Guru Ayurveda

सोमवार, 27 सितंबर 2021

सदा स्वस्थ दीर्घायु कैसे रहेंं?

 स्वस्थ दीर्घायु कैसे रहे ?

#Svesth dirghayu kaise rahen?


#कैसे सदा स्वस्थ रहे?

#स्वस्थ दीर्धायु के लिये क्या करें?

#सदा स्वस्थ रहने के उपाय.

#आयूर्वेद के अनुसार जीवनशैली.

#life style for healthy life.

सदा स्वस्थ रहने के लिए आयुर्वेद में ऐसे सूत्र दिये है जिनके पालन करने से व्यक्ति हर तरह के रोगों से बच सकते है और दीर्धायु प्राप्त कर सकते है।

उनमे मुख्य है

1-आहार

2-विहार

2-निद्रा


  आहार  

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#आहार वर्णन– 

 जिस प्रकार मानव जीवन हवा पर निर्भर करता है। उसी प्रकार भोजन भी मनुष्य को जीवित रखने के लिए जरूरी है। 

आहार आयुर्वेद के त्रिस्तम्भ मे से एक है.

भोजन में षडरस होना चाहिए.


मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा और कसैला का होना जरूरी, आहार की गड़बड़ी से बढ़ते शरीर में दोष और रोग होते है।


भोजन को स्वास्थ्य का प्रमुख तत्व माना जाता है।

 आयुर्वेदिक आहार व्यक्ति विशेष के शरीर की प्रकृति पर आधारित होता है, जो उसे पोषण देता है। आहार बीमारियों से भी दूर रखता है।  हैं .

#आयुर्वेदिक आहार :-

 आयुर्वेद में माना जाता है कि कोई भी बीमारी शरीर में पाए जाने वाले तत्त्वों के असंतुलन के कारण होती है। जब आयुर्वेद के तीनों तत्त्वों वात, पित्त और कफ में से किसी में असंतुलन होता है तो इसे दोष कहा जाता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति में वात की अधिकता है तो उसे चक्कर आएगा, शरीर में दर्द होते है.

 पित्त की अधिकता है तो जलन, अम्लपित्त, सूजन आदि होगी और 

कफ का असंतुलन होने पर उसे बलगम ज्यादा बनता है.कास,श्वास,आदि रोग हो जाते है।

 आयुर्वेद में आहार की तीन श्रेणियां हैं।

सात्विक आहार : 

यह सभी आहारों में सबसे शुद्ध होता है। शरीर को पोषण, मस्तिष्क को शांत, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसमें साबुत अनाज, ताजे फल, सब्जियां, गाय का दूध, घी, फलियां, मेवे, अंकुरित अनाज, शहद और हर्बल चाय शामिल होती है।

राजसिक आहार :-

यह भोजन प्रोटीन आधारित और मसालेदार होता है। अत्यधिक शारीरिक श्रम करने वाले इस भोजन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

तामसिक आहार :-

 इसमें रिफाइंड भोजन शामिल होते हैं। यह डीप फ्राई और मसालेदार होते हैं। इनमें नमक की मात्रा भी अधिक होती है। यह आलस्य बढ़ाते हैं।

पोषक तत्त्वों का बना रहता संतुलन

भोजन में छह रस शामिल होने चाहिए। मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा और कसैला। 


वात प्रकृति के लोगों को मीठा, खट्टा और नमकीन,


 कफ प्रकृति के लोगों को कड़वा, तीखा, कसैला और 


पित्त प्रकृति के लोगों को मीठा, तीखा और कसैला भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं बढ़ता है।


आयुर्वेदिक डाइट


ऑर्गेनिक भोजन ऊर्जा से भरपूर होता है। कम तेल और कम मसालों में सब्जियों को लगातार हिलाते हुए हल्का तलकर बनाएं। 

मौसमी फल, दूध, छाछ, दही, पनीर, दालें, सोयाबीन और अंकुरित अनाज लें। 

चीनी की जगह शहद, गुड़ लें.


 मैदे के बजाए चोकरयुक्त आटा व दलिया खाएं। 

भोजन न तो ज्यादा पका हो और न ही कम पका होना चाहिए।


आहार के सिद्धांत

हमारा भोजन वह आधार है जिससे हमारे शरीर का निर्माण होता है। 

चरक संहिता के अनुसार 

किसी भी रोग से मुक्ति के लिए उचित आहार लेने का अत्यंत महत्व है। औषधि के प्रयोग से मिलने वाला लाभ उचित आहार लेने से ही मिल सकता है। सात्विक भोजन औषधि लेने से 100 गुना अधिक लाभदायक है।

#डॉ.वीरेंद्र मढान


अगर हमारे शरीर को स्वस्थ रखना है तो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाना बहुत जरूरी है ताकि वो हमारे शरीर पर हमला करने वाले बैक्टीरिया से लड़ सके. 


#विहार वर्णन,[ life Style]


ब्रह्ममुहूर्त मे उठने की आदत बना लें। 

ब्रह्ममुहूर्त मे सबसे पहले जितना पानी पी सकते है पीयें.

सवेरे घूमने जाये कुछ व्यायाम अपनी शक्ति अनुसार करें.

तैल मालिस मौसम अनुसार जरुर करें.

स्नान, दंतधावन, सेविगं के बाद  प्रातःकाल मे स्नान आदि के बाद जरूर परमेश्वर का घ्यान पूजा करें.

उसके बाद भोजन करें.

प्रातःकाल मे सबसे गरिष्ठ भोजन कर सकते है दोपहर मे कुछ कम तथा रात मे गरिष्ठ भोजन न करें ।

कपडे साफ सुथरे पहनने चाहिए .

फटा कपड़ों को सील कर धो कर पहने.

नित्य धन कमाने के लिये प्रयत्न करते रहना चाहिये.


खुश रहा करो. 

जो खुलकर हंसते हैं, उनके शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति सही ढंग से होती है. इससे उनका इम्यून सिस्टम तो बेहतर होता ही है, इसके अलावा हृदय, फेफड़े और मांसपेशियां उत्तेजित होते हैं. मस्तिष्क से एंडोर्फिन हार्मोन निकलते हैं, जिससे तनाव कम होता है और तनाव की वजह से होने वाली तमाम समस्याओं से बचाव होता है. इसलिए खुलकर हंसने की आदत डालें.

 

 खाना खाते समय बोलना नहीं चाहिए.   


 शरीर की मालिश करने की आदत डालिए.

 इससे न सिर्फ शरीर का रूखापन खत्म होता है बल्कि ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. स्किन शाइन करती है और पाचन क्रिया बेहतर होती है. पाचन क्रिया में सुधार आने से अपच, वायु और पित्त विकार, बवासीर, अनिद्रा आदि   बीमारियों से शरीर का बचाव होता है.  


निन्द्रा वर्णन :-

निन्द्रा स्वास्थ्य का तीसरा स्तम्भ है ।

स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। नींद से न सिफ शरीर के कार्य सुनयंत्रित होते हैं बल्कि 

काम में खर्च हुई ऊर्जा फिर से शरीर मे एकत्र होती है। लेकिन प्रकृति से बढ़ती दूरी और खराब दिनचर्या का असर इंसान की नींद पर देखने को मिल रहा है। नींद को लेकर अलग -अलग इंसान में अलग- अलग समस्या हो सकती है। वैसे तो हर इंसान को 6 से 8 घंटे की नींद की जरूरत होती है लेकिन यह हर इंसान के लिए इसका अलग अलग समय हो सकता है।

अनिद्रा के कारण

अनिद्रा यानी नींद न आने के कई कारण होते हैं जिनमें से प्रमुख हैं- तनाव, किसी प्रकार का दर्द, असुविधाजनक मौसम, मानसिक परेशानी, अधिक प्ररिश्रम और पेट में गड़बड़ी हो सकता है। कई बार गलत खान पान से भी नींद नहीं आती।


आयुर्वेद के अनुसार,

तीन कारणों से होती है अनिद्रा

एक रिपोर्ट के अनुसार, अनिद्रा की समस्या तीन दोषों में विकृत के कारण होती है। जिनमें तर्पक कफ,

 साधक पित्त, और

 प्राण वात में असंतुलन होने पर नींद न आने की बीमारी होती है। प्राण वात के कुपित होने से मष्तिष्क की तंत्रिकाएं अति संवेदनशील हो जाती हैं। इस कारण नींद न आने की समस्या उत्पन्न होती है।


नींद में आने सहायक उपाय-


ब्राहमी का प्रयोग: 

यह औषधि अनिद्रा में अत्यंत लाभ देती है। रात्रि के समय चूर्ण के रूप में अथवा उबाल कर इसका काढ़ा पीने से या फिर किसी भी रूप में ब्राहमी का सेवन अनिद्रा के रोग में बहुत लाभकारी है।

अन्य:-

1 - सोने से पहले नारियल या सरसों तेल से पैरों और पिंडलियों में मालिश करना अत्यंत लाभकर है।


2- एक चम्मच ब्राहमी और अश्वगंधा का पाउडर 2 कप पानी आधा रह जाने तक उबालें। रोज सुबह इसका सेवन करना लाभदायक है।


3- कटे हुए केले पर पीसा हुआ ज़ीरा डाल कर प्रति रात्रि शयन से पूर्व खाना भी नींद लाने में सहायक है।


4-ताजे फलों और सब्जियों का सेवन, छिलकासहित पिसे हुए अन्न, छिलका सहित दालें, दुग्ध एवं मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।


5- कंप्यूटर, मोबाइल और टी वी का प्रयोग कम से सोने से 2 घंटे पूर्व ना करें।


अंत मे -

-अपनी केयर स्वयं करें .

-शरीर के साथ खिलवाड़ न करें।

-शरीर से कर्म करते रहें.

-शरीर को अधिक आराम देने से शरीर में रोग उत्पन्न हो जाते है

-विरुद्ध भोजन न करें जैसे-मछली संग दूध.

-मूली संग दूध.

-नमकीन संग दूध न ले


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"सदा स्वस्थ कैसे रहें ?”

उम्मीद करता हूँ कि आपको लेख अच्छा लगा होगा।

#डा०वीरेंद्र मढान.




 




 


रविवार, 26 सितंबर 2021

भगंदर. Fistula क्या है इसकी चिकित्सा क्या है ?

 भगंदर,Fistula का है और इसका ईलाज क्या है ?In hindi.

#भगंदर#फिस्चूला#Fistula#नाडीव्रण का आयुर्वेदिक वर्णन ,भगंदर का आयुर्वेदिक ईलाज ,#भगंदर का घरेलू उपाय. इनके परहेज.व #भगंदर के रोगी क्या करें?*भगंदर मे क्या न करें?#

[भगंदर रोग:Fistula.]

By Dr.Virender Madhan. #डा०वीरेन्द्र मढान.

#भगन्दर [ Fistula ] क्या होता है ?
Fistula_भगन्दर गुदा के एक साईड मे 1 से 2 अंगुली दूर एक बोईल्स यानि फुंसी के रुप में होता है.
यह अन्दर की तरफ मूत्राशय और गूदा के चारों ओर हो कर गुदा के पास फुंसी के रूप में 'फिस्चूला' उत्पन्न हो जाता है ।
_भगंदर, नाम से ही लगता है कोई बड़ी बीमारी होगी। एक मामूली फोड़े से बढ़ कर भयंकर दर्द देने वाली बीमारी है, 
 _नाडी व्रण नली में पस जमा होने के कारण भगंदर जानलेवा दर्द दे सकता है। इस बीमारी को ऐसे समझें कि हमारे कुछ नाजुक अंग या नस जो आपस में जुड़े नहीं होते, उन्हें यह जोड़ देता है। जैसे आंत को त्वचा से, योनि को मलाशय से। 

भगंदर होने केकारण:-

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गुदा की सफाई न रहना बडा कारण है ।
खुजली होने पर नाखून आदि से छिल जाना।
जिन कारणों से बवासीर हो जाती है उन सभी कारणों से नाडीव्रण_भगंदर हो जाता है।कठोर सीट पर बैठकर अधिक समय बिताना बडा कारण है इससे या किसी ओर कारण से जब तीनों दोष कुपित हो जाते है।तब भी भगन्दर_Fistula_नाडीव्रण बन जाता है.आयुर्वेद के अनुसार

#भगंदर 6 प्रकार के होते है .

1.वातज_भगंदर  2.पित्तज_भगंदर 
3.कफज_भगंदर
4.वातपितज_भगंदर
5.वातकफज_भगंदर
6.पितकफज_भगंदर
7.शल्यज_भगंदर 

लक्षण:

हर प्रकार का नाडीव्रण बहुत पीडा दायक होती है। 
फुटने पर , पीप यानि पस निकलती है यह कभी रक्तवर्ण कभी सफेद कभी पानी की तरह होता है. यह कफज नाडीव्रण है ।
जो भगंदर ऊंठ की गर्दन जैसी होती है उसे उष्ट्रग्रीव आयुर्वेद में कहा है ।यह पित्त कारक पदार्थों के अधिक सेवन से होता है।
जिसमें खुजली बहुत होती है. सफेद रंग की फुंसी होती है. फुटने पर गाढी मवाद ( पुय ) निकलती है. वह नाडीव्रण कफज होता है उसे परिश्रावी भगंदर भी बोलते है ।
भगंदर मे जब शंख यानि शम्बूक के समान घुमावदार हो तो उसे शम्बुकावर्त भगंदर_नाडीव्रण कहते है। यह त्रिदोषज होता है।
शल्यज भगंदर किसी नाखुन, कांटे, या आघात के कारण व्रण बन जाता है ।
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भगंदर कीेआयुर्वेदिक चिकित्सा:-
#[Bhag ander ki. Ayurvedic chikitsa in hindi.]

*त्रिफला चूर्ण ू1-1 चम्मच दिन में 2 बार लें.
*त्रिफला गुग्गुल 1-2 गोली दिन में 2-3 बार ले सकते है.
*कांचनार गुग्गुल ले सकते है.
*अमृता गुग्गुल भी उपयोगी है.

#भगंदर का सरल ईलाज.

********************
*नीम की छाल,या पत्ते,लेकर पीसकर लेप बनाकर लगाये. इससे फोडे,नासूर आदि भी ठीक होते है.
*नीम की निबौलियों को पीसकर लेप बनाकर लगाने से भी लाभ मिलता है.
*पीपल की अन्तरछाल का चूर्ण भगंदर या नासूर मे भरने या फूंकने से रोग मे आराम मिलता है.
*नीम व बेर के पत्तों का चूर्ण भगंदर मे भरने से ठीक होता है.
*गुलर के दूध मे रूई भिगोकर कुछ दिनों तक भगंदर मे भरने से ठीक हो जाता है.

'भगन्दर' रोग में क्या खाएं [Your Diet During Fistula]

*भगन्दर से ग्रस्त लोगों का आहार ऐसा होना चाहिएः-

अनाज: पुराना शाली चावल ,गेहूं, जौ
दाल: अरहर, मूँग दाल, मसूर
फल एवं सब्जियां: हरी सब्जियां, पपीता, लौकी, तोरई, परवल, करेला, कददू, मौसमी सब्जियां, चौलाई, बथुआ, अमरूद, केला , सेब, आंवला, खीरा, मूली के पत्ते, मेथी, साग, सूरन, रेशेदार युक्त फल
अन्य: हल्का भोजन, घी, सैंधव (काला नमक), मटठा अत्याधिक पानी पिएं।


*भगन्दर रोग में क्या ना खाएं [Food to Avoid in Fistula]

भगन्दर से ग्रस्त लोगों को इनका सेवन नहीं करना चाहिएः-
परहेज_
अनाज: मैदा, नया चावल
दाल: मटर, काला चना, उड़द
फल एवं सब्जियां : आलू, शिमला मिर्च, कटहल, बैंगन, अरबी, आड़ू, कच्चा आम, मालपुआ, गरिष्ट भोजन
अन्य: तिल, गुड़, समोसा, पराठा, चाट, पापड़, नया अनाज, खट्टा और तीखा द्रव्य, सूखी सब्जियां, मालपुआ, गरिष्ठ भोजन (छोले, राजमा, उडद, चना, मटर, सोयाबीन)
सख्ती से पालन करें:- शराब, फ़ास्ट फ़ूड, आइसक्रीम, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ, तेल मासलेदार भोजन, अचार, तेल, घी, अत्यधिक नमक, कोल्ड ड्रिंक्स, बेकरी उत्पाद, जंक फ़ूड नही लेना चाहिए।

 जीवनशैली 
[Your Lifestyle for Fistula Treatment]


*उपवास करें।
*जंक-फूड का सेवन न करें।
*तला-भुना एवं मिर्च-मसाले युक्त भोजन का सेवन बिल्कुल न करें।
*गुस्सा, डर और चिंता ना करें।
*ज्यादा मात्रा में भोजन न करें।
दिन में न सोएं
*पेशाब और शौच को न रोकें।

*ध्यान एवं योग का अभ्यास रोज करें।
*ताजा एवं हल्का गर्म भोजन अवश्य करें।
*भोजन धीरे-धीरे शांत स्थान में शांतिपूर्वक, सकारात्मक एवं खुश मन से करें।
*तीन से चार बार भोजन अवश्य करें।
*किसी भी समय का भोजन नहीं त्यागें एवं अत्यधिक भोजन से परहेज करें।
*हफ्ते में एक बार उपवास करें।
*अमाशय का 1/3rd _1/4th भाग रिक्त छोड़ें।
*भोजन को अच्छी प्रकार से चबाकर एवं धीरे–धीरे खायें।
*भोजन लेने के बाद 3-5 मिनट टहलें।
*सूर्यादय से पहले [5:30 – 6:30 am] जाग जायें।
*प्रतिदिन दो बार दांतों को साफ करें।
*रोज जिव्हा करें।
*भोजन लेने के बाद थोड़ा टहलें।
*रात में सही समय पर [9- 10 PM] नींद लें।

 *योग और आसन कर सकते हैंः-

योग प्राणायाम एवं ध्यान: भस्त्रिका, कपालभांति, बाह्यप्राणायाम, अनुलोम विलोम, भ्रामरी, उदगीथ, उज्जायी, प्रनव जप।
आसन: गोमुखासन, मर्कटासन,पश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन, कन्धरासन।

आसन– उत्कट आसान में ना ना बैठें। (वैद्यानिर्देशानुसार)।

* अपने चिकित्सक से सलाह जरुर करें ।


*कब्ज या सूखे मल की स्थिति में पर्याप्त मात्रा में फाइबर लें।
तरल पदार्थ/पेय का ज्यादा सेवन करें।
*शराब और कैफीन पीने से बचें।
*शौच को रोकें नहीं. 
*पाचन तंत्र फिट रखने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें।
*शौच करने में पर्याप्त समय लें। न बहुत हड़बड़ी करें और न ही बहुत ज्यादा देर तक बैठे रहें। 
*मल द्वार को साफ और सूखा रखें। शौच के बाद अच्छे से सफाई करें। 

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शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

आपको बवासीर है तो क्या करे?

# बवासीर, #Piles या Hemorrhoids, #अर्श 


बवासीर Piles


बवासीर को Piles या #Hemorrhoids भी कहा जाता है। 

बवासीर एक ऐसी बीमारी है, जो बेहद तकलीफदेह होती है। इसमें गुदा (Anus) के अंदर और बाहर तथा मलाशय (Rectum) के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से गुदा के अन्दर और बाहर, या किसी एक जगह पर मस्से बन जाते हैं। मस्से कभी अन्दर रहते हैं, तो कभी बाहर आ जाते हैं। करीब 60 फीसदी लोगों को उम्र के किसी न किसी पड़ाव में बवासीर की समस्या होती है। रोगी को सही समय पर #पाइल्स का इलाज #(Piles Treatment) कराना बेहद ज़रूरी होता है। समय पर बवासीर का उपचार नहीं कराया गया तो तकलीफ काफी बढ़ जाती है।

अर्श की सरल चिकित्सा

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- 'बवासीर रोग' मे सबसे पहले रोगी का पेट साफ करना चाहिए ।
- पकी हुई नीम की निबौलियों पुराने गुड के साथ मिला कर सेवन करें ।
- नीम की निबौली और रसोंत समान मात्रा में मिला करके गाय के घी मे पीसकर मस्सों पर लेप करें ।
- रसौंत को घिसकर बवासीर पर लेप करें।
- आक के पत्तों का लेप बनाकर गुदा पर लेप लगायें।
- पंचकोल( पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, और सौंठ ) का काढा सेवन करने से कफज बवासीर ठीक हो जाती है ।
- अदरक का काढा बनाकर पीने से कफज बवासीर ठीक हो जाते है।
- दारुहल्दी, खस, नीम की छाल का काढा पीने से खूनी बवासीर में आराम मिलता है।
- नागकेसर को मिश्री के साथ धी मे मिलाकर सेवन करने से *खूनी बवासीर* में आराम मिलता है।
- बिना छिलका के तिल 10 ग्राम मक्खन 10 ग्राम मे मिलाकर सेवन करने से रक्त स्राव बन्द हो जाते है।
- मट्ठा मे पीपल चूर्ण मिलाकर पीने से बवासीर ठीक होती है।
- बकरी का दूध प्रातः पीने से बवासीर के रक्तस्त्राव मे आराम मिलता है।
- गैंदे के फूलों 10 ग्राम मे 3-4 काली मिर्च पीसकर पानी में मिलाकर छानकर पीने से खूनी बवासीर- Piles- में आराम मिलता है।
-करेले या करेलो के पत्तों का रस मिश्री मिलाकर पीने से खूनी "बवासीर" नष्ट हो जाती है।
-प्याज के रस मे धी और मिश्री मिला कर पीने से बवासीर नष्ट हो जाती है ।
- बडी हरड को धी मे भूनकर बराबर का बिड्नमक मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें उस मे से। तीन ग्राम पानी से सोते लें बवासीर भी ठीक होती है और कब्ज भी दूर होती है।
- गिलोय के सत्व को मक्खन के साथ मिलाकर खाने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
-छाछ मे भुना जीरा ,हींग, पुदीना, सैंधवनमक मिलाकर पीयें।

[क्या करें क्या न करें ?]

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पुराने चावल,  मूंग, 
चने की दाल,  कुलथी की.दाल,
बथुआ , सौफ, सौंठ, परवल,
करेला, तोरई, जमीकन्द, गुड छाछ , छोटी मूली ,
कच्चा पपीता, दूध , धी , मिश्री , जौ , लहसुन , चूक 
आंवला, सरसौ का तैल , हरड, गौ मूत्र ये सब पथ्य है ।
खाने के योग्य है।

अपथ्य ( परहेज )

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- उडद, पिठ्ठी, दही, सेम, 
-गरिष्ठ भोजन, तले भुने पदार्थ, 
- धूप में रहना, मल मूत्र आदि वेगो को रोकना, कठोर सीट पर बैठना, मांस मछली, मैदे के पदार्थ लेना , 
- उकडू बैठना बवासीर के रोगी को मना है ।

#[खूनी बवासीर में ]
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लहसुन, सेम , विरुध आहार, दाहक पदार्थ ,खट्टे पदार्थ लेना मना है। अधिक मेहनत करना भी मना है।


गुरुवार, 23 सितंबर 2021

बवासीर Piles क्या है क्या उपाय करें?

 अर्श ( बवासीर ) Piles, Hemorrhoids


अर्श Piles बीमारी क्या है?


अर्श की निरुक्ति:-

,,,अरिवत्प्राणान् शृणाति इति अर्श।।"


शत्रू के समान जो प्राणों को कष्ट करें, उसे अर्श कहते हैं।
अर्श गुदा स्थान में होने वाला एक रोग है, आयुर्वेद में अर्श का व्यापक अर्थ है। 
चरक के अनुसार,,

अर्शासीत्यधिमांविकाराह्।"

अर्श अधिमांस विकार है।अर्थात अर्श मांस में ही अधिष्ठात है।
 इस प्रकार मूत्रेन्द्रिय, योनि, गला मुख,नासिका,कर्ण, नेत्रों के वत्र्भ और त्वचा स्थान भी अधिमांस के क्षेत्र है।
इन में उत्पन्न होने वाले मासान्कुर को अर्श कहते हैं।
आचार्य चरक ने गुदा में उत्पन्न मांसांकुर को ही अर्श माना है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान गुदा में होने वाले मांसांन्कुर को ही अर्श Haemorrhoids or Piles तथा किसी अंग में होने वाले मांसांन्कुर को पोलिप्स कहते हैं।
यहां पर हम गुदा में होने वाले मांसांन्कुर को अर्श कहेंगे।
आयुर्वेद के महऋषियों के अनुसार जब वातादि दोष कुपित होता है तब त्वचा मांस और मेद को दूषित करते हैं और परिणामस्वरूप गुदा के आसपास किनारे पर अथवा मल द्वार के अभ्यान्तर नाना प्रकार की आकृति वाले मांसान्कुर उत्पन्न हो जाते है, जिन्हें अर्श मस्से बवासीर कहते हैं।

"दोषस्त्वम् मासां मेदांसि संदूष्य विविधाकृतीन।

मांसांकुरान पानादौ कुर्वन्त्यर्शासि तांजगुह्।।”
अर्श का अधिष्ठान गुदा होने से गुदा की संरचना संक्षिप्त में समझ लें तो आसानी होगी। 
सुश्रुत निदान स्थान के द्वितीय अध्याय के अनुसार स्थूलान्त्र के आखिरी भाग के साथ संयुक्त अर्धांगुल सहित पांच अर्थात सवा चार अंगुल की गुदा होती है। 
उसमे डेढ़ डेढ़ अंगुल की तीन बलिया होती है।
1,,प्रवाहणी,,,मल का प्रवाहण करने वाली।
2,,विसर्जनी,,, गुदा का विस्फारण करने वाली।
3,,संवरणी,,, गुदा के चारों ओर से गुदा को संकोच करने वाली,गुदोष्ठ से एक अंगुल पर आधुनिक प्रत्यक्ष शरीर के अनुसार साढ़े चार अंगुल गुदा के निम्न भाग हैं
,,,
1 गुदौष्ठ Anus 2 गुदनलिका  Anal Cannal 3 मलाशय Rectum ।"
मलाशय का आखिरी इंच भर हिस्से को जिसमें अर्थात छल्ले झुर्रियां या सलवटें हुस्टन वाल्व Houston Valves कहते हैं।

अर्श के होने के कारण:-

- शारीरिक श्रम न करना।
 - गरिष्ट पदार्थ का सेवन करना।
- मिर्च मसाला,चट पटी वस्तु का अधिक सेवन करना।
 -अधिक आराम से बैठे रहना।अधिक मात्रा में शराब पीना।
- कब्ज की अधिकतर शिकायत रहना।
- रात्रि जागरण।
- यकृत की विकृतियां।
- स्त्रियों में गर्भ च्युति होना।
- वृद्धावस्था में प्रोस्टेट  
- ग्रंथि के बढ़ जाने पर।
-चाय अधिक सेवन करने से।
- साईकिल की अधिक सवारी करने से।

ये अर्श रोग के प्रधान हेतु हैं।

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। 

बवासीर 2 प्रकार की होती है। 

आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। 
बादी बवासीर में 
गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन
 खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रकाल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है।
आयुर्वेदिक उपचार
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 इसका इलाज चार अवस्थाओं में होता है।                      
फर्स्ट डिग्री : दवाओं से
सेकेंड डिग्री : क्षार कर्म (क्षार लेप) से।
क्षार सुत्र:- इसके लिए थोड़ा अपामार्ग क्षार, 10 एमएल थुअर पौधे का दूध और एक ग्राम हल्दी को मिलाकर पेस्ट बनाते हैं। इसके बाद एक मेडिकेटेड धागे पर लगाकर सुखा लेते हैं और मस्सों पर बांधते हैं।
थर्ड डिग्री : एलोवेरा की मदद से  अग्निकर्म चिकित्सा की जाती है।
फोर्थ डिग्री : इसमें शल्य चिकित्सा से मस्सों को हटाते हैं।

औषधियां :-

- कांकायन वटी (2 गोली सुबह व शाम)।
 - अर्श कुठार रस (1 गोली सुबह व शाम)।
 - अभ्यारिष्ट व द्राक्षासव (4-4 चम्मच भोजन के बाद, बराबर मात्रा में पानी मिलाकर)।
-  कुटज धन वटी (1 गोली सुबह व शाम)।
मस्सों पर लगाने के लिए
- कासीसादि तेल व 
-जात्यादि तेल मस्सों पर लगाएं।
 इसके अलावा गुनगुने पानी में हल्दी डालकर सेक करें।


बुधवार, 22 सितंबर 2021

उल्टीयां हो रही है तो क्या करें ?

 उल्टीयां (वमन )हो रही है तो क्या करें ? Dr.Virender Madhan.in hindi.

उल्टी क्या है ?

उल्टीयां के कारण क्या है? 

और उल्टीयां हो तो क्या करें उपाय ? 


उल्टी क्या है?

What is vomiting?

उल्टीयां क्यों होती है ?

उल्टीयां (वमन ) कितने प्रकार की होती है?

"जब भोजन पेट से अनैच्छिक रूप से या स्वेच्छा से मुंह से बाहर आ जाता है, तो उसे उल्टी कहा जाता है। ”

उल्टी (वमन ) कई कारणों से होता है जैसे - 
मोशन सिकनेस / सीसिकनेस।

गर्भावस्था की पहली तिमाही । 
भावनात्मक तनाव।
पित्ताशय की बीमारी।
 संक्रमण। दिल का दौरा।
अधिक भोजन करना।
 ब्रेन ट्यूमर।
 कैंसर या अल्सर।
 बुलिमिया और 
विषाक्त पदार्थों का सेवन या अधिक शराब पीना आदि में उल्टीयां होती है।

बीमार होने पर हमें उल्टी क्यों होती है?
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उल्टी शरीर मे बैक्टीरिया। 
वायरस ,जहर, या कुछ परेशान करने वाले पदार्थ के बाहरी खतरे से शरीर की रक्षा करने का तरीका है। 
"उल्टी का उद्देश्य पेट की सामग्री को खाली करना है जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है।”

आयुर्वेद में वमन ( उल्टीयां ) को 5 प्रकार का कहा है
1-वातज।  2- पित्तज
3- कफज।  4- सन्निपातज
5- आगन्तुक 
पहले 4 शारिरिक दोषो के बिगडने से 5वां बाहरी कारणों से जैसे चोट लगना , गलत आहार करना, विष खाना आदि।

ल्टी ( वमन ) के कई कारण होते है ।
 
- फ़ूड पॉइज़निंग:-
संक्रमित भोजन करना । बैक्टीरिया, वायरस से दूषित भोजन का सेवन आमतौर पर फ़ूड पॉइज़निंग का कारण बनता है। इसके लक्षण बहुत गंभीर नहीं होते हैं लेकिन अगर स्थिति बनी रहती है तो व्यक्ति को डॉक्टर के पास जाने की जरूरत होती है।
- अपच:-
मंदाग्नि होकर भोजन न पचना । अजीर्ण रोग कुपच का ही रूप है । यह एक बहुत ही सामान्य स्थिति है जो आजकल दूषित भोजन या कुछ पुरानी पाचन समस्याओं के कारण सभी को होती है।
 - वायरल या बैक्टिरिया के कारण उदर मे विकृति हो जाती है गैस्ट्रोएंटेराइटिस के रूप में भी जाना जाता है, यह तब होता है जब पेट और आंत में सूजन होती है।
- गैस्ट्राइटिस: :-
 उसमें जलन पैदा करती हैं। इससे उल्टी और जी मिचलाने की भावना पैदा होती है।
- अधिक खाना।
- विरुद्ध आहार करना 
- प्रकृति विरूद्ध आहार करने से।

- घृणित पदार्थो के देखने से उल्टी (वमन ) हो जाता है ।

- सफर के कारण भी बहुत से लोगों को उल्टी हो जाती है।
- दुर्गंधयुक्त पदार्थों को देखने मात्र से, सुंघने मात्र से ऊल्टी हो जाती है।
- कैंसर के रोगी को कीमोथरेपी के बाद वमन यानि उल्टियाँ होती है।
- पत्थरी रोग मे भी उल्टीयां होती है ।
- पेप्टिक अल्सर के कारण भी उल्टीयां होती है ।
- आंतों में संक्रमण के कारण भी उल्टीयां होती है।
- टी.बी. , न्युमोनिया आदि रोगों मे भी उल्टीयां हो सकती है।

उल्टी के लक्षण:

* पेट में दर्द ।
 * दस्त, बुखार हो सकते है ।
* चक्कर आना ।
* अत्यधिक पसीना आना ।
* मुंह सूखना ।
* पेशाब में कमी होना ।
* बेहोशी, चिंता, डिप्रेशन, भ्रम होना ।
* नींद न आना ।

 उल्टी के कुछ सामान्य लक्षण हैं।

* स्त्रियों में गर्भावस्था मे उल्टीयां हो सकती है।

* मानसिक रोगों में, तनाव मे भी उल्टीयां होते देखा गया है ।


उल्टी ( वमन ) Vomiting हो तो क्या करें ?

छोटे मात्रा में भोजन करें।
* कम से कम 3घण्टे सेे 6घण्टे  के बड़े अंतराल पर करना चाहिए।

* सामान्य आहार और मसालेदार या तैलीय खाद्य पदार्थों के स्थान पर नरम खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

* आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे कम फाइबर, कम वसा और कम चीनी वाले खाद्य पदार्थ।
*  केला, चावल, सेब की चटनी और टोस्ट या सोडा क्रैकर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

* निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन) से निपटने के लिए तरल पदार्थ का सेवन बढ़ाना चाहिए।

* शराब, कैफीन, दूध, पनीर, खट्टे फल और जूस से बचना चाहिए।

* अगर उल्टीयां अधिक है तो अपने चिकित्सक को जरुर दिखायें।

* उल्टी होना अपने आपमें रोग नही है यह किसी दूसरे रोगों का लक्षण होता है अतः उल्टीयां हो तो कारण का पता करें कि किस रोग के कारण उल्टीयां हो रही है।

आप उल्टी कैसे रोक सकते हैं?

उल्टी - वह तरीका है जिसके द्वारा शरीर अपशिष्ट पदार्थ को बाहर निकालता है। मस्तिष्क और पेट शरीर को दूषित भोजन को शरीर से बाहर निकालने की अनुमति देते हैं। हालांकि कई बार शरीर को उल्टी की आवश्यकता होती है, इसे रोकने की जरूरत है ।

- गहरी साँस लेना:
यदि किसी व्यक्ति को उल्टी का अनुभव हो रहा है तो उसे फेफड़ों और नाक के माध्यम से गहरी साँस लेने की कोशिश करनी चाहिए और साँस लेते समय आपके फेफड़ों में विस्तार होना चाहिए। यह उल्टी के समय मदद करता है। 

- शोधों में यह देखा गया है कि गहरी सांसें चिंता को शांत करने में भी मदद करती हैं जो उल्टी का एक और कारण है।

उल्टीयां रोकने के कुछ अन्य उपाय :-

1. अदरक – अदरक में पेट की हर समस्या से निपटने का इलाज होता है। इसके एक टुकड़े को कूचकर पानी में मिला लीजिए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन कीजिए। उल्टी से तुरंत लाभ मिलेगा।

2. लौंग – उल्टी आने की स्थिति में दो चार लौंग लेकर दांतो के नीचे दबा लें और इसका रस चूसते रहें। 

3. सौंफ – दिन में कई बार सौंफ चबाना उल्टी में बेहद फायदेमंद है। यह मुंह के स्वाद को बदलने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसे खाने के बाद उल्टी से काफी राहत मिलती है। इसमे मिश्री मिला कर खाने से शीध्र लाभ मिलता है।

4. संतरे का जूस – ताजा संतरे का जूस उल्टी में काफी लाभदायक है। इसके कई अन्य फायदे भी हैं। जैसे, यह शरीर में ब्लड प्रेशर के नियंत्रण के लिए भी बेहद लाभदायक है।

5. पुदीना – कभी भी उल्टी आने पर पुदीने की चाय बनाकर पी लीजिए या फिर केवल उसकी पत्ती को चबाइए। उल्टी से तुरंत राहत मिल जाएगी।

6. नींबू – उल्टी जैसा जी होने पर नींबू का एक टुकड़ा मुंह में रख लें। इससे उल्टी में काफी राहत मिलती है।

अपने चिकित्सक से सलाह जरुर करें ।
😀

7. इलायची – पेट की एसिडिटी शांत रखने के लिए तथा खाना हजम करने के लिए इलायची भी काफी कारगर उपाय है।







रविवार, 22 अगस्त 2021

ब्रहमी वटी और ब्रनिका सीरप

 ब्रह्मी वटी और ब्रनिका सीरप

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ब्राह्मी वटी का परिचय (Introduction of Brahmi Vati)


 ब्राह्मी वटी का उपयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। सदियों से आयुर्वेदाचार्य ब्राह्मी वटी के इस्तेमाल से रोगों को ठीक करने का काम कर रहे हैं।आयुर्वेद में यह बताया गया है कि ब्राह्मी वटी मानव मस्तिष्क के लिए अमृत के समान औषधि है। यह हिमालय की तराइयों में पाए जाने वाले ब्राह्मी पौधे से तैयार किया जाता है।


इसके पौधे नदियों के किनारे या अन्य नम स्थानों पर भी पाए जाते हैं। आइए जानते हैं कि आप ब्राह्मी वटी का प्रयोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं और स्वास्थ्य लाभ पा सकते हैं।

ब्रहमी के अनेक उत्पादन बाजार मे है जिनमे से मुख्य औषधि ब्रह्मीवटी और ़ Brainica syrup है ।


**  ब्राह्मी वटी क्या है? 

(What is Brahmi Vati?)


ब्राह्मी वटी (brahmi benefits )

- तनाव से छुटकारा दिलाने में मदद करती है, 

-सांसों की बीमारी, 

-विष के प्रभाव को ठीक करती है। 

-इसके साथ ही यह रोग प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) को मजबूत करती है। 

-यह मष्तिस्क तथा स्मरण शक्ति को स्वस्थ बनाती है।


-ब्राह्मी वटी का सेवन याद्दाश्त बढ़ाने के लिए फायदेमंद है।

-ब्राह्मी वटी के सेवन से मस्तिष्क की दुर्बलता एवं मस्तिष्क संबंधी सभी विकार नष्ट होते हैं। 

-ब्राह्मी वटी स्मरण शक्ति एवं बुद्धि को भी बढ़ाती (brahmi uses) है।

- मस्तिष्क संबंधी कार्य अधिक करने वाले लोगों जैसे- विद्यार्थी, अध्यापक आदि को ब्राह्मी वटी के साथ Brainica syrup सेवन जरूर करना चाहिए।उत्तम लाभ मिलता है।


- हृदय रोगों में फायदेमंद ब्राह्मी वटी का प्रयोग ।

- कई लोगों को ह्रदय संबंधी विकार होते रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए ब्राह्मी वटी का सेवन रोज करना चाहिए। इससे वातनाड़ियों तथा हृदय से संबंधित रोग तुरंत ठीक हो जाते है


- अनिद्रा की परेशानी में ब्राह्मी वटी का उपयोग लाभदायक (Brahmi Vati Uses to Cure Insomnia in Hindi)


-जो मरीज नींद ना आने की परेशानी से ग्रस्त हैं उनको ब्राह्मी वटी का प्रयोग (brahmi uses) करना चाहिए। इसके लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से Brainica Syrup व ब्राह्मी वटी के इस्तेमाल की जानकारी जरूर लें।


- ब्राह्मी वटी और Brainica syrup के योग से हिस्टीरिया में बहुत लाभदायक होती है। हिस्टीरिया से ग्रस्त मरीज ब्राह्मी वटी के उपयोग से लाभ पा सकते हैं।


- मूर्च्छा या मिर्गी में करें ब्राह्मी वटी का सेवन किया जाता है।


जो रोगी बार-बार बेहोश हो जाते हैं या जिनको मिर्गी आती है उन्हें ब्राह्मी वटी का सेवन करना चाहिए। 

इसके साथ–साथ सुबह–शाम ब्राह्मी घी 3-6 माशे तक दूध में मिलाकर पीना चाहिए। साथ मे Brainica Syrup  2-3 चम्मच भी पीना चाहिए। इससे बहुत लाभ है।


- स्नायु तंत्र को स्वस्थ बनाती है ब्राह्मी वटी और ब्रनिका का योग।

- Brainica Syrup मानव स्नायु तंत्र के लिए टॉनिक का काम करती है। यह मस्तिष्क को शांति प्रदान करने के अलावा स्नायु कोषों का पोषण भी करती है, ताकि आपको स्फूर्ति मिले।


** उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) में फायदा पहुंचाती है 

ब्राह्मी वटी और ब्रनिका सीरप


- हाई ब्लडप्रेशर आज आम बीमारी हो गई है। अनेकों लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसमें ब्राह्मी वटी का यह योग इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।


 ब्राह्मी वटी और Brainca Syrup का सेवन किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के दिशा-निर्देश में ही करना चाहिए।


अनुपान – गुलकन्द, दूध, मधु, मक्खन, आँवले का मुरब्बा, ब्राह्मी, शर्बत।

रविवार, 1 अगस्त 2021

बाल काले करने के उपाय

 >Gharelu upaye>ayurvedic treatment>herbal treatments

[बाल काले कैसे करें ?]

#Dr.Virender Madhan.

>>बालों को काला करने के कुछ उपाय।

#रीठा

** 1. बालों को काला करेगा रीठा

रीठा केश्य है । रीठा बालों के लिए प्राचीन काल से ही प्रयोग किया जाता रहा है।वैसे तो रीठा को हेयर ग्रोथ यानि बालों को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके आयुर्वेदिक गुण बालों को काला करने के लिए भी कारगर माने जाते हैं. इस आयुर्वेदिक औषधि में एंटी इफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो स्कैल्प में होने वाली खुजली को दूर करने में भी मददगार माने जाते हैं. रीठा से बालों को दोने के बाद बाल कोमल बनते हैं. एक तरह से रीठा कंडीशनर का काम करता है. यह बालों की सफेदी को दूर करने में मददगार माना जाता है.


** 2. आंवला

आंवला भी बालों को काला करने में फायदेमंद है ।आंवला एक रसायन है । यह मानव के लिए अमृत समान है ।आंवला कई स्वास्थ्य लाभों को लिए जाना जाता है. यह स्किन से लेकर बालों तक कई कमाल के फायदे देता है. आंवला में कई हर्बल गुण पाए जाते हैं. आंवला में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं. इसके साथ ही आंवला में विटामिन ए भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है. आंवला अल्फा-5 रिडक्टेस की गतिविधि को रोककर बालों के विकास में फायदेमंद माना जाता है. यह बालों का झड़ना रोकने के लिए भी कारगर माना जाता है. यह बालों की गुणवत्ता को बेहतर करने में मददगार माना जाता है.


** 3. शिकाकाई 

यह नेचुरल औषधि बालों को कई फायदे देती है. बालों की कई समस्याओं को दूर करने के लिए शिकाकाई को काफी कारगर माना जाता है. यह सफेद बालों से राहत दिलाने में भी मददगार मानी जाती है. इसके साथ ही यह बालों का झड़ना रोकने में भी फायदेमंद हो सकती है. शिकाकाई का ऑयल बालों की स्कैल्प से गंदगी को दूर करने में भी मदद करता है


> कैसे करें इन तीनों का इस्तेमाल?

बालों को नेचुरल तरीके से  ये तीनों बालों को काला करने के साथ बालों का झड़ना और डैंड्रफ से भी राहत दिला सकते हैं. इन तीनों का इस्तेमाल आप हेयर मास्क या शैम्पू के रूप में भी कर सकते है।