श्वेत कुष्ठ (leucoderma) Dr.Viernder Madhan.in hindi.
***श्वेत कुष्ट जिसे हम कहते है वास्तव मे कुष्ट नही होताहै।
इसे हम किलास कहते है।
यह कुष्ठ की तरह ही रक्त-माॅस-मेद मे आश्रित वात-पित-कफ तीनो दोषो से त्वचा मे विकृति पैदा कर देता है।
ध्यान रखें :-
कुष्ठ कृमिजन्य होता है और धातुओ का नाश करता है
किलास (सफेद त्वचा) मे धातु नाश नही होता है न ही कृमि जन्य होताहै।
--रक्त मे होने वाला किलास -""दारूण""
माॅसगत तांबे के रगं का किलास
""वारूण""
और मेदगत श्वेत वर्ण का
""श्वित्र"" कहलाता है।
इन की चिकित्सा मे धैर्य चाहिये।
रोगी को संयमी और पवित्र हो तो रोग पराजित अवश्य होता है।
"नीच रोमनखो`श्रान्तो हिताश्यौषध तत्परः
योषिन्मांससुरावर्जी कुष्ठी कुष्ठमपोहति।। (सुश्रत)
चिकित्सा :-
--------------
सर्व विदित औषधी
**बाकुची तैल व चालमुगरा तैल मिलाकर लगाये।
**पान मे लगाने वाले कत्था का लेप करे।
**श्वेत गुंजादि लेप बना कर भी लगा सकते है।
**रस मणिक्य 60 mg
**शशिलेखा वटी 250 mg
सवेरे शाम शहद मे मिला कर दे।
खदिर+आमला क्वाथ दे बाबची क्वाथ मे पीते समय डाले ।
***श्वेत कुष्ट जिसे हम कहते है वास्तव मे कुष्ट नही होताहै।
इसे हम किलास कहते है।
यह कुष्ठ की तरह ही रक्त-माॅस-मेद मे आश्रित वात-पित-कफ तीनो दोषो से त्वचा मे विकृति पैदा कर देता है।
ध्यान रखें :-
कुष्ठ कृमिजन्य होता है और धातुओ का नाश करता है
किलास (सफेद त्वचा) मे धातु नाश नही होता है न ही कृमि जन्य होताहै।
--रक्त मे होने वाला किलास -""दारूण""
माॅसगत तांबे के रगं का किलास
""वारूण""
और मेदगत श्वेत वर्ण का
""श्वित्र"" कहलाता है।
इन की चिकित्सा मे धैर्य चाहिये।
रोगी को संयमी और पवित्र हो तो रोग पराजित अवश्य होता है।
"नीच रोमनखो`श्रान्तो हिताश्यौषध तत्परः
योषिन्मांससुरावर्जी कुष्ठी कुष्ठमपोहति।। (सुश्रत)
चिकित्सा :-
--------------
सर्व विदित औषधी
**बाकुची तैल व चालमुगरा तैल मिलाकर लगाये।
**पान मे लगाने वाले कत्था का लेप करे।
**श्वेत गुंजादि लेप बना कर भी लगा सकते है।
**रस मणिक्य 60 mg
**शशिलेखा वटी 250 mg
सवेरे शाम शहद मे मिला कर दे।
खदिर+आमला क्वाथ दे बाबची क्वाथ मे पीते समय डाले ।
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