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शनिवार, 9 जुलाई 2022

सेब का सिरका मतलब क्या होता है?In hindi.

 #सेब का सिरका मतलब क्या होता है?In hindi.

What does apple cider vinegar mean?In hindi.



[सेब का सिरका]apple cider vinegar.

Dr.VirenderMadhan.

सेब के जूस को खमीरीकृत कर के तैयार हुए सिरके को एप्‍पल सिडर विनेगर कहा जाता है। पहले सेब का रस निकाला जाता है और फिर उसमें यीस्‍ट डालकर फ्रूट शुगर को एल्‍कोहल में बदला जाता है। इसके बाद एल्‍कोहल में बैक्‍टीरिया डाला जाता है जो इसे एसिटिक एसिड में बदल देता है।

#सेब के सिरके से शरीर में क्या होता है?

What happens to the body with apple cider vinegar?

एप्पल साइडर विनेगर का प्रयोग औषधीय रूप से भी किया जाता है. इसमें एसिटिक एसिड और साइट्रिक एसिड होता है. एप्पल साइडर विनेगर में विटामिन बी और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व होते हैं,सेब के सिरके को लेने से वजन को कम करता है तथा पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है।

#सेब का सिरका कैसे काम करता है?

How does apple cider vinegar work?

सेब का सिरका वजन कम करने के साथ-साथ आपकी एसिडिटी, एसिड रिफ्लेक्शन कम करने में भी मदद करता है. -Joints pain जोड़ों के दर्द में भी लाभदायक है. 

- सेब का सिरके से शरीर का PH लेवल सही रहता है.    - हाथ पैरों की एंठन और दर्द की समस्या में आराम पड़ता है ।

#सुबह खाली पेट में सेब सिरका पीने के फायदे?

Benefits of drinking apple vinegar in the morning on an empty stomach?

- वजन कम करने में सहायक सेब का सिरका पीने से तेजी से वजन घटाने में मदद मिल सकती है। 

- पाचन समस्या से छुटकारा कई लोग पाचन की समस्या से परेशान रहते हैं।

- इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते है।

- सेब का सिरका कोलेस्ट्रोल कम करने मे सहायक होता है।

- सेब का सिरका डायबिटीज को कंट्रोल करता है। 

- सेब का सिरका का जोड़ों के दर्द में उपयोग किया जाता है।

#सेब के सिरके के नुकसान -

Disadvantages of apple vinegar -

 सेब के सिरके में एसिड होने के कारण यह शरीर में मौजूद ब्लड में पोटैशियम के स्तर को कम करता है। सेब के सिरके को सीधा दांतों पर इस्तेमाल करने से दांतों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा इसका सीधा प्रयोग करना दांतों में पीलेपन की समस्या को भी बढ़ाता है।

#सेब का सिरका कैसे बनाये? 

How to make Apple Cider Vinegar?

 10 सेब लें और उन्हें पानी से अच्छी तरह धो लें।फिर छोटे टुकड़ों में काट लें।

कटे हुए सेब के टुकड़ों को अलग रख दें और उनके भूरे रंग का होने का इंतज़ार करें।

इन सेब के टुकड़ों को एक बड़े मुँह वाले कांच के जार में डाल दें। जार में इतना पानी डाले ताकि सेब पूरी तरह डूब जायें।

इस जार को जालीदार कपडे से ढक दें, सेब के टुकड़ों को ऑक्सीजन मिलता रहे।

फिर जार को एक गर्म और अँधेरे वाली जगह पर रख दें।

इस जार को 6 महीनों तक रखा रहने दें और हर हफ्ते इसे चलाते रहें।

6 महीने के फर्मेंटेशन के बाद  उसके ऊपर मैल की एक परत जैम जायेगी ये बैक्टीरिया के कारण होता है।

एक दूसरा बड़े मुँह वाला जार मे कपडे की मदद से उसमें छान लें। 

उसी कपडे को नए जार को ढकने के लिए इस्तेमाल करें। फिर से जार को  5-6 हफ़्तों के लिए गर्म और अँधेरी जगह पर रख दें।

इसके बाद छोटे बर्तनों में भरकर रख लें। ताजगी के लिए फ्रिज में रख सकते हैं।

#सेब के सिरके के लाभ,

benefits of apple vinegar,

 - मधुमेह में उपयोगी

सेब के सिरके, ये रक्त शर्करा को संतुलित रखने में सहायता करता है।

- हृदय रोग का खतरा कम करता है।

- ये कोलेस्ट्रोल स्तर घटाने में भी उपयोगी होता है। और ब्लड प्रेशर नियंत्रण में भी उपयोगी होते हैं।

- साइनस की तकलीफ में फायदेमंद

- सेब का सिरका मौजूद बलगम  में भी लाभदायक होता है। 

- गले की खराश में सहायक

इसके एंटीबैक्टीरियल गुण गले की खराश में भी फायदेमंद होते हैं। 

- मस्सा(वार्ट्स) का करें इलाज।

इसके लिए एक रुई को सेब के सिरके में भिगोकर मस्सो पर रख लें और रात भर लगा रहने दें।

#सेब के सिरके के अन्य उपयोग।

- चेहरे का टोनर

पानी के 3-4 भाग के साथ 

सेब के सिरके का एक भाग मिलाकर चेहरे पर लगायें।

- श्वास में बदबू को दूर करने के लिए:

आधा बड़ा चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में डाल लें। एक बार में 10 सेकंड के लिए गरारे करें ।

धन्यवाद!









शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

अमरुद खाने से क्या क्या होता है?In hindi.

 अमरुद खाने से क्या क्या होता है?In hindi.

#अमरुद|Guava

Plant|Psidium|

goiaba



Dr.VirenderMadhan.

गोल तथा पीले रंग का एक मशहूर मीठा फल और उसका पेड़; अमृत फल कहलाता है।

संस्कृत में नाम:-

 अमरूद को संस्कृत में 'बीजपूरम् ‚ आम्रलम् ‚ दृढबीजम् ‚ अमृतफलम्' कहते हैं।

अमरुद खाने से क्या क्या होता है?In hindi.

अमरूद शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत बनाता है क्योंकि अमरूद में विटामिन सी पाया जाता है, जो पेट संबंधी विकार दूर करता हैं.

-अमरूद एंटी एजिंग गुणों से भरपूर है।

- अमरूद दांतों को मजबूत करता है 

-अमरूद पाइल्स में लाभकारी होता है।क्योंकि यह पेट को साफ करता है।

#अमरूद खाने के लाभ?

आयुर्वेद के अनुसार अमरूद खाने से होने वाले लाभ -

* अमरूद का औषधीय गुण 

-प्यास को शांत करता है 

-  उल्टी रोकता है, 

- हृदय को बल देता है. 

- कृमियों का नाश करता है,  

- कफ निकालता है. 

- मुंह में छाले होने पर मस्तिष्क एवं किडनी के संक्रमण, बुखार, मानसिक रोगों तथा मिर्गी आदि में इसको खाना लाभदायक होता है.आयुर्वेद में इसे इन रोगो मे पथ्य माना है।

* कच्‍चा अमरूद खाना ज्‍यादा फायदेमंद होता है क्योंकि कच्‍चे अमरूद में पके अमरूद की अपेक्षा विटामिन सी अधिक पाया जाता है.  

 - अमरूद में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है इसलिए यह डायबिटिज के मरीजों के लिए बहुत अच्‍छा होता है. 

#अमरूद के पत्तों के फायदे?Guava Leaves Benefits

- कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम करता है  

- वजन घटाने में मदद करता है 

- दस्तों मे लाभ करता है -अमरूद के पत्ते दस्त के लिए हर्बल औषधि हैं.

- अमरूद डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद है।रोज अमरूद के पत्तों का चूर्ण या काढा पीते रहने से कुछ दिनों मे डायबिटीज को जड से खत्म हो जाता है।

- बालों के लिए अमरूद के पत्ते का काढा लाभकारी होता है।

- मुंहासों और काले धब्बों के उपाय के लिए अमरुद के पत्तों का लेप किया जाता है।

- आप काढ़े के रूप में अमरूद की पत्तियों का सेवन कर सकते हैं, साथ ही इसे कच्चा चबाकर भी खा सकते हैं.

- अमरुद खाने से गैस और कब्ज में आराम मिलता है।

-  जुकाम, खांसी और खराश में आराम करता है।

- अमरुद के पत्तों का रस लगाने से बाल मजबूत होते है।

#ऐसे बनाएं अमरूद के पत्तों का काढ़ा:-

अमरूद के पत्तों का काढ़ा:- बनाने के लिए सबसे पहले अमरूद के पत्तों को लेकर अच्छे से धो लें। फिर एक बर्तन में पानी डालकर गैस पर गर्म करें अब इस पानी में अमरूद के पत्तों को डालें। पानी में उबाल आने के बाद इसमें काली मिर्च, लौंग, अदरक आदि अन्य सामग्रियां भी डाल दें

#how to make guava tea?

विधि- सबसे पहले अमरूद के करीब 10 ताजे पत्तों को अच्छे से धो लें। 

 डेढ़ कप पानी को सामान्य आंच पर 2 मिनट के लिए उबलने के लिए रख दें। अब इसमें धुले हुए अमरूद के पत्ते डाल दें और स्वाद और कलर के लिए नॉर्मल चाय की पत्ती डालें। अब इसे 10 मिनट के लिए पकाएं।

#अमरूद की तासीर कैसी होती है?

अमरूद की तासीर ठंडी होती हैं।

# अधिक अमरूद खाने के क्‍या क्‍या नुकसान हो सकते हैं. ज्यादा अमरूद खाने से सूजन, पेट फूलना और गैस जैसी समस्याएं हो सकती हैं. अगर आपकी पाचन शक्ति कमजोर है तो ज्यादा अमरूद का सेवन न करें. इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है जिससे ज्यादा अमरूद खाने से पेट खराब हो सकता है पेट फूलने जैसी समस्या हो सकती है।

#किसे अमरूद नहीं खाना चाहिए?

जो लोग (IBS) इरिटेटेड बाउल सिंड्रोम से पीड़ित हैं

अमरूद फाइबर से भरपूर होता है, जो कब्ज को कम करने और पाचन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। लेकिन अमरूद का अधिक सेवन आपके पाचन तंत्र को खराब कर सकता है, खासकर अगर आप इरिटेटेड बाउल सिंड्रोम से पीड़ित हैं। यह फ्रुक्टोज के कुअवशोषण के कारण भी होता है।

#अमरूद खाने का सही तरीका।

अमरूद का सेवन क‍िस समय करना चाह‍िए? 

 अमरूद को खाने के आधे घंटे बाद भी खा सकते हैं पर इसका सेवन खाली पेट न करें क्‍योंक‍ि अमरूद और केले जैसे फलों को डाइजेस्‍ट करने के ल‍िए आपके पेट में पहले से थोड़ा खाना होना जरूरी है नहीं तो पेट में दर्द की समस्‍या हो सकती है।

धन्यवाद!


बुधवार, 6 जुलाई 2022

मस्सा(wart) क्या होता है?In hindi.


 </>मस्सा(wart) क्या होता है?In hindi.

[मस्सा(wart)]

Dr.VirenderMadhan.

#क्या होता है मस्सा(wart)?

 शरीर पर कहीं कहीं काले रंग का उभरा हुआ मांस का छोटा दाना एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है। मस्सा (wart) कहलाता है।यह प्रायः सरसों अथवा मूँग के आकार का होता है कई बार यह बेर के आकार का होता है। यह प्रायः हाथों और पैर पर होता है किन्तु शरीर के अन्य अंगों पर भी हो सकता है।

#क्यों होते है मस्से?

यह ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के कारण होती है। आमतौर पर, यह फटी हुई त्वचा पर होता है क्योंकि वायरस त्वचा की ऊपरी परत के माध्यम से आसानी से प्रवेश कर सकता है। 

#शरीर पर मस्से होने का क्या कारण है?

मस्से विषाणु संक्रमण से पैदा होते हैं। 

 'मानव पेपिल्लोमैविरस' नामक विषाणु की कोई प्रजाति इसका कारण होती है। लगभग दस प्रकार के मस्से होते हैं। मस्से संक्रमण (छुआछूत) से हो सकते हैं और शरीर में वहाँ प्रवेश करते हैं जहाँ त्वचा कटी-फटी हो।

#मस्सों का घरेलू ईलाज क्या है?

- केले के छिलके :-

 रात को मस्से वाली जगह पर केले के छिलके को रखकर उस पर कपड़ा बांध लें. ऐसा तब तक करें जब तक मस्सा साफ न हो जाए.

- मस्सा हटाने के लिए बेकिंग सोडा:-

एक चम्मच बेकिंग सोडा में कुछ बूंदें एरण्ड का तैल (कैस्टर ऑइल) डालकर इस पेस्ट को मस्से पर लगाकर हल्के हाथों से मसाज करें.

#क्या आपके मस्से आपकी सुन्दरता को घटा रहें है?

* करें घरेलू उपाय

-​बेकिंग सोडा और अरंडी का

तेल:-

 बेकिंग सोडा और अरंडी के तेल का लेप तैयार करें।दिन में एक बार जरूर लगायें।

- ​लहसुन का पेस्ट:-

लहसुन की कलियों को छीलकर इनका पेस्ट बना लें।मस्सों पर लगायें।

- ताजा ऐलोवेरा का गुदा लगायें कुछ दिनों तक लाभ मिलेगा।

- सेब का सिरका:-

सेब का सिरका रोज मस्सो पर लगाने से फायदा होता है।

-चूना और घी:-

 घी और चूना समान मात्रा में लेकर अच्छी तरह से मिलाएं। फिर इसे मस्से पर दिन में 3-4 बार लगाएं। इस उपाय से मस्सा जड़ से झड़ जाएगा।

-अदरक और चूना:-

छोटा सा।  अदरक का टूकड़ा लेकर उस पर हल्का सा चूना लगाकर मस्से पर हल्के हाथ से रगडें मस्से झड जायेंगे।

उपरोक्त उपाय से मस्से ठीक न हो तो अपन आयुर्वेदिक चिकित्सक दिखायें और परोपर चिकित्सा करायें।

धन्यवाद!


सोमवार, 4 जुलाई 2022

पित्त प्रकृति का शरीर कैसा होता है?In hindi.

 पित्त प्रकृति का शरीर कैसा होता है?In hindi.

How is the body of bile nature? In Hindi.

<पित्त प्रकृति>



Dr.VirenderMadhan.

Q:- पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण क्या होतेहै?

#पित्त प्रकृति के व्यक्ति लक्षण:-

 Ans:- पित्त प्रकृति के व्यक्ति का शरीर नाजुक होता है। 

- गर्मी सहन नहीं होती। 

 - त्वचा पीली एवं नर्म होती है और फुंसियों और तिलों से भरी हुई होती है। 

- बालों का छोटी उम्र में सफेद होते है

- रोएं बहुत कम होना इस प्रकृति के विशेष लक्षण हैं।

Q:- पित्त प्रकृति के व्यक्ति की तासीर कैसी होती है?

Ans :- पित्त प्रकृति वाले लोग आमतौर पर बहुत ही आकर्षक और तेज दिमाग वाले होते हैं। 

इनके अंदर बहुत गर्मी होती है, इसलिए इन्हें गर्म चीजों को खाने से बचना चाहिए। 

- पित्त वालों की अग्नि बहुत तेज होती है।

- पित्त वाले ज्यादातर हल्के कपड़े पहनकर रहते है उनको गर्मी बहुत लगती है।

- शरीर से दुर्गन्‍ध आना

- कम उम्र में ही झुर्रियां आना।

- जीभ लाल दिखाई देती है

- चेहरा नाजुक और नरम दिखाई देता है.

- नसें काफी उन्नत नहीं होती हैं

- पेट मध्यम विकसित होता है

- तीखी लेकिन स्पष्ट आवाज

- नाखून गुलाबी

- मध्यम नींद

#अन्य लक्षण:-

-बालों का झडना,

- मुँहासे, 

- गंजापन 

- मजबूत पाचन क्षमता, 

- लाल तालू, लाल होंठ, लाल जीभ, जलन, 

- मुंह में छाले, 

- अति अम्लता, 

- क्रोध 

- बुद्धिमान मस्तिष्क, 

- तेज दृष्टि और दृष्टिकोण, तार्किक विचार,

- चित्त की दृढ़ता 

- अत्यधिक पसीना आना, 

- पित्त वालों की आंखें न ज्यादा बड़ी होगी न छोटी होगी.पीले या गुलाबी रंग के साथ श्वेतपटल नेत्र,पलकें कम और पतली दिखाई देती है,

Q:-पित्त प्रकृति के व्यक्ति को कौनसे रोग हो सकते है?

Ans:- जब पित्त दोष बढ़ जाए तो रोगों का कारण बन सकता है:

- सूर्य के प्रति अतिसंवेदनशीलता

- जलन के साथ सिरदर्द

- प्रकाश को सहन करने में असमर्थता

- स्टोमेटाइटिस(Stomatitis) - अल्सर

-चेहरे पर झुर्रियाँ

- मस्से

- गंजापन

- सिर में चक्कर आना

- सिर में हल्का भारीपन

- अत्यधिक पसीना आना

- हृदय रोग।

#पित्त प्रकृति के लोग क्या खाये?

आप इसकी जगह हर्बल टी या ग्रीन टी पी सकते हैं. 5- गर्म तासीर की सब्जी और दालें- पित्त वाले लोगों को गर्म तासीर की सब्जियों से भी परहेज रखना चाहिए. इसके साथ ही चिपचिपी सब्जियों जैसे बैंगन, अरबी, भिंडी, कटहल, सरसों का साग भी नहीं खाना चाहिए. पित्त को संतुलित रखने के लिए आप पालक, बींस, परवल और सीताफल खा सकते हैं।

#पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए ?

- पित्त प्रकृति वाले लोगों को

मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें।

- सरसों के तेल,तिल के तेल,से परहेज करें।

- ड्राई फ्रूट-काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें।

- खट्टे जूस,टमाटर के जूस,संतरे के जूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें।

- तलाभुना भोजन न करें।

धन्यवाद!


शनिवार, 2 जुलाई 2022

कैसे जाने अपनी प्रकृति कैसी है?In hindi.

  कैसे जाने अपनी प्रकृति कैसी है?In hindi.

How do you know your nature?



 आपका शरीर कैसा है?In hindi.

Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेदानुसार शरीर को तीन तरह की प्रकृति का माना जाता है .

- वात, पित्त और कफ। 

आयुर्वेदानुसार हमारा शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके अनुसार उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और स्वभाव का पता लगाया जा सकता है

शरीर की वात प्रकृति:-

#Vata nature of the body .

* वात युक्त शरीर

आयुर्वेदानुसार वात युक्त शरीर का स्वामी वायु होता है।

#वातप्रकृति वाले शरीर की

* बनावट -

body texture-

 इस तरह के लोगों का वजन तेजी से नहीं बढ़ता और ये अधिकतर छरहरे होते हैं।इनके बाल व त्वचा रूखे होते है। इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है लेकिन इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। आमतौर पर इनकी त्वचा ड्राई होती है और नाडी तेज चलती है।

* स्वभाव - 

सामान्यतः चंचल होते है।हाथ या पैर हिलाने की आदत हो सकती है। ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिए अक्सर इन्हें अनिद्रा की परेशानी अधिक रहती है। इनमें कामेच्छा अधिक होती है। वात प्रकृति वाले लोग बातूनी किस्म के होते हैं।ये लोग एक जगह ठिक कर नही बैठ सकते है।

* मानसिक स्थिति - 

ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास कम रहता है। ये बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं।

* डाइट - 

वात युक्त शरीर वाले लोगों को डाइट में अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। 

#शरीर की पित्त प्रकृति:-

Pit nature of the body .

पित्त युक्त शरीर

आयुर्वेदानुसार, पित्त युक्त शरीर का स्वामी अग्नि है।

* बनावट - 

 इस तरह के शरीर के लोग अक्सर मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं। बाल जल्दी पकने लगते है। इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक रहता है।

* स्वभाव - 

मिजाज गर्म होता है।

इस तरह के लोगों को विचलित करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है, इन्हें भूख तेज लगती हैं। आमतौर पर इनके बोलने की टोन ऊंची होती है।प्यास अधिक लगती है।

* मानसिक स्थिति - 

इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।शीध्र ही क्रोधित हो जाते है।

* डाइट -

 पित्त युक्त शरीर के लिए डाइट में सब्जियां, फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।

#शरीर की कफ प्रकृति:-

Kapha nature of the body:-

* कफ युक्त शरीर

कफ युक्त शरीर के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। आमतौर पर इस तरह के शरीर वाले लोगों का शरीर स्थूल होता है।

* बनावट -

 इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से वजन बढ़ा लेते हैं लेकिन इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है।पसीना बहुत आता है।

* स्वभाव -

 इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।

* मानसिक स्थिति -

ये लोग सोचते कम है।

 इन्हें कुछ सीखने में समय लगता है और भावनात्मक होते हैं।

* डाइट -

 कफ युक्त शरीर के लिए डाइट में बहुत अधिक तैलीय और हेवी भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए। हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।

धन्यवाद!

   


#आपके शरीर में वात दोष क्या होता है?In.hindi.

 #आपके शरीर में वात दोष क्या होता है?In.hindi.

#What is the vata dosha in your body?

वात दोष 



Dr.VirenderMadhan.

#वात दोष क्या है?

वात, त्रिदोष मे से एक है।

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात (वायु) दोष को तीनों दोषों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। 

- वात के कारण ही शरीर में गति संभव है।

- चरक संहिता के अनुसार वायु  पाचक अग्नि बढ़ाने वाला,तथा  इन्द्रियों का प्रेरक माना है.तथा उत्साह का केंद्र माना है। 

#वात दोष का स्थान कहां है?

Where is the place of Vata dosha?

 - पेट और आंत में वात का मुख्य स्थान है।

 -अन्य दोषों के साथ मिलकर वात उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, उष्ण वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीत और गीलेपन के गुण आ जाते हैं।

#वात कितने प्रकार का होता है?

what are the types of vata?

शरीर में स्थानों और कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

- प्राणवात

- उदानवात

- समानवात

- व्यानवात

- अपानवात

#वात के गुण क्या है?

#What are the properties of Vata?

- रूखापन,

- लघु,

- शीतलता,

- सूक्ष्म,

- चंचलता,

- चिपचिपाहट से रहित और

- खुरदुरापन वात के गुण हैं।

- रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। 

[लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।]

#वात प्रकृति की विशेषताएं?

Features of Vata Prakriti?

- प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।

- वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैसे कि  -रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. 

- शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना,  शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं.

- स्वभाव से वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी वातप्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.

#वात किन किन कारणों से बढ़ता है?

For what reasons does Vata increase?

- हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। 

> Major causes of aggravation of Vata?

- वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

- मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना

 - खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना

- रात को देर तक जागना, तेज बोलना

- अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना

- सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना

- तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन

- बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना

- चिंता या मानसिक परेशानी में रहना

- ज्यादा ठंडी चीजें खाना

- व्रत रखना

- बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

#वात बढ़ जाने के लक्षण?

Symptoms of aggravation of vata?

- सुई के चुभने जैसा दर्द



- हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन

- हड्डियों का खिसकना और टूटना

- अंगों में रूखापन और जकड़न

- अंगों में कंपकपी

- अंगों का ठंडा और सुन्न होना

- अंगों में कमजोरी महसूस होना 

- मुंह का स्वाद कडवा होना

- कब्ज़

- नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना

- ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो जान ले कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। 

>Treatment (उपाय) ?

वात को शांत या संतुलित करने के लिए खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने चाहिए। और उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ता है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. 

#वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं?

What to eat to balance Vata?

- घी, तेल वाली चीजों का सेवन करें।

- गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।

- नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।

- घी में तले हुए सूखे मेवे खाएं।

- खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।

- मूंग दाल, सोया दूध का सेवन करें।

#वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए?

What should people with Vata Prakriti not eat?

 वात प्रकृति वाले निम्न चीजों के सेवन से परहेज करें।

- साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।

- कढी से परहेज करें.

-किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।

- जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।

- नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

#जीवनशैली में क्या बदलाव करें?

what lifestyle changes to make?

असंतुलित वात वालों को जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

-रोज कुछ देर धूप में टहलें और धुप का सेवन करें।

- रोजाना ध्यान करें।

- गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। 

- गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।

- मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

#वात में कमी के लक्षण और उपचार?

वात की बृद्धि होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है 

#वात में कमी के लक्षण :

- अंगों में ढीलापन

- सोचने समझने और याददाश्त में कमी.

- बोलने में दिक्कत

- वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी

- पाचन में कमजोरी

- जी मिचलाना

उपचार :

* वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। 

- कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

अधिक जानकारी के लिए अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक मिले।

धन्यवाद!


शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

आयुर्वेद में त्रिदोष किसे कहते है?.In hindi.

 #आयुर्वेद में त्रिदोष किसे कहते है?.In hindi.



* What is called Tridosha in Ayurveda?.In Hindi.

Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्‍त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। 

Q:- वात,पित्त और कफ को दोष क्यों कहते है?

Ans:- यहां "दोष" शब्द का मतलब सामान्य भाषा में ‘विकार’ नहीं है। इसी प्रकार, "त्रिदोष" का अर्थ- वात, पित्त, कफ की विकृति या विकार नहीं है। आयुर्वेद में कहा है कि

 [दुषणात दोषाः, धारणात धातवः]

अर्थात वात, पित्त व कफ जब दूषित होते है तो रोग उत्पन्न कर देते हैं तथा जब वे अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहते हैं तो सप्त धातु व शरीर को धारण करते व संतुलित रखते हैं।

- आयुर्वेद में शरीर की मूल धारक शक्ति को व शरीर के त्रिगुणात्मक (वात, पित्त, कफ रूप) मूलाधार को ‘त्रिदोष’ कहा गया है। 

- इसके साथ 'दोष' शब्द इसलिए जुड़ा है कि सीमा से अधिक बढ़ने या घटने पर यह स्वयं दूषित हो जाते हैं तथा धातुओं को दूषित कर देते हैं।

Q:- शरीर के निर्माण मे प्रधान तत्व क्या है?

Ans:-- आयुर्वेद में शरीर के निर्माण में दोष, धातु और मल को प्रधान माना है 

[दोषधातुमल मूलं हि शरीरम्' ]

अर्थात दोष, धातु और मल - ये शरीर के तीन मूल हैं। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे 

Q:-दोष धातु मलों का शरीर में महत्व क्या है?

Ans:-- दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकार या रोग की चिकित्सा करना है। शरीर में जितने भी तत्व पाए जाते हैं, वे सब इन तीनों में ही जुडे हैं। इनमें भी दोषों का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

- त्रिदोष को शरीर की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण, 

अथवा शरीर के स्तम्भ माने जाते हैं। इसके पश्चात शरीर को स्वास्थ बनाए रखने और रोगों को समझने एवं उनकी चिकित्सा के लिए भी त्रिदोषों को समझना बहुत आवश्यक है। इन तीनों दोषों के सम होने से ही शरीर स्वस्थ रहना संभव है। परन्तु जब इनकी सम अवस्था में किसी प्रकार का विकार या असंतुलन आ जाता है तो रोग जन्म ले लेता है।

Q:- त्रिदोष सिद्धांत क्या है?

Ans:-  त्रिदोष का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है आयुर्वेद में। वात, पित्त और कफ जब कुपित हो जाते हैं तो शरीर असंतुलित और रोग बढ़ने लगते हैं। इसलिए इन तीनों दोषों का सम रहना ही स्वस्थ होने की पहचान है। 

त्रिदोष को समझने के लिये पंचमहाभूत, वात,पित्त,और कफ के बारे मे जानना होगा. इसके लिए अगले लेख को अवश्य पढें.

धन्यवाद!