#स्वर्ण(Gold)भस्म को खाने से पहले जाने क्या है कैसे करता है काम ?In.hindi.
---------------------
डा०वीरेंद्र मढान.
~~~~~~~~
स्वर्ण : Dhatu Vargha मे आता है।
स्वर्ण के नाम:-
---------------
संस्कृत- सुवर्णम्
हिंदी- सोना
English -Gold
symbol- Au
#स्वर्ण के प्रमुख नाम :-
स्वर्ण, हिरण्य, कल्याण, अग्निवर्ण, हेम, कनक , कौन्त, हाटक, चामीकर, चाम्पेय।
#स्वर्ण प्राप्ति स्थान:-
---------------------------
विशेष रूप से यह मैसूर के कोलार गोल्ड-फील्ड से प्राप्त होता है।
मद्रास के अनन्तपुर की खान,उत्तर प्रदेश एवं बिहार की नदियों की रेत से इसके कण अल्प प्राप्त किये जाते है।
भारत के अलावा यह दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, वर्मा अमेरिका, मैक्सिको, चीन तथा रूस आदि देशों में पाया जाता है।
#अग्राह्य स्वर्ण के लक्षण –
----------------------------
श्वेताभ, रूक्ष, कठिन, विवर्ण, मलयुक्त,गर्म करने पर श्वेत एवं कृष्णवर्ण का होने वाला,कसौटी पर घिसने पर श्वेत रेखा खींचने वाला और
हल्के सोने को रस रसायन कर्म में त्याज्य माना गया है।
अशुद्ध सोना खाने से वीर्य, बल ,सौख्य इन सबका हनन होता है तथा अनेक प्रकार के प्रकार के रोगों को उत्पन्न करता है खाने वाले व्यक्ति को अधमरा कर देता है।अतः स्वर्ण को शोधित कर मारण करे फिर उस अमृततुल्य भस्म का सेवन करना चाहिए।
#ग्राह्य स्वर्ण के लक्षण :-
------------------------------
आग पर तपाने पर रक्तवर्ण होने वाला,
काटने पर चमकने वाला,
कसौटी पर घिसने पर केशर के सदृश वर्ण वाला,
गुरु, स्निग्ध, मृद एवं स्वच्छ, पत्ररहित, पीतवर्ण की आभावाला तथा
षोडश वर्ण वाला स्वर्ण देहसिद्धि एवं लौह सिद्धि में प्रशस्त होता है।
#स्वर्ण का विशेष शोधन:-
पंच मृत्तिका:-
--------------
1- वल्मीकमिट्टी, गृहधूम, स्वर्णगैरिक, ईंट का कर्ण और सैंधवलवण को मृत्तिका पंचक नाम से शास्त्रों से लिखा है।
इन्हें बारीक पीसकर जंबीरी का रस या कांजी मिलाकर सुवर्ण के पत्रो पर लेप कर लधु पुट मे फुंकते है इस प्रकार तीन बार पुटो के देने से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है।
2- पंचमृतिका को बिरौज नीबू का रस डालकर उसमे स्वर्ण पत्रो को 5 दिनों तक रखे फिर निकाल कर पीली मिट्टी या गेरू और सैंधानमक तथा उपलो की भस्म लेप कर इन पत्रो को जंगली उपलो की अग्नि मे पुट देने से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है।
#स्वर्ण की भस्म कैसे बनाते है?
मारण विधि :-
1- शुद्ध स्वर्ण के पत्रों पर सोनामक्खी (स्वर्णमाक्षिक)और शीशे (सिक्के-वंग) को आक के दुध मे रगड कर लेप कर दे फिर इनको अन्धमूषा मे रख कर पुट मे फूंक दे तो सोने की भस्म बन जाती है।
2- शुद्ध स्वर्ण के कण्टकवेधी पत्रों पर नींबू स्वरस से मर्दित भस्म (रससिन्दूर) का लेप कर सुखाएं।
इसके पश्चात् शराव सम्पुट में रखकर कुक्कुट पुट की अग्नि में पाक करें।
इस प्रकार दस पुट देने पर स्वर्ण की भस्म बन जाती है।
#स्वर्ण भस्म गुण:-
रस कषाय, तिक्त, मधुर,भारी, लेखन, हृद्य, रसायन, बलकारक, नेत्रो को हितकारी, कांतिदायक ,पवित्र, आयुबर्द्धक, मेघोजनक, वयस्थापक , वाणी को शुद्ध करनेवाला स्मृतिदायक, तथा क्षय उन्माद और कुष्ठरोग को नष्ट करने वाला होता है।
#स्वर्ण भस्म मात्रा-
रसरत्नसमुच्चयकार ने एक गुञ्जा की मात्रा में लेने का निर्देश किया है।
रसतरंगिणीकार ने 1/8से 1/4 रत्ती तक रोग एवं रोगी के बल एवं काल का विचार करके लेने का निर्देश किया है।
#स्वर्ण भस्म अनुपान:-
त्रिकटु चूर्ण + घृत से, शहद,
#स्वर्ण भस्म का आमयिक प्रयोग:-
* स्वर्ण भस्म मत्स्यपित के साथ दाह नाशक है।
*भृंगराज स्वरस के साथ वृहंण,आयुष्य है
* दुग्ध के साथ बल्य,
* पुनर्नवा के साथ नेत्र्य,
* घृत के साथ रसायन,
* वचा से स्मृतिवर्द्धक,
* कुंकुम के साथ कान्ति बर्द्धक,
* दूध के साथ राजयक्ष्मा व विषनाशक और
* शुण्ठी, लवङ्ग एवं मरिच के अनुपात से सेवन करने पर त्रिदोषज उन्माद को नष्ट करती है।
**~सेवन काल में अपथ्य:-
बिल्व फल का सेवन हानिकर होता है।
#स्वर्ण के प्रमुख योग:-
योगेन्द्र रस
रसराज रस
वृहतवातचिन्तामणी रस
कुमारकल्याण रस
बसन्तकुसुमाकर रस
वृहतश्वासकासचिन्तामणी रस
मकरध्वज रस
सिध्दमकरध्वज
जयमंगल रस
योगेन्द्र रस
बसन्तमालती रस
अन्य बहुत से शास्त्रीय योग स्वर्ण युक्त होते है।
shahed ke saath ke faide kya kya hai?
जवाब देंहटाएं