Guru Ayurveda

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

#जुकामRhinitis/प्रतिश्याय क्या है?In hindi.

 #जुकामRhinitis/प्रतिश्याय क्या है?In hindi.



#Dr_Virender_Madhan.

परिचय:-

>> हवा मे व्यापत्

 परागकण ,वायरस,धुल के कण,किसी रोगी के छींक के कण सांस के द्वारा श्वास नली के अन्दर संक्रमित करके जुकाम छींक रोग उत्पन्न कर देता है।

यह उन व्यक्तियों मे अधिक होता है जिनकी रोग प्रतिरोधकशक्ति कम होती है।

* आयुर्वेद के अनुसार छींक आना कई बीमारियों के लक्षण भी हो सकते हैं. छींक (Sneezing) द्वारा नाक व गले के अन्दर से दूषित पदार्थ बाहर निकलता है. यह शरीर को एलर्जी से बचाने की स्वभाविक प्रक्रिया है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को बहुत जल्दी-जल्दी छींक आती है तो यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी को दर्शाता है.

#प्रतिश्याय निदान के 2भेद ?

1- सद्योजनक(तुरन्त उत्पन्न होने वाले)

2-चयादि जन्य कर्म से

 -कफादि दोषों संचय,कोप आदि से उत्पन्न होने वाले।

अन्य कारण:-

मल-मूत्र आदि रोकने से

अजीर्ण होने से, 

नाक मे धूल जाने से,

अधिक बोलने से,

क्रोध करने से,

ऋतु विपरीत कार्य करने से,

रात्रि जागरण से जुकाम हो जाता है।

अधिक सोना, अधिक जल पीना, तुषार-ओस में रहना ठंड लग जाना, अधिक रोना, शोक करना।

उपरोक्त कारणों से कफ कुपित हो कर जुकाम हो जाता है।।।जमी हुई कफ को बढी हुई वात प्रतिश्याय व छींक उत्पन्न कर देता ।

संचय क्रम मे पहले कारण बनता है दोषों का संचय होता है फिर दोष कुपित होकर प्रसार कर दोष स्थान भेद से रोग उत्पन्न करते है।

#जुकाम के लक्षण क्या है ?

* छींके बहुत आती है।

*सिर में बोझ महसुस होता है

*शरीर के अंग टूटने लगते है।

*शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते है।

*नाक मे धुआं सा प्रतीत होता है

*नाक मुहं से स्राव बहने लगता है।

** दोषों के अनुसार भी जुकाम के अनेक लक्षण होते है।


** जुकाम के जीर्ण होने पर:-

- सुंघाने की शक्ति नष्ट हो जाती है।

- शोष हो जाता है।

- नेत्रों के रोग हो जाते है।

- खांसी होने का रोग हो जाता है।

- अग्नि मंद हो जाती है।


#बार-बार सर्दी-जुकाम के 4 कारण (आधुनिक मतानुसार)


*लो इम्यूनिटी

अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव करने की कोशिश करने की जरूरत है। अपनी *डाइट में इम्यूनिटी बूस्टर शामिल करें, 

*अदरक और शहद का उपयोग करें और कोशिश करें कि जब भी मौसम में बदलाव हो तो ठंडे फूड्स से दूर रहें।

*एलर्जी

नाक बहना, आंखों से पानी आना और नाक बंद होना एलर्जिक राइनाइटिस के मुख्य लक्षणों में से एक है। इसलिए अगर आप किसी विशेष स्थान पर जाकर बीमार पड़ते हैं या किसी विशेष समय पर बीमार होते हैं तो आपको एलर्जी हो सकती है। ये बहुत ज्यादा या फिर क्रॉनिक भी हो सकती है। 


#जुकाम की आयुर्वेदिक शास्त्रीय औषधियों.

*दाडिमादि चूर्ण

*हिंग्वाष्टक चूर्ण

*कल्पतरु रस

*चन्द्रामृत रस

*लक्ष्मीविलास रस नारदीय

*व्यौषादि वटी

#घरेलू अनुभुत योग (उपाय).

*गर्म दूध में 10-12 नग काली मिर्च और मिश्री मिलाकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

*वायविंडग, हिंग, सैधवनमक, गुग्गुल, मैनसिल, और वच, इन सब को समभाग मे लेकर पीसकर रखले इस सुंघाने से जुकाम मे लाभ मिलता है।

*अदरक का रस और शहद 6-6 ग्राम मिलाकर चाटने से जुकाम ठीक हो जाता है।

*बडी हरड का छिलका पीसकर 6ग्राम लेकर शहद मे मिलाकर चाटें।

*शरबत बनफशा से अच्छा लाभ होता है।

*कालाजीरा सुंघाने से भी जुकाम मे लाभ मिलता है।

*सतू मे धी और तैल मिला कर आग मे डालने जो धुआं बनता है उसे सूंघने से जुकाम ,खांसी,  हिचकी बन्द होती है।

*दशमुल का काढा गर्म गर्म पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

*पुराना गुड और अदरक मिलाकर खाने से भी जुकाम ठीक रहता है।

*दालचीनी, तेजपत्ता, इलायची, और नागकेशर का सममात्रा मे बना चूर्ण सुंघाने व खाने से जुकाम मे आराम मिलता है।

*काली मिर्च, हल्दी, काला नमक,

*भुने हुए चने सुंघाने से जुकाम, सर्दी, कफ के क्लेद मे आराम मिलता है तथा गर्म भुने चनो की पोटली से छाती सेकने से छाती मे जमा कफ साफ हो जाता है।

*त्रिफला, त्रिकटु समान मात्रा मे मिलाकर 1-2ग्राम मात्रा मे शहद मिलाकर चाटने से कफ ठीक होता है।

#जुकाम मे सावधानी क्या करें?

*मास्क लगाकर रखे।

* बदलते मौसम में ठंडी चीजों से परहेज करें।

* आइसक्रीम कतई न खाएं। * ठंडा पानी और दही खाने से भी परहेज करें। एकदम से ठंडा पानी पीने से गला खराब हो सकता है और छाती की जकड़न बढ़ सकती है। 

* ठंडी चीजों के साथ ही खट्टी चीजें भी न खाएं। 

*सर्दी-जुकाम के लक्षण दिख रहे हैं तो खिचड़ी ही खाएं।

* बदलते मौसम में गुनगुना पानी ही पिएं। पानी की मात्रा बढ़ा दें और खूब पानी पिएं ताकि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो 

* बाहर का खाना खाने से बचें। बाहर के खाने से आपको पेट खराब हो सकता है और सर्दी-जुकाम का संक्रमण बढ़ सकता है। 

* कोई भी दवा लेने से पहले अपने किसी आयुर्वेदिक [चिकित्सक से सलाह जरूर लें।]

 *Dr_Virender_Madhan.








सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

#सांवला चेहरा कैसे निखारें?In hindi


 #सांवला चेहरा कैसे निखारें?In hindi

#Dr_Virender_Madhan.

#रंग साफ करने के 10 घरेलू उपाय।

* चेहरा काला क्यों पड़ जाता है?

कारण:-

कुछ लोगों के चेहरे का रंग सांवला या काला होता है. ऐसा भी देखा जाता है कि 

* गर्मियों के मौसम में धूप के कारण कई लोगों की त्वचा काली हो जाती है. इसके अलावा 

* प्रदूषण युक्त वातावरण एवं धूल- के कारण भी चेहरे की चमक खो जाती है, एवं चेहरा काला पड़ जाता है.

आपके चेहरे की रंगत को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं.

**  सूरज की रौशनी , 

**धुंआ हो, 

**तनाव 

**खान-पान. 

**कुछ बीमारी कारण हो सकते है।


#क्या करें घरेलू उपाय?

उपाय:-

1- सेव और गुलाब जलः-

आधा कप सेब का रस और एक चम्मच गुलाबजल- दोनों को मिलाकर त्वचा पर लगाएं।

2.बेसन का फेसपैक :-

 चार चम्मच बेसन, आधा चम्मच चंदन पाउडर, एक चम्मच नींबू का रस, एक चम्मच खीरे का रस और एक चम्मच कच्चा दूध- इन सबको ठीक से मिलाकर सारे शरीर पर उबटन की तरह लगाएं।

3- शहद का  उपयोग 

-शहद के लगाने से त्वचा को निखारता है।

4:- दही से मसाज करें चेहरे को गोरा बनाने के लिए दही काम की चीज है. ...

5-पपीते का ऐसे करें उपयोग पपीता एक ऐसा फल है, जो सेहत के साथ त्वचा के लिए बेहद लाभकारी है पपीते का पेस्ट लगाने से लाभ मिलता है।

6:-कच्चे केले का पेस्ट लगाएं केले से भी चेहरे की निखार वापस लाया जा सकता है और

सांवलापन दूर कर सकते है ।

7:-हल्दी और दूध को मिक्स करें और उस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं बाद मे अच्छे से धो दें।

8:-आलू को काट कर रगडने से  रंग निखार होता है।

9:- मसूर की दाल का पाउडर का पेस्ट भी गोरी रंगत पाने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय है। ...

10:-नींबू और टमाटर का लेप फेयर स्किन पाने के लिए रामबाण हैं। ...

चेहरे का रंग निखारने का सबसे आसान तरीका है भाप लेना।

>> सावधानी:-

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सौन्दर्य बढाना है तो कुछ सावधानी बरतनी होगी।

* धूप में न घूमे।

*रात्रि जागरण न करे।

*तला भुना जला भोजन न करें

*संतुलित पौष्टिक आहार करें।

*शरीर पर तैल मालिस जरूर करें।


#डा_वीरेन्द्र_मढान.

#Guru_Ayurveda_in_faridabad.





शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

#स्वर्ण(Gold)भस्म को खाने से पहले जाने क्या है कैसे करता है काम ?In.hindi.


 

  #स्वर्ण(Gold)भस्म को खाने से पहले जाने क्या है कैसे करता है काम ?In.hindi.

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डा०वीरेंद्र मढान.

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स्वर्ण : Dhatu Vargha मे आता है।

स्वर्ण के नाम:-

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संस्कृत- सुवर्णम्

हिंदी- सोना

English -Gold

symbol- Au

 #स्वर्ण के प्रमुख नाम :-

स्वर्ण, हिरण्य, कल्याण, अग्निवर्ण, हेम, कनक , कौन्त, हाटक, चामीकर, चाम्पेय।


#स्वर्ण प्राप्ति स्थान:-

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विशेष रूप से यह मैसूर के कोलार गोल्ड-फील्ड से प्राप्त होता है।

मद्रास के अनन्तपुर की खान,उत्तर प्रदेश एवं बिहार की नदियों की रेत से इसके कण अल्प प्राप्त किये जाते है।

भारत के अलावा यह दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, वर्मा अमेरिका, मैक्सिको, चीन तथा रूस आदि देशों में पाया जाता है।


#अग्राह्य स्वर्ण के लक्षण –

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श्वेताभ, रूक्ष, कठिन, विवर्ण, मलयुक्त,गर्म करने पर श्वेत एवं कृष्णवर्ण का होने वाला,कसौटी पर घिसने पर श्वेत रेखा खींचने वाला और

हल्के सोने को रस रसायन कर्म में त्याज्य माना गया है।

अशुद्ध सोना खाने से वीर्य, बल ,सौख्य इन सबका हनन होता है तथा अनेक प्रकार के प्रकार के रोगों को उत्पन्न करता है खाने वाले व्यक्ति को अधमरा कर देता है।अतः स्वर्ण को शोधित कर मारण करे फिर उस अमृततुल्य भस्म का सेवन करना चाहिए।

#ग्राह्य स्वर्ण के लक्षण :-

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आग पर तपाने पर रक्तवर्ण होने वाला,

काटने पर चमकने वाला,

कसौटी पर घिसने पर केशर के सदृश वर्ण वाला,

गुरु, स्निग्ध, मृद एवं स्वच्छ, पत्ररहित, पीतवर्ण की आभावाला तथा

षोडश वर्ण वाला स्वर्ण देहसिद्धि एवं लौह सिद्धि में प्रशस्त होता है।

#स्वर्ण का विशेष शोधन:-

पंच मृत्तिका:-

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1- वल्मीकमिट्टी, गृहधूम, स्वर्णगैरिक, ईंट का कर्ण और सैंधवलवण को मृत्तिका पंचक नाम से शास्त्रों से लिखा है।

इन्हें बारीक पीसकर जंबीरी का रस या कांजी मिलाकर सुवर्ण के पत्रो पर लेप कर लधु पुट मे फुंकते है इस प्रकार तीन बार पुटो के देने से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है।

2- पंचमृतिका को बिरौज नीबू का रस डालकर उसमे स्वर्ण पत्रो को 5 दिनों तक रखे फिर निकाल कर पीली मिट्टी या गेरू और सैंधानमक तथा उपलो की भस्म लेप कर इन पत्रो को जंगली उपलो की अग्नि मे पुट देने से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है।


#स्वर्ण की भस्म कैसे बनाते है?

मारण विधि :-

1- शुद्ध स्वर्ण के पत्रों पर सोनामक्खी (स्वर्णमाक्षिक)और शीशे (सिक्के-वंग) को आक के दुध मे रगड कर लेप कर दे फिर इनको अन्धमूषा मे रख कर पुट मे फूंक दे तो सोने की भस्म बन जाती है।


2- शुद्ध स्वर्ण के कण्टकवेधी पत्रों पर नींबू स्वरस से मर्दित भस्म (रससिन्दूर) का लेप कर सुखाएं।

इसके पश्चात् शराव सम्पुट में रखकर कुक्कुट पुट की अग्नि में पाक करें।

इस प्रकार दस पुट देने पर स्वर्ण की भस्म बन जाती है।


#स्वर्ण भस्म गुण:-

रस कषाय, तिक्त, मधुर,भारी, लेखन, हृद्य, रसायन, बलकारक, नेत्रो को हितकारी, कांतिदायक ,पवित्र, आयुबर्द्धक, मेघोजनक, वयस्थापक , वाणी को शुद्ध करनेवाला स्मृतिदायक, तथा क्षय उन्माद और कुष्ठरोग को नष्ट करने वाला होता है।


#स्वर्ण भस्म मात्रा-

रसरत्नसमुच्चयकार ने एक गुञ्जा की मात्रा में लेने का निर्देश किया है।

रसतरंगिणीकार ने 1/8से 1/4 रत्ती तक रोग एवं रोगी के बल एवं काल का विचार करके लेने का निर्देश किया है।


#स्वर्ण भस्म अनुपान:-

त्रिकटु चूर्ण + घृत से, शहद,


#स्वर्ण भस्म का आमयिक प्रयोग:-

* स्वर्ण भस्म मत्स्यपित के साथ दाह नाशक है।


*भृंगराज स्वरस के साथ वृहंण,आयुष्य है


* दुग्ध के साथ बल्य,

* पुनर्नवा के साथ नेत्र्य,

* घृत के साथ रसायन,

* वचा से स्मृतिवर्द्धक,

* कुंकुम के साथ कान्ति बर्द्धक,

* दूध के साथ राजयक्ष्मा व विषनाशक और

* शुण्ठी, लवङ्ग एवं मरिच के अनुपात से सेवन करने पर त्रिदोषज उन्माद को नष्ट करती है।

**~सेवन काल में अपथ्य:-

बिल्व फल का सेवन हानिकर होता है।

#स्वर्ण के प्रमुख योग:-

योगेन्द्र रस

रसराज रस

वृहतवातचिन्तामणी रस

कुमारकल्याण रस

बसन्तकुसुमाकर रस

वृहतश्वासकासचिन्तामणी रस

मकरध्वज रस

सिध्दमकरध्वज

जयमंगल रस

योगेन्द्र रस

बसन्तमालती रस

अन्य बहुत से शास्त्रीय योग स्वर्ण युक्त होते है।


#Dr_Virender_Madhan

#Guru_Ayurveda_in_Faridabad.


गुरुवार, 27 जनवरी 2022

#Viral Fiver #वायरल बुखार का आयुर्वेदिक इलाज।in.hindi.


 #Viral Fiver #वायरल ज्वर क्या है?

#Dr_Virender_Madhan.

> वायरल Fiver आमभाषा मे इसे मौसमी बुखार कहते है।

वायरल बुखार का मतलब है वायरस से होनेवाला बुखार या वायरल संक्रमण, 

* इसमें वायरस रोगी के ऊपर श्वसनतंत्र को प्रभावित करता है।जब रोगी खांसता है या छिंकता है तो वायरस वायु के द्वारा समीप दुसरे व्यक्ति को प्रभावित कर देता है।यह श्वसनतंत्र की कोशिकाओं मे पहुंच कर ज्वर ,कास,जुकाम उत्पन्न कर देता है।

*उसके शुरुआती दौर में शरीर के बहुत ज्यादा थक जाने का अहसास होता है

*मसल या शरीर में तेज दर्द का एहसास हो सकता है. 

* वायरल बुखार वायु जनित बीमारी है.

- ये बाहरी वायरस किसी भी स्वस्थ इंसान के अंदर तेजी से फैल सकता है. वायरल बुखार को रोकने के लिए आप इस तरह देखभाल कर सकते हैं. शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करना, उसके अलावा, अपनी रोजाना की डाइट में पौष्टिक पोषक तत्वों को शामिल कर सकते है।

*मौसम में बदलाव, खान-पान में गड़बड़ी या फिर शारीरिक कमजोरी की वजह से भी वायरल बुखार होता है। वायरल बुखार हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक तंत्र को कमजोर कर देता है, जिसकी वजह से वायरल के संक्रमण बहुत तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंच जाते हैं। आमतौर पर वायरल बुखार के लक्षण आम बुखार जैसे ही होते हैं लेकिन इसको उपेक्षा करने पर व्यक्ति की हालत काफी गंभीर हो सकती है।

*आयुर्वेद के अनुसार वायरल फीवर होने पर शरीर के तीनों दोष प्रकूपित होकर विभिन्न लक्षण दिखाते है। विशेषकर इसमें कफ दोष कूपित होकर जठराग्नि को मंद या भूख मर जाती है।

#वायरल फीवर के लक्षण :-

(Symptoms of Viral Fever)

-थकान।

-पूरे शरीर में दर्द होना ।

-शरीर का तापमान बढ़ना ।

- खाँसी ।

- जोड़ो में दर्द ।

- दस्तहोना।

- त्वचा के ऊपर रैशेज होना।

- सर्दी लगना।

- गले में दर्द व खराश होना।

- सिर दर्द

- आँखों में लाली तथा जलन रहना।

- उल्टी और दस्त का होना।

- वायरल बुखार ठीक होने में 5-6 दिन भी लग जाते है। शुरूआती दिनों में गले में दर्द, थकान, खाँसी जैसी समस्या होती है।


#वायरल बुखार मे घरेलू उपाय क्या करें?

1-हल्दी और सौंठ का पाउडर -

 

सौंठ यानी कि अदरक का पाउडर और अदरक ज्वरध्न होते है।

* इसलिए एक चम्मच काली मिर्च के चूर्ण में एक छोटी चम्मच हल्दी, एक चम्मच सौंठ का चूर्ण और थोड़ी सी चीनी मिलाएं। अब इसे एक कप पानी में डालकर गर्म करें, फिर ठंडा करके पिएं। इससे वायरल फीवर खत्म होने में मदद मिलेगी।

 2 तुलसी क्वाथ इस्तेमाल करें - तुलसी में एंटीबायोटिक गुण होते हैं जिससे शरीर के अंदर के वायरस खत्म होते हैं। इसके लिए एक चम्मच लौंग के चूर्ण में 10-15 तुलसी के ताजे पत्तों को मिलाएं। अब इसे 1 लीटर पानी में डालकर इतना उबालें जब तक यह सूखकर आधा न हो जाए। अब इसे छानें और ठंडा करके दिन में 2-3 बार पिएं। ऐसा करने से वायरल से जल्द ही आराम मिलेगा।


3 धनिये की चाय(क्वाथ)पीऐ -

 - धनिये में कई औषधीय गुण होते हैं। इसको चाय तरह बनाकर पीने से भी वायरल में जल्द आराम मिलता है। 


4 मेथी का(कषाय)पानी पिएं -

 एक कप मेथी के दानों को रातभर भिगों लें और सुबह इसे छानकर हर एक घंटे में पिएं।


 5 नींबू और शहद मिश्रण:-

 नींबू का रस और शहद भी वायरल फीवर के असर को कम करते हैं। आप शहद और नींबू का रस का सेवन भी कर सकते हैं।

#बुखार मे उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी - 

** गुडूची​

गुडूची प्रमुख तौर पर परिसंचरण और पाचन तंत्र से संबंधित रोगों का इलाज और उन्‍हें रोकने का काम करती है।

ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और तीनों दोषों को शांत करती है।

गुडूची पित्त रोगों, बुखार, कफ के कारण हुए पीलिया और जीर्ण मलेरिया के बुखार में उपयोगी है। 

 ** पिप्‍पली

ये पाचन, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। पिप्‍पली बुखार के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। इसमें वायुनाशी और ये बुखार के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। 

 

** वासा;-

ये श्‍वसन, परिसंचरण, तंत्रिका और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है। ये मूत्रवर्द्धक, मांसपेशियों में ऐंठन दूर करने और कफ निस्‍सारक (बलगम खत्‍म करने वाले) कार्य करती है।

खांसी, ब्रोंकाइल अस्‍थमा, कफ विकारों, डायबिटीज और मसूड़ों से खून आने की समस्‍या में भी वासा उपयोगी है।

 ** आमलकी:-

आमलकी परिसंचरण, पाचन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें पोषण देने वाले शक्‍तिवर्द्धक, ऊर्जादायक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं जो कि त्रिदोष को शांत करने में सक्षम है।

ये सभी प्रकार के पित्त रोगों, बुखार, गठिया, कमजोरी, आंखों या फेफड़ों में सूजन, लिवर और पाचन मार्ग से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। 

** अदरक:-

अदरक शरीर के पाचन और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। ये दर्द से राहत दिलाती है और वायुनाशक,पाचक और कफ निस्‍सारक कार्य करती है। इस प्रकार अदरक बुखार से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती है।

वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने के लिए अदरक का इस्‍तेमाल किया जाता है। शुंठी (सूखी अदरक) अग्‍नि को बढ़ाती है और कफ को कम करती है।

 ** मुस्‍ता:-

मुस्‍ता पाचन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। ये वायुनाशी, उत्तेजक, मूत्रवर्द्धक, भूख बढ़ाने, फंगसरोधी और कृमिनाशक कार्य करती है।

मुस्‍ता के मूत्रवर्द्धक गुण खासतौर पर बुखार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं क्‍योंकि इससे बार-बार पेशाब आता है जिससे शरीर से अमा निकल जाता है।

 ** भूमि आमलकी:-

पाचन, प्रजनन और मूत्र प्रणाली से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में भूमि आमलकी उपयोगी है।

भूमि आमलकी से पीलिया, बाहरी सूजन और मसूड़ों से खून आने का इलाज किया जा सकता है।

#बुखार के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

~ मृत्‍युंजय रस

ये बुखार पैदा करने वाले कई बैक्‍टीरियल संक्रमण में उपयोगी है।

 ~संजीवनी वटी

ये टाइफाइड बुखार, सिरदर्द और पेट की गड़बड़ी को भी ठीक करने में उपयोगी है।

 ~त्रिभुवनकीर्ति रस

ये शरीर पर पसीना लाकर और दर्द से राहत दिलाकर बुखार का इलाज करती है। इसके अलावा त्रिभुवनकीर्ति रस से माइग्रेन, इंफ्लुएंजा, लेरिन्जाइटिस (स्‍वर तंत्र में सूजन), फेरिंजाइटिस (गले में सूजन), निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, खसरा और टॉन्सिलाइटिस को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।

 ~सितोपलादि चूर्ण

सितोपलादि चूर्ण बुखार, फ्लू, माइग्रेन और श्‍वसन विकारों के इलाज में असरकारी है।  औषधि से फ्लू के लक्षणों से शुरुआती तीन से चार दिनों में ही राहत मिल जाती है जबकि फ्लू को पूरी तरह से ठीक होने में आठ सप्‍ताह का समय लगता है। 

> व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।


#क्याकरे क्या न करें?

अगर आपको बुखार हो गया है तो 

*पूरी तरह आराम करें। जब तक ठीक नहीं हो जाते तो भी

*गर्म और तरल भोजन, जैसे सूप और खिचड़ी खाएं। 

* अगर आपको तेज बुखार और शरीर में दर्द हो रहा हो, तो अपने डॉक्टर को फौरन दिखाएं।  

*बीमार होने पर खुद बुखार दूर करनेवाली दवा, एंटीबायोटिक दवा और दर्द दूर करनेवाली दवाएं ना लें।

*शाली चावल, जौ और दलिया खाएं।

*फल और सब्जियां जैसे कि परवल, करेला, शिग्रु (सहजन), गुडुची, जीवंती, अंगूर, कपित्थ (बेल) और अनार को अपने आहार में शामिल करें।

*हल्‍का भोजन करें। 

*मालिश और आराम से व्‍यक्‍ति की हालत में सुधार लाया जा सकता है।

*छोले, तिल और जंक फूड न खाएं। 

*दूषित पानी न पीएं। 

*भारी भोजन न करें या पेट में *एसिडिटी और जलन पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ खाने से बचें।

*प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल निष्‍कासन और पेशाब आदि न रोकें।

*दिन सोने से बचें। *खाने के बीच में उचित अंतराल रखें और ओवरईटिंग न करें। 

#Dr_Virender_Madhan.




मंगलवार, 25 जनवरी 2022

#Epilepsy अपस्मार[ मिर्गी ]का आयुर्वेद मेही ईलाज.in hindi.

#Epilepsy, #अपस्मार, #मिर्गी, #मिरगी

#Treatment of epilepsy in ayurveda.

 #अपस्मार (मिर्गी)क्या है?

#Dr_Virender_Madhan.



#अपस्मार के क्या क्या नाम है?

- अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी, मिरगी, अंग्रेजी मे (Epilepsy)कहते है।

अपस्मार का अर्थ है- 

अप+स्मार।

अप = नष्ट, स्मार=स्मृति, यानि स्मृति का नष्ट होना।

मृगी ऐसा रोग है जिसमे स्मृति का ह्रास होता है और रोगी ज्ञान हीन हो जाता है।

- यह एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है।

सुश्रुत के अनुसार:-

चिंता, शोक, क्रोध, मोह , लोभ आदि से वात, पित्त और कफ कुपित हो जाता है फिर हृदय और मनोवह संस्थान मे जाकर स्मृति का नाश करके अपस्मार (मिर्गी ) रोग उत्पन्न कर देते हैं।

चरकानुसार:-

जिसका चित रजोगुण और तमोगुण से घिरा रहता है।जिसके दोष(वात,पित्त, कफ) विकृत होते है।

जो भोजन के नियमों और शास्त्रो के नियम विरुद्ध कार्य करता है।जिसका शरीर कमजोर हो जाता है उसके कुपित दोष और रजोगुण-तमोगुण के अत्यधिक वशीभूत होकर अन्तरात्मा व हृदय मे डेरा डाल लेते है। काम,क्रोध आदि के वशीभूत होकर वही दोष उत्तेजित होकर स्मृति को नष्ट कर देता है इस अवस्था को मृगी कह देते है।यह चार प्रकार के होते हैं।

वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज,

#अपस्मार उत्पन्न के क्या कारण हो सकते है?

अधिकांश अपस्मार के कारण अज्ञात है।परंतु कुछ कारण इस प्रकार होता है।

- स्त्रियों में मासिकधर्म सम्बंधित विकार के कारण

-अधिक वीर्य नाश।

- बच्चों में दांतों का निकलना।

- आंत्र मे कृमि तथा पेट मे आंव होना।

- अचानक डर जाना।

- चोट लगना।

- अत्यधिक शारिरिक व मानसिक परिश्रम करना।

-अधिक शराब पीना।

- मानसिक सदमा लगना।

- चिंता करते रहना।

- विटामिन बी 6 की कमी।

- अत्यधिक टी.वी. देखना।

- मैनिनजाईटिस, क्षयरोग, तीव्र ज्वर होना 

-मस्तिष्क मे संक्रमण के कारण से अपस्मार रोग हो जाते है।

#अपस्मार (मृगी )के लक्षण क्या क्या होते है?

-मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।

- दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। रोगी प्राय:चीख मार कर जमीन पर गिर जाता है।

- इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि 

 - बेहोश होना

- झटके लगना

- बॉड़ी लड़खड़ाना

- मुंह से झाग आना और डेढा मेढा हो जाना।

-  गिर पड़ना,

- हाथ-पांव में झटके आना

-मल मूत्र निकल जाना

- जीभ का कट जाना 

- आंखों की पुतली का घुम जाना।

-हाथों की मुठ्ठी भिंच जाना 

- मुंह से आओओओ गोगो जैसी आवाज निकलना आदि मृगी के लक्षण होते है।

#Epilepsy मृगी की चिकित्सा सूत्र व निर्देश:-

[क्या करें क्या न करें?]

*रोग के कारणों को दूर करें।

*रोगी को तनाव और मनोविकार से बचने की सलाह दें।

*यदि रोगी को आन्त्रकृमि हो तो उपचार करें।

 *मिर्गी के मामूली दौरे आयु बढने के साथ साथ रोग ठीक हो जाता है।युवावस्था के बाद होनेवाला अपस्मार बिना चिकित्सा के ठीक नहीं होता है।

*रोगी की मस्तिष्क दुर्बलता दूर करने के लिए पौष्टिक आहार का प्रयोग करना लाभप्रद होता है।

*खाने के लिए लाल व सांठी चावल,गेहूं, बथुआ, मीठेअनार,आंवला ,पेठा ,फालसा , परवल, ,संहजन ,पुराना घी , दुध  आदि का प्रयोग करें।

*रोगी को शराब ,मछली ,पत्तों वाला शाक,अरहर ,उडद ,गरिष्ठ भोजन नही करना चाहिए।तीखें , गरम ,और विरूद्ध आहार नही करना चाहिए।

*नारियल का पानी, ब्राह्मी का प्रयोग इस रोग में बहुत लाभकारी होता है।

* दौरे के समय मुख पर पानी के छिटे मारने चाहिए।रोगी के हाथ पैर पर हल्के गर्म सेक करने चाहिए।

#आयुर्वेदिक औषधियों।

*ब्रेनिका सीरप (गुरू फार्मास्युटिकल)

*पुष्टि कैपसूल (गुरु फार्मास्युटिकल)

शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक औषधियां:-

*शंख पुष्पादि घृत(ग०नि०)

*कुष्माण्डघृत व कुष्माण्ड योग(यो०र०)

*सारस्वत चूर्ण -1मासा दिन मे तीन चार बार लें।

*ब्राह्मी धृत १० ग्राम दिन में2 बार।

*वृहतवातचिन्ता मणी रस १-१ गोली दिन में २ बार ले।

अश्वगंधारिष्ट ३-३चम्मच बराबर पानी मिलाकर दिन में २बार भोजन के बाद लें।

अन्य उपयोगी शास्त्रीय औषधियों

वातकुलान्तक रस

सर्वांग सुंदर रस 

अष्टमूर्ति रसायन

त्रिफला घृत

शतावरी चूर्ण

शंख पुष्पी चूर्ण 

पंचगव्यघृत

महाचैतसघृत

बिल्वादि तैल(कान मे डालने के लिए)

#अनुभूत आयुर्वेदिक योग प्रयोग।

* हिंग 10ग्राम.

वच 20ग्राम.

सौठ 40 ग्राम.

सेन्धव नमक 80 ग्राम

वायविडंग100ग्राम.

इन सब का महीन चूर्ण कर के 3-5ग्राम सवेरे शाम प्रयोग करने से मिर्गी मे लाभ मिलता है।

*कूठ व बच का चूर्ण करके 1-3 ग्राम सेवन रोज करने से स्थाई लाभ मिलता है।

**लहसुन10ग्राम

काले तिल30ग्राम मिलाकर

सवेरे खाने से मिर्गी मे लाभ मिलता है।

*शुद्ध हिंग, सौंठ, काली मिर्च, इन्द्रायन , जो भी उपलब्ध हो पानी मे मिलाकर नाक मे1-2 बूंद डालने से मिर्गी के दौरे के समय दौरा आना बन्द हो जाता है।

*शुद्ध हिंग को गघी के दूध में घोलकर नाक मे2-3 बूंद रोज एक महीना डालने से मिर्गी के दौरे आने बन्द हा जाते है।

*हिंग 1-5 ग्राम लेकर मुध मे मिलाकर सवेरे शाम चाटने से मिर्गी मे आराम मिलता है।

Dr_Virender_Madhan


रविवार, 23 जनवरी 2022

#रतौंधी का आयुर्वेद में ईलाज सम्भव in hindi.


 #रतौंधी_रोग क्या है ?

#Dr_Virender_Madhan.

रतौंधी, आंखों की एक बीमारी है। इस रोग के रोगी को दिन में तो अच्छी तरह दिखाई देता है, लेकिन रात के वक्त वह नजदीक की चीजें भी ठीक से नहीं देख पाता। 

आँखों का कॉर्निया(कनीनिका) सूख-सा जाता है और आई बॉल (नेत्र गोलक) धुँधला व मटमैला-सा दिखाई देता है।

- इस रोग के रोगी को दिन में तो अच्छी तरह दिखाई देता है, लेकिन रात के वक्त वह नजदीक की चीजें भी ठीक से नहीं देख पाता। 

- जांच से उपतारा (आधरिस) महीन छिद्रों से युक्त दिखता है तथा कॉर्निया के पीछे तिकोनी सी आकृति नजर आती है। आँखों से सफेद रंग का स्त्राव होता है।

#रतौंधी के लक्षण - Symptoms of Night Blindness In Hindi?


रतौंधी का एकमात्र लक्षण है, अंधेरे में देखने में कठिनाई होना। रतौंधी होने पर सूरज ढलने के बाद रोगी को दूर की वस्‍तुएं धुंधली दिखने लगती है। कई बार दिन में भी देखने में समस्‍या होने लगती है। एक समय के बाद आंखों के किनारों वाले हिस्‍सों से दिखना बंद हो जाता है।


* जब यह रोग पुराना होने लगता है, तो आँखों के बाल कड़े होने लगते हैं। आँखों की पलकों पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ व सूजन दिखाई पड़ती हैं। इसके साथ ही दर्द भी महसूस होने लगता है। ज्यादा लापरवाही करने पर आँख की पुतली अपारदर्शी हो जाती है और कभी कभी क्षतिग्रस्त भी हो जाती है।


* रतौंधी की इस स्थिति के शिकार ज्दायातर छोटे बच्चे होते हैं। अक्सर ऐसी स्थिति के दौरान रोगी अन्धेपन का शिकार हो जाता है। यह इलाज की जटिल अवस्था होती है और एसी स्थिति में औषधियों से इलाज भी बेअसर साबित होता है।

#रतौंधी रोग के कारण?


विटामिन ए की कमी से रतौंधी रोग होता है।

यदि आपको लगता है कि आपके शरीर में विटामिन-ए की कमी है तो हरी सब्जियां व फल आदि खाकर इसकी पूर्ति की जा सकती है, क्योंकि फलों, सब्जी तथा अन्य खाद्य पदार्थो में विटामिन-ए पाया जाता है। विटामिन-ए की कमी से आंखों में रतौंधी (रात में दिखाई देने में मुश्किल), आंख के सफेद हिस्से में धब्बे तथा कॉर्निया सूखना शुरू हो जाता है।

#रतौंधी के कारण - Causes of Night Blindness In Hindi?

कुछ आंखों की स्थितियां रतौंधी का कारण बन सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:

- दूर की वस्तुओं को देखते समय निकट दृष्टिदोष, या

 - धुंधली दृष्टि

- मोतियाबिंद या आंख के लेंस का धुंधला हो जाना

- रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (Retinitis pigmentosa), यह तब होता है जब आपके रेटिना में डार्क पिगमेंट जमा हो जाते हैं और टनल विजन (Tunnel vision) बनाता है।

- अशर सिंड्रोम (Usher syndrome), यह एक आनुवंशिक स्थिति है जो सुनने की क्षमता और दृष्टि दोनों को प्रभावित करती है।

#रतौंधी को रोकने के लिए क्याकरे क्या न करें?

क्या खांए?

*प्रतिदिन काली मिर्च का चूर्ण घी या मक्खन के साथ मिसरी मिलाकर सेवन करने से रतौंधी नष्ट होती है।

*प्रतिदिन टमाटर खाने व रस पीने से रतौंधी का निवारण होता है।

*आंवले और मिसरी को बारबर मात्रा में कूट-पीसकर 5 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करें।

हरे पत्ते वाले साग पालक, मेथी, बथुआ, चौलाई आदि की सब्जी बनाकर सेवन करें।

*अश्वगंध चूर्ण 3 ग्राम, आंवले का रस 10 ग्राम और मुलहठी का चूर्ण 3 ग्राम मिलाकर जल के साथ सेवन करें।

*मीठे पके हुए आम खाने से विटामिन ‘ए’ की कमी पूरी होती है। इससे रतौंधी नष्ट होती है।

*सूर्योदय से पहले किसी पार्क में जाकर नंगे पांव घास पर घूमने से रतौंधी नष्ट होती है।

शुद्ध मधु नेत्रों में लगाने से रतौंधी नष्ट होती है।

*किशोर व नवयुवकों को रतौंधी से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें भोजन में गाजर, मूली, खीरा, पालक, मेथी, बथुआ, पपीता, आम, सेब, हरा धनिया, पोदीना व पत्त * गोभी का सेवन कराना चाहिए।


*क्या न खाएं?

- चाइनीज व फास्ट फूड का सेवन न करें।

- उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन से अधिक हानि पहुंचती है।

- अधिक उष्ण जल से स्नान न करें।

- आइसक्रीम, पेस्ट्री, चॉकलेट नेत्रो को हानि पहुंचाते है।

अधिक समय तक टेलीविजन न देखा करें। 

- रतौंधी के रोगी को धूल-मिट्टी और वाहनों के धुएं से सुरक्षित रहना चाहिए।

- रसोईघर में गैंस के धुएं को निष्कासन करने का पूरा प्रबंध रखना चाहिए।

- खट्टे आम, इमली, अचार का सेवन न करें।

#रतौंधी का आयुर्वेदिक ईलाज?

*आयुर्वेदिक औषधियों से रतौंधी को कंट्रोल करने के काफी अच्छे व उत्साहवर्धक नतीजे देखने को मिलते हैं। आयुर्वेदिक दवाओं द्वारा इसका सफल इलाज संभव है।


आँखों में लगाने वाली औषधियाँ:-

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* शंखनाभि, विभीतकी, हरड, पीपल, काली मिर्च, कूट, मैनसिल, खुरासानी बच ये सभी औषधियाँ समान मात्रा में लेकर बारीक कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बकरी के दूध में मिलाकर बत्तियाँ बना लें। दवा इतनी बारीक हो कि बत्तियाँ खुरदरी न होने पाएँ। इन बत्तियों को चकले या चिकने पत्थर पर रोजाना रात को पानी में घिसकर आँखों में लगाने से रतौंधी रोग ठीक हो जाता है।


* चमेली के फूल, नीम की कोंपल (मुलायम पत्ते), दोनों हल्दी और रसौत को गाय के गोबर के रस में बारीक पीस कपड़े से छानकर आँखों में लगाने से रतौंधी रोग दूर हो जाता है।


* रीठे की गुठली को यदि स्त्री के दूध में घिसकर आँखों में लगाएँ तो यह भी रतौंधी में काफी फायदेमंद होता है।


* सौंठ, हरड़ की छाल, कुलत्थ, खोपरा (सूखा नारियल), लाल फिटकरी का फूला, माजूफल नामक औषधियाँ पाँच-पाँच ग्राम लेकर बारीक पीस लें। अब इसमें ढाई-ढाई ग्राम की मात्रा में कपूर, कस्तूरी और अनवेधे मोती को मिलाकर नींबू का रस डालकर पाँच-सात दिन खरल करें। फिर इसकी गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें। इस गोली को गाय के मूत्र में घिसकर लगाने से रतौंधी रोग में फायदा होता है। यदि इसे स्त्री के दूध में घिसकर लगाया जाए तो आँख का फूला (सफेद दाग) व पुतली की बीमारियाँ भी दूर हो जाती हैं।


* करंज बीज, कमल केशर, नील कमल, रसौत और गैरिक 5-5 ग्राम लेकर पावडर बना लें। इस पावडर को गो मूत्र में मिलाकर बत्तियां बनाकर रख लें। इसे रोजाना सोते समय पानी में घिसकर आंखों में लगाने से रतौंदी रोग में काफी लाभ होता है।


खाने वाली औषधियाँ:-

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* 50 ग्राम अमलकी, 50 ग्राम मुलैठी, 25 ग्राम बहेड़ा, 12.5 ग्राम हरीतकी, 5 ग्राम पीपल, 5 ग्राम सेंधा नमक और 150 ग्राम शकर लेकर बारीक पावडर बनाकर कपड़छान कर लें। इसमें से 3 से 5 ग्राम की मात्रा लेकर गाय के घी या शहद के साथ लगभग 6 से 8 हफ्ते तक सेवन करें। इसका सेवन आँखों की कई बीमारियों (रतौंधी, फूला, जलन व पानी बहना आदि) में काफी फायदेमंद होता है। जरूरत के मुताबिक इस औषधि को 8 हफ्ते से भी ज्यादा समय तक सेवन किया जा सकता है।


* इसके अलावा कुपोषणजन्य या विटामिन 'ए' की कमी से होने वाले रतौंधी रोग में अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश, शतावरीघृत, शतावरी अवलेह, अश्वगंधाघृत व अश्वगंधा अवलेह काफी फायदेमन्द साबित हुए हैं।


लाभकारी पत्ते:-

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* रतौंधी के रोगी को चाहिए कि वह अतिमुक्त, अरंड, शेफाली, निर्र्गुण्डी व शतावरी के पत्तों की सब्जी देसी घी में अच्छी तरह पकाकर खाएँ। अगधिया के पत्ते की सब्जी भी रतौंधी में काफी फायदेमंद होती है।


* बबूल के पत्ते व नीम की जड़ का काढ़ा पीना भी रतौंधी में काफी लाभ पहुंचाता है। यह काढ़ा बना बनाया बाजार में भी मिलता है।


शनिवार, 1 जनवरी 2022

#त्रिफला चूर्ण" के अद्वैत आयुर्वेदिक गुण in hindi.

 #त्रिफला #आयुर्वेदिक दवा #घरलूउपाय #रसायन



 #त्रिफला चूर्ण" के अद्वैत आयुर्वेदिक गुण *

#Dr_Virender_Madhan.

#त्रिफला क्या है ?

त्रिफला अर्थात् तीन फल।

1) आँवला

2) बहेड़ा एवं

3) हरड़

इन तीनों से बनता है त्रिफला चूर्ण ।

● आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में जितने भी रोग होते हैं वो त्रिदोष: वात, पित्त, कफ के बिगड़ने से होते हैं।

● ज्यादातर सिर से लेकर छाती के मध्य भाग तक जितने रोग होते हैं वो कफ के बिगड़ने के कारण होते है, और छाती के मध्य से पेट खत्म होने तक जितने रोग होते हैं तो पित्त के बिगड़ने से होते हैं जबकि पेडू से शरीर के दम निचले भाग तक जितने भी रोग होते हैं वो वात (वायु) के बिगड़ने से होते हैं।

● लेकिन कई बार गैस होने से सिरदर्द होता है तब ये वात के बिगड़ने से माना जाएगा।

जैसे जुकाम होना, छींके आना, खाँसी होना।

●● ये कफ बिगड़ने के रोग हैं अतः ऐसे रोगों में आयुर्वेद में तुलसी लेने को कहा जाता है

क्योंकि तुलसी कफ नाशक है,

ऐसे ही पित्त के रोगो के लिए जीरे का पानी लेने को कहा जाता है

● क्योंकि जीरा पित्त नाशक है।

● इसी तरह मेथी को वात नाशक कहा जाता है

●● लेकिन मेथी ज्यादा लेने से वात तो संतुलित हो जाता है पर ये पित्त को बढ़ा देती है।

#त्रिफला के लाभ:-

● आयुर्वेदिक दवाओं में से  ज़्यादातर औषधियाँ वात, पित्त या कफ में से कोई एक को ही नाश करने वाली होती हैं लेकिन त्रिफला ही एक मात्र ऐसी औषधि है जो वात, पित, कफ तीनों को एक साथ संतुलित करती है ।

–त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है.

● वागभट जी इस त्रिफला की इतनी प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने आयुर्वेद में 150 से अधिक सूत्र मात्र (त्रिफला को इसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा त्रिफला को उसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा आदि) त्रिफला पर ही लिखे हैं ।

  - आमतौर पर लोग त्रिफला को कब्ज निवारक के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इसका सेवन करने के कई फायदे हैं. यदि आपको किसी भी प्रकार की पेट संबंधी समस्या है तो आपके लिए त्रिफला चूर्ण का सेवन बहुत ही गुणकारी रहेगा.

 -आयुर्वेद में त्रिफला चूर्ण को शरीर के लिए बहुत ही गुणकारी माना गया है. आमतौर पर लोग त्रिफला को कब्ज निवारक के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इसका सेवन करने के कई फायदे हैं. यदि आपको किसी भी प्रकार की पेट संबंधी समस्या है तो आपके लिए त्रिफला चूर्ण का सेवन बहुत ही गुणकारी रहेगा. पेट के अलावा भी इसे खाने से कई रोगों में राहत मिलती है. 

[चिकित्सकों की यह भी सलाह होती है कि त्रिफला का सेवन बिना चिकित्सीय परामर्श के नहीं करना चाहिए. ]

#त्रिफला_के_अद्भुत_लाभ।


#कमजोरी दूर करें

शारीरिक दुर्बल व्यक्ति के लिए त्रिफला का सेवन रामबाण साबित होता है. इसके सेवन करने वाली व्यक्ति की याद्दाश्त भी अन्य लोगों के मुकाबले तेज होती है. इसका सेवन करने से दुर्बलता कम होती है. दुर्बलता को कम करने के लिए त्रिफला को हरड़, बहेड़ा, आंवला, घी और शक्कर को मिलाकर खाना चाहिए.

#रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए

त्रिफला चूर्ण का सेवन मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है. यदि आपके शरीर में दुर्बलता है तो भी त्रिफला चूर्ण का सेवन कर आप अपने शरीर का कायाकल्प कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप इसका कई वर्ष तक नियमित रूप से सेवन करें.

#हाई ब्लड प्रेशर में राहत

त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी.

#कब्ज से राहत

त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी, अनियमित खान-पान और तनाव भरे माहौल में ज्यादातर लोग कब्ज व शारीरिक सुस्ती से ग्रस्त रहते हैं. ऐसे लोगों को त्रिफला का सेवन नियमित गुनगुने पानी के साथ करना चाहिए.

#नेत्र रोग से राहत मिले

त्रिफला के चूर्ण को पानी में डालकर आखों को धोने से आखों की परेशानी दूर होती है. मोतियाबिंद, आखों की जलन, आखों का दोष और लंबे समय तक आखों की रोशनी को बढ़ाए रखने के लिए 10 ग्राम गाय के घी में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण और पांच ग्राम शहद को मिलाकर सेवन करें.

#चर्म रोग दूर करें

चर्म रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुन्सी की समस्या में सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण खाने से फायदा होता है. एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी में दो-तीन घंटे के लिए भिगो दें. अब इस पानी की घूंट भरकर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दें. इससे मुंह की समस्या में राहत मिलेगी.

#सिर दर्द में गुणकारी

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के अंदर की छाल और गिलोय को मिला कर बनें मिश्रण को आधा किलो पानी में पकाएं. ध्यान रहे इसे 250 ग्राम रहने तक पकाते रहें. अब इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह व शाम के समय गुड़ या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर होती है.

#मोटापे से राहत

यदि आप भी मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं तो त्रिफला का सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा. मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर लें. इसके अलावा त्रिफला चूर्ण को पानी में अच्छे से उबालकर, शहद मिलाकर पीने से शरीर की चर्बी कम होती है.

#त्रिफला चूर्ण कैसे लेना चाहिए?

-त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होती है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें।


#त्रिफला चूर्ण कब और कैसे खाना चाहिए?

-भोजन से आधा घंटा पहले या आधा घंटा बाद में लें। लाभ: ऋतुओं के अनुसार सालभर लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होने के साथ त्वचा संबंधी परेशानियां भी दूर होती हैं। पेट से जुड़े रोग जैसे कब्ज, अपच और दर्द में आराम मिलता है।

त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है.

● रात को त्रिफला चूर्ण लेंगे तो वो रेचक है अर्थात पेट की सफाई करने वाला, बड़ी आँत की सफाई करने वाला।

● शरीर के सभी अंगो की सफाई करने वाला।

● कब्जियत दूर करने वाला 30-40 साल पुरानी कब्जियत को भी दूर कर देता है।

● प्रातःकाल त्रिफला लेने को पोषक कहा गया, सुबह का त्रिफला पोषक का काम करेगा.!

#त्रिफला की मात्रा :-

रात को कब्ज दूर करने के लिए त्रिफला ले रहे है तो एक टी-स्पून अथवा आधा बड़ा चम्मच, गर्म पानी के साथ लें और ऊपर से गर्म दूध पी लें।

सुबह त्रिफला का सेवन करना है तो शहद या गुड़ के साथ लें।

● तीन महीने त्रिफला लेने के बाद 20 से 25 दिन छोड़ दें फिर दुबारा सेवन शुरू कर सकते हैं।

● इस प्रकार त्रिफला चूर्ण मानव शारीर के बहुत से रोगों का उपचार कर सकता है।


** इसके अतिरिक्त अगर आप आयुर्वेद के अन्य नियमों का भी पालन करते हैं तो त्रिफला और अधिक शीघ्र लाभ पहूँचाता है।

● जैसे मैदे से बने उत्पाद बर्गर, नूडल, पीजा आदि ना खाएँ, ये कब्ज के मुख्य कारण हैं।

● रिफाईन तेल एवं वनस्पति घी कभी ना खाएँ।

● यथा संभव घाणी से पिरोया हुआ सरसों, नारियल, मूँगफली, तिल आदि तेलों का ही सेवन करें।

● शक्कर का सेवन न करें व नमक के स्थान पर सैंधा नमक का उपयोग करें।


#त्रिफला चूर्ण नुकसान त्रिफला के बहुत अधिक सेवन से आपको कुछ पेट संबंधित समस्याएं (Triphala Khane ke Nuksan) भी हो सकती हैं। पेट में सूजन, दबाव भी महसूस हो सकता है। हालांकि, इसका इस्तेमाल कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है, लेकिन इस चूर्ण का सेवन अत्यधिक करते हैं डायरिया, आंव, पेचिश आदि की समस्या भी हो सकती है।

#Guru_Ayurveda.

#Dr_Virender_Madhan.