#आयुर्वेद में त्रिदोष किसे कहते है?.In hindi.
* What is called Tridosha in Ayurveda?.In Hindi.
Dr.VirenderMadhan.
आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं।
Q:- वात,पित्त और कफ को दोष क्यों कहते है?
Ans:- यहां "दोष" शब्द का मतलब सामान्य भाषा में ‘विकार’ नहीं है। इसी प्रकार, "त्रिदोष" का अर्थ- वात, पित्त, कफ की विकृति या विकार नहीं है। आयुर्वेद में कहा है कि [दुषणात दोषाः, धारणात धातवः]
अर्थात वात, पित्त व कफ जब दूषित होते है तो रोग उत्पन्न कर देते हैं तथा जब वे अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहते हैं तो सप्त धातु व शरीर को धारण करते व संतुलित रखते हैं।
- आयुर्वेद में शरीर की मूल धारक शक्ति को व शरीर के त्रिगुणात्मक (वात, पित्त, कफ रूप) मूलाधार को ‘त्रिदोष’ कहा गया है।
- इसके साथ 'दोष' शब्द इसलिए जुड़ा है कि सीमा से अधिक बढ़ने या घटने पर यह स्वयं दूषित हो जाते हैं तथा धातुओं को दूषित कर देते हैं।
Q:- शरीर के निर्माण मे प्रधान तत्व क्या है?
[दोषधातुमल मूलं हि शरीरम्' ]
अर्थात दोष, धातु और मल - ये शरीर के तीन मूल हैं। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे
Q:-दोष धातु मलों का शरीर में महत्व क्या है?
Ans:-- दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकार या रोग की चिकित्सा करना है। शरीर में जितने भी तत्व पाए जाते हैं, वे सब इन तीनों में ही जुडे हैं। इनमें भी दोषों का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
- त्रिदोष को शरीर की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण,
अथवा शरीर के स्तम्भ माने जाते हैं। इसके पश्चात शरीर को स्वास्थ बनाए रखने और रोगों को समझने एवं उनकी चिकित्सा के लिए भी त्रिदोषों को समझना बहुत आवश्यक है। इन तीनों दोषों के सम होने से ही शरीर स्वस्थ रहना संभव है। परन्तु जब इनकी सम अवस्था में किसी प्रकार का विकार या असंतुलन आ जाता है तो रोग जन्म ले लेता है।
Q:- त्रिदोष सिद्धांत क्या है?
Ans:- त्रिदोष का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है आयुर्वेद में। वात, पित्त और कफ जब कुपित हो जाते हैं तो शरीर असंतुलित और रोग बढ़ने लगते हैं। इसलिए इन तीनों दोषों का सम रहना ही स्वस्थ होने की पहचान है।
त्रिदोष को समझने के लिये पंचमहाभूत, वात,पित्त,और कफ के बारे मे जानना होगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें