Guru Ayurveda

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

नजला|छिंकें|जुकाम|प्रतिश्याय है तो क्या करोगे?

 

#नजला,। एलर्जी,। प्रतिश्याम (छिंके आना), ।नाक बंद होना, ।नाशास्त्राव.

#Dr_Virender_Madhan

जुकाम को नजला (Rhinitis या Nasopharyngitis) भी कहते हैं। यह श्वसन तंत्र का संक्रमण के कारण होने वाला रोग है। इसमें व्यक्ति की नाक प्रभावित होती है। सामान्य जुकाम वायरस के संक्रमण के कारण होता है।

अधिक छिंकें आने से कष्ट होता है। अधिक संक्रमण से किसी भी सुगंध या दुर्गंध से भी छिंकें शुरू हो जाती है।कई बार धूल या बाल के नाक मे जाने से छिंकें आती है।

*प्रतिश्याम रोग का निदान व सम्प्राप्ति -

सन्धारणाजीर्वर जोडति भाष्य क्रे द्यर्तुवैषम्यशिरोऽपितापैः।

प्रजागरातिस्वपनाम्बुशीतैरवश्यया मैथुनबाष्पधूमैः।।

संस्व्यादोषे शिरणि प्रवृद्धौ वायुः प्रतिश्याममुदीरयेतु।।

अर्थात:-

मल-मूत्र एवं छींक आदि के वेगों को रोकने से, अजीर्ण होने से, धूल के नाक में जाने से, अधिक बोलने से, अधिक क्रोध करने से, ऋतुओं की विषमता से, शिरःशुल होने से, रात्री जागरण से, अधिक सोने से, ठन्डे जल का उपयोग करने से, ओस के प्रभाव से,अधिक आँसु गिराने से और धुआँ लगने से जब शिर में कफ अधिक संचित हो जाता है तब बढ़कर प्रतिश्याम रोग को उत्पन्न होता हैं।

*प्रतिश्याय के दोषानुसार लक्षण ।

वातज प्रतिश्याम का लक्षण -

वात के कारण होने वाले प्रतिश्याम में नाक में दर्द और सुई चुभाने जैसी पीड़ा, छींक आना, पानी जैसा नाक से स्त्राव होना, शिरःशूल और स्वरभेद होना।


पित्तज प्रतिश्याय का लक्षण -

पित्तज प्रतिश्याय में नासिका का अग्रभाग पक जाता है, ज्वर होता है, मुख सुखता है, प्यास लती है और गरम-गरम पीला द्रव निकलाता हैं।


कफज प्रतिश्याय का लक्षण -

कफज प्रतिश्याय में कास, भोजन में अरूची, गाढे कफ का स्त्रावल होना और नाक में खुजली होना।


सन्निपातजं प्रतिश्याय के लक्षण -

त्रिदोषज प्रतिश्याय या पीनस में तीनों दोषों के जो लक्षण कहे गये हैं, वे सब होते है और इसमें तीव्र पीड़ा होती हैं।


दुष्ट प्रतिश्याम और उसके उपद्रव -

जब प्रतिश्याम रोग की ठीक समय पर उचित चिकित्सा नहीं की जाती है और आहितकर आहार किया जाता है, तब वह उपेक्षित हुआ प्रतिश्याय का रूप धारण कर लेता हैं। उसके बाद उपद्रवस्वरूप अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है। जैसे-छिंके आना, नाक का सुख जाना, प्रतिनाह (नाक का बंद हो जाना), नाक से बहुत पानी निकलते रहना, नाक से सड़न जैसी दुर्गन्ध आना, अपीनस होना (सदैव सर्दी जुकाम बना रहना) नाक का पकना, नाक में सुजन आना, नाक में ग्रन्थि बनना, नाक में पूय जमा होना, नाक से रक्त आना, नाक में छोटी फुन्सियाँ होना, शिर, कान और आँख के रोगों का होना, शिर के बालों का झड़ना (खालित्य), पालित्य(शिर के बालों का सफेद होना, प्यास लगना, दम फूलाना, खाँसी आना, ज्वर होना, रक्तपित्त रोग होना, स्वर भेद होना और राज्यक्षमा होना-ये उपद्रव होते हैं।


दृष्ट प्रतिश्याम के प्रकार -

1. यवथू 2. नाशाशोथ 3. प्रतिनाह 4. परिस्ताव 5. पूतिनस्य 6. अपीनस्य 7. नाशापक 8. नाशाशोथ 9. नाशार्बुद 10. पूयरस 11. अंरूषिका 12. दीप्त


#पुराना जुकाम और नजला के लक्षण

 - बार बार छीके आना । 

 - नाक में से पानी बहना , नाक बंद रहना , नाक में मास बढ़ना 

- गले में रेशा रहना । 

 - सर दर्द रहना । 

 - गला भी खराब हो जाता है और एक - दो दिन तक लगातार नाक से निकलने वाले बलगम गले के नीचे उतर कर कफ बन जाता है जो खांसी का कारण बनता है ।

#आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करें?

* बेनसीप सीरप (गुरु फार्मास्युटिकल) या

*बेनकफ सीरप - 1से 2 चम्मच दिन में 2-3 बार लें।

*लक्ष्मी विलासरस नारदीय 1से 2 दिन में 3बार ले।

* संजीवनी वटी 1-2 गोली दिन में 2-3 बार लें।

*गोदंती मिश्रण का प्रयोग करें।

* रोजाना एक चम्मच च्यवनप्राश का सेवन करे। ... 

* दूध में हल्दी और शिलाजीत डालकर रोजाना पिएं।

* गुरु आयुर्वेदिक चाय पीयें।


#घरेलू ईलाज क्या है ?

- सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है।

- सामावस्था में लंघन कराये,

- सहने योग्य अधिकतम उष्ण जल अधिकतम मात्रा में बारम्बार पिलायें। 

- अधिकतम उष्ण जल का सेवन करें। 

- अदरक का सेवन करें। -

- सिर की पीड़ा में दालचीनी व लंवण में से किसी एक का या दोनों का लेप करें। 

-पक्व प्रतिश्याय में छींक लाये।  - सिर पर तेल रखें। 

- पसीना लाये। 

- कटु पदार्थ आदि, सोंठ, हिंगु आदि से युक्त लघु भोजन करें।

- सुखे चने व कलौंजी को रगड कर कपडें मे बांधकर बार बार सुंघाने से.आराम मिलता है।

- सुहागे को तवे पर फुला कर चूर्ण बना लें। नजला-जुकाम होने पर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से पहले ही दिन, या ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों में जुकाम ठीक हो जाएगा।

- काली मिर्च और बताशे पाव भर जल में पकावें। चौथाई रहने पर इसे गरमागरम पी लें। प्रातः खाली पेट और रात को सोते समय तीन दिन उपयोग करें। नजला-जुकाम से राहत मिलेगी।

- 5 ग्राम अदरक के रस में 5 ग्राम तुलसी का रस मिला कर 10 ग्राम शहद से लें।

- काली मिर्च को दूध में पका कर सुबह-शाम पीएं।

 अमरूद के पत्ते चाय की तरह उबाल कर पीएं।

- षडबिंदु तेल की 4-4 बूंदे दोनों नथुनों में टपकाने से शीघ्र ही सिर के विकार नष्ट हो जाते हैं।

- गर्म दूध के साथ सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करें।

- दिन में 2 बार अनार, या संतरे के छिलकों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

- चूने के पानी में गुड़ घोल कर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

- दो ग्राम मुलहठी चूर्ण को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से जुकाम ठीक होता है।

#नजले मे जीवनशैली कैसी हो?

* कभी सर्द गर्म न होने दे ठंड से गर्म और गर्म से ठंड मे यकायक न जाये।

* ठंडा चिल्ड , फ्रिज का ठंडा, कोल्डड्रिंक, आदि से बचे।

* दिन मे सोने से बचे।

ठंड मे सिर को ढककर रखें।

* विषेशकर बदलते मौसम मे सावधान रहें।

* कफ बर्द्धक आहार जैसे दही आदि न ले।

*प्रतिदिन शरीर की मालिस करें।

<डा०वीरेंद्र मढान>


गुरुवार, 4 नवंबर 2021

भुलने का रोग [ मेमोरी लोस ] है तो क्या करें ?

 #भुलने का रोग[अल्जाइमर रोग]



#DrVirender Madhan.

(Alzheimer's Disease) 'भूलने का रोग' है। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है,


#याददाश्त[मेमोरी]क्या है ?

घटनाओं को संचित करना व जरूरत पड़ने पर वापस याद करके उपर्युक्त घटनाओं का वर्णन करना याददाश्त कहलाता है। 

#मेमोरी कम क्यों हो जाती है?

यह वृद्धावस्था में होने वाला रोग है।

जब तनाव की समस्या जो धीरे-धीरे अवसाद का रूप ले लेती है। उदासीनता महसूस होना, अकेलेपन का अहसास या समाज से दूरी बना लेना, रोजमर्रा के बर्ताव में बदलाव, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना या शक की भावना का बढऩा प्रमुख है। इसके अलावा बढ़ती उम्र भी कारण है जिसके साथ व्यक्तिमें आक्रोश बढ़ जाता है।

लेकिन युवावस्था में याददाश्त की कमी के कई अन्य कारण सामने आते हैं-

1  कई बार दुर्घटना में सिर में चोट आने से व्यक्ति को मिर्गी की समस्या हो जाती है। और   याददाश्त पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

2- चिकित्सा: कई दवाएँ जैसे अवसादरोधी दवाएँ (एंटीडिप्रेससेंट), एंटीहिसटामाइंस, स्ट्रेस निवारक दवाएँ, मांसपेशियों को ढीला करने वाली दवाएँ, ट्रांक्विलाइज़ेर्स, नींद की गोलियाँ, और सर्जरी के बाद दी जाने वाली दर्द की दवाएँ याददाश्त कमज़ोर कर सकती है। 

3- शिक्षा का बढ़ता बोझ 

-जिसके कारण न्यूरोन्स को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है। कई बार ऐसी परीक्षाओं में विफलता के कारण और मस्तिष्क की निष्क्रियता के चलते याददाश्त की कमीहो जाती है।

4- नशे की लत -शराब या सिगरेट से धीरे-धीरे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का स्त्राव कम होने लगता है। इसकी कमी से याददाश्त कमजोर होने लगती है।

5-मोबाइल का प्रयोग -

कम्प्यूटर व मोबाइल का अधिक प्रयोग भी इसकी एक वजह है 

6-खानपान के कारण -

आधुनिक युवावर्ग फास्ट-जंक फूड व अधिक वसायुक्तखाना पसंद करता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की कमी पाई जाती है। 

#अल्जाइमर के जोखिम को कम करने के लिए क्या करें?

1. उचित वजन बनाए रखें. 

2. सोच समझ कर खाएं. विटामिन युक्त सब्जियों और फलों पर जोर दें. 

3. साबुत अनाज, मछली, लीन पोल्ट्री, टोफू और सेम व अन्य फलियां जैसे प्रोटीन स्रोतों से मिली स्वस्थ वसा पर ध्यान दें.

4. मिठाई, सोडा, सफेद ब्रेड या सफेद चावल, अस्वास्थ्यकर वसा, तले और फास्ट फूड, नासमझीपूर्ण स्नैकिंग जैसी अनावश्यक कैलोरी कम करें. 5-नियमित रूप से व्यायाम करें.तेज चलने के लिए हर सप्ताह ढाई से 5 घंटे का लक्ष्य रखें, जॉगिंग जैसे व्यायाम करने की कोशिश करें.


#मेमोरी लॉस के अलावा अल्जाइनर के और लक्षण क्या है?

1. आंखें कमज़ोर होना.

2. मूड में बहुत जल्द बदलाव आना.

3. रोज़ाना की अपनी मनोरंजक चीज़ों में मन ना लगना.

4. सोशल कामों में भी मन ना लगना,  बाहर हो रही चीज़ों से कटना.

5. चीज़ों को जज ना कर पाना. 

#आप भुलते है तो क्या करें?

#आयुर्वेदिक चिकित्सा :-

*तिल का तेल का नस्य:-

-आयुर्वेद में तिल के तेल का प्रयोग याददाश्त बढ़ाने में उपयोगी है। तिल के तेल को गुनगुना गर्म कर उसकी 3-3 बूंदें अपने नाक के दोनों नथुनों में डाल सकते हैं। 

- सिर व पैरों के तलवों की मालिश के अलावा तेल को भोजन में भी प्रयोग कर सकते हैं।

*अश्वगंधा

अश्वगंधा ऐसी जड़ीबूटी है जो रोग को बढऩे से रोकती है। इसका काम दिमाग को मजबूत करना है।मानसिक कार्यक्षमता बढ़ाते हैं।

* हल्दी व बादाम

हल्दी में मौजूद करक्यूमिन तत्त्व अच्छा एंटीऑक्सीडेंट्स है। रोजाना भोजन में इसके प्रयोग से या फिर दूध में चुटकीभर इसे लेने से दिमाग को ताकत मिलती है। 

* गाजर खाएं

इसमें मौजूद विटामिन-ए से याददाश्त पर हुआ नकारात्मक प्रभाव कम होता है। इसे सब्जी के रूप में, जूस या हलवे (गाजर पाक) के रूप में खा सकते हैं। 

* शंखपुष्पी

ब्रेन टॉनिक है शंखपुष्पी। इसके खास तत्त्व दिमागी कोशिकाओं को सक्रिय कर भूलने की समस्या दूर करते हैं। 3-6 ग्रा. चूर्ण रोज दूध के साथ पीएं।


#[ब्रैनिका सीरप (गुरु फार्मास्युटिकल)के 2-2 चम्मच दिन मे 2 बार ले।

*सारस्वतारिष्ट प्रतिदिन प्रयोग करें।

धन्यवाद!

#डा०वीरेंद_मढान.








मंगलवार, 2 नवंबर 2021

#दूध किसे पीना चाहिए?दूध से किसे होगी हानि ? In hindi.


 

#दुध पीने योग्य व्यक्ति ?

[Dr.Virender Madhan]


*ऋषि वांग्डभट के ग्रंथ अष्टांग संग्रह के अध्याय -2 ज्वर प्रकरण मे वर्णन है कि कौन व्यक्ति या रोगी दूध पी सकते है और कौन नही पी सकते है।

<< किन किन व्यक्ति या रोगी की दूध लाभदायक है किन को करता है हानि?

* जिस व्यक्ति को दूध सात्मय है यानि लगातार दुध पीने की आदत हो ।
*जिस व्यक्ति का कफ दोष क्षीण (कम ) हो गया हो उसे दूध पीना चाहिए।
*जो रोगी दाह, प्यास से पीडित रहता हो वह दूग्ध पान योग्य होता है।
*जो व्यक्ति पित व वात रोगों से ( अम्लपित्त, दाह ,जलन, शरीर दर्द, जोड दर्द, अधरंग,आदि) पीडित रहता हो उसे दूध पीना चाहिए।
*अतिसार मे भी दूध पथ्य है यानि दूध पीना चाहिए।
*लंघन व उपवास जो रोगी तप्त हो उसे दूध अवश्य पीना चाहिए उसके लि दूध जीवन देने वाला होता है।
*ज्वर आदि मे दूध को पिप्पली आदि से सिद्व कर पीना चाहिए।अथवा दोष के आधार पर सिध्द करके देना चाहिए।

रोगानुसार:-

→मलेरिया , सुखी खाँसी, ज्वर ,बवासीर, शारिरिक कमजोरी ,दुर्बलता, दाह , मिर्गी ,वातरोग ,अपस्मार आदि रोग से ग्रस्त व्यक्ति को दूध अवश्य पीना चाहिये।
अधिकतर रोगों के लिए शास्त्रों में संस्कृत (सिद्ध) दूध देने का वर्णन मिलता है ।

#किस व्यक्ति को दूध का प्रयोग नही करना चाहिए?

*जिन व्यक्ति को दूध से अर्जूनता (एलर्जी) होती है वैसे एसे व्यक्ति बहुत ही कम है।
*जिन्होंने मछली खाई है या मुली खाई हो उन्हें दूध नहीं पीना चाहिये।
*जिनका कफ दोष बढा या बिगडा हो।
*नवीन ज्वर मे दूग्ध अपथ्य है।
*प्रवाहिका मे भी हानिकारक हो सकता है।
*अत्यधिक भुखा केवल दूध नही ले सकता भारी पड सकता है।
*खट्टे फल खा कर दूध पीना निषेध है हानिकारक होता है।

#संस्कृत दूग्ध किसे कहते है और इसके क्या लाभ है?

जब दूध मे सौंठ, खजुर, द्राक्षा , शर्करा , धी आदि के साथ पका देते है उस दूध को संस्कृत दूग्ध या सिद्ध दूध कहते है।

सिद्ध दूध के गुण:-

-दूध को मधु मिलाकर देने.से प्यास ,दाह, व ज्वरनाशक हो जाता है।
(ध्यान दे:-मधू को अधिक उष्ण दूध के साथ नही दिया जाता है ) 
*इसीप्रकार  द्राक्षा , बला , मुलहठी , सारिवा , पिप्पली ,चंदन । आदि को चार गुणा जल मिलाकर पकाया हुआ दूध -- प्यास ,दाह ,ज्वरनाशक होता है।
इसके पीते समय शर्करा , मधू मिलाकर लेते है।
* बिल्वादि पंचमुल से सिद्ध दूध --ज्वर ,कास ,श्वास ,सिरशूल ,पार्श्वशुल ,एवं दीर्धकालीन ज्वर छूट जाते है ।
*एरण्ड मूल , या कच्चे बेल से सिद्ध दूध से मनुष्य का रूका हुआ मल, वायु वाले ( वायज्वर) ठीक हो जाते है प्यास , शुल और प्रवाहिका वाले ज्वर से मुक्त हो जाते है।
* सौंठ ,बला ,कटेरी, गोखरु , गुड से सिध्द दूध से --- शोफ ,मूत्र ,मल और वायु के विबन्ध , ज्वर ,एवं कास का नाश हो जाता है।
* पुनर्नवा से सिध्द दूध से ज्वर ,शोथ नष्ट हो जाते है।
आदि आदि।
ये सब प्रयोग करने से पहले अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेंं।
दूध से सम्बंधित ये विचार मेरे नही है महऋषि वांग्डभट के है।
आयुर्वेद मे इनके द्वारा बतायें गये सभी प्रयोग फलदायक होते है यह मै गर्व के साथ कह सकता हूँ।

#आयुर्वेद अपनायें जीवन स्वस्थ बनायेंं।।

आपको लेख कैसा लगा कोमेंट मे बताये ।
धन्यवाद!

#DrVirenderMadhan.




आज #धनतेरस [धन्वंतरि ]पुजा कैसे करें?

 #धनतेरस क्या है?



शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। 

 दिवाली महापर्व का आगाज 2 नवंबर से, 

#Diwali और धनतेरस कब मनायें?2021.

 Diwali : दिवाली के महापर्व को बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। दिवाली का आगाज 2 नवंबर, धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक दिवाली का महापर्व मनाया जाता है।

हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का विशेष महत्व होता है। दिवाली से पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार को पड़ रहा है।

 2 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक का है. वहीं वृषभ काल शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा. धनतेरस पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा.


#क्या खरीदें आज के दिन?


-धनतेरस के दिन वैसे तो कोई भी नई वस्तु खरीदना बेहद शुभ होता है. मान्यता है कि इस दिन सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने चाहिए. इसके अलावा लोग धनतेरस के दिन कार, मोटर साइकिल और जमीन-मकान भी खरीदते हैं. कहा जाता है कि धनतेरस पर जो भी वस्तु खरीदी जाती है उसमें सालभर 13 गुना की बढ़ोत्तरी होती है.

 #धनतेरस के दिन झाड़ू क्यों खरीदा जाता है?

धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने के पीछे मान्यता है कि, इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है, घर से नकारात्मकता दूर होती है, और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।


#इस विधि से करें धनतेरस के दिन दीपदान

धनतेरस के दिन यम देवता को दीपदान करना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको बता दें कि यह कार्य हमेशा प्रदोष काल में करना चाहिए। दीपक चतुर्मुखी प्रतीत हो यानी कि दोनों ही रुई की बत्तियों के चारों सिरे बाहर की ओर दिखें। फिर इस दीपक में तिल का तेल भरने के बाद कुछ काले तिल भी इसमें डाल दें। दीपक का रोली, पुष्प व अक्षत से पूजन करें और इसे प्रज्ज्वलित कर लें। दक्षिण दिशा की तरफ देखते हुए उस ढेर पर इस दीपक को स्थापित कर दें।

#धनतेरस पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि जी को क्या लगाएं भोग?

धनतेरस को भगवान धनवंतरी, कुबेर और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा खरीदकर पूजा घर में उत्तर दिशा में स्थापित करें. भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को विभिन्न फलों का भोग चढ़ाएं.

जय धन्वंतरि!


सोमवार, 1 नवंबर 2021

अचानक #वजन कम क्यों होने लगता है?

 #वजन क्यों घटता है ?

<Dr.virenderMadhan>




#व्यक्ति का सामान्य वजन कितना होता है?

*5 फीट 6 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य तौर पर वजन 53 से 67 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 10 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 59 से 75 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.


#कम वजन से होने वाली बीमारियां?


* बिना किसी कोशिश के वजन कम होना, वजन घटना और थकान बहुत सी बीमारियों के लक्षण हैं। अचानक वजन घटना शरीर में गंभीर बीमारियों के लक्षण होते हैं।  

>मानक वजन से 10 प्रतिशत से ज्यादा वजन कम होने पर कार्यक्षमता कम होने लगती है। 

> वजन बहुत कम हो तो संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। वास्तव में वजन ज्यादा घट जाने का सीधा मतलब है कि शरीर में पोषक तत्त्वों की भी कमी है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

>त्वचा के नीचे चर्बी कम हो तो जरा-सी चोट भी सीधे हड्डियों पर असर करती है।

>अचानक वजन में कमी आ जाए तो असर त्वचा पर दिखता है।


#वजन घटने का क्या कारण है?

भोजन-

- वजन कम होने का एक कारण है कि आप पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं कर रहे हैं। 

बृद्धावस्था

- जैसे -जैसे उम्र बढ़ती है, आपको अपना पेट भरा हुआ लगता है। इसके अलावा भूख और परिपूर्णता को कंट्रोल करने वाले मास्तिष्क के कुछ संकेत डैमेज हो जाते हैं।

थायोरोयड

- शरीर में थायराइड हार्मोन की अधिकता तेजी से वजन घटने का कारण बन जाती है और इसकी कमी वजन बढ़ने का। यदि काफी प्रयास करने के बाद भी आप अपना वजन कम नहीं कर पा रहीं हैं, तो संभव है कि आपको हाइपोथाइरॉएडिज्म हो, जिसकी वजह से आपका वजन बढ़ रहा है। हाइपोथाइरॉएडिज्म का मतलब है मेटाबॉलिज्म का धीमे काम करना।

डायबिटीज़

डायबिटीज़ एक मेटाबॉलिक समस्या है जिसमें आपके शरीर में ब्लड शुगर स्तर उच्च होता है। इसके दो कारण हो सकते हैं, या तो ये कि आपके शरीर में इंसुलिन का निर्माण न हो पा रहा हो या फिर ये कि आपका शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर पा रहा हो, या फिर ये दोनों ही कारण हो सकते हैं।

ट्यूबरक्लॉसिस यानी टीबी

टीबी रोग को तपेदिक, क्षय और यक्षमा जैसे कई नामों से जाना जाता है। तपेदिक संक्रामक रोग होता है।

इसमे भी रोगी का वजन कम होता है।

डिप्रेशन

डिप्रेशन एक ऐसा मूड डिसॉर्डर है जिसमें कई कई दिनों तक उदासी, परेशानी, चिंता या चिड़चिड़ापन महसूस होता रहता हैऔर वजन कम होता है।

#आयुर्वेद के अनुसार वजन कम [कृशता] होने के कारण क्या है?

[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]

*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता [वजन कम होने] का प्रमुख कारण है। *अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। 

*इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश [वजन कम ]होता जाता है। 


*इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा 

*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।


*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। 

*अधिक शोक, 

*जागरण तथा 

*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। 


#वजन कम न हो ऐसा क्या करें?

*पाचन ठीक रखें।

*भोजन समय पर करें ।

*जिसे भोजन के करने से तृप्ति हो ऐसा भोजन करें।

*भोजन मे उडद,मीठा, धी,तैल से स्निग्ध भोजन करें।

*रात्रिजागरण न करें।

*रात्रि में खुब अच्छे से सोयें।

*अश्वगंधा,विधारा आदि के उत्पादन प्रयोग करें?

*ग्रोविटा सीरप व कैपसूल पुष्टि (गुरु फार्मास्युटिकल) का प्रयोग करें।

धन्यवाद!

कोमन्ट मे बताये लेख कैसा लगा?



रविवार, 31 अक्तूबर 2021

दुबले_पतले है तो क्या करें? In hindi

हैल्थ_Ayurveda_Tips_घरेलू_उपचार.

 #दुबलापन>>



By:-Dr_Virender_Madhan.

#क्या है कृशता?In hindi.

कृश- दुबले व्यक्ति के नितम्ब, पेट और ग्रीवा शुष्क होते हैं। अंगुलियों के पर्व मोटे तथा शरीर पर शिराओं का जाल फैला होता है, जो स्पष्ट दिखता है। शरीर पर ऊपरी त्वचा और अस्थियाँ ही शेष दिखाई देती हैं।

#कृशता-स्थुलता से श्रेष्ठ क्यों है?

अष्टांगसंग्रह अनुसार अतिकृश होना महान रोग है,तथापि अतिस्थुलता से- अतिकृशता श्रेष्ठ है क्योंकि स्थुलता की कोई  चिकित्सा नही है। स्थुलता के लिये न तो लंघन पर्याप्त है न ही वृंहण पर्याप्त है।क्योंकि इसके लिए मेद,अग्नि और वात नाशक औषधि ही उपयुक्त है लंघन से मेद तो कम होगा लेकिन अग्नि और वात का नाश नही होता, वृंहण से वात और अग्नि शमन होता है परन्तु मेद का नाश नही होता।कृशता मधुर,स्निग्ध पदार्थो  को तृप्ति होने तक खाते रहने से कृशता नष्ट हो जाती है।इसके स्थुलता मे अत्यंत तिक्त-कटू-कषाय बहुल रुक्ष ,अन्नपान औषधियौं के लम्बे समय तक उपयोग करने से ठीक होते है।

इसलिए कृशता ,स्थुलता से श्रेष्ठ है।

#दुबलेपन के क्या क्या कारण है?

[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]

*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। 

इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है। 

इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा 

*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।

*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। 

*अधिक शोक, 

*जागरण तथा 

*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। 

*अनेक रोगों के कारण भी धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है।

*आज की टी.वी. संस्कृति, *युवक-युवतियों में यौनजनित कुप्रवृत्तियाँ (हस्तमैथुन आदि) तथा नशीले पदार्थों के सेवन से निरंतर धातुओं का क्षय होता है। 

-कृशता को 2भागो मे वर्गीकृत किया जाता है।

1. सहज कृशता 2. जन्मोत्तर कृशता


-सहज कृशता : माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है। 

गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं। 


जन्मोत्तर कृशता :-

-अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा -कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के कारण अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है। 

जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-

अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों सेदीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है। 

-शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता।

-मधुमेह,राजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में  कृशता उत्पन्न होती है। -अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है,

-जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार [हाइपरथायरायडिज्म ] कहते हैं।

#अतिकृश के लक्षण क्या है?

"शुष्क स्फिगुदरग्री्वः स्थुल पर्वासिराततः।।

उच्यतेअतिकृशस्तत्र प्रागुक्तोवृहंणोविधि।”अष्टांग संग्रह,


जिसके नितम्ब,उदय,ग्रीवा सुख जायें ,अंगुलियों के पर्व मोटे हो जाये, शरीर पर बा र ही शिराएं फैली हो, इस प्रकार के पुरुषों को अतिकृश कहते है।


#दुबलेपन से होने वाली हानियाँ क्या है?

* कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले लक्षण के अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें -अग्निमांद्य, 

-चिड़चिड़ापन, 

-मल-मूत्र का अल्प मात्रा में -विसर्जन, 

-त्वचा में रूक्षता, 

-शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, -कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं। 

-कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से रोग से पीड़ित रहता है।

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#अतिकृशता [दुबलेपन] की क्या चिकित्सा करें ?

अष्टांग संग्रह में निर्देश है कि 

"वृहंणोविधीः ।

अश्वगंधाविदार्याद्घा वृष्याश्चौषधयो हिताः ।।

अचिन्तया हर्षणेन ध्रुवं संतर्पणेन च।

स्वप्न प्रसंंगाच्च कृशो वराह इव पुष्यति।।”


वृहंण विधी बरतनी चाहिए।अश्वगंधा,विदारी,आदि मधुर वृहंण (वृष्य) औषधियां कृश के लिये हितकारी है।

-चिन्ता न करने से,

-प्रसन्न रहने से 

-सन्तर्पण लगातार करते रहने से, तथा अधिक नींद लेने से 

कृशता दूर हो जाती है।

संतर्पण : 

सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।


पंचकर्म : 

कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है। 

[कृश व्यक्ति के लिए स्वेदन व धूम्रपान वर्जित है। ]

स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।


#क्या कृशव्यक्ति के लिए रसायन एवं वाजीकरण उपयोगी है?

कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है। 

वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।


#औषधि चिकित्सा कैसे करें?


सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है। 

-अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।


#कृशता में उपयोगी औषधियाँ :-

*मुकोलिव सीरप और टेबलेट

*ग्रोविटा सीरप

*पुष्टि कैप्सूल

*लवणभास्कर चूर्ण, 

*हिंग्वाष्टक चूर्ण, 

*अग्निकुमार रस, 

*आनंदभैरव रस, 

*लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार), 

*संजीवनी वटी, 

*कुमारी आसव, 

*द्राक्षासव, 

*लोहासव, 

*भृंगराजासन, 

*द्राक्षारिष्ट, 

*अश्वगंधारिष्ट, 

*सप्तामृत लौह, 

*नवायस मंडूर, 

*आरोग्यवर्धिनी वटी, *च्यवनप्राश, 

*मसूली पाक, 

*बादाम पाक, 

*अश्वगंधा पाक, 

*शतावरी पाक, 

*लौहभस्म, 

*शंखभस्म, 

*स्वर्णभस्म, 

*अभ्रकभस्म तथा 

मालिश के लिए:-

-बला तेल, 

-महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।


भोजन में:-

 गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।


चेतावनी:-कीसी भी प्रकार की औषधि या कोई द्रव्य के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।


[Dr.Virender Madhan]


शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

सिंधाडा क्या है?सिंधाडे के अद्भुत लाभ?In hindi.

 <सिंधाडा>

Shingade 

By:-Dr.Virender Madhan.


सिंधाडे के नाम:-

Sanskritशृङ्गाटक, जलफल, त्रिकोणफल, पानीयफल;

Hindi-सिंघाड़ा, सिंहाड़ा;

Urdu-सिंघारा (Singhara);

Odia-पानीसिंगाड़ा (Panisingada);

Kannada-सगाड़े (Sagade); गुजराती-शीघ्रोड़ा (Shingoda);

Tamil-चिमकारा (Cimkhara), सिंगाराकोट्टाई (Singarakottai);

Telugu-कुब्यकम (Kubyakam);

Bengali-पानिफल (Paniphal), सिंगारा (Singara);

Panjabi-गॉनरी (Gaunri);

Marathi-सिंगाडा (Singada), सिघाड़े (Sigade), शेगाडा (Shegada);

Malayalam-करीमपोलम (Karimpolam)।

English-इण्डियन वॉटर चैस्टनट (Indian water chestnut), सिंगारा नट (Singara nut)।


#सिंघाड़े के फायदे  (Singhara Fruit Benefits and Uses in Hindi)


सिंघाड़े (Shingade fruit) में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। 

*दंतरोग में फायदेमंद सिंघाड़ा (Singhada Benefits for Tooth Diseases in Hindi)

अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन (Singada in hindi) से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान पर लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी,  सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।


*तपेदिक के लक्षणों से दिलाये राहत सिंघाड़ा (Shingade Fruit to Fight Tuberculosis in Hindi)

तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन (singada in hindi) इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। 

-समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से 

राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है।


#सिंधाडे की तासीर गर्म है या  ठंडी ?

वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल (shingade fruit) होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला, कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।

सर्दी के मौसम में एक से बढ़कर एक पौष्टिक फल और सब्जियां मिलती हैं। इन्हीं में से एक है 'सिंघाड़ा'। इसका सेवन करना सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।


[सेहत के लिए सिंधाडा पोष्टिक होता है।]

 यह एक जलीय सब्‍जी है 

पोषक तत्वों से भरपूर 'सिंघाड़ा' सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन-ए, सी, कर्बोहाईड्रेट, प्रोटीन जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे कच्चा, उबालकर या फिर हलवा बनाकर खाया जाता है। 

-वहीं सिंघाड़े का आटा व्रत में इस्तेमाल किया जाता है। 

-एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण सिंघाड़ा गले की कई समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करता है। खराश और टॉन्सिल से राहत पाने के लिए आप इसका सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा -सिंघाड़े के सेवन से अनिद्रा की समस्या भी दूर हो सकती है। 

-अस्थमा 

सर्दियों के मौसम में अस्थमा मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। नियमित रूप से सिंघाड़े का सेवन करने से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिल सकता है। 


#सिंघाड़े में शुगर होती है क्या?

-इस मौसम में सिंघाड़ा जरूर खाएं। ये मौसमी फल है जिसे खाने से हड्डियां मजबूत होंगी। डायबिटीज रोगियों के लिए सिंघाड़ा फायदेमंद होता है। ये डायबिटीज होने पर शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करता है।

-एसिडिटी, गैस और अपच

पेट से जुड़ी समस्याएं बहुत आम हैं। गैस, एसिडिटी, कब्ज और अपच लोग अक्सर परेशान रहते हैं। सिंघाड़े का सेवन पेट से जुड़ी समस्याओं में राहत दिला सकता है। 

-साथ ही इसका सेवन करने से भूख न लगने की समस्या भी दूर हो सकती है। 

- सिंघाड़ा, फटी एड़ियों को ठीक करने में कारगर है। शरीर के किसी हिस्से में दर्द या सूजन से राहत पाने के लिए भी आप इसका पेस्ट बनाकर उस जगह पर लगा सकते हैं। 

- गर्भवती महिलाओं के लिए 

गर्भवती महिलाओं के लिए सिंघाड़ा एक हेल्दी ऑप्शन है। इसे खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है। 

- मजबूत दांत और हड्डियां

सिंघाड़े का सेवन करने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं क्योंकि इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह शरीर की कमजोरी को दूर करने में भी सहायक है।


#सिंधाडा पाक [सिंधाडे का हलवा] खाने के लाभ:-

-इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है. सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है. 

- सिंघाड़ा यौन दुर्बलता को भी दूर करता है. 2-3 चम्मच सिंघाड़े का आटा खाकर गुनगुना दूध पीने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है.


सिंघाड़ा खाने के नुकसान - Singhare Ke Nuksan In Hindi

सिंघाड़ा खाने के नुकसान निम्न हैं -

जैसे सिंघाड़े खाने के फायदे हैं वैसे ही सिंघाड़े को अधिक मात्रा में सेवन करने से नुकसान भी हैं।

अधिक मात्रा में सिंघाड़े का सेवन करने से पाचन तंत्र ख़राब होता है।

अधिक मात्रा में इस के सेवन से कब्ज, पेट दर्द, आँतों की सूजन की समस्या हो सकती है। 

सिंघाड़े के सेवन के बाद कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे सर्दी खांसी की समस्या हो सकती है।

सिंघाड़े का अधिक मात्रा में सेवन से कफ जैसी समस्या भी हो सकती है।


#सिंघाड़े कैसे खाएं?

सिंघाड़े का आटा का प्रयोग पॅनकेक, पुरी और चपाती बनाने के लिए किया जाता है, खासतौर पर उपवास के दिनों में। इसका खाना बनाने में मुख्य रुप से प्रयोग खाने को गाढ़ा बनाने के लिए और पनीर और सब्ज़ीयों को घोल में डुबोकर तलने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ब्रेड, केक और कुकीस् बनाने के लिए किया जाता है।


#सिंघाड़े में कौन कौन से विटामिन पाए जाते हैं?

पोषक तत्वों से भरपूर – सिंघाड़े में विटामिन-ए, सी, मैंगनीज, थायमाइन, कर्बोहाईड्रेट, टैनिन, सिट्रिक एसिड, रीबोफ्लेविन, एमिलोज, फास्फोराइलेज, एमिलोपैक्तीं, बीटा-एमिलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.


Disclaimer: यह जानकारी आयुर्वेदिक नुस्खों के आधार पर लिखी गई है। इनके इस्तेमाल से पहले चिकित्सक का परामर्श जरूर लें।  

धन्यवाद!

Dr_Virender_Madhan.]