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बुधवार, 6 जुलाई 2022

मस्सा(wart) क्या होता है?In hindi.


 </>मस्सा(wart) क्या होता है?In hindi.

[मस्सा(wart)]

Dr.VirenderMadhan.

#क्या होता है मस्सा(wart)?

 शरीर पर कहीं कहीं काले रंग का उभरा हुआ मांस का छोटा दाना एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है। मस्सा (wart) कहलाता है।यह प्रायः सरसों अथवा मूँग के आकार का होता है कई बार यह बेर के आकार का होता है। यह प्रायः हाथों और पैर पर होता है किन्तु शरीर के अन्य अंगों पर भी हो सकता है।

#क्यों होते है मस्से?

यह ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के कारण होती है। आमतौर पर, यह फटी हुई त्वचा पर होता है क्योंकि वायरस त्वचा की ऊपरी परत के माध्यम से आसानी से प्रवेश कर सकता है। 

#शरीर पर मस्से होने का क्या कारण है?

मस्से विषाणु संक्रमण से पैदा होते हैं। 

 'मानव पेपिल्लोमैविरस' नामक विषाणु की कोई प्रजाति इसका कारण होती है। लगभग दस प्रकार के मस्से होते हैं। मस्से संक्रमण (छुआछूत) से हो सकते हैं और शरीर में वहाँ प्रवेश करते हैं जहाँ त्वचा कटी-फटी हो।

#मस्सों का घरेलू ईलाज क्या है?

- केले के छिलके :-

 रात को मस्से वाली जगह पर केले के छिलके को रखकर उस पर कपड़ा बांध लें. ऐसा तब तक करें जब तक मस्सा साफ न हो जाए.

- मस्सा हटाने के लिए बेकिंग सोडा:-

एक चम्मच बेकिंग सोडा में कुछ बूंदें एरण्ड का तैल (कैस्टर ऑइल) डालकर इस पेस्ट को मस्से पर लगाकर हल्के हाथों से मसाज करें.

#क्या आपके मस्से आपकी सुन्दरता को घटा रहें है?

* करें घरेलू उपाय

-​बेकिंग सोडा और अरंडी का

तेल:-

 बेकिंग सोडा और अरंडी के तेल का लेप तैयार करें।दिन में एक बार जरूर लगायें।

- ​लहसुन का पेस्ट:-

लहसुन की कलियों को छीलकर इनका पेस्ट बना लें।मस्सों पर लगायें।

- ताजा ऐलोवेरा का गुदा लगायें कुछ दिनों तक लाभ मिलेगा।

- सेब का सिरका:-

सेब का सिरका रोज मस्सो पर लगाने से फायदा होता है।

-चूना और घी:-

 घी और चूना समान मात्रा में लेकर अच्छी तरह से मिलाएं। फिर इसे मस्से पर दिन में 3-4 बार लगाएं। इस उपाय से मस्सा जड़ से झड़ जाएगा।

-अदरक और चूना:-

छोटा सा।  अदरक का टूकड़ा लेकर उस पर हल्का सा चूना लगाकर मस्से पर हल्के हाथ से रगडें मस्से झड जायेंगे।

उपरोक्त उपाय से मस्से ठीक न हो तो अपन आयुर्वेदिक चिकित्सक दिखायें और परोपर चिकित्सा करायें।

धन्यवाद!


सोमवार, 4 जुलाई 2022

पित्त प्रकृति का शरीर कैसा होता है?In hindi.

 पित्त प्रकृति का शरीर कैसा होता है?In hindi.

How is the body of bile nature? In Hindi.

<पित्त प्रकृति>



Dr.VirenderMadhan.

Q:- पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण क्या होतेहै?

#पित्त प्रकृति के व्यक्ति लक्षण:-

 Ans:- पित्त प्रकृति के व्यक्ति का शरीर नाजुक होता है। 

- गर्मी सहन नहीं होती। 

 - त्वचा पीली एवं नर्म होती है और फुंसियों और तिलों से भरी हुई होती है। 

- बालों का छोटी उम्र में सफेद होते है

- रोएं बहुत कम होना इस प्रकृति के विशेष लक्षण हैं।

Q:- पित्त प्रकृति के व्यक्ति की तासीर कैसी होती है?

Ans :- पित्त प्रकृति वाले लोग आमतौर पर बहुत ही आकर्षक और तेज दिमाग वाले होते हैं। 

इनके अंदर बहुत गर्मी होती है, इसलिए इन्हें गर्म चीजों को खाने से बचना चाहिए। 

- पित्त वालों की अग्नि बहुत तेज होती है।

- पित्त वाले ज्यादातर हल्के कपड़े पहनकर रहते है उनको गर्मी बहुत लगती है।

- शरीर से दुर्गन्‍ध आना

- कम उम्र में ही झुर्रियां आना।

- जीभ लाल दिखाई देती है

- चेहरा नाजुक और नरम दिखाई देता है.

- नसें काफी उन्नत नहीं होती हैं

- पेट मध्यम विकसित होता है

- तीखी लेकिन स्पष्ट आवाज

- नाखून गुलाबी

- मध्यम नींद

#अन्य लक्षण:-

-बालों का झडना,

- मुँहासे, 

- गंजापन 

- मजबूत पाचन क्षमता, 

- लाल तालू, लाल होंठ, लाल जीभ, जलन, 

- मुंह में छाले, 

- अति अम्लता, 

- क्रोध 

- बुद्धिमान मस्तिष्क, 

- तेज दृष्टि और दृष्टिकोण, तार्किक विचार,

- चित्त की दृढ़ता 

- अत्यधिक पसीना आना, 

- पित्त वालों की आंखें न ज्यादा बड़ी होगी न छोटी होगी.पीले या गुलाबी रंग के साथ श्वेतपटल नेत्र,पलकें कम और पतली दिखाई देती है,

Q:-पित्त प्रकृति के व्यक्ति को कौनसे रोग हो सकते है?

Ans:- जब पित्त दोष बढ़ जाए तो रोगों का कारण बन सकता है:

- सूर्य के प्रति अतिसंवेदनशीलता

- जलन के साथ सिरदर्द

- प्रकाश को सहन करने में असमर्थता

- स्टोमेटाइटिस(Stomatitis) - अल्सर

-चेहरे पर झुर्रियाँ

- मस्से

- गंजापन

- सिर में चक्कर आना

- सिर में हल्का भारीपन

- अत्यधिक पसीना आना

- हृदय रोग।

#पित्त प्रकृति के लोग क्या खाये?

आप इसकी जगह हर्बल टी या ग्रीन टी पी सकते हैं. 5- गर्म तासीर की सब्जी और दालें- पित्त वाले लोगों को गर्म तासीर की सब्जियों से भी परहेज रखना चाहिए. इसके साथ ही चिपचिपी सब्जियों जैसे बैंगन, अरबी, भिंडी, कटहल, सरसों का साग भी नहीं खाना चाहिए. पित्त को संतुलित रखने के लिए आप पालक, बींस, परवल और सीताफल खा सकते हैं।

#पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए ?

- पित्त प्रकृति वाले लोगों को

मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें।

- सरसों के तेल,तिल के तेल,से परहेज करें।

- ड्राई फ्रूट-काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें।

- खट्टे जूस,टमाटर के जूस,संतरे के जूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें।

- तलाभुना भोजन न करें।

धन्यवाद!


शनिवार, 2 जुलाई 2022

कैसे जाने अपनी प्रकृति कैसी है?In hindi.

  कैसे जाने अपनी प्रकृति कैसी है?In hindi.

How do you know your nature?



 आपका शरीर कैसा है?In hindi.

Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेदानुसार शरीर को तीन तरह की प्रकृति का माना जाता है .

- वात, पित्त और कफ। 

आयुर्वेदानुसार हमारा शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके अनुसार उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और स्वभाव का पता लगाया जा सकता है

शरीर की वात प्रकृति:-

#Vata nature of the body .

* वात युक्त शरीर

आयुर्वेदानुसार वात युक्त शरीर का स्वामी वायु होता है।

#वातप्रकृति वाले शरीर की

* बनावट -

body texture-

 इस तरह के लोगों का वजन तेजी से नहीं बढ़ता और ये अधिकतर छरहरे होते हैं।इनके बाल व त्वचा रूखे होते है। इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है लेकिन इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। आमतौर पर इनकी त्वचा ड्राई होती है और नाडी तेज चलती है।

* स्वभाव - 

सामान्यतः चंचल होते है।हाथ या पैर हिलाने की आदत हो सकती है। ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिए अक्सर इन्हें अनिद्रा की परेशानी अधिक रहती है। इनमें कामेच्छा अधिक होती है। वात प्रकृति वाले लोग बातूनी किस्म के होते हैं।ये लोग एक जगह ठिक कर नही बैठ सकते है।

* मानसिक स्थिति - 

ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास कम रहता है। ये बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं।

* डाइट - 

वात युक्त शरीर वाले लोगों को डाइट में अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। 

#शरीर की पित्त प्रकृति:-

Pit nature of the body .

पित्त युक्त शरीर

आयुर्वेदानुसार, पित्त युक्त शरीर का स्वामी अग्नि है।

* बनावट - 

 इस तरह के शरीर के लोग अक्सर मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं। बाल जल्दी पकने लगते है। इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक रहता है।

* स्वभाव - 

मिजाज गर्म होता है।

इस तरह के लोगों को विचलित करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है, इन्हें भूख तेज लगती हैं। आमतौर पर इनके बोलने की टोन ऊंची होती है।प्यास अधिक लगती है।

* मानसिक स्थिति - 

इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।शीध्र ही क्रोधित हो जाते है।

* डाइट -

 पित्त युक्त शरीर के लिए डाइट में सब्जियां, फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।

#शरीर की कफ प्रकृति:-

Kapha nature of the body:-

* कफ युक्त शरीर

कफ युक्त शरीर के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। आमतौर पर इस तरह के शरीर वाले लोगों का शरीर स्थूल होता है।

* बनावट -

 इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से वजन बढ़ा लेते हैं लेकिन इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है।पसीना बहुत आता है।

* स्वभाव -

 इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।

* मानसिक स्थिति -

ये लोग सोचते कम है।

 इन्हें कुछ सीखने में समय लगता है और भावनात्मक होते हैं।

* डाइट -

 कफ युक्त शरीर के लिए डाइट में बहुत अधिक तैलीय और हेवी भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए। हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।

धन्यवाद!

   


#आपके शरीर में वात दोष क्या होता है?In.hindi.

 #आपके शरीर में वात दोष क्या होता है?In.hindi.

#What is the vata dosha in your body?

वात दोष 



Dr.VirenderMadhan.

#वात दोष क्या है?

वात, त्रिदोष मे से एक है।

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात (वायु) दोष को तीनों दोषों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। 

- वात के कारण ही शरीर में गति संभव है।

- चरक संहिता के अनुसार वायु  पाचक अग्नि बढ़ाने वाला,तथा  इन्द्रियों का प्रेरक माना है.तथा उत्साह का केंद्र माना है। 

#वात दोष का स्थान कहां है?

Where is the place of Vata dosha?

 - पेट और आंत में वात का मुख्य स्थान है।

 -अन्य दोषों के साथ मिलकर वात उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, उष्ण वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीत और गीलेपन के गुण आ जाते हैं।

#वात कितने प्रकार का होता है?

what are the types of vata?

शरीर में स्थानों और कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

- प्राणवात

- उदानवात

- समानवात

- व्यानवात

- अपानवात

#वात के गुण क्या है?

#What are the properties of Vata?

- रूखापन,

- लघु,

- शीतलता,

- सूक्ष्म,

- चंचलता,

- चिपचिपाहट से रहित और

- खुरदुरापन वात के गुण हैं।

- रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। 

[लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।]

#वात प्रकृति की विशेषताएं?

Features of Vata Prakriti?

- प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।

- वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैसे कि  -रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. 

- शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना,  शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं.

- स्वभाव से वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी वातप्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.

#वात किन किन कारणों से बढ़ता है?

For what reasons does Vata increase?

- हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। 

> Major causes of aggravation of Vata?

- वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

- मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना

 - खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना

- रात को देर तक जागना, तेज बोलना

- अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना

- सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना

- तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन

- बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना

- चिंता या मानसिक परेशानी में रहना

- ज्यादा ठंडी चीजें खाना

- व्रत रखना

- बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

#वात बढ़ जाने के लक्षण?

Symptoms of aggravation of vata?

- सुई के चुभने जैसा दर्द



- हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन

- हड्डियों का खिसकना और टूटना

- अंगों में रूखापन और जकड़न

- अंगों में कंपकपी

- अंगों का ठंडा और सुन्न होना

- अंगों में कमजोरी महसूस होना 

- मुंह का स्वाद कडवा होना

- कब्ज़

- नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना

- ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो जान ले कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। 

>Treatment (उपाय) ?

वात को शांत या संतुलित करने के लिए खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने चाहिए। और उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ता है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. 

#वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं?

What to eat to balance Vata?

- घी, तेल वाली चीजों का सेवन करें।

- गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।

- नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।

- घी में तले हुए सूखे मेवे खाएं।

- खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।

- मूंग दाल, सोया दूध का सेवन करें।

#वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए?

What should people with Vata Prakriti not eat?

 वात प्रकृति वाले निम्न चीजों के सेवन से परहेज करें।

- साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।

- कढी से परहेज करें.

-किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।

- जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।

- नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

#जीवनशैली में क्या बदलाव करें?

what lifestyle changes to make?

असंतुलित वात वालों को जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

-रोज कुछ देर धूप में टहलें और धुप का सेवन करें।

- रोजाना ध्यान करें।

- गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। 

- गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।

- मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

#वात में कमी के लक्षण और उपचार?

वात की बृद्धि होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है 

#वात में कमी के लक्षण :

- अंगों में ढीलापन

- सोचने समझने और याददाश्त में कमी.

- बोलने में दिक्कत

- वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी

- पाचन में कमजोरी

- जी मिचलाना

उपचार :

* वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। 

- कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

अधिक जानकारी के लिए अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक मिले।

धन्यवाद!


शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

आयुर्वेद में त्रिदोष किसे कहते है?.In hindi.

 #आयुर्वेद में त्रिदोष किसे कहते है?.In hindi.



* What is called Tridosha in Ayurveda?.In Hindi.

Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्‍त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। 

Q:- वात,पित्त और कफ को दोष क्यों कहते है?

Ans:- यहां "दोष" शब्द का मतलब सामान्य भाषा में ‘विकार’ नहीं है। इसी प्रकार, "त्रिदोष" का अर्थ- वात, पित्त, कफ की विकृति या विकार नहीं है। आयुर्वेद में कहा है कि

 [दुषणात दोषाः, धारणात धातवः]

अर्थात वात, पित्त व कफ जब दूषित होते है तो रोग उत्पन्न कर देते हैं तथा जब वे अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहते हैं तो सप्त धातु व शरीर को धारण करते व संतुलित रखते हैं।

- आयुर्वेद में शरीर की मूल धारक शक्ति को व शरीर के त्रिगुणात्मक (वात, पित्त, कफ रूप) मूलाधार को ‘त्रिदोष’ कहा गया है। 

- इसके साथ 'दोष' शब्द इसलिए जुड़ा है कि सीमा से अधिक बढ़ने या घटने पर यह स्वयं दूषित हो जाते हैं तथा धातुओं को दूषित कर देते हैं।

Q:- शरीर के निर्माण मे प्रधान तत्व क्या है?

Ans:-- आयुर्वेद में शरीर के निर्माण में दोष, धातु और मल को प्रधान माना है 

[दोषधातुमल मूलं हि शरीरम्' ]

अर्थात दोष, धातु और मल - ये शरीर के तीन मूल हैं। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे 

Q:-दोष धातु मलों का शरीर में महत्व क्या है?

Ans:-- दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकार या रोग की चिकित्सा करना है। शरीर में जितने भी तत्व पाए जाते हैं, वे सब इन तीनों में ही जुडे हैं। इनमें भी दोषों का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

- त्रिदोष को शरीर की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण, 

अथवा शरीर के स्तम्भ माने जाते हैं। इसके पश्चात शरीर को स्वास्थ बनाए रखने और रोगों को समझने एवं उनकी चिकित्सा के लिए भी त्रिदोषों को समझना बहुत आवश्यक है। इन तीनों दोषों के सम होने से ही शरीर स्वस्थ रहना संभव है। परन्तु जब इनकी सम अवस्था में किसी प्रकार का विकार या असंतुलन आ जाता है तो रोग जन्म ले लेता है।

Q:- त्रिदोष सिद्धांत क्या है?

Ans:-  त्रिदोष का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है आयुर्वेद में। वात, पित्त और कफ जब कुपित हो जाते हैं तो शरीर असंतुलित और रोग बढ़ने लगते हैं। इसलिए इन तीनों दोषों का सम रहना ही स्वस्थ होने की पहचान है। 

त्रिदोष को समझने के लिये पंचमहाभूत, वात,पित्त,और कफ के बारे मे जानना होगा. इसके लिए अगले लेख को अवश्य पढें.

धन्यवाद!





बुधवार, 29 जून 2022

कैसे नीम-हल्दी से खाने के अद्भुत फायदे होते है?In hindi.

 


कैसे नीम-हल्दी से खाने के अद्भुत फायदे होते है?In hindi.

#How are there amazing benefits of eating neem-turmeric?

 #Neem Or Haldi||नीम और हल्दी का ऐसे करें सेवन से चमत्कारी फायदे?

Dr.Virender Madhan.

 [ नीम और हल्दी ]



#नीम हल्दी इन हिंदी

नीम-हल्दी से दुनिया के लोग परिचित है इनके गुणों के कारण पुरी दुनिया मे इनका किसी  न किसी रुप में प्रयोग होता है नीम हल्दी सभी धर्मों मे पुजा पाठ से लेकर दुख-दर्द हारी बीमारी के लिये उपयोग में आते है।

</>नीम हल्दी के गुण

एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर हैं.

- नीम में एंटी-डायबिटीज गुण पाए जाते हैं.

- नीम और हल्दी का सेवन कर स्किन को हेल्दी रखा जा सकता है.

- हल्दी में विटामिन सी और ई पाया जाता है.

 * नीम और हल्दी (Neem Or Haldi) एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर हैं. हल्दी में कैल्शियम, आयरन, सोडियम, ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन ई, विटामिन सी, और फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है. तो वहीं नीम में एंटी-सेप्टिक, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-डायबिटीज जैसे गुण पाए जाते हैं. नीम और हल्दी का साथ में सेवन कर शरीर को वायरल फ्लू से बचा सकते हैं. 

रोगप्रतिरोधक शक्ति :-

इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए नीम और हल्दी का सेवन कर सकते हैं. नीम और हल्दी अपने एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के चलते शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. 

#नीम और हल्दी का उपयोग?

- सर्दी-खांसी और जुकाम की समस्या एक आम समस्या में से एक है. नीम और हल्दी का सेवन कर आप सर्दी-खांसी की समस्या से बच सकते हैं.  

- नीम और हल्दी का सेवन कर स्किन को हेल्दी रखा जा सकता है. ये डेड स्किन सेल्स कम करने और चेहरे को पिंपल से बचाने में भी मदद कर सकते हैं.

#हल्दी कौन कौन सी बीमारी में काम आती है?

- चोट, घावों, सूजन, इंफेक्शन, सर्दी-जुकाम आदि को दूर करने में कच्ची हल्दी बेहद फायदेमंद साबित होती है। कच्ची हल्दी को दूध में उबालकर पीने से सर्दी-जुकाम, खांसी, इंफेक्शन आदि दूर होने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का बेहद ही आसान घरेलू उपाय है।

# खाली पेट नीम के पत्ते खाने से क्या फायदा?

रोजाना सुबह खाली पेट नीम की पत्तियों खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही शारीरिक विकार भी दूर होते हैं. नीम, जिसे चमत्कारिक जड़ी बूटी के रूप में भी जाना जाता है. इसका हर हिस्सा औषधीय उपचार में काम आता है. नीम रक्त को साफ करता है और शरीर से किसी भी जहरीले तत्व को बाहर निकालने में मदद करता है.

#नीम और हल्दी खाने के 5 फायदे (neem aur haldi ke fayde)

1. इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार

सभी तरह के रोगों से लड़ने के लिए मजबूत इम्यूनिटी का होना बहुत जरूरी होता है। अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढ़ाने के लिए आप नीम और हल्दी का उपयोग कर सकते हैं। 

2. बैक्टीरिया और फंगस से लड़ने में मदद करे

बैक्टीरिया और फंगस कई रोगों का कारण बनता है। लेकिन नीम और हल्दी बैक्टीरिया और फंगस से लड़ने में हमारी मदद करते हैं। 

3- कैंसर कोशिकाओं को करे नष्ट

 नीम और हल्दी में काफी अच्छी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो फ्री रेडिकल्स के कारण कोशिकाओं को होने वाले नुकासन से रोकता है। नीम कैंसर उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं को खत्म करने में कारगर होता है।

4- वायरल संक्रमण से बचाव 

कई लोग मौसम बदलने पर सर्दी-जुकाम, खांसी और वायरल से परेशान रहते हैं।  नीम और हल्दी में एंटी वायरल गुण होते हैं, जो वायरल संक्रमण से हमारा बचाव करते हैं।  

5.  त्वचा को हमेशा के लिए जवां बनाए रख सकते हैं। नीम और हल्दी साथ में खाने से शरीर में जमा गंदगी आसानी से निकल जाती है। बॉडी डिटॉक्स होती है, इसका असर त्वचा पर भी होता है। 

* नीम-हल्दी की सेवन विधि;-

#नीम और हल्दी को कैसे खाएं

> neem aur haldi kaise khayen

- नीम हल्दी की आप गोली बनाकर खा सकते है.

- नीम-हल्दी को चूर्ण बनाकर ले सकते है.

- नीम-हल्दी का क्वाथ (काढा) बनाकर पी सकते है।

- नीम और हल्दी के सेवन के लिए आप एक गिलास हल्का गर्म पानी लें। इसमें एक चुटकी हल्दी और थोड़ा सा नीम की पत्तियों का रस डाल दें। स्वाद बढ़ाने के लिए आप इसमें शहद भी मिला सकते हैं। लेकिन सिर्फ नीम और हल्दी का सेवन करना अधिक लाभकारी माना जाता है। इस पानी को रोज सुबह खाली पेट पिएं। इससे आप हमेशा स्वस्थ रहेंगे।

नोट:-

 आयुर्वेद में नीम और हल्दी का उपयोग रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। फिर भी इस मिश्रण को लेने से पहले आप आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

धन्यवाद!









मंगलवार, 28 जून 2022

कैसे करती है चमत्कार “हरीतकी”आयुर्वेदिक औषधि जाने हिंदी में।

 कैसे करती है चमत्कार “हरीतकी”आयुर्वेदिक औषधि  जाने हिंदी में।

How does miracle Ayurvedic medicine "Haritaki" know in Hindi.

Dr_VirenderMadhan.



* आयुर्वेद में सबसे चमत्कारी ओषधि है हरड़ या हरीतकी। इसे अभया भी कहते हैं। क्योंकि यह लोगों के मन से रोगों के भय को दुर करती है है।

रोज हरड़ मुरब्बा खाने से व्यक्ति हमेशा स्वस्थ्य और स्फूर्तिवान रहता है।

[हरतिमलानइतिहरितकी]

अर्थात-हरड़ रोगों पेट की गंदगी का हरण करती है।

#हरड के नाम Name of Herd :-

‎हर, हर्रे, हरीतकी, अमृतम, अमृत, हरड़, बालहरितकी, हरीतकी गाछ, नर्रा, हरड़े, हिमज, आदि कई नामों से जानी जाती है।

#क्यों आवश्यक है हरड़ मुरब्बा युक्त दवा की.?

* Why is it necessary to take medicine containing myrrh murabba?

- स्वस्थ रहने के लिए पाचन तंत्र की मजबूती जरूरी है और जब पाचन दुरुस्त रहेगा, तो इम्यून सिस्टम भी सन्तुलित बना रहेगा।

अधिकतर बीमारी की वजह है-पेट के रोग, जो लिवर, हृदय, गुर्दा, किडनी, फेफड़ों, आँतों को दूषित कर अनेक आधि-व्याधि पैदा कर देता है।

#91रोगों का नाश-हरितकी।

- हरड़ मुरब्बा एक ऐसी अदभुत ओषधि है, जो 91 तरह के उदर विकारों से राहत देती है। बवासीर|पाइल्स को कभी पनपने नहीं देती है।

- उदररोग, शरीर में दर्द और सूखी खांसी से हों परेशान,तो अमृतम हरड़ चूर्ण या हरड़ मुरब्बा युक्त ओषधियाँ सेवन करें

- हरड़ मल को फुलाकर पेट साफ रखती है। गैस, एसिडिटी, भूख की कमी, भोजन न पचना, बेचैनी आदि परेशानीयों से छुटकारा दिलाता है।

- छोटी हरड़ मुरब्बा रक्त संचार सुचारू कर ब्लडप्रेशर को सन्तुलित करता है। हृदय रोगों से बचाता है।

#हरड़ रसायन है।



हरड़ मुरब्बा युक्त ओषधियाँ के सेवन से बुढापा जल्दी नहीं आता। यह च्यवनप्राश, त्रिफला चूर्ण का मुख्य घटक है। 

- हरड़ मुरब्बा के सेवन से श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोध, पेट के कृमि,स्वरभेद नही होते है।

*आयुर्वेदिक ग्रन्थों में हरड़ को उदर के लिए अमृत बताया है। [विजयासर्वरोगेषु]

 अर्थात हरड़ सभी रोगों पर विजयी है।

 - हर रोग को हरने (मिटाने) के कारण इसे हरड़ कहते हैं, आयुर्वेद की यह अमृतम ओषधि है ।

[हरतिरोगान मलान इति]

 हरड़ रोगों का हरण करती है! रोगों की जड़ उदर है और यह मल विसर्जन द्वारा रोगों को तन से बाहर फेंकती है।

#हरड़ का मुरब्बा:-

 ग्रहणी सम्बन्धी रोग तथा विबन्ध (मलमूत्रादि को विपद्धता अर्थात् रुक जाना), विषमज्वर, गुल्म, उदराध्यान, तृषा, वमन, हिचकी, खुजली, हृद्रोग, कामला, शूल, आनाह, प्लीहा यकृत, अश्मरी (पथरी), मूत्रकृच्छ तथा मूत्राघात ये सब रोग दूर होते हैं। निघण्टु शास्त्र(१९-२२)

#गुणानुसार हरड के नाम:-

- कभी भी सेवन करने के कारण से ‘पथ्या‘ (हितकारिणी) कहा जाता है।

- शरीर को सदा स्वस्थ बनाए रखने से ‘कायस्था‘ या शरीर धारक भी एक नाम है।

- हरड़ मुरब्बा तन को पवित्र करने के कारण इसे “पूतना” अर्थात पवित्रधारिणी कहते हैं।

- अमृततुल्य होने से हरड़ ‘अमृता’ है।

यह हिमालय पर पैदा होने से

“हेमवती” कहा है।

- व्यथानाशक होने के कारण हरड़ का एक नाम “अव्यथा” भी है।

- सभी अवयवों को चेतन करने वाली हरड़ को “चेतकी” भी एक नाम है।

- जो शरीर के लिये सर्वाधिक श्रेष्ठ है “श्रेयसी” कहा है।

- जीवो का कल्याण करने वाली हरड़ का एक नाम “शिवा” (कल्याण कारिणी)भी है ।

- हरड़ का एक नाम “वयःस्था (आयुस्थापक) भी है । हरड़ के सेवन से व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए शतायु प्राप्त करता है।

- “विजया” अर्थात रोगों को जीतने वाली हरड़ का अन्य नाम है ।

- “रोहिणी” ( रोपणी) हरड़ ही है।

- “जीवंती” अर्थात जीवन दायिनी हरड़ ही है।

इम्यून सिस्टम की मजबूती हेतु हरड़ मुरब्बा से बेहतरीन ओषधि इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है।

- ‎हरड़– अच्छा वरणरोपक भी है ।



- हरड़ रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक असरकारक ओषधि है । इसलिये अमृतम द्वारा निर्मित सभी माल्ट (अवलेह), च्यवनप्राश में हरड़ का मुरब्बा बनाकर मिश्रण किया है।

- अमृता हरड़ शोधन कर्म के लिये हितकर है। आँख के रोगों में 'अभया' उत्तम होती है और 'जीवन्ती' सम्पूर्ण रोगों का हरण करने वाली होती है।

-चूर्ण बनाने के लिये 'चेतकी हरड़' उत्तम होती है। अत: जिस जाति की हरीतकी का जहाँ जिन रोगों में प्रयोग करना कहा गया है, उसका वहाँ पर प्रयोग करना चाहिये।

'चेतकी हरड़' श्वेत और कृष्ण दो प्रकार की होती है। उनमें शुक्ल वर्ण वाली ६ अङ्गुल की तथा कृष्ण वर्ण वाली एक अङ्गुल की लम्बी होती है। इनमें कोई हरीतकी खाने मात्र से, कोई सूंघने से, कोई स्पर्श करने से तथा कोई देखने मात्र से ही मल का भेदन करती हैं अर्थात् दस्त साफ होता है।

#हरड के प्रभाव:-

इस प्रकार हरीतकी चार प्रकार से दस्त कराकर पेट को हमेशा साफ रखती है। जो मनुष्य चेतकी जाति की हरड़ के पेड़ की छाया के नीचे पहुँच जाते हैं, उनको उसी समय दस्त आने लगता है।

- यहाँ तक कि पशु, पक्षी, मृगादि की भी यही दशा हो जाती है और 'चेतकी' हरड़ को जब तक प्राणी अपने हाथ में धारण किये रहता है, तब तक उसके प्रभाव से उसे वेग से दस्त होता रहता है, इसमें सन्देह नहीं है।

- राजा, सुकुमार या कृश हैं, किंवा विरेचक औषध खाने से भागने वाले हैं, उनके लिये 'चेतकी' हरड़ परम हितकारी एवं उत्तम होती है क्योंकि वह सुखपूर्वक दस्त लाती है।

- पूर्वोक्त सात जातियों में 'विजया' जाति की जो हरीतकी होती है,नहीं औरों की अपेक्षा प्रधान है क्योंकि सुलभ होने से उसका प्रयोग सुखपूर्वक होता है तथा यह सभी में देने के लिये भी उत्तम होती है।।

#हरीतकी के गुण-

हरड़ में लवण रस को छोड़कर पाँच (मपुर, अम्ल, कटु, काय तिक्त) रस हते हैं किन्तु औरों की अपेक्षा कषाय रस ही अधिक रहता है।

- हरड़ मुरब्बा या हरीतकी क्षणी अग्निदीपक, मेघा (धारणाशक्ति) के लिये हितकारी, मधुर विपाक वाली रसायन वृद्धावस्था तथा व्याधियों को दूर करने वाली), नेत्रों के लिये हितकर, पचने में लघु (जल्दी पचने वाली), आयुवर्धक, बृहण (शरीर में मांसादि की वृद्धि करने वाली) और अनुलोमन (मलादि को नीचे की ओर प्रेरित करने वाली) होती है।

#हरीतकी मुरब्बे का प्रभाव- 

- हरड़ में मथुर, तिक्त और कषाय रस रहता है, अतएव यह पित्तनाशक और कटु तिक्त तथा कषाय रस होने से कफनाशक है तथा अम्ल रस होने से वायु का भी शमन करती है। हरड़ को सर्वदोषों का नाशक बताया है।

हरड़ मुरब्बा से बनी ओषधियाँ देह तथा पेट के सभी दोषों का जड़ से नाश कर आँतों की सफाई करने में मददगार है। यह पित्त को सन्तुलित करता है।

हरड़ रसों में इन इन दोषों को दूर करने की शक्ति रहती है। हरड़ में स्थित जो कटु तथा अम्ल रस है।

#हरड़ में रसों के रहने के स्थान-

— हरड़ की मींगी में मधुर रस, रेशों में अम्लरस, वृन्त (छेपी) में तिक्त, छिल्के में कटु रस और गुठली में कषाय रस रहता है।

#उत्तम हरड़ के लक्षण-

जो हरड़ नवीन, स्निग्ध, घन (ठोस), गोल और गुरु (वजनदार) हो तथा जल में डालने पर डूब जाय वह उत्तम और अत्यन्त गुणकारी मानी जाती है। जिस हरीतकों के फल में पूर्वोक्त नूतनता आदि सम्पूर्ण गुण हों एवं तौल भी उसका दो कर्ष अर्थात् दो बहेड़े के बराबर हो वह उत्तम कही जाती है।

#हरीतकी के प्रयोग भेद से गुण भेद- 

- हरीतकी यदि चबाकर खाई जाय तो जठराग्नि की वृद्धि करती है, 

- शिला पर पीसकर खाई जाय तो मल शोधन करती है।

- हरड़ उबालकर खाई जाय तो मल रोकती है,

- भूनकर खाई जाय तो त्रिदोष को दूर करती है।

-  भोजन के साथ हरड़ मुरब्बा सेवन करने से बुद्धि, बल तथा इन्द्रियों को विकसित करने वाली, पित्त, कफ तथा वायु को नष्ट करने वाली एवं मूत्र, विष्ठा तथा मल पदार्थों का विरेचन करने वाली होती है।

- हरीतकी भोजन के बाद ऊपर से खाई जाय तो अन्त्र तथा पान सम्बन्धी दोषों को एवं वात, पित्त तथा कफ से उत्पन्न होने वाले विकारों को शांत करती है।

धन्यवाद!