य होता है और धातुओ का नाश करता है

किलास (सफेद त्वचा) मे धातु नाश नही होता है न ही कृमि जन्य होताहै।
--रक्त मे होने वाला किलास -""दारूण""
माॅसगत तांबे के रगं का किलास
""वारूण""
और मेदगत श्वेत वर्ण का
""श्वित्र"" कहलाता है।

इन की चिकित्सा मे धैर्य चाहिये।
रोगी को संयमी और पवित्र हो तो रोग पराजित अवश्य होता है।

"नीच रोमनखो`श्रान्तो हिताश्यौषध तत्परः
योषिन्मांससुरावर्जी कुष्ठी कुष्ठमपोहति।।   (सुश्रत)

चिकित्सा :-
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सर्व विदित औषधी
**बाकुची तैल व चालमुगरा तैल मिलाकर लगाये।

**पान मे लगाने  वाले कत्था का लेप करे।
**श्वेत गुंजादि लेप बना कर भी लगा सकते है।
**रस मणिक्य 60 mg
**शशिलेखा वटी 250 mg
सवेरे शाम शहद मे मिला कर दे।

खदिर+आमला क्वाथ दे बाबची क्वाथ मे पीते समय डाले ।

श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा।

श्वेत कुष्ठ की चिकित्स।Dr.Virender Madhan.in hindi.
*चिकित्सा ... *
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चिकित्सा में संशोधन और संशमन दोनों का प्रयोग वांछित है..
 1  -  *संशोधन*
श्वित्र में संशोधन (विशेषत: विरेचन) की महत्ता ...
    वैसे तो संशोधन के लिए पूर्ण पंचकर्म का अपना महत्व है पर श्वित्र रोग एक रक्त दोषज व्याधि है और रक्त का मल पित्त बताया गया है जिसके निस्तारण के लिए विरेचन सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।
2 -  *संशमन..*
       संशमन चिकित्सा हेतु विभिन्न औषधियों यथा बाकुची,चित्रक,विडंग ,खदिर,आमलकी एवं हरिद्रा आदि का उपयोग वर्णित है ।आधुनिक जानकारी के अनुसार ये सभी औषधियाँ बहुत सक्षम Antioxidants हैं और आधुनिक विज्ञान मानता है कि Melanin pigment की Biosynthesis में कुछ ऐसे तत्व उत्पन्न होते हैं जो Anti oxidative Enzymes को suppress करके Melanin की Synthesis को रोक देते हैं अतः इस रोग में Antioxidants की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है ।
बाकुची चूँकि श्वित्र(Vitiligo)में Ayurvedic drug of choice मानी जाती है अत: इसके Mode of Action पर काफ़ी research हुई है ।इन researches के अनुसार....
        बाकुची अपने कटु तिक्त रस,रूक्ष गुण ,उष्ण वीर्य और कटु विपाक के कारण एक Strong Antioxidant के तौर पर कार्य करती है ,Local Blood Circulation को बढ़ाती है और इस तरह प्रभावित क्षेत्र में उपस्थित Cells को Nutrition Provide करती है जिससे पर्याप्त मात्रा में त्वचा में भ्राजक पित्त उत्पन्न होता है जो त्वचा के colour के लिए उत्तरदायी माना जाता है ।आधुनिक विद्वानों के अनुसार इस प्रकार ये Melanin pigment की उत्पत्ति को बढ़ा कर त्वचा में उनकी मात्रा बढ़ाती है जिससे सफेद दाग़ों (Vitiligo)में Normal Colour आने लगता है जो Recovery का परिचायक होता है ।
*अनुभूत चिकित्सा :::*

मेरे द्वारा अनुभूत चिकित्सा निम्न प्रकार है ...
1 - पंचसकार चूर्ण 2 चम्मच रात्रि को विरेचन(संशोधन )के लिए ।
2 - बाकुची बीज को रात कच्चे घड़े के 1 लीटर पानी में भिगोकर रख दें ।सुबह पानी छान कर पीलें और बाकुची के इन्हीं बीजों की पेस्ट बना कर दागों पर लगायें,आधे घंटे बाद सूखने पर धो लें ।रात्रि को दागों पर बाकुची तैल लगा कर सोयें । बाकुची बहुत उष्ण वीर्य औषधि है अतः प्रयोग में सावधानी आवश्यक है ।
3 - बाकुची चूर्ण 1 ग्राम दिन में तीन बार      भोजनोपरान्त |
4 - आरोग्यवर्धिनी वटी 2 गोली सुबह शाम
5 - आमलकी रसायन 5 ग्राम सुबह शाम दूध से ।
        यदि बाकुची रोगी को अनुकूल सिद्ध न हो तो तुरंत रोक कर शीत वीर्य औषधियों का सेवन करायें तथा शेष चिकित्सा लाभ होने तक जारी रखें ।अधिकांश रोगियों में 2-3 माह में अनुकूल परिणाम दिखने लगते हैं ।

बहुमुत्र की चिकित्सा

बहुमुत्र की चिकित्सा।
जीर्ण बहूमुत्र रोग मे
मैं अब जो व्यवस्था करने जा रहा हुॅ

सब से पहले
1--स्नेहन
2--स्वेदन लेप द्वारा
  लेप:- **असगन्ध के पत्र
**पलास पत्र
**आमपत्र
**पिलखन पत्र
**जामुनपत्र
**बेलपत्र

रस-रसायन
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रससिन्दुर -2:5ग्राम
मल्ल सिन्दुर-2:5 ग्राम
त्रिवंग भस्म 2:5 ग्राम
-------60 dose
1-1dose  सवेरे शाम शहद से

चुर्ण:-
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अश्वगन्धा
खरैटी बीज
गोक्षुरू
जामुन की गुठली
आम की गुठली
कमल गठ्ठे
तुलसी
त्रिफला
>> सब का चूर्ण बना कर 3ग्राम की मात्रा मे दिन में दो बार प्रयोग करें।
पथ्य:--
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अजवायन +बेसन+बादाम+ तिल+शक्कर के लड्डू सवेरे शाम दूध से।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।