#आमवात (RHEUMATOID ARTHRITIS. #Dr_Virender_Madhan. in hindi.
** संधियों में पहुंचा हुआ आम दोष वहीं आश्रित रहता है और जकड़ाहट भी करता है परन्तु प्रात:काल कफ(श्लेष्मा)वर्धक काल होने की वजह से जकड़ाहट अधिक महसूस होती है जो दिन में प्राकृतिक उष्मा से और उठकर चलने फिरने की उष्मा से कम हो जाती है ।
-आचार्य चक्रपाणि के अनुसार
*लड्घनं स्वेदनं तिक्तं दीपनानि कटूनी च ।*
*विरेचनं स्नेहपानं बस्तयष्चाममारूत् ।।*
*सैन्धवाद् येनानुवस्य क्षारबस्ति प्रशष्यते ।।*
(चक्रपाणि 25/1)
अर्थात्
## आमवात संतर्पण जन्य रोग है अतः आमदोष के पाचन के लिए लंघन कराया जाता है ।
## आमवात की नवीन अवस्था में आमदोष उपस्थित रहने पर रूक्ष स्वेद (बालुका,सैंधव,पत्र पिण्ड शालि पिण्ड आदि )कराया जाता है ।आमवात में स्नेहन चिकित्सा निषिद्ध की गयी है।
** *परन्तु जीर्णावस्था अर्थात् निरामावस्था में स्नेहन कराया जाता है ।*
## आमदोष पाचन के लिए कटु तिक्त द्रव्यों से (यथा- त्रिकटु चूर्ण,पंचकोल चूर्ण,अजमोदादि चूर्ण) से दीपन पाचन कराया जाता है ।
## अधिक मात्रा में दोष उपस्थित होने पर विरेचन (हरीतकी चूर्ण,एरण्ड तैल,अभयादि मोदक आदि से) कराया जाता है ।
## *आमवात रोग की नवीन अवस्था में स्नेहन कर्म निषिद्ध है परन्तु रोग की जीर्णावस्था (अधिकांश रोगी जीेर्णावस्था में ही आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास आते हैं) में सैंधवादि तैल,
प्रसारणी तैल
और विषगर्भ तैल आदि से बाह्य स्नेहन कराते हैं ।*
आभ्यंतर स्नेहन के लिए एरण्ड तैल को गौमूत्र के साथ पान कराने का विधान है ।
भैषज्य रत्नावली में तो कहा गया है कि...
*आमवात गजेन्द्रस्य शरीर वनचारिण: ।*
*निहन्त्यसावेक एव एरण्ड स्नेदकेशरी ।।*
अर्थात्
शरीर रूपी वन में विचरण करने वाले आमवात रूपी गजेंद्र को नष्ट करने के लिए एरण्ड तैल रूपी सिंह ही अकेला पर्याप्त है (इससे विबन्ध दूर होकर कोष्ठ का शोधन होता है)
## सैंधवादि तैल द्वारा अनुवासन बस्ति और क्षार बस्ति (दशमूल आदि की निरूह बस्ति ) देना चाहिए ।
** संधियों में पहुंचा हुआ आम दोष वहीं आश्रित रहता है और जकड़ाहट भी करता है परन्तु प्रात:काल कफ(श्लेष्मा)वर्धक काल होने की वजह से जकड़ाहट अधिक महसूस होती है जो दिन में प्राकृतिक उष्मा से और उठकर चलने फिरने की उष्मा से कम हो जाती है ।
-आचार्य चक्रपाणि के अनुसार
*लड्घनं स्वेदनं तिक्तं दीपनानि कटूनी च ।*
*विरेचनं स्नेहपानं बस्तयष्चाममारूत् ।।*
*सैन्धवाद् येनानुवस्य क्षारबस्ति प्रशष्यते ।।*
(चक्रपाणि 25/1)
अर्थात्
## आमवात संतर्पण जन्य रोग है अतः आमदोष के पाचन के लिए लंघन कराया जाता है ।
## आमवात की नवीन अवस्था में आमदोष उपस्थित रहने पर रूक्ष स्वेद (बालुका,सैंधव,पत्र पिण्ड शालि पिण्ड आदि )कराया जाता है ।आमवात में स्नेहन चिकित्सा निषिद्ध की गयी है।
** *परन्तु जीर्णावस्था अर्थात् निरामावस्था में स्नेहन कराया जाता है ।*
## आमदोष पाचन के लिए कटु तिक्त द्रव्यों से (यथा- त्रिकटु चूर्ण,पंचकोल चूर्ण,अजमोदादि चूर्ण) से दीपन पाचन कराया जाता है ।
## अधिक मात्रा में दोष उपस्थित होने पर विरेचन (हरीतकी चूर्ण,एरण्ड तैल,अभयादि मोदक आदि से) कराया जाता है ।
## *आमवात रोग की नवीन अवस्था में स्नेहन कर्म निषिद्ध है परन्तु रोग की जीर्णावस्था (अधिकांश रोगी जीेर्णावस्था में ही आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास आते हैं) में सैंधवादि तैल,
प्रसारणी तैल
और विषगर्भ तैल आदि से बाह्य स्नेहन कराते हैं ।*
आभ्यंतर स्नेहन के लिए एरण्ड तैल को गौमूत्र के साथ पान कराने का विधान है ।
भैषज्य रत्नावली में तो कहा गया है कि...
*आमवात गजेन्द्रस्य शरीर वनचारिण: ।*
*निहन्त्यसावेक एव एरण्ड स्नेदकेशरी ।।*
अर्थात्
शरीर रूपी वन में विचरण करने वाले आमवात रूपी गजेंद्र को नष्ट करने के लिए एरण्ड तैल रूपी सिंह ही अकेला पर्याप्त है (इससे विबन्ध दूर होकर कोष्ठ का शोधन होता है)
## सैंधवादि तैल द्वारा अनुवासन बस्ति और क्षार बस्ति (दशमूल आदि की निरूह बस्ति ) देना चाहिए ।
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