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मंगलवार, 28 जून 2022

कैसे करती है चमत्कार “हरीतकी”आयुर्वेदिक औषधि जाने हिंदी में।

 कैसे करती है चमत्कार “हरीतकी”आयुर्वेदिक औषधि  जाने हिंदी में।

How does miracle Ayurvedic medicine "Haritaki" know in Hindi.

Dr_VirenderMadhan.



* आयुर्वेद में सबसे चमत्कारी ओषधि है हरड़ या हरीतकी। इसे अभया भी कहते हैं। क्योंकि यह लोगों के मन से रोगों के भय को दुर करती है है।

रोज हरड़ मुरब्बा खाने से व्यक्ति हमेशा स्वस्थ्य और स्फूर्तिवान रहता है।

[हरतिमलानइतिहरितकी]

अर्थात-हरड़ रोगों पेट की गंदगी का हरण करती है।

#हरड के नाम Name of Herd :-

‎हर, हर्रे, हरीतकी, अमृतम, अमृत, हरड़, बालहरितकी, हरीतकी गाछ, नर्रा, हरड़े, हिमज, आदि कई नामों से जानी जाती है।

#क्यों आवश्यक है हरड़ मुरब्बा युक्त दवा की.?

* Why is it necessary to take medicine containing myrrh murabba?

- स्वस्थ रहने के लिए पाचन तंत्र की मजबूती जरूरी है और जब पाचन दुरुस्त रहेगा, तो इम्यून सिस्टम भी सन्तुलित बना रहेगा।

अधिकतर बीमारी की वजह है-पेट के रोग, जो लिवर, हृदय, गुर्दा, किडनी, फेफड़ों, आँतों को दूषित कर अनेक आधि-व्याधि पैदा कर देता है।

#91रोगों का नाश-हरितकी।

- हरड़ मुरब्बा एक ऐसी अदभुत ओषधि है, जो 91 तरह के उदर विकारों से राहत देती है। बवासीर|पाइल्स को कभी पनपने नहीं देती है।

- उदररोग, शरीर में दर्द और सूखी खांसी से हों परेशान,तो अमृतम हरड़ चूर्ण या हरड़ मुरब्बा युक्त ओषधियाँ सेवन करें

- हरड़ मल को फुलाकर पेट साफ रखती है। गैस, एसिडिटी, भूख की कमी, भोजन न पचना, बेचैनी आदि परेशानीयों से छुटकारा दिलाता है।

- छोटी हरड़ मुरब्बा रक्त संचार सुचारू कर ब्लडप्रेशर को सन्तुलित करता है। हृदय रोगों से बचाता है।

#हरड़ रसायन है।



हरड़ मुरब्बा युक्त ओषधियाँ के सेवन से बुढापा जल्दी नहीं आता। यह च्यवनप्राश, त्रिफला चूर्ण का मुख्य घटक है। 

- हरड़ मुरब्बा के सेवन से श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोध, पेट के कृमि,स्वरभेद नही होते है।

*आयुर्वेदिक ग्रन्थों में हरड़ को उदर के लिए अमृत बताया है। [विजयासर्वरोगेषु]

 अर्थात हरड़ सभी रोगों पर विजयी है।

 - हर रोग को हरने (मिटाने) के कारण इसे हरड़ कहते हैं, आयुर्वेद की यह अमृतम ओषधि है ।

[हरतिरोगान मलान इति]

 हरड़ रोगों का हरण करती है! रोगों की जड़ उदर है और यह मल विसर्जन द्वारा रोगों को तन से बाहर फेंकती है।

#हरड़ का मुरब्बा:-

 ग्रहणी सम्बन्धी रोग तथा विबन्ध (मलमूत्रादि को विपद्धता अर्थात् रुक जाना), विषमज्वर, गुल्म, उदराध्यान, तृषा, वमन, हिचकी, खुजली, हृद्रोग, कामला, शूल, आनाह, प्लीहा यकृत, अश्मरी (पथरी), मूत्रकृच्छ तथा मूत्राघात ये सब रोग दूर होते हैं। निघण्टु शास्त्र(१९-२२)

#गुणानुसार हरड के नाम:-

- कभी भी सेवन करने के कारण से ‘पथ्या‘ (हितकारिणी) कहा जाता है।

- शरीर को सदा स्वस्थ बनाए रखने से ‘कायस्था‘ या शरीर धारक भी एक नाम है।

- हरड़ मुरब्बा तन को पवित्र करने के कारण इसे “पूतना” अर्थात पवित्रधारिणी कहते हैं।

- अमृततुल्य होने से हरड़ ‘अमृता’ है।

यह हिमालय पर पैदा होने से

“हेमवती” कहा है।

- व्यथानाशक होने के कारण हरड़ का एक नाम “अव्यथा” भी है।

- सभी अवयवों को चेतन करने वाली हरड़ को “चेतकी” भी एक नाम है।

- जो शरीर के लिये सर्वाधिक श्रेष्ठ है “श्रेयसी” कहा है।

- जीवो का कल्याण करने वाली हरड़ का एक नाम “शिवा” (कल्याण कारिणी)भी है ।

- हरड़ का एक नाम “वयःस्था (आयुस्थापक) भी है । हरड़ के सेवन से व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए शतायु प्राप्त करता है।

- “विजया” अर्थात रोगों को जीतने वाली हरड़ का अन्य नाम है ।

- “रोहिणी” ( रोपणी) हरड़ ही है।

- “जीवंती” अर्थात जीवन दायिनी हरड़ ही है।

इम्यून सिस्टम की मजबूती हेतु हरड़ मुरब्बा से बेहतरीन ओषधि इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है।

- ‎हरड़– अच्छा वरणरोपक भी है ।



- हरड़ रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक असरकारक ओषधि है । इसलिये अमृतम द्वारा निर्मित सभी माल्ट (अवलेह), च्यवनप्राश में हरड़ का मुरब्बा बनाकर मिश्रण किया है।

- अमृता हरड़ शोधन कर्म के लिये हितकर है। आँख के रोगों में 'अभया' उत्तम होती है और 'जीवन्ती' सम्पूर्ण रोगों का हरण करने वाली होती है।

-चूर्ण बनाने के लिये 'चेतकी हरड़' उत्तम होती है। अत: जिस जाति की हरीतकी का जहाँ जिन रोगों में प्रयोग करना कहा गया है, उसका वहाँ पर प्रयोग करना चाहिये।

'चेतकी हरड़' श्वेत और कृष्ण दो प्रकार की होती है। उनमें शुक्ल वर्ण वाली ६ अङ्गुल की तथा कृष्ण वर्ण वाली एक अङ्गुल की लम्बी होती है। इनमें कोई हरीतकी खाने मात्र से, कोई सूंघने से, कोई स्पर्श करने से तथा कोई देखने मात्र से ही मल का भेदन करती हैं अर्थात् दस्त साफ होता है।

#हरड के प्रभाव:-

इस प्रकार हरीतकी चार प्रकार से दस्त कराकर पेट को हमेशा साफ रखती है। जो मनुष्य चेतकी जाति की हरड़ के पेड़ की छाया के नीचे पहुँच जाते हैं, उनको उसी समय दस्त आने लगता है।

- यहाँ तक कि पशु, पक्षी, मृगादि की भी यही दशा हो जाती है और 'चेतकी' हरड़ को जब तक प्राणी अपने हाथ में धारण किये रहता है, तब तक उसके प्रभाव से उसे वेग से दस्त होता रहता है, इसमें सन्देह नहीं है।

- राजा, सुकुमार या कृश हैं, किंवा विरेचक औषध खाने से भागने वाले हैं, उनके लिये 'चेतकी' हरड़ परम हितकारी एवं उत्तम होती है क्योंकि वह सुखपूर्वक दस्त लाती है।

- पूर्वोक्त सात जातियों में 'विजया' जाति की जो हरीतकी होती है,नहीं औरों की अपेक्षा प्रधान है क्योंकि सुलभ होने से उसका प्रयोग सुखपूर्वक होता है तथा यह सभी में देने के लिये भी उत्तम होती है।।

#हरीतकी के गुण-

हरड़ में लवण रस को छोड़कर पाँच (मपुर, अम्ल, कटु, काय तिक्त) रस हते हैं किन्तु औरों की अपेक्षा कषाय रस ही अधिक रहता है।

- हरड़ मुरब्बा या हरीतकी क्षणी अग्निदीपक, मेघा (धारणाशक्ति) के लिये हितकारी, मधुर विपाक वाली रसायन वृद्धावस्था तथा व्याधियों को दूर करने वाली), नेत्रों के लिये हितकर, पचने में लघु (जल्दी पचने वाली), आयुवर्धक, बृहण (शरीर में मांसादि की वृद्धि करने वाली) और अनुलोमन (मलादि को नीचे की ओर प्रेरित करने वाली) होती है।

#हरीतकी मुरब्बे का प्रभाव- 

- हरड़ में मथुर, तिक्त और कषाय रस रहता है, अतएव यह पित्तनाशक और कटु तिक्त तथा कषाय रस होने से कफनाशक है तथा अम्ल रस होने से वायु का भी शमन करती है। हरड़ को सर्वदोषों का नाशक बताया है।

हरड़ मुरब्बा से बनी ओषधियाँ देह तथा पेट के सभी दोषों का जड़ से नाश कर आँतों की सफाई करने में मददगार है। यह पित्त को सन्तुलित करता है।

हरड़ रसों में इन इन दोषों को दूर करने की शक्ति रहती है। हरड़ में स्थित जो कटु तथा अम्ल रस है।

#हरड़ में रसों के रहने के स्थान-

— हरड़ की मींगी में मधुर रस, रेशों में अम्लरस, वृन्त (छेपी) में तिक्त, छिल्के में कटु रस और गुठली में कषाय रस रहता है।

#उत्तम हरड़ के लक्षण-

जो हरड़ नवीन, स्निग्ध, घन (ठोस), गोल और गुरु (वजनदार) हो तथा जल में डालने पर डूब जाय वह उत्तम और अत्यन्त गुणकारी मानी जाती है। जिस हरीतकों के फल में पूर्वोक्त नूतनता आदि सम्पूर्ण गुण हों एवं तौल भी उसका दो कर्ष अर्थात् दो बहेड़े के बराबर हो वह उत्तम कही जाती है।

#हरीतकी के प्रयोग भेद से गुण भेद- 

- हरीतकी यदि चबाकर खाई जाय तो जठराग्नि की वृद्धि करती है, 

- शिला पर पीसकर खाई जाय तो मल शोधन करती है।

- हरड़ उबालकर खाई जाय तो मल रोकती है,

- भूनकर खाई जाय तो त्रिदोष को दूर करती है।

-  भोजन के साथ हरड़ मुरब्बा सेवन करने से बुद्धि, बल तथा इन्द्रियों को विकसित करने वाली, पित्त, कफ तथा वायु को नष्ट करने वाली एवं मूत्र, विष्ठा तथा मल पदार्थों का विरेचन करने वाली होती है।

- हरीतकी भोजन के बाद ऊपर से खाई जाय तो अन्त्र तथा पान सम्बन्धी दोषों को एवं वात, पित्त तथा कफ से उत्पन्न होने वाले विकारों को शांत करती है।

धन्यवाद!

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