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गुरुवार, 10 नवंबर 2022

बालों के 4 बहतरीन कुदरत के बनाये मित्र और 4दुश्मन.in hindi.

 बालों के 4 बहतरीन कुदरत के बनाये मित्र और 4दुश्मन.in hindi.



By:- Dr.Virender Madhan

बालों के 4 मित्र

भृंगराज:-

भृंगराज एक आयुर्वेदिक जडी है इसका स्वरस(रस) बालों में लगाने से काले हो जाते है।इसका तैल लगाने से बालों के अधिकतर रोग ठीक हो जाते है बाल घने व लम्बे हो जाते है।

बेर के पत्ते:-

बेर के पत्तों का पेस्ट बालों पर लगाने से बाल लम्बे और घने होते है इसका प्रयोग बहुत पहले से ही होता रहा है।

त्रिफला :- 

त्रिफला यानि तीन रसायन फल हरड,बहेड़ा, आंवला,तीनों का मिश्रण प्रयोग में लाया जाता है चूर्ण के रुप मे खाने के लिये,इसका क्वाथ (काढा)पीने व बालों मे लगाने के लिए तथा त्रिफले का तेल बनाकर बालों में लगाने के लिए प्रयोग में करते है इसे बालों का हर रोग दूर होता है।

मेथी:-

मेथी के दानों को रात मे पानी में भिगोकर रखते है तथा सवेरे इसके पानी से बालों को धोया जाता है या इसम अन्य औषधि मिलाकर पेस्ट बनाकर बालों में लगाते है इससे बालों मोटे और मजबूत हो जाते है।झडना बंद हो जाते है।

बालों के 4 दूश्मन



केमिकल शैम्पू:-

केमिकल शैम्पू से बाल कमजोर हो जाते है तथा गिरने शुरू हो जाते है ये शैम्पू सिर की त्वचा के लिऐ भी बहुत हानि पहुंचाते है।

बालों मे गंदगी:-

बालों मे गंदगी होने से सिर की त्वचा व बालों के रोग होने लगते है तथा बालों में डंड्रफ,खालित्य,पालित्य आदि रोग हो जाते है बालों मे गंदगी होना बालों के दूश्मन पालना है।

स्ट्रेस:-

स्ट्रेस,चिंता लेना आदि मानसिक रोगो मे भी गंजापन, बालों का झडना,बालों का सफेद होना उत्पन्न हो जाते है।आजकल फास्ट दौडती दुनिया मे हर कोई स्ट्रेस लिये घुम रहा है जिसके कारण अनेक रोग उत्पन्न हो रहे हैं।

जंकफूड:-

जंकफूड भी रोगो का सबसे बड़ा कारण बन गया है इसके चलते बालों की समस्या के साथ साथ हजारों रोग पनप जाते है आजकल नई जनरेशन के बच्चे जंकफूड, फास्टफूड के पागलपन के स्तर पर दिवाने है।

इसलिए प्रोब्लम आजकल अधिक विकराल रूप ले रही है। 

धन्यवाद!

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

 आलू के गुण दोष क्या है? हिंदी में.



आलू एक सब्जी है।

आलू से अनेक खाने की सामग्री बनती है जैसे बड़ापाव, चाट, आलू भरी कचौड़ी, चिप्स, पापड़, फ्रेंचफ्राइस, समोसा, टिक्की, चोखा आदि। आलू को अन्य सब्जियों के साथ मिला कर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। उत्तर पूर्वी भारत में आलू का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। आलू एक ऐसी सब्जी है जो लगभग हर हरी सब्जियों के साथ मिला कर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जा सकती है।

#आलू के अनोखे गुण

 आलू भारत में ज़्यादातर लोगों की पसंदीदा सब्जी है। आलू में कुछ उपयोगी गुण भी हैं। 

- आलू में विटामिन सी, बी कॉम्पलेक्स तथा आयरन , कैल्शियम, मैंगनीज, फास्फोरस तत्त्व होते हैं। इसके अलावा आलू में कई औषधीय गुण होने के साथ सौंदर्यवर्धक गुण भी है जैसे यदि त्वचा का कोई भाग जल जाता है उस पर कच्चा आलू का पेस्ट लगाते है। 

#आलू में कौन कौन से गुण होते हैं?



- आलू क्षारीय होता है, इसलिए यह शरीर में क्षारों की मात्रा बढ़ाने मे सहायक होता है। 

- यह शरीर में ऐसीडोसिस भी नहीं होने देता। 

- आलू में सोडा, पोटाश और विटामिन 'ए' तथा 'डी' भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। आलू का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्व विटामिन सी है।

#आलू की तासीर कैसी होती है?



- आलू शीतल होता है. फिर भी इसका सेवन सर्दी और गर्मी दोनों में किया जा सकता है. यह शरीर को तत्काल बल देता है।

- आलू एक हाई ग्लिसेमिक खाद्य पदार्थ है। 

- इसका पाचन जल्दी होता है और ब्लड शुगर के बढ़ने का खतरा होता है। इसलिए मधुमेह के मरीजों को इसका सेवन न करने की सलाह दी जाती है। 

- आलू का अधिक सेवन भी डायरिया का एक कारण बन सकता है।

- आलू के अधिक प्रयोग से मोटापा बढ़ता है।

-फ्राईड किया हुआ आलू गैस बढाता है।

- यह वात रोगी के लिए हानिकारक हो सकता है।

अधिक जानकारी के लिए अपने चिकित्सक से सलाह जरूर करें।

डा०वीरेंद्र मढान.

रविवार, 6 नवंबर 2022

दुध कौन पी सकता है कौन नही?किस रोग मे कैसे पी सकते है दुध?

 दुध कौन पी सकता है कौन नही?किस रोग मे कैसे पी सकते है दुध?



दुग्ध ज्ञान

By:- Dr.Virender Madhan.

प्रश्न :- कौन कौन रोगी किस प्रकार से दुध पी सकता है।

उत्तर:- ऋषि वाग्भट्ट ने अष्टांग संग्रह मे बताया है कि-

जिस रोगी को दुध सात्म्य है जिससे दुध पीने की आदत है वह रोगी दुध पीये।

-जिस रोगी का कफ क्षीण हो गया है।

-जो रोगी दाह -प्यास से पीडित हो - अथवा

-पित्त-वात से पीडित हो ऐसे रोगी को दुध पी चाहिए।

अतिसार मे भी दूध पथ्य है अर्थात पीने चाहिए।

-जिसने लंघन व उपवास बहुत किये हो रूक्षता हो उन्हें यह दुध जीवन देने वाला होता है।

- रोगी को रोगो के अनुसार औषधि द्रव्यों के साथ सिद्ध कर के दुध पिलाया जाता है।

प्रश्न:- दुध को सिद्ध करना किसे कहते है?

उत्तर :- श्लोक ४४-४५ मे संस्कृत दुध (सिध्द) का वर्णन है।

जब दुध मे सौठ ,खजुर, द्राक्षा(मुन्नका),शर्करा, धी,आदि को पकाया जाता है उस तैयार दुध को सिद्ध दूध कहते है।

#प्रश्न:-ज्वर हो तो किस प्रकार दूध दिया जाता है?

उत्तर:- दुध को उबालकर ठंडा करके मधु मिलाकर दुध ज्वर के रोगी को दे सकते है(गर्म मे नही) 

--द्राक्षा, बला, मुलहठी, सारिवा, पिपली, चंदन इन सबके साथ चारगुना पानी दुध मे मिलाकर पाते है सारा पानी उठने के बाद जो दुध तैयार होता है वह प्यास,दाह और ज्वरनाशक होता है।

इसमे पीते समय शर्करा, मधु आदि मिला कर पी सकते है।

-बिल्वादि पंचमूलसे सिद्ध दुध 

ज्वर, कास,श्वास, सिरशूल,पार्श्वशूल और दीर्धकालीन ज्वर ठीक हो जाता है।

- एरण्ड मूल, या कच्चे बेल से सिद्ध दुध शरीर में रुका हुआ मल तथा वातज्वर ठीक हो जाते है। प्यास, शुल, और प्रवाहिका वाले ज्वर से ठीक हो जाता है।

#अन्य सिद्ध दुध और रोग-

-सौठ,बला,कटेहरी, गोक्षुरु, गुड से सिद्ध दूध से - शोफ,मल-मूत्र और वायु के विबन्ध, ज्वर,एवं कास (खांसी)का नाश हो जाता है।

-पुनर्नवा से सिद्ध दुध से ज्वर, शोथ(Inflammation) नष्ट हो जाते है।

- शीशम काष्ठ से सिद्ध दुध से ज्वर ठीक हो जाता है।

इस प्रकार यह सब आयुर्वेदिक ग्रंथों में उपलब्ध है। 

अधिक जानकारी के लिये और किसी भी रोग मे सिद्ध दुध पीने से पहले एक बार किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लेनी चाहिए।

मेरे. अनुभव अनुसार आयुर्वेद में बताये गये ये सब प्रयोग फल दायक है।कोई भी सिद्ध दुध सब को समान प्रभाव नही करता है क्योंकि सब के दोष,आयु,रोगअवस्था,बल-अबल आदि से अलग-अलग होते है सिद्ध दुध या कोई भी औषधि देने से पहले दोष, प्रकृति, रोग स्थान आदि का विचार करके प्रयोग करना. चाहिए इसीलिए चिकित्सक की देखरेख जरूरी है।

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान.

शनिवार, 5 नवंबर 2022

क्यूँ होता है कमर दर्द ? In hindi.

 क्यूँ होता है कमर दर्द ? In hindi.



#कमर दर्द की घरेलू व आयुर्वेदिक चिकित्सा क्या है?

By:- Dr.VirenderMadhan.

#कमर दर्द|back pain|kamar dard.

कारण:-

 तनाव के कारण मांसपेशियां अकड़ जाती हैं। ऐसे में पीठ की मांसपेशियों के अकड़ने पर  कमर यानि पीठ के नीचले हिस्से में दर्द होता है। 

- ज्यादा वजन उठाने के कारण भी कमर दर्द में शिकायत हो सकती है. 

- वातरोग- आर्थराइटिस या गठिया रोग है तो कमर में दर्द या सूजन से परेशान हो सकते है।

- अनिद्रा के कारण भी कमर में दर्द की शिकायत हो सकती है.

- कई गंभीर बीमारियों से होने वाले दर्द के कारण पीठ मे दर्द अनुभव होता है, जैसे अपेंडिक्स, पित्त की पथरी और  हृदय रोग आदि मे.

#कमर दर्द के आयुर्वेदिक उपाय-

- एरण्ड पाक 10 ग्राम,सवेरे शाम दूध से लें।

- एरण्ड के बीज 5 ग्राम,200 ग्राम दूध मे उबालकर सेवन करने से लाभ मिलता है।

- सुरंजन सीरी,असगंध, सौठ,समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना ले. 3-3 ग्राम सवेरे शाम गर्म  पानी से लेने से आराम मिलता है।

- विधारा चूर्ण 6-6 ग्राम सवेरे शाम गुनगुने दूध से कमर दर्द दूर होता है।

- होलो,अजवाइन, कलौंजी, मेथी सब को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण करें। 4 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से कमर दर्द, जोडों का दर्द, सर्दी मे आराम हो जाता है।

- 24 ग्राम अखरोट को गिरी रोज खाने से कमर,पीठदर्द ठीक हो जाता है।

- तारपीन के तैल से मालिस करने से कमर दर्द में लाभ मिलता है।

- चोबचीनी को रात्रि में गर्म पानी में भिगोकर रखें सवेरे मसल कर, छानकर उसके पानी को पीने से दर्द में लाभ मिलता है।यह गठिया, वाय, ग्रधसी  मे मे कारगर है।

#कमर दर्द की आयुर्वेदिक शास्त्रीय औषधियाँ:-

-योगराज गुग्गुल 2गोली,

त्रयोदशांग गुग्गुल 2गोली,

सवेरे शाम गुनगुने पानी से लेने से कमर मे शीध्र आराम मिलता है

-कैशोर गुग्गुल 2गोली,

गोक्षुरादि गुग्गुल 2 गोली सवेरे शाम गुनगुने पानी से लेने से दर्द ठीक हो जाता है।

दर्द वाले स्थान पर -

नारायण तैल,

महाविषगर्भ तैल,

या पंचगुणतैल की मालिस करनी चाहिए।

** किसी भी चिकित्सा को करने से पहले अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर करें,

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान.

बुधवार, 2 नवंबर 2022

कब्ज Constipation किसे कहते है?हिंदी में.

 #कब्ज Constipation किसे कहते है?हिंदी में.

What is called Constipation?In hindi.



#क्यों होता है कब्ज?

Why does constipation happen?

#मलावरोध होने से क्या नुकसान होता है?

What are the disadvantages of having constipation?

कब्ज|मलावरोध|Constipation|बद्धकोष्ठता

* कब्ज Constipation किसे कहते है?

कब्ज पाचन तंत्र की वह स्थिति हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में परेशानी होती है। मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, 

*क्यों होता है कब्ज?

(कब्ज होने के कारण )

- मैदे से बने एवं तले हुए  -मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन करना।

- समय पर भोजन ना करना।

- पानी कम पीना या तरल पदार्थों का सेवन कम करना।

- रात में देर से भोजन करना।

- अधिक मात्रा में चाय, कॉफी, तंबाकू या सिगरेट आदि का सेवन करना।

- देर रात तक जागने की आदत।

- भोजन में रेशेदार आहार की कमी होना।

* कब्ज के नुकसान — Side Effects of Constipation.

- पेट में भारीपन व जलन होना

- भूख न लगना

- उलटी होना

- छाती में जलन होना

- बवासीर, भगंदर, फिशर रोग होने की संभावना बढ़ जाना

- आंतों में जख्म व सूजन हो जाना

#कब्ज के आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय:-

- त्रिफला, काली हरड,सनाय, गुलाब के फुल, मुन्नका, बादाम गिरी, काला दाना, बनफशा, 

सभी 25-25 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें।रात्रि में सोते समय 6 ग्राम दवा गर्म दूध के साथ फांक लें।प्रातःकाल मे पेट साफ हो जाता है।कुछ दिनो तक लेने से कब्ज समूल नष्ट हो जाती है।

- प्रतिदिन 10-15 मुन्नका दूध मे उबालकर लेने से कब्ज ठीक हो जाती है।

-- एक काबली हरड (पीली हरड) रात्रि में पानी में भिगोकर रख दें प्रातः हरड को थोड़ा सा पानी मे घीसकर पी जाये (एक हरड 6-7 दिनों तक पर्याप्त होती है) इससे कब्ज दूर हो जाती है।इसका प्रयोग एक माह तक करना चाहिए।

-20 ग्राम केस्ट्रोल आईल मिश्री से मीठे दूध मे पीने से मलावरोध ठीक हो जाता है।

#कब्ज के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा?

- दशमूल क्वाथ,

- त्रिफला,

- वैश्वनार चूर्ण,

- पंचसकार चूर्ण,

- कब्जहर चूर्ण,

- हिंगु त्रिगुणा तेल,

- अभयारिष्ट और

- इच्छाभेदी रस शामिल हैं. 

*सावधानी:-

व्यक्ति की प्रकृति और कारण के आधार पर चिकित्सा पद्धति चुनी जाती है. उचित औषधि और रोग के निदान के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए.

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान.

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

आयुर्वेदिक रसोन सुरा क्या है?In hindi.

 आयुर्वेदिक रसोन सुरा क्या है?In hindi.



रसोन सुरा एक वात रोगों की उत्तम औषधि है।

By:-Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेद में लहसुन को रसोन कहते है यह एक रसायन होता है।इसकी सुरा बनाकर रोगी के लिऐ बहुत तेज औषधि का काम करती है। आयुर्वेद के अनुसार बनाई गई सुरा मे सेल्फ जरनेटीड ऐल्कोहल बनती है जो मात्रा के अनुसार देने से शरीर को किसी प्रकार की हानि नही होती है।

#भैषज्य रत्नावली के अनुसार रसोन सूरा बनाने की विधि:-

सामग्री व विधि:-

2- 5 लिटर बक्कल नामक सूरा,

2- निस्तुष लहसुन-2500 ग्राम,

3- पीपल- 12ग्राम,

4-पीपलामूल- 12ग्राम,

5- जीरा- 12ग्राम,

6- कूठ- 12ग्राम,

7- चित्रक- 12ग्राम,

8- सौठ- 12ग्राम,

9- मरिच- 12ग्राम,

10 - चव्य - 12ग्राम,

इन सब को कुट पीसकर लहसुन, सुरा सहित एक बडे बर्तन कांच या चीनीमिट्टी के बर्तन में भर लें।बर्तन का मुंह अच्छी तरह से बन्द कर लें।इस बर्तन को 10- 15 दिन रख दे देते है ।बाद मे कपडे से छानकर किसी सुरक्षित कांच के बर्तन मे रख ले।

रोगी को 10-10 मि०ली० खाने के खाने के बाद बराबर पानी मिलाकर सवेरे शाम दे दे।

उपयोग:- 

रसोन सूरा-वातरोग, आमवात, कृमि, क्षय, अनाह, गुल्मरोग, अर्श, प्लीहारोग, 

प्रमेह, और पाण्डू रोगो को नष्ट कर देता है।यह अग्निबर्द्धक है।

मात्रा:- 10-10 मि०ली०,

अनुपान:-जल से

गंध:- मधगंधी

स्वाद:-तीक्ष्ण,

उपयोग:- आमवात, समस्त वातरोग।

ग्रंथ:- भैषज्य रत्नावली।

डा०वीरेंद्र मढान.

गुरु आयुर्वेद फरीदाबाद,

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.

 गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.



#DrVirenderMadhan.

#गुल्मरोग|वायुका गोला,

गुल्मरोग प्रतिकूल आहार-विहार के कारण वायु के प्रदूषित होने के कारण पेट में गांठ के समान गोला सा बन जाता है ।इसे वायु का गोला भी कहते है।

इसके लिए  रोगी को दीपन,स्निग्ध, अनुलोमन, लंघन, एवं बृंहण (पुष्टिकारक)पदार्थ का सेवन लाभकारी होता है।

गुल्म रोगी के शारिरिक स्रोतों का स्निग्धीकरण से कोमल होने , प्रचण्ड वात को दबाने तथा विबन्ध तोडने के पश्चात स्वेदन कर्म लाभप्रद सिद्ध होता है।

तदनंतर देशकाल और अवस्था अनुसार स्नेहन,सेंक, निरुहबस्ति और आनुवासन वस्तिकर्म के द्वारा उपचार करें।

इसके बाद मंद उष्ण उपनाहन कर्म करने तथा सान्त्वना देने चाहिए।फिर आवश्यकता अनुसार रक्तमोक्षण तथा भुजा क मध्य भाग में शिराभेदन ,स्वेदन, तथा वायु का अनुलोमन करना चाहिए।

इस प्रकार सभी गुल्म जड से समाप्त हो जाते है।

#रावणसंहिता के अनुसार गुल्मरोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा,

- बिरौजा नीबूं का रस, हींग, अनार,विड्नमक, तथा सेंधानमक, इन्हें मधमण्ड के सार अथवा 

- अरण्डी के तैल को मधमण्ड या दूध के साथ पान करने से वातज गुल्म समूल नष्ट हो जाता है।

- सज्जीखार और केतकीखार (क्षार ) को कुठ के साथ अरण्डी तैल मे पान करने से वातज गुल्म का नाश हो जाता है।

- वातज गुल्म के चिकित्सा काल मे कफ प्रकोप होने पर उष्ण व उष्ण पदार्थों के मिश्रित चूर्ण आदि का प्रयोग करना चाहिए। पित्त की प्रकोप अवस्था में विरेचन देना चाहिए।



- काकोल्यादिगण , बकायन,तथा वासादि द्रव्यों से पकाये तैल पान से स्निग्धत पैत्तिक गुल्मी मे विरेचन के बाद बस्तिकर्म का प्रयोग उपयोगी है।

-जब रोगी को जलन, शूल, वेदना, विक्षोभ, निद्रानाश, अरोचकता तथा ज्वरादि के लक्षण हो उस समय उपनाहन कर्म के द्वारा परिपक्व बनाना चाहिए।इसके बाद भेदन, लेपन, आदि कर्म करे. बिना भेदन ही दोष के ऊध्वगामी या अधोगामी होने पर बारह दिनों तक शोधन कर्म न करके उत्पन्न लक्षणो (दोष)का शमन करत रहे।

-पैतिक गुल्म मे लंघन, लेखन, और स्वेदन कर्म को पुर्ण करें। तथा अग्निबर्द्धन ,भूखे होने पर त्रिकटु, जवाखार कल्क मिला कर पकाया हुआ घृतका पान कराये।

अथवा वचा 2भाग, हरड 3भाग, विड्नमक 6 भाग, सौंठ 4 भाग, हींग 1 भागकुडा  8भाग, चीता5 भाग,तथा अजवायन 4 भाग,इन का चूर्ण खाने से,अफारा, औदरिक रोग,शूल, बवासीर, साँस, खाँसी,और ग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।

वातगुल्म प्रयोग को कफगुल्म मे भी अपनाना चाहिए।

अथवा पंचमूल मे पकाये जल, पुरानी मध या महुए के फुलों से निर्मित मध का सेवन करना चाहिए। अथवा

- मठ्ठे मे अजवाइन चूर्ण विड्नमक मिलाकर पीना चाहिये इससे क्षुधाग्नि बढती है। मल,मूत्र और वायु का अनुलोमन होता है । ईति.

#डा०वीरेंद्र मढान.