Guru Ayurveda

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.

 गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.



#DrVirenderMadhan.

#गुल्मरोग|वायुका गोला,

गुल्मरोग प्रतिकूल आहार-विहार के कारण वायु के प्रदूषित होने के कारण पेट में गांठ के समान गोला सा बन जाता है ।इसे वायु का गोला भी कहते है।

इसके लिए  रोगी को दीपन,स्निग्ध, अनुलोमन, लंघन, एवं बृंहण (पुष्टिकारक)पदार्थ का सेवन लाभकारी होता है।

गुल्म रोगी के शारिरिक स्रोतों का स्निग्धीकरण से कोमल होने , प्रचण्ड वात को दबाने तथा विबन्ध तोडने के पश्चात स्वेदन कर्म लाभप्रद सिद्ध होता है।

तदनंतर देशकाल और अवस्था अनुसार स्नेहन,सेंक, निरुहबस्ति और आनुवासन वस्तिकर्म के द्वारा उपचार करें।

इसके बाद मंद उष्ण उपनाहन कर्म करने तथा सान्त्वना देने चाहिए।फिर आवश्यकता अनुसार रक्तमोक्षण तथा भुजा क मध्य भाग में शिराभेदन ,स्वेदन, तथा वायु का अनुलोमन करना चाहिए।

इस प्रकार सभी गुल्म जड से समाप्त हो जाते है।

#रावणसंहिता के अनुसार गुल्मरोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा,

- बिरौजा नीबूं का रस, हींग, अनार,विड्नमक, तथा सेंधानमक, इन्हें मधमण्ड के सार अथवा 

- अरण्डी के तैल को मधमण्ड या दूध के साथ पान करने से वातज गुल्म समूल नष्ट हो जाता है।

- सज्जीखार और केतकीखार (क्षार ) को कुठ के साथ अरण्डी तैल मे पान करने से वातज गुल्म का नाश हो जाता है।

- वातज गुल्म के चिकित्सा काल मे कफ प्रकोप होने पर उष्ण व उष्ण पदार्थों के मिश्रित चूर्ण आदि का प्रयोग करना चाहिए। पित्त की प्रकोप अवस्था में विरेचन देना चाहिए।



- काकोल्यादिगण , बकायन,तथा वासादि द्रव्यों से पकाये तैल पान से स्निग्धत पैत्तिक गुल्मी मे विरेचन के बाद बस्तिकर्म का प्रयोग उपयोगी है।

-जब रोगी को जलन, शूल, वेदना, विक्षोभ, निद्रानाश, अरोचकता तथा ज्वरादि के लक्षण हो उस समय उपनाहन कर्म के द्वारा परिपक्व बनाना चाहिए।इसके बाद भेदन, लेपन, आदि कर्म करे. बिना भेदन ही दोष के ऊध्वगामी या अधोगामी होने पर बारह दिनों तक शोधन कर्म न करके उत्पन्न लक्षणो (दोष)का शमन करत रहे।

-पैतिक गुल्म मे लंघन, लेखन, और स्वेदन कर्म को पुर्ण करें। तथा अग्निबर्द्धन ,भूखे होने पर त्रिकटु, जवाखार कल्क मिला कर पकाया हुआ घृतका पान कराये।

अथवा वचा 2भाग, हरड 3भाग, विड्नमक 6 भाग, सौंठ 4 भाग, हींग 1 भागकुडा  8भाग, चीता5 भाग,तथा अजवायन 4 भाग,इन का चूर्ण खाने से,अफारा, औदरिक रोग,शूल, बवासीर, साँस, खाँसी,और ग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।

वातगुल्म प्रयोग को कफगुल्म मे भी अपनाना चाहिए।

अथवा पंचमूल मे पकाये जल, पुरानी मध या महुए के फुलों से निर्मित मध का सेवन करना चाहिए। अथवा

- मठ्ठे मे अजवाइन चूर्ण विड्नमक मिलाकर पीना चाहिये इससे क्षुधाग्नि बढती है। मल,मूत्र और वायु का अनुलोमन होता है । ईति.

#डा०वीरेंद्र मढान.

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