Health and fitness यह ब्लॉग आयुर्वेदिक ज्ञान , औषधियों और जडी-बूटी की पूरी जानकारी के बारे में है ।
Guru Ayurveda
मंगलवार, 2 नवंबर 2021
#दूध किसे पीना चाहिए?दूध से किसे होगी हानि ? In hindi.
आज #धनतेरस [धन्वंतरि ]पुजा कैसे करें?
#धनतेरस क्या है?
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
दिवाली महापर्व का आगाज 2 नवंबर से,
#Diwali और धनतेरस कब मनायें?2021.
Diwali : दिवाली के महापर्व को बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। दिवाली का आगाज 2 नवंबर, धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक दिवाली का महापर्व मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का विशेष महत्व होता है। दिवाली से पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार को पड़ रहा है।
2 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक का है. वहीं वृषभ काल शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा. धनतेरस पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा.
#क्या खरीदें आज के दिन?
-धनतेरस के दिन वैसे तो कोई भी नई वस्तु खरीदना बेहद शुभ होता है. मान्यता है कि इस दिन सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने चाहिए. इसके अलावा लोग धनतेरस के दिन कार, मोटर साइकिल और जमीन-मकान भी खरीदते हैं. कहा जाता है कि धनतेरस पर जो भी वस्तु खरीदी जाती है उसमें सालभर 13 गुना की बढ़ोत्तरी होती है.
#धनतेरस के दिन झाड़ू क्यों खरीदा जाता है?
धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने के पीछे मान्यता है कि, इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है, घर से नकारात्मकता दूर होती है, और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
#इस विधि से करें धनतेरस के दिन दीपदान
धनतेरस के दिन यम देवता को दीपदान करना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको बता दें कि यह कार्य हमेशा प्रदोष काल में करना चाहिए। दीपक चतुर्मुखी प्रतीत हो यानी कि दोनों ही रुई की बत्तियों के चारों सिरे बाहर की ओर दिखें। फिर इस दीपक में तिल का तेल भरने के बाद कुछ काले तिल भी इसमें डाल दें। दीपक का रोली, पुष्प व अक्षत से पूजन करें और इसे प्रज्ज्वलित कर लें। दक्षिण दिशा की तरफ देखते हुए उस ढेर पर इस दीपक को स्थापित कर दें।
#धनतेरस पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि जी को क्या लगाएं भोग?
धनतेरस को भगवान धनवंतरी, कुबेर और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा खरीदकर पूजा घर में उत्तर दिशा में स्थापित करें. भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को विभिन्न फलों का भोग चढ़ाएं.
जय धन्वंतरि!
सोमवार, 1 नवंबर 2021
अचानक #वजन कम क्यों होने लगता है?
#वजन क्यों घटता है ?
<Dr.virenderMadhan>
#व्यक्ति का सामान्य वजन कितना होता है?
*5 फीट 6 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य तौर पर वजन 53 से 67 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.
*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.
*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.
*5 फीट 10 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 59 से 75 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.
#कम वजन से होने वाली बीमारियां?
* बिना किसी कोशिश के वजन कम होना, वजन घटना और थकान बहुत सी बीमारियों के लक्षण हैं। अचानक वजन घटना शरीर में गंभीर बीमारियों के लक्षण होते हैं।
>मानक वजन से 10 प्रतिशत से ज्यादा वजन कम होने पर कार्यक्षमता कम होने लगती है।
> वजन बहुत कम हो तो संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। वास्तव में वजन ज्यादा घट जाने का सीधा मतलब है कि शरीर में पोषक तत्त्वों की भी कमी है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
>त्वचा के नीचे चर्बी कम हो तो जरा-सी चोट भी सीधे हड्डियों पर असर करती है।
>अचानक वजन में कमी आ जाए तो असर त्वचा पर दिखता है।
#वजन घटने का क्या कारण है?
भोजन-
- वजन कम होने का एक कारण है कि आप पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं कर रहे हैं।
बृद्धावस्था
- जैसे -जैसे उम्र बढ़ती है, आपको अपना पेट भरा हुआ लगता है। इसके अलावा भूख और परिपूर्णता को कंट्रोल करने वाले मास्तिष्क के कुछ संकेत डैमेज हो जाते हैं।
थायोरोयड
- शरीर में थायराइड हार्मोन की अधिकता तेजी से वजन घटने का कारण बन जाती है और इसकी कमी वजन बढ़ने का। यदि काफी प्रयास करने के बाद भी आप अपना वजन कम नहीं कर पा रहीं हैं, तो संभव है कि आपको हाइपोथाइरॉएडिज्म हो, जिसकी वजह से आपका वजन बढ़ रहा है। हाइपोथाइरॉएडिज्म का मतलब है मेटाबॉलिज्म का धीमे काम करना।
डायबिटीज़
डायबिटीज़ एक मेटाबॉलिक समस्या है जिसमें आपके शरीर में ब्लड शुगर स्तर उच्च होता है। इसके दो कारण हो सकते हैं, या तो ये कि आपके शरीर में इंसुलिन का निर्माण न हो पा रहा हो या फिर ये कि आपका शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर पा रहा हो, या फिर ये दोनों ही कारण हो सकते हैं।
ट्यूबरक्लॉसिस यानी टीबी
टीबी रोग को तपेदिक, क्षय और यक्षमा जैसे कई नामों से जाना जाता है। तपेदिक संक्रामक रोग होता है।
इसमे भी रोगी का वजन कम होता है।
डिप्रेशन
डिप्रेशन एक ऐसा मूड डिसॉर्डर है जिसमें कई कई दिनों तक उदासी, परेशानी, चिंता या चिड़चिड़ापन महसूस होता रहता हैऔर वजन कम होता है।
#आयुर्वेद के अनुसार वजन कम [कृशता] होने के कारण क्या है?
[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]
*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता [वजन कम होने] का प्रमुख कारण है। *अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है।
*इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश [वजन कम ]होता जाता है।
*इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा
*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।
*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है।
*अधिक शोक,
*जागरण तथा
*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है।
#वजन कम न हो ऐसा क्या करें?
*पाचन ठीक रखें।
*भोजन समय पर करें ।
*जिसे भोजन के करने से तृप्ति हो ऐसा भोजन करें।
*भोजन मे उडद,मीठा, धी,तैल से स्निग्ध भोजन करें।
*रात्रिजागरण न करें।
*रात्रि में खुब अच्छे से सोयें।
*अश्वगंधा,विधारा आदि के उत्पादन प्रयोग करें?
*ग्रोविटा सीरप व कैपसूल पुष्टि (गुरु फार्मास्युटिकल) का प्रयोग करें।
धन्यवाद!
कोमन्ट मे बताये लेख कैसा लगा?
रविवार, 31 अक्तूबर 2021
दुबले_पतले है तो क्या करें? In hindi
हैल्थ_Ayurveda_Tips_घरेलू_उपचार.
#दुबलापन>>
By:-Dr_Virender_Madhan.
#क्या है कृशता?In hindi.
कृश- दुबले व्यक्ति के नितम्ब, पेट और ग्रीवा शुष्क होते हैं। अंगुलियों के पर्व मोटे तथा शरीर पर शिराओं का जाल फैला होता है, जो स्पष्ट दिखता है। शरीर पर ऊपरी त्वचा और अस्थियाँ ही शेष दिखाई देती हैं।
#कृशता-स्थुलता से श्रेष्ठ क्यों है?
अष्टांगसंग्रह अनुसार अतिकृश होना महान रोग है,तथापि अतिस्थुलता से- अतिकृशता श्रेष्ठ है क्योंकि स्थुलता की कोई चिकित्सा नही है। स्थुलता के लिये न तो लंघन पर्याप्त है न ही वृंहण पर्याप्त है।क्योंकि इसके लिए मेद,अग्नि और वात नाशक औषधि ही उपयुक्त है लंघन से मेद तो कम होगा लेकिन अग्नि और वात का नाश नही होता, वृंहण से वात और अग्नि शमन होता है परन्तु मेद का नाश नही होता।कृशता मधुर,स्निग्ध पदार्थो को तृप्ति होने तक खाते रहने से कृशता नष्ट हो जाती है।इसके स्थुलता मे अत्यंत तिक्त-कटू-कषाय बहुल रुक्ष ,अन्नपान औषधियौं के लम्बे समय तक उपयोग करने से ठीक होते है।
इसलिए कृशता ,स्थुलता से श्रेष्ठ है।
#दुबलेपन के क्या क्या कारण है?
[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]
*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है।
इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है।
इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा
*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।
*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है।
*अधिक शोक,
*जागरण तथा
*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है।
*अनेक रोगों के कारण भी धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है।
*आज की टी.वी. संस्कृति, *युवक-युवतियों में यौनजनित कुप्रवृत्तियाँ (हस्तमैथुन आदि) तथा नशीले पदार्थों के सेवन से निरंतर धातुओं का क्षय होता है।
-कृशता को 2भागो मे वर्गीकृत किया जाता है।
1. सहज कृशता 2. जन्मोत्तर कृशता
-सहज कृशता : माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है।
गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं।
जन्मोत्तर कृशता :-
-अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा -कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के कारण अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है।
जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-
अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों सेदीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है।
-शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता।
-मधुमेह,राजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। -अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है,
-जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार [हाइपरथायरायडिज्म ] कहते हैं।
#अतिकृश के लक्षण क्या है?
"शुष्क स्फिगुदरग्री्वः स्थुल पर्वासिराततः।।
उच्यतेअतिकृशस्तत्र प्रागुक्तोवृहंणोविधि।”अष्टांग संग्रह,
जिसके नितम्ब,उदय,ग्रीवा सुख जायें ,अंगुलियों के पर्व मोटे हो जाये, शरीर पर बा र ही शिराएं फैली हो, इस प्रकार के पुरुषों को अतिकृश कहते है।
#दुबलेपन से होने वाली हानियाँ क्या है?
* कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले लक्षण के अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें -अग्निमांद्य,
-चिड़चिड़ापन,
-मल-मूत्र का अल्प मात्रा में -विसर्जन,
-त्वचा में रूक्षता,
-शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, -कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं।
-कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से रोग से पीड़ित रहता है।
---
#अतिकृशता [दुबलेपन] की क्या चिकित्सा करें ?
अष्टांग संग्रह में निर्देश है कि
"वृहंणोविधीः ।
अश्वगंधाविदार्याद्घा वृष्याश्चौषधयो हिताः ।।
अचिन्तया हर्षणेन ध्रुवं संतर्पणेन च।
स्वप्न प्रसंंगाच्च कृशो वराह इव पुष्यति।।”
वृहंण विधी बरतनी चाहिए।अश्वगंधा,विदारी,आदि मधुर वृहंण (वृष्य) औषधियां कृश के लिये हितकारी है।
-चिन्ता न करने से,
-प्रसन्न रहने से
-सन्तर्पण लगातार करते रहने से, तथा अधिक नींद लेने से
कृशता दूर हो जाती है।
संतर्पण :
सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।
पंचकर्म :
कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है।
[कृश व्यक्ति के लिए स्वेदन व धूम्रपान वर्जित है। ]
स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।
#क्या कृशव्यक्ति के लिए रसायन एवं वाजीकरण उपयोगी है?
कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है।
वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।
#औषधि चिकित्सा कैसे करें?
सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है।
-अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।
#कृशता में उपयोगी औषधियाँ :-
*मुकोलिव सीरप और टेबलेट
*ग्रोविटा सीरप
*पुष्टि कैप्सूल
*लवणभास्कर चूर्ण,
*हिंग्वाष्टक चूर्ण,
*अग्निकुमार रस,
*आनंदभैरव रस,
*लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार),
*संजीवनी वटी,
*कुमारी आसव,
*द्राक्षासव,
*लोहासव,
*भृंगराजासन,
*द्राक्षारिष्ट,
*अश्वगंधारिष्ट,
*सप्तामृत लौह,
*नवायस मंडूर,
*आरोग्यवर्धिनी वटी, *च्यवनप्राश,
*मसूली पाक,
*बादाम पाक,
*अश्वगंधा पाक,
*शतावरी पाक,
*लौहभस्म,
*शंखभस्म,
*स्वर्णभस्म,
*अभ्रकभस्म तथा
मालिश के लिए:-
-बला तेल,
-महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
भोजन में:-
गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।
चेतावनी:-कीसी भी प्रकार की औषधि या कोई द्रव्य के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।
[Dr.Virender Madhan]
शनिवार, 30 अक्तूबर 2021
सिंधाडा क्या है?सिंधाडे के अद्भुत लाभ?In hindi.
<सिंधाडा>
Shingade
By:-Dr.Virender Madhan.
सिंधाडे के नाम:-
Sanskritशृङ्गाटक, जलफल, त्रिकोणफल, पानीयफल;
Hindi-सिंघाड़ा, सिंहाड़ा;
Urdu-सिंघारा (Singhara);
Odia-पानीसिंगाड़ा (Panisingada);
Kannada-सगाड़े (Sagade); गुजराती-शीघ्रोड़ा (Shingoda);
Tamil-चिमकारा (Cimkhara), सिंगाराकोट्टाई (Singarakottai);
Telugu-कुब्यकम (Kubyakam);
Bengali-पानिफल (Paniphal), सिंगारा (Singara);
Panjabi-गॉनरी (Gaunri);
Marathi-सिंगाडा (Singada), सिघाड़े (Sigade), शेगाडा (Shegada);
Malayalam-करीमपोलम (Karimpolam)।
English-इण्डियन वॉटर चैस्टनट (Indian water chestnut), सिंगारा नट (Singara nut)।
#सिंघाड़े के फायदे (Singhara Fruit Benefits and Uses in Hindi)
सिंघाड़े (Shingade fruit) में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।
*दंतरोग में फायदेमंद सिंघाड़ा (Singhada Benefits for Tooth Diseases in Hindi)
अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन (Singada in hindi) से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान पर लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी, सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।
*तपेदिक के लक्षणों से दिलाये राहत सिंघाड़ा (Shingade Fruit to Fight Tuberculosis in Hindi)
तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन (singada in hindi) इस तरह से करने पर लाभ मिलता है।
-समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से
राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है।
#सिंधाडे की तासीर गर्म है या ठंडी ?
वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल (shingade fruit) होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला, कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।
सर्दी के मौसम में एक से बढ़कर एक पौष्टिक फल और सब्जियां मिलती हैं। इन्हीं में से एक है 'सिंघाड़ा'। इसका सेवन करना सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।
[सेहत के लिए सिंधाडा पोष्टिक होता है।]
यह एक जलीय सब्जी है
पोषक तत्वों से भरपूर 'सिंघाड़ा' सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन-ए, सी, कर्बोहाईड्रेट, प्रोटीन जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे कच्चा, उबालकर या फिर हलवा बनाकर खाया जाता है।
-वहीं सिंघाड़े का आटा व्रत में इस्तेमाल किया जाता है।
-एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण सिंघाड़ा गले की कई समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करता है। खराश और टॉन्सिल से राहत पाने के लिए आप इसका सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा -सिंघाड़े के सेवन से अनिद्रा की समस्या भी दूर हो सकती है।
-अस्थमा
सर्दियों के मौसम में अस्थमा मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। नियमित रूप से सिंघाड़े का सेवन करने से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिल सकता है।
#सिंघाड़े में शुगर होती है क्या?
-इस मौसम में सिंघाड़ा जरूर खाएं। ये मौसमी फल है जिसे खाने से हड्डियां मजबूत होंगी। डायबिटीज रोगियों के लिए सिंघाड़ा फायदेमंद होता है। ये डायबिटीज होने पर शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करता है।
-एसिडिटी, गैस और अपच
पेट से जुड़ी समस्याएं बहुत आम हैं। गैस, एसिडिटी, कब्ज और अपच लोग अक्सर परेशान रहते हैं। सिंघाड़े का सेवन पेट से जुड़ी समस्याओं में राहत दिला सकता है।
-साथ ही इसका सेवन करने से भूख न लगने की समस्या भी दूर हो सकती है।
- सिंघाड़ा, फटी एड़ियों को ठीक करने में कारगर है। शरीर के किसी हिस्से में दर्द या सूजन से राहत पाने के लिए भी आप इसका पेस्ट बनाकर उस जगह पर लगा सकते हैं।
- गर्भवती महिलाओं के लिए
गर्भवती महिलाओं के लिए सिंघाड़ा एक हेल्दी ऑप्शन है। इसे खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है।
- मजबूत दांत और हड्डियां
सिंघाड़े का सेवन करने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं क्योंकि इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह शरीर की कमजोरी को दूर करने में भी सहायक है।
#सिंधाडा पाक [सिंधाडे का हलवा] खाने के लाभ:-
-इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है. सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है.
- सिंघाड़ा यौन दुर्बलता को भी दूर करता है. 2-3 चम्मच सिंघाड़े का आटा खाकर गुनगुना दूध पीने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है.
सिंघाड़ा खाने के नुकसान - Singhare Ke Nuksan In Hindi
सिंघाड़ा खाने के नुकसान निम्न हैं -
जैसे सिंघाड़े खाने के फायदे हैं वैसे ही सिंघाड़े को अधिक मात्रा में सेवन करने से नुकसान भी हैं।
अधिक मात्रा में सिंघाड़े का सेवन करने से पाचन तंत्र ख़राब होता है।
अधिक मात्रा में इस के सेवन से कब्ज, पेट दर्द, आँतों की सूजन की समस्या हो सकती है।
सिंघाड़े के सेवन के बाद कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे सर्दी खांसी की समस्या हो सकती है।
सिंघाड़े का अधिक मात्रा में सेवन से कफ जैसी समस्या भी हो सकती है।
#सिंघाड़े कैसे खाएं?
सिंघाड़े का आटा का प्रयोग पॅनकेक, पुरी और चपाती बनाने के लिए किया जाता है, खासतौर पर उपवास के दिनों में। इसका खाना बनाने में मुख्य रुप से प्रयोग खाने को गाढ़ा बनाने के लिए और पनीर और सब्ज़ीयों को घोल में डुबोकर तलने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ब्रेड, केक और कुकीस् बनाने के लिए किया जाता है।
#सिंघाड़े में कौन कौन से विटामिन पाए जाते हैं?
पोषक तत्वों से भरपूर – सिंघाड़े में विटामिन-ए, सी, मैंगनीज, थायमाइन, कर्बोहाईड्रेट, टैनिन, सिट्रिक एसिड, रीबोफ्लेविन, एमिलोज, फास्फोराइलेज, एमिलोपैक्तीं, बीटा-एमिलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.
Disclaimer: यह जानकारी आयुर्वेदिक नुस्खों के आधार पर लिखी गई है। इनके इस्तेमाल से पहले चिकित्सक का परामर्श जरूर लें।
धन्यवाद!
Dr_Virender_Madhan.]
शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021
#मोटापा [Obesity]क्या है और क्या करें उपाय? In hindi.
<Obesity><मोटापा>
#Obesity,मोटापा क्या है?
#मोटापा क्यों होता है?
#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा होता है?
#मेदोरोग की सम्प्राप्ति?
#आयुर्वेद के अनुसार मोटापे से होने वाली हानियाँ क्याक्या है ?
#मोटापे से कैसे बचें ?
#आयुर्वेदिक औषधियां क्या क्या है?
#मेदोरोग मे घरेलू उपाय क्या करें ?
#मोटापा कम करने के लिए जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?
[स्थौल्यता,मोटापा]
मोटापे के बारे मे बताने से पहले जान लें कि
अष्ठांग हृदय मे ऋषि वांग्डभट्ट के अनुसार सभी रोगों को दो भागों में बांटा है
१-सामरोग (आमयुक्त)
२-निरामरोग(आम दोष रहित)
इन सबकी चिकित्सा को भी दो भागों मे बांटा है
१-संतर्पण (बृंहण)शरीर की बृद्धि व संतृप्त करना।
२-अपतर्पण (लेखन ) शरीर को हल्का व अतृप्त करना।
इनके जानने के बाद चिकित्सा करने मे सुविधा मिलेगी।
चिकित्सा के दो प्रकार
१-शोधन ( शरीर का शोधन करना)
२-शमन (रोगों का शमन कर देना।
----------------
*मोटापा अधिक संतर्पण के फलस्वरूप होता है।और
*कृशता अधिक अपतर्पण के कारण होता है।
https://youtube.com/shorts/saw3LJP6bmk?feature=sha
*************
#मोटापा Obesity:-
वह स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह आयु संभावना को भी घटा सकता है।
#मोटापा क्यों होता है ?
कारण:-
*आजकल लोगो में मोटापे की समस्या बहुत हो रही है।
*आदमी का व्ययाम नहीं हो पाता है व कैलोरी कम नहीं होती और मोटापा बढ़ने लगता है।
*ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है।
*अधिक चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापे का कारण है।
*कम व्यायाम करना और स्थिर जीवन-यापन मोटापे का प्रमुख कारण है।
*असंतुलित व्यवहार औऱ मानसिक तनाव की वजह से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, जो मोटापे का कारण बनता है।
*मोटापा का कारण कुछ लोगो में जेनेटिक अनुवांशिक होता है।
उदाहरण – अगर माता-पिता मोटे है तो उनका बच्चा भी मोटा रहता है।
*मीठा व गरिष्ठ भोजन अधिक। करना।
*सही पोषक आहार ना लेने के कारण भी मोटापा होने लगता है।
*अधिक तैलीय पदार्थ व फास्टफूड खाने के कारण मोटापा होने लगता है।
*अधिक धूम्रपान करने के कारण मोटापा शुरू हो जाता है।
*दिन में सोने के अभ्यास से ।
*थायोरोयड जैसी बीमारीयों के कारण भी मोटापा बढ जाता है।
#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा बढ़ता है?
*मीट, मक्खन, घी, चीज और क्रीम मोटापे को तेजी से बढ़ाते हैं.
*आलू का परांठा, आलू की टिक्की, फ्रेंच फ्राइज, दम आलू की सब्जी।
[मेदोरोग की सम्प्राप्ति]
मेद के बढ जाने से धातुओं के मार्ग रुक जाते है फिर अन्य धातुओं का पौषण नही होता है।मेद इक्कठा होता जाता है।मनुष्य अपने कार्यों में असमर्थ हो जाता है।
यह रोग पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है।
मेद से वात के मार्ग रूक जाते है वह कोष्टो मे धुमती है वह अग्निप्रदीप्त करती है जिसके कारण रोगी की भुख बढती है।इसी कारण से रोगी बार बार कुछ न कुछ खाता रहता है फल स्वरूप अनेकों प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता जाता है।
*छोटे-छोटे कार्यों को करने में सांस फूलना तथा
*पसीना आना,
*आवश्यकता से ज्यादा या कम सोना,
*थोड़ा सा चलने पर सांस में रूकावट पैदा होना या सांस तेजी से चलना,
*शरीर के अलग अलग हिस्सो में सूजन होना,
*शरीर के विभन्न भागो में वसा जमना,
*मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान, आत्मविश्वास में कमी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
*खर्राटें लेना
*अचानक शारीरिक गतिविधि में असमर्थता
*बहुत थका हुआ महसूस करना
*पीठ और जोड़ों में दर्द
*अकेला महसूस करना, इत्यादि।
#आयुर्वेद के अनुसार मेदोरोग के कारण होने वाली हानियां:-
< मोटापा बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है जैसे- बवासीर, भगंदर , कुष्ठ ,ज्वर , अतिसार ,प्रमेह (शुगर आदि ), श्लीपद (हाथीपांव) , अपची, कामला,उच्च रक्तचाप( हाइ ब्लड प्रेशर), हृदयदौर्बल्यं (दिल की बीमारिया, स्ट्रोक), अनिद्रा, किडनी की बीमारी, फैटी लिवर, आर्थराइटिस- जोड़ों की बीमारी, आदि।
शरीर के निर्माण में रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र कुल सात धातुओं का योगदान होता है। इनमें से सभी धातुओं का अलग अलग महत्वपूर्ण कार्य होता है। मेद का कार्य शरीर में स्नेह गुण बनाए रखना है और इसी मेद से अस्थियां बनती हैं। अस्थियों के अंदर रहने वाले लाल वर्ण के मेद से रक्त यानी ब्लड का निर्माण होता है।
आचार्य सुश्रुत के अनुसार मेद के क्षय से संधियों यानी जोड़ो में दर्द होने लगता है, खून की कमी होने लगती है और शरीर में रुक्षता होने लगती है। इसी मेद की वृद्धि से पेट के ऊपर और कमर पर चर्बी इकट्ठा होने लगती है और शरीर से दुर्गंध आने लगती है।
* इसी बात को आयुर्वेद के महान आचार्य चरक ने बताया है की अत्यधिक मेदवर्धक आहार लेने से मनुष्य में स्थूलता की वृद्धि होने लगती है
#मोटापा रोग से कैसे करें बचाव?
●मेदोरोग व मधुमेह मे कफनाशक उपाय करें।
●मेदोरोग रोग मे लेखन कर्म व द्रव्यों का प्रयोग करें।
●उपवास व लघंन करें।
* जौ की रोटी खायें ।
#आयुर्वेदिक औषधियां क्या है ?
*कैप्सूल-सील्म-सी [ गुरु फार्मास्युटिकल] १-२ कैप० दिन में २-३ बार लें।
* फैटकोन सीरप -२-३ चम्मच दिन में २-३ बार ।
* ओबेनिल ( चरक )१-१ गोली दिन में दो-तीन.बार लें।
#शास्त्रीय योग:-
- अमृतादि गुग्गुल
- नवक गुग्गुल
- बडवानल रस
-लौह रसायन
-मेदोहर गुग्गुल
-आरोग्यबर्द्धिनी वटी
अन्य -
1. गुडूची, नागरमोथा, त्रिफला का सेवन मधूदक यानी शहद के पानी के साथ लेने से मोटापा कम होता है।
2. आमला के चूर्ण, शुंठी, क्षार आदि के प्रयोग से मोटापा कम किया जा सकता है।
3. जौ के आटे, बृहद पंचमूल के सेवन से लाभ मिलता है।
4. अग्निमंथ का सेवन शिलाजीत के साथ करने से भी मोटापा दूर होता है।
5. खान पान के अलावा रातभर जागने से, व्यायाम से और मानसिक परिश्रम से भी वजन कम होता है।
6. पंचकर्म चिकित्सा जैसे वमन, विरेचन, उपवर्तन, स्वेदन और वस्ति द्वारा भी मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है।
7. कम प्रोटीन और वसा वाली हल्की दालों मूंग, मसूर को प्राथमिकता देनी चाहिए। उड़द राजमा छोले आदि से परहेज करना चाहिए।
#मेदोरोग मे घरेलू उपाय:-
-धतूरे के पत्तों का रस निकाल कर बढी हुई फैट (पेट-कुल्हो ) पर लगा कर मालिस करें।
-ताड के पत्तों का क्षार और हींग चावलों के मांड के साथ लें।
- पीपल का चूर्ण शहद के साथ प्रतिदिन खायें।
-कुलथी की दाल पका कर खाये।
-प्रतिदिन त्रिफला और गिलोय का काढा पीयें।
- जवासे का क्वाथ सवेरे शाम पीने से आराम मिलता है।
<<इन सभी उपायों का लगातार कुछ दिन तक प्रयोग करने से ही आराम मिलेगा>>
#मोटापे मे क्या परहेज़ करें?
- जितने भी कफवर्ध्दक पदार्थ है,
चिकनाई, दूध, दही, मक्खन,मांस , धी से बने पदार्थ, पका केला, नारियल, पुष्टदायक भोजन, दिन में सोना, हमेशा आराम से रहने से परहेज करें।
-रसायन द्रव्यों व औषधियो का प्रयोग, उडद ,गेहूं, ईख के प्रोडक्ट खाना बन्द कर देना चाहिए ।
#मोटापा कम करने के लिए आपकी जीवनशैली (Your Lifestyle for Weight Loss)कैसा हो ?
- साप्ताहिक उपवास करें।
-तमगुण को जीतने से मोटापा कम हो जाता है। अतः दिन में न सोयें।
- उदार बने।
-परिश्रम करें।
- सुबह उठकर सैर पर जाएँ, और व्यायाम करें।अधिक पैदल चलें।
- सोने से दो घण्टे पहले भोजन कर लेना चाहिए।
- रात का खाना हल्का व आराम से पचने वाला होना चाहिए।
- संतुलित और कम वसा वाला आहार लें।
- वजन घटाने के लिए आहार योजना में पोषक तत्वों को शामिल करें।
#चेतावनी:-किसी भी औषधि या द्रव्यों के प्रकार से पहले आप किसी आयुर्वेदिक विषेशज्ञ से सलाह जरूर ले क्योंकि प्रतिएक व्यक्ति की प्रकृति, दोष ,अवस्था आदि अलग अलग होती है यहां यह लेख केवल ज्ञान अर्जन हेतू है।
धन्यवाद!
<डा०वीरेंद्र मढान>
आप अपनी सलाह कोमेंट मे जरूर लिखे हमे खुशी होगी।