Guru Ayurveda

बुधवार, 14 जून 2023

वात रोगों की पहचान क्या

 

वात रोगों की पहचान क्या है

आयुर्वेदिक वात रोगों की पहचान:–

#वातरोगों की पहचान कैसे करें?

आयुर्वेद में वात दोष एक महत्वपूर्ण रोगी दोष है जिसकी पहचान करने के लिए कुछ लक्षणों का ध्यान दिया जाता है। वात दोष को विभिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक लक्षणों के माध्यम से पहचाना जा सकता है। ये लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:–


शारीरिक लक्षण:–

*ठंडी और सूखी त्वचा

*शारीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द और सूजन

*आवाज में रुकावट या खराबी

*खुजली और त्वचा में लाल दाने

* स्वेदन की कमी या बढ़ोतरी

* जोड़ों में दर्द और स्थिरता की कमी

#मानसिक लक्षण:

* चिंता, उत्पीड़न, अवसाद या तनाव

* नींद की कमी या   *अनियमितता

* मन में चंचलता और अवस्थाएं बदलना

* अविरत और अस्थिर मानसिक गतिविधियां

* विस्तारित मन की अवस्था और चिंता से निपटने की क्षमता की कमी

* वात दोष के संकेतों की समय पर पहचान करने के लिए आपको एक प्रशिक्षित आयुर्वेदिक वैद्य की सलाह लेनी चाहिए।

धन्यवाद!

डा०वीरेन्द्रमढान,

सोमवार, 12 जून 2023

कैल्शियम युक्त आहार की सूची

 

कैल्शियम युक्त आहार की सूची

<कैल्शियम बढाने वाले फ्रूट>

यदि आप कैल्शियम युक्त आहार की सूची जानना चाहते हैं, तो निम्नलिखित खाद्य पदार्थों में कैल्शियम की मात्रा प्राप्त की जा सकती है:–

>>दूध और दूध उत्पाद:–


 दूध, दही, पनीर, छाछ, दूध का पाउडर, केसर, चीज़, लासी, बटरमिल्क, आदि।

>>सब्जियां:–

 सरसों का साग, पालक, बथुआ, ब्रोकोली, फेनेल, लौकी, टमाटर, हरी मिर्च, गोभी, मटर, बैंगन, तोरी, आदि।

>>अंडे:–

 अंडे भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत होते हैं।

>>दालें:–

 चना, मसूर दाल, तूर दाल, मूंग दाल, उड़द दाल, राजमा, चोले, आदि।

>>द्रव्यपान:–

 खजूर का दूध, बादाम का दूध, नारियल पानी, शाकाहारी दूध, सोया मिल्क, आदि।

>>नट्स और बीज:–

 बादाम, अखरोट, चिया बीज, सेसम बीज, खजूर, पिस्ता, कद्दू के बीज, आदि।

>>अन्य खाद्य पदार्थ:–

<कैल्शियम बढाने वाले फ्रूट>

 संतरा, केला, अमरूद, आंवला, अंगूर, आम, खरबूजा, अनार, टिंडा, आदि।


**यह सूची केवल सामान्य दिशा-निर्देश है और अलग-अलग स्रोतों की कैल्शियम मात्रा भिन्न हो सकती है। कैल्शियम की अधिक मात्रा उपलब्ध कराने के लिए, आप विविध पदार्थों को संयोजित भोजन रूप में सम्मिलित कर सकते हैं। आपके आहार में कैल्शियम की आवश्यकता के अनुसार आप डेयरी उत्पाद, ग्रीन लीफी green leafy, वनस्पतियां, फल, बीज, अंडे आदि का सेवन कर सकते हैं।


आपके चिकित्सक के साथ परामर्श करके अपने आहार में कैल्शियम की संतुलित मात्रा को निर्धारित करने के लिए सभी विकल्पों को सम्मिलित करें। वे आपके स्वास्थ्य, आयु, रोगों और विशेष परिस्थितियों के आधार पर आपको सटीक मार्गदर्शन प्रदान कर सकेंगे।

धन्यवाद!

डा०वीरेन्द्रमढान,

शनिवार, 10 जून 2023

नाक बंद रहने के 5 कारण और नाक बंद होने पर उपाय क्या करें

 

#नाक बंद रहने के 5 कारण

और नाक बंद होने पर उपाय क्या करें?

यहाँ पांच मुख्य कारण दिए गए हैं,

#नाक बंद क्यों होता है?

1- सामान्य सर्दी जुकाम:–

 सर्दी जुकाम के दौरान नाक के मुख्य रोगाणुओं से नाक में संक्रमण होता है जिससे नाक बंद हो सकती है। इसमें नाक की खांसी, ज्यादा मूँदना और पानी बहना शामिल हो सकते हैं।

2– नजला:–

 नजला या साइनसिटिस, नाक में संक्रमण होता है जिससे नाक बंद हो सकती है। इसमें नाक में सूजन, दर्द, मुँह से बदबू, माथे की और आंखों की दर पाए जा सकते हैं।

3– नाक में अतिरिक्त स्राव:–

कभी-कभी नाक में बंदी हुई नाक द्वारा नाक की तरफ से अतिरिक्त स्राव हो सकता है। इसे पोस्टनासल ड्रिप कहा जाता है और इसका मुख्य कारण गले में संक्रमण, एलर्जी, साइनसिटिस या अन्य नाक की समस्याएं हो सकती हैं।

4–अलर्जी:–

 जैसे कि फूलों, धूल, बाल, खाने के तत्व, पशुओं की बाल आदि के प्रति अलर्जी हो सकती है और इससे नाक के ऊपरी भाग में सूजन और बंद रहती है,

5–नाक में गांठें:–

 कभी-कभी नाक के अंदर में गांठें बन जाती हैं, जो नाक को बंद कर सकती हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे नाक के पश्चात्तल अंगों की समस्याएं, नाक के प्रवाह में रुकावट या नाक में अव्यवस्था के कारण गांठों का उत्पन्न होना। ये गांठें नाक के बंद होने का एक मुख्य कारण हो सकती हैं।

ध्यान दें कि ये सामान्य कारण हैं और हर व्यक्ति की स्थिति अलग हो सकती है। अगर आपको नाक बंद रहने की समस्या है, तो आपको अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए ताकि उन्हें आपकी स्थिति का ठीक से मूल्यांकन करके उचित उपचार सुझा सकें।

#नाक बंद होने पर उपाय ?

[नाक बंद रहने के 5 उपाय]

नाक बंद रहने की समस्या काफी आम होती है और यह अनुकरणीय है। यह आपको असहज महसूस कराता है और साँस लेने में परेशानी पैदा कर सकता है। नाक बंद रहने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे नजला, साइनसिटिस, एलर्जी, वायरल इन्फेक्शन, नाक में खुजली, नाक की हड्डी में विकार आदि।

अब यहां कुछ उपाय हैं जो आपकी बंद नाक को सुखाने और सांस लेने में आपकी मदद कर सकते हैं,

** गर्म पानी और नमक का इस्तेमाल:–

 एक गिलास गर्म पानी में आधा चम्मच नमक मिलाएं और इस मिश्रण को नाक में डालकर धीरे से धोएं। यह नाक की जमी हुई मल को निकालने में मदद कर सकता है।

** नासिका स्नान (नेती ):–

 नेती एक प्रकार की जलक्रिया होती है जिसे नाक में उत्तेजना प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल नाक के उपास्थि और गले की सफाई के लिए किया जाता है।

**  गर्म भाप:–

 नाक खोलने के लिए, आप गर्म पानी के एक बर्तन में पानी गर्म करें और उसके बाद अपने चेहरे को उस पानी के ऊपर झुकाकर धीरे से सांस लें। इससे गर्म पानी की धुंधली गरमी आपकी नाक में पहुंचेगी और जमे हुए संक्रमण को कम करने में मदद मिलेगी।

** उपयुक्त दवाओं का उपयोग करें:–

 अगर नाक बंद होने का कारण एलर्जी, साइनसिटिस या नजला है, तो आपके चिकित्सक द्वारा सलाह लेकर दवाओं का सेवन करें। यह आपकी नाक के बंद होने को कम करने में मदद करेगी।

**आपातकालीन उपाय:– 

अगर आपकी नाक बंद हो रही है और आप तत्परता से ठीक होना चाहते हैं, तो कुछ आपातकालीन उपाय आजमा सकते हैं। आप मसूर दाल और शहद का मिश्रण बना सकते हैं और इसे रात को सोते समय नाक में लगा सकते हैं। यह आपकी नाक को सुखाने और खोलने में मदद कर सकता है।


यदि आपकी बंद नाक लंबे समय तक जारी रहती है या यह समस्या नियमित रूप से होती है, तो आपको चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। वे आपकी विशेष स्थिति के आधार पर उपयुक्त उपचार प्रदान कर सकते हैं।

धन्यवाद!

डा०वीरेन्द्रमढान,

शुक्रवार, 9 जून 2023

कैल्शियम की कमी के 7 रोग,

 

कैल्शियम की कमी के 7 रोग,

कैल्शियम की कमी के 7 रोगों के नाम

कैल्शियम की कमी शरीर में कैल्शियम के स्तर का कम हो जाने को दिखाती है। यह कमी विभिन्न रोगों के लक्षणों में उभर सकती है।

 यह सात ऐसे रोग जिनके संबंध में कैल्शियम की कमी होती है:-

1– ओस्टियोपोरोजिस (Osteoporosis):–

 यह एक हड्डी की कमजोरी की स्थिति है जहां हड्डियों का कैल्शियम स्तर कम हो जाता है, जिसके कारण हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं।

2– हाइपोकैल्सीमिया (Hypocalcemia):–

 यह स्थिति तब होती है जब शरीर में कैल्शियम की मात्रा अत्यंत कम हो जाती है। इसके लक्षण में छाती में दर्द, अधिक थकान, न्यूरोमस्कुलर गतिविधि में कमी, तंत्रिका नमी, और दर्द हो सकते हैं।

3– टेटनस (Tetany):–

  यह एक न्यूरोमस्कुलर नामक बीमारी है जो कैल्शियम की कमी के कारण हो सकती है। इसमें सिरदर्द, मांसपेशियों के ऐंठन, अचानक गांठों का उभयान, और उंगलियों और उँगलियों का उभारना शामिल हो सकता है।

4–ऊतकर्ष (Tetany):–  

   ऊतकर्ष एक न्यूरोमस्कुलर बोलती बीमारी है जिसमें कैल्शियम की कमी होती है। यह सामान्यतः पराथायरॉयड ग्रंथि की समस्या के कारण होता है, जिससे पराथामूलक हार्मोन का निर्माण और उद्दीपन मार्गनिर्देशित होता है। इससे संबंधित लक्षणों में माथे का दर्द, अकारण मांसपेशियों के स्पास्म, उंगलियों और जीभ की टिंगलिंग या झनझनाहट शामिल हो सकती है।

5–रिकेट्स (Rickets): –

  रिकेट्स एक बच्चों की बीमारी है जो कैल्शियम, विटामिन डी और फॉस्फेट की कमी के कारण होती है। 

*यह बालों की कमजोरी, हड्डियों के मुड़ जाने का कारण बनती है, जिससे संकुचित और रुका हुआ शरीरिक विकास होता है।

6–हाइपोपराथायरॉयडिज़म (Hypoparathyroidism):–

   यह एक ग्रंथि विकार है जिसमें पराथायरॉयड ग्रंथियों की कार्यशीलता में कमी होती है। यह कैल्शियम की कमी के कारण हो सकता है और इससे टेटनस, तंत्रिका नमी, दिल की धड़कन की कमी होना,

7–हाइपोकैल्सीमिक एनेफलोपैथी (Hypocalcemic Encephalopathy):–

     यह एक गंभीर स्थिति है जो कैल्शियम की कमी के कारण होती है और मस्तिष्क पर अस्पष्ट प्रभाव डालती है। इसमें डिज़िनेशिया, एपिलेप्सीज़ी, मांसपेशियों की कमजोरी, अस्थायी या स्थायी प्रमाणित न्यूरोलॉजिक विकार और मस्तिष्कीय विफलता शामिल हो सकती है।

* कैल्शियम की कमी के इन रोगों के लक्षण और प्रभाव को जानना महत्वपूर्ण है, और यदि आपको ऐसे किसी लक्षण का सामना होता है, तो आपको चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। 

#कैल्शियम युक्त भोजनों के नाम

कैल्शियम युक्त 7 भोजन के नाम

कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो हड्डियों, दांतों, नसों, और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। 


यहां कुछ कैल्शियम युक्त 7 भोजनों के नाम दिए जाते हैं:–

1–दूध और दूध उत्पाद:–

 दूध, दही, छाछ, चीज़, पनीर, घी आदि कैल्शियम समृद्ध आहार हैं।

2–सेसम सीड्स(Sesame Seeds) :–

 सेसम सीड्स कैल्शियम का अच्छा स्रोत हैं। इन्हें सलाद, रोटी, या व्यंजनों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

3–गोंद कतीरा(gond katira):–

  कैल्शियम का अच्छा स्रोत हैं। इसे दूध, पानी, या खाने में प्रयोग किया जा सकता है।

4– ब्रोकोली Broccoli:–

   यह सब्जी कैल्शियम, विटामिन C, विटामिन K, और फोलेट का अच्छा स्रोत हैं।

5–मछली:–

  सामान्यतः सभी प्रकार की मछली जैसे सालमन, सर्दीन, और मैकरेल कैल्शियम का अच्छा स्रोत होती हैं।

6–तिलहनी:–

 तिलहनी में कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन, आयरन, और विटामिन B6 भी पाए जाते हैं।

7–शीशम rosewood(सेसबानिया):-

  शीशम (सेसबानिया) एक प्रकार का पोषक गाँठीदार फली है जो कैल्शियम का अच्छा स्रोत होता है। इसे ताजा या सूखे रूप में खाया जा सकता है या इसका रस निकालकर पीया जा सकता है।

यदि आप कैल्शियम के लिए आहार चुनते हैं, तो इन भोजनों को अपनी आहार में शामिल करें। यहां दिए गए भोजन आपको स्वस्थ आहार प्रदान करेंगे और आपके शरीर की कैल्शियम आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। हालांकि, यदि आपको किसी खाद्य पदार्थ के प्रति अविश्वास हो या किसी विशेष स्वास्थ्य स्थिति हो, तो एक पेशेवर स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होगा।

धन्यवाद!

गुरुवार, 8 जून 2023

घुटनों के दर्द के कारण और इलाज in hindi.

 

#घुटनों के दर्द के कारण और इलाज in hindi.

Causes and treatment of knee pain.

#Dr.VirenderMadhan,

घुटनों के दर्द के बारे में लोगों के सवाल बहुत आम होते हैं। यहां कुछ आम सवाल और उनके उत्तर दिए गए हैं:–

#घुटनों के दर्द का कारण क्या हो सकता है?

what could be the cause of knee pain.

<घुटनों में दर्द होने के कारण>–

 घुटनों “जोड़ों में दर्द” (Joint Pain) कई कारणों से हो सकता है जैसे:-

- उम्र का बढ़ना,

- खानपान में पोषक तत्वों की कमी या फिर 

- गिरने से लगी चोट,

-कैल्शियम की कमी,

अगर आपके शरीर में प्रोटीन या कैल्शियम की कमी है तो ये परेशानी होना सम्भव है. इसके अलावा किसी तरह की 

- सूजन या संक्रमण से भी घुटनों में दर्द (Knee Pain) होने लगता है.

#घुटनों के दर्द के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:-

* अपर्याप्त ढंग से चलना, 

* अतिरिक्त वजन, 

* घुटनों के जोड़ के घाव,चोट, 

* घुटनों की संरचना में समस्या, * खिलाड़ी या व्यायाम के दौरान चोट लगना या 

* मासिक धर्म समय पर होना।

#knee joints pain है तो क्या खायें?

 कुछ आहार ऐसे हैं जो घुटनों के दर्द को कम करने में सहायता कर सकते हैं:–

*ताजे फल और सब्जियां:– 

अपनी आहार में ताजे फल और सब्जियां शामिल करें। ये आपको विटामिन सी, ए, और कारोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर करेंगे जो घुटने के दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं।

* हरी पत्तेदार सब्जियां:– 

ब्रोकोली, पालक, मेथी, और केले के पत्ते जैसी हरी पत्तेदार सब्जियां अच्छे एंटीऑक्सिडेंट्स और विटामिन के स्रोत होती हैं जो आपके घुटने के स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।

*हेल्दी फैट:–

 तरल तेलों में ऊंची मात्रा में पाए जाने वाले मोनोयूनसैचराइड और पॉलीयूनसैचराइड सेहतमंद होते हैं और घुटनों के दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसमें जैतून का तेल, कानोला तेल, अवोकाडो, और बादाम शामिल हो सकते हैं।

* अंडे:–

 अंडो में प्रोटीन, विटामिन डी, और अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं जो घुटने के दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं।

*हरी चाय:–

 हरी चाय में पाए जाने वाले फ्लावोनॉयड्स और एंटीऑक्सिडेंट्स घुटने के दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं।

* हल्दी वाला दूध

* बिना दूध की चाय अदरक पकाकर लें।

* मेवे बादाम आदि,

* प्याज, लहसुन अपने भोजन में मे शामिल करें,

#घुटनों के दर्द का इलाज क्या हो सकता है?

घुटनों के दर्द के इलाज के लिए कई तरह के उपाय हो सकते हैं। यह समाधान रोग के कारण, आपकी स्थिति और दर्द की गंभीरता पर निर्भर करेगा। कुछ सामान्य उपाय शामिल हो सकते हैं, जैसे:-

 आराम करना, ठंडे और गर्म पैक का उपयोग करना,

#घरेलू व आयुर्वेदिक उपाय:-

1-कडुवा सहंजन को तैल मे पकाकर तैल की घुटनों पर मालिस करें,

2-महानारायण तैल की मालिस करें

3–शुद्ध गुगल का प्रयोग अपने चिकित्सक से सलाह कर के प्रयोग करें,

4-महारास्नादि क्वाथ 3-3 चम्मच बराबर पानी मिलाकर पीने से आराम मिलता है।

#घुटने की ताकत बढ़ाने के लिए क्या खाना चाहिए?

- घुटने की ताकत बढ़ाने के लिए कैल्शियमयुक्त आहार लें। जैसे– दूध ,दही ,पनीर ,हरी पत्तेदार सब्जियां, पिस्ता ,बादाम जैसी चीज़ों का सेवन करें।

-अलसी (फ्लैक्स सीड ) भी कैल्शियम का भंडार होता है। रोज़ाना नियमित रूप से अलसी का सेवन करने से आपके शरीर में कैल्शियम की कमी दूर होती।

#घुटने के दर्द की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा कौन सी है?

 रास्ना,शतावरी, अश्वगंधा, अशोक, ब्राह्मी और हल्दी, शुद्ध गुग्गुल जैसी अनेक जड़ी-बूटियां स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं और इनका सेवन हर दिन किया जा सकता है

धन्यवाद!

डा०वीरेन्द्रमढान,

बुधवार, 7 जून 2023

मूसली के फायदेऔर नुकसान इन हिंदी

 

मूसली के फायदेऔर नुकसान इन हिंदी

#मुशली 

#Dr.VirenderMadhan

#मूसली का लैटिन नाम

इसका वैज्ञानिक नाम Chlorophytum Borivilianum है। मूसली मुख्य रूप से दो तरह की होती है, सफ़ेद मूसली और काली मूसली।

मूसली एक पौष्टिक औषधीय जड़ी-बूटी है जिसका उपयोग दिलाए जाने वाले फायदों के लिए किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली जड़ी-बूटी, जो भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, पोषण और स्वास्थ्य के लिए आपातकालीन मानी जाती है।

#मूसली खाने से क्या फायदा होता है?

आमतौर पर सफेद मूसली का उपयोग सेक्स संबंधी समस्याओं के लिए अधिक होता है लेकिन इसके अलावा सफेद मूसली का इस्तेमाल आर्थराइटिस, कैंसर, मधुमेह (डायबिटीज),नपुंसकता आदि रोगों के इलाज में और शारीरिक कमजोरी दूर करने में भी प्रमुखता से किया जाता है। कमजोरी दूर करने की यह सबसे प्रचलित आयुर्वेदिक औषधि है।

#कुछ मुशली के महत्वपूर्ण फायदे,

यहाँ कुछ मुशली के महत्वपूर्ण फायदे बताते हैं:–

>पौष्टिकता और ऊर्जा की पुनर्प्राप्ति:– 

 मुशली में मौजूद प्राकृतिक विटामिन, मिनरल और ऐमिनो एसिड शरीर के पोषण को बढ़ाते हैं और ऊर्जा के स्तर को उच्च करने में मदद करते हैं।


>स्तंभन शक्ति की वृद्धि:– 

मुशली में मौजूद शक्तिवर्धक गुणों के कारण, इसे पुरुषों के लिए एक प्राकृतिक यौन टॉनिक के रूप में जाना जाता है। यह पुरुषों की स्तंभन शक्ति और सेक्स ड्राइव को बढ़ाने में मदद कर सकती है।

– मुशली शारीरिक शक्ति और स्थायित्व को बढ़ाने में मदद कर सकती है। इसका नियमित सेवन करने से मांसपेशियों की मजबूती बढ़ती है, कार्यक्षमता और स्थायित्व में सुधार होता है, जिससे आपके शारीरिक प्रदर्शन में सुधार हो सकता है।

>स्त्री स्वास्थ्य का समर्थन:– 

मुशली में प्राकृतिक फाइटोएस्ट्रोजेन्स होते हैं जो महिलाओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक होते हैं। इसे महिलाओं के लिए एक प्राकृतिक रिप्रोडक्टिव टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है, जो मासिक धर्म के नियमितता, गर्भाशय स्वास्थ्य, और हॉर्मोनल बैलेंस में सुधार कर सकता है।



>प्रतिरक्षा प्रणाली को स्थायीकृत करना:–

 मुशली में मौजूद ऐंटीऑक्सिडेंट गुण आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को स्थायीकृत करने में मदद कर सकते हैं। यह आपको संक्रमणों और बीमारियों से लड़ने की क्षमता में सुधार कर सकता है।

>शारीरिक और मानसिक स्थायित्व:–

 मुशली का सेवन शारीरिक और मानसिक स्थायित्व को सुधारने में मदद कर सकता है। यह स्ट्रेस को कम करने, मानसिक तनाव को दूर करने और मनोवैज्ञानिक संतुलन को स्थायीकृत करने में मदद कर सकता है। इसके उपयोग से आपका मूड सुधार सकता है और आपको तनाव मुक्त रखने में सहायता मिल सकती है।

>आंतरिक शुद्धि:–

 मुशली में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और विषाक्तता समारोह होता है जो आपके शरीर के आंतरिक जलवायु को शुद्ध करने में मदद कर सकता है। यह आपके खून को साफ और उचित तरीके से संचालित करके आपके स्वास्थ्य को सुधार सकता है।

>वयोमय समर्थन :–

 मुशली आपके स्नायु समर्थन को बढ़ाने में मदद कर सकती है। यह मुस्कल व्यायाम के दौरान और उम्र बढ़ने के साथ होने वाले स्नायु और हड्डियों के खराब होने को रोक सकती है।


मुशली का सेवन करने के कई तरीके हैं, जैसे कि पाउडर रूप में ले सकते हैं और इसे दूध, योगर्ट, शेक, या चाय में मिलाकर सेवन कर सकते हैं।

रविवार, 4 जून 2023

आयुर्वेद के अनुसार भोजन कैसे करना चाहिए

 

आयुर्वेद के अनुसार भोजन कैसे करना चाहिए

आयुर्वेद के अनुसार खाना खाने का तरीका?

खाने के बारे में गम्भीरता से सोचिये|खाने को खानापूर्ति की तरह मत लीजिये

आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने की विधि क्या है?

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 शोध से स्पष्ट हो चुका है कि अहितकारी और असम्यक भोजन की स्थिति यह है कि एक ओर लगभग 1 बिलियन लोग भूखे हैं, और दूसरी ओर लगभग 2 बिलियन लोग बहुत अधिक किन्तु अहितकारी भोजन खा रहे हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार कुपोषण, मोटापा और अधिक वजन वजन आहार सम्बन्धी ऐसे कारक हैं जिनके कारण गैर-संचारी रोगों का बोझ बढ़ रहा है| अहितकारी आहार दुनिया में सालाना 11 मिलियन लोगों के समय-पूर्व मृत्यु का कारण है.


  आज एक बार पुनः आयुर्वेद के आहार-विषयक महावाक्य दिये जा रहे हैं| 

* केवल चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टांगहृदय में ही भोजन से संबंधित एक हज़ार से अधिक महावाक्य हैं। उनमें से कुछ बेहद उपयोगी जानकारी अद्यतन update करते हुये पुनः प्रस्तुत है| इस ज्ञान का प्रयोग कीजिये, स्वस्थ रहिये और प्रसन्न रहिये।

#भोजन क्यों करना चाहिए?

→1. आरोग्यं भोजनाधीनम् 

(काश्यपसंहिता, खि. 5.9): 

सबसे पहले तो हमें यह जान लेना चाहिये, जैसा कि महर्षि कश्यप कहते हैं, कि आरोग्य भोजन के अधीन होता है। सारा खेल भोजन का है।

 इसका अर्थ यह मानिये कि खाने को खानापूर्ति की तरह मत लीजिये।

#भोजन कब करना चाहिए?

→2. एकाशनभोजनं सुखपरिणामकराणां श्रेष्ठम् (च.सू.25.40): 

तात्पर्य यह है कि 24 घंटे में केवल एक बार भोजन तत्समय में सुख देने में श्रेष्ठ है क्योंकि यह सुखपूर्वक पच जाता है| 

→3. कालभोजनमारोग्यकराणां श्रेष्ठम् (च.सू.25.40): 

नियत काल या समय पर भोजन करना श्रेष्ठ है|

→ एककालं भवेद्देयो दुर्बलाग्निविवृद्धये| समाग्नये तथाऽऽहारो द्विकालमपि पूजितः|| (सु.उ.64.62)

एक जून की रोटी उन लोगों के लिये उत्तम है जिनकी पाचनशक्ति कमजोर है| इससे दुर्बल पाचकाग्नि की वृद्धि होती है| जिन लोगों की अग्नि सम है, उनके लिये दोनों समय का भोजन ठीक है, लेकिन आयुर्वेद की किसी संहिता में 24 घंटे में 2 बार से अधिक भोजन की सलाह नहीं दी गई है।

#भोजन में कौन सा पदार्थ उत्तम है?

→4. अन्नं वृत्तिकराणां श्रेष्ठम् (च.सू. 25.40, चयनित अंश): 

शरीर में दृढ़ता लाने वाले पदार्थों में अन्न सबसे श्रेष्ठ है| 

→5. सर्वरसाभ्यासो बलकराणाम् श्रेष्ठम् (च.सू. 25.40, चयनित अंश) 

  सभी रसों से युक्त भोजन (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय) बल करने वालों में श्रेष्ठ है| 

ध्यान दीजिये, 

नमक और चीनी कम खाइये, 

साबुत अनाज और फलों की मात्रा भोजन में बढ़ाइये| आयुर्वेद के अनुसार, मीठे में रोज केवल शहद, द्राक्षा, और अनार ही खाये जा सकते हैं, रिफाइंड चीनी, गुड़, या मिठाइयाँ तो कतई नहीं| 

*भोजन में घी से परहेज़, परन्तु रिफांइड वसा से बने आहार को दिन भर बार बार लेना, भारत को पित्त, कफ व वात रोगों की राजधानी बना रहा है। घी खाइये, घी खाने की आयुर्वेदिक सलाह सबको याद रहती है, पर यह मत भूलिये कि वही आयुर्वेद रोज व्यायाम करने की सलाह भी तो देता है। 

→6. आमलकं वयः स्थापनानां श्रेष्ठम् (च.सू. 25.40, चयनित अंश):

 वय:स्थापन या आयु-स्थिर करने वालों में आँवला श्रेष्ठ है| आँवला अकेला ऐसा द्रव्य है जो सर्वश्रेष्ठ आहार, रसायन व औषधि है|

→7.द्राक्षाखर्जूरप्रियालबदरदाडिमफल्गुपरूषकेक्षुयवषष्टिका इति दशेमानि श्रमहराणि भवन्ति (च.सू.4.16):

   स्वस्थ व्यक्ति थका हुआ हो तो मुनक्का, खजूर, चिरौंजी, बेर, अनार, अंजीर, फालसा, गन्ना, जौ और साठी-चावल श्रमहर महाकषाय का आनंद लेना चाहिये|

#भोजन से पहले क्या करें?

→8.नाप्रक्षालितपाणिपादवदनो (च.सू.8.20): 

  महर्षि चरक ने कम से कम पांच हजार साल पहले यह महत्वपूर्ण सूत्र दिया था। आचार्य वाग्भट ने भी इसे सातवीं-आठवीं शताब्दी में धौतपादकराननः (अ.हृ.सू. 8.35-38) के रूप में पुनः लिखा।

  इसका साधारण अर्थ यह है कि भोजन करने के पूर्व हाथ, पाँव व मुंह धोना आवश्यक है। इसके वैज्ञानिक महत्त्व पर बड़ी शोध हुई है। लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों द्वारा की गयी एक शोध से पता लगा है कि हाथ धोये बिना भोजन लेने की आदत के कारण अकेले डायरिया से ही सालाना 23.25 अरब डॉलर की हानि भारत को हो रही है। यह हानि भारतीय अर्थव्यवस्था के कुल जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है। हाथ धोने में लगने वाले कुल खर्च को समायोजित करने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 5.64 अरब डॉलर की बचत हो सकती है। यह हाथ धोने में संभावित लागत का 92 गुना है। 

#भोजन कब न करें?

→9. न कुत्सयन्न कुत्सितं न प्रतिकूलोपहितमन्नमाददीत (च.सू.8.20): 

  दूषित अन्न या भोजन या दुश्मन या विरोधियों द्वारा दिया गया भोजन नहीं खाना चाहिये।

→10. न नक्तं दधि भुञ्जीत (च.सू.8.20):

  रात में दही नहीं खाना चाहिये। 

#भोजन मे सबसे पहले क्या खायें?

→11. पूर्वं मधुरमश्नीयान् (सु.सू.46.460):

   भोजन में सबसे पहले मधुर या मीठे पदार्थ खाना चाहिये। इसका तात्पर्य यह है कि भोजन पूरा करने के बाद मिठाई या आइसक्रीम में हाथ मारना नुकसानदायक है। भोजन का अंत सदैव कटु, तिक्त या कषाय रस से करना चाहिये।

→12. आदौ फलानि भुञ्जीत (सु.सू.46.461): 

  फल भोजन के प्रारंभ में खाना चाहिये। भोजन के अंत में फल खाने की परंपरा अनुचित है।

→13. पिष्टान्नं नैव भुज्जीत (सु.सू.46.494): 

  पीठी वाले भोजन प्रायः नहीं लेना चाहिये। अगर बहुत भूखे हैं तो कम मात्रा में पिष्टान्न लेकर उससे दुगनी मात्रा में पानी पीना चाहिये।

#कैसा भोजन उत्तम होता है?

→14. भुक्त्वाऽपि यत् प्रार्थयते भूयस्तत् स्वादु भोजनम् (सु.सू.46.482): 

  जिस भोजन को खाने के बाद पुनः माँगा जाये, समझिये वह स्वादिष्ट है।

→15. उष्णमश्नीयात् (च.वि.1.24.1):

   उष्ण आहार करना चाहिये। परन्तु ध्यान रखिये कि बहुत गर्म भोजन से मद, दाह, प्यास, बल-हानि, चक्कर आना व पित्त-विकार उत्पन्न होते हैं।

→16. स्निग्धमश्नीयात् (च.वि.1.24.2): 

  स्निग्ध भोजन करना चाहिये। परन्तु घी में डूबे हुये तरमाल के रूप में नहीं।

* रूखा-सूखा भोजन बल, वर्ण, आदि का नाश करता है परन्तु बहुत स्निग्ध भोजन कफ, लार, दिल में बोझ, आलस्य व अरुचि उत्पन्न करता है।

→17. मात्रावदश्नीयात् (च.वि.1.24.3):

   मात्रापूर्वक भोजन करना चाहिये। भोजन आवश्यकता से कम या अधिक नहीं करना चाहिये।

→18. जीर्णेऽश्नीयात् (च.वि.1.24.4):

   पूर्व में ग्रहण किये भोजन के जीर्ण होने या पच जाने के बाद ही भोजन करना चाहिये।

#कैसा और किस दशा मे भोजन नही करना चाहिए?

→19. वीर्याविरुद्धमश्नीयात् (च.वि.1.24.5):

   वीर्य के अनुकूल भोजन करना चाहिये। अर्थात् विरुद्ध वीर्य वाले खाद्य-पदार्थों, जैसे दूध और खट्टा अचार आदि को मिलाकर नहीं खाना चाहिये।

→20. इष्टे देशे इष्टसर्वोपकरणं चाश्नीयात् (च.वि.1.24.6): 

  मन के अनुकूल स्थान और सामग्री के साथ भोजन करना चाहिये। अभीष्ट सामग्री के साथ भोजन करने से मन अच्छा रहता है।

→21. नातिद्रुतमश्नीयात् (च.वि.1.24.7):

   बहुत तेज गति या जल्दबाज़ी में भोजन नहीं करना चाहिये।

→22. नातिविलम्बितमश्नीयात् (च.वि.1.24.8): 

   अत्यंत विलम्बपूर्वक भोजन नहीं करना चाहिये।

→23. अजल्पन्नहसन् तन्मना भुञ्जीत (च.वि.1.24.9): 

 बिना बोले बिना हँसे तन्मयतापूर्वक भोजन करना चाहिये। भोजन और तन्मयता का संबंध इतना प्रगाढ़ है कि भोजन के संबंध में आयुर्वेद में दी गई सम्पूर्ण सलाह निरर्थक जा सकती है, यदि भोजन तन्मयता के साथ न किया जाये।

→24. आत्मानमभिसमीक्ष्य भुञ्जीत (च.वि.1.25):

    पूर्ण रूप से स्वयं की समीक्षा कर भोजन करना चाहिये। इसका तात्पर्य यह है कि शरीर के लिये हितकारी और अहितकारी, सुखकर और दुःखकर द्रव्यों का शरीर के परिप्रेक्ष्य में गुण-धर्म का ध्यान रखते हुये यहाँ दिये गये महावाक्यों के अनुरूप ही भोजन करने का लाभ है।

#भोजन के बाद पानी

→25. अशितश्चोदकं युक्त्या भुञ्जानश्चान्तरा पिबेत् (सु.सू.46.482):

   भोजन के पश्चात युक्तिपूर्वक पानी की मात्रा लेना चाहिये। तात्पर्य यह है कि खाने के बाद गटागट लोटा भर जल नहीं चढ़ा लेना चाहिये।

→26. हिताहितोपसंयुक्तमन्नं समशनं स्मृतम्। बहु स्तोकमकाले वा तज्ज्ञेयं विषमाशनम्।। अजीर्णे भुज्यते यत्तु तदध्यशनमुच्यते। त्रयमेतन्निहन्त्याशु बहून्व्याधीन्करोति वा।। (सु.सू.46.494): 

  हितकर और अहितकर भोजन को मिलाकर खाना (समशन), कभी अधिक कभी कम या कभी समय पर कभी असमय खाना (विषमाशन) या पहले खाये हुये भोजन के बिना पचे ही पुनः खाना (अध्यशन) शीघ्र ही अनेक बीमारियों को जन्म दे देते हैं।

→27. प्राग्भुक्ते त्वविविक्तेऽग्नौ द्विरन्नं न समाचरेत्। पूर्वभुक्ते विदग्धेऽन्ने भुञ्जानो हन्ति पावकम्। (सु.सू.46.492-493):

   सुबह खाने के बाद जब तक तेज भूख न लगे तब तक दुबारा अन्न नहीं खाना चाहिये। पहले का खाया हुआ अन्न विदग्ध हो जाता है और ऐसी दशा में फिर खाने वाला इंसान अपनी पाचकाग्नि को नष्ट कर लेता है।

→28. भुक्त्वा राजवदासीत यावदन्नक्लमो गतः। ततः पादशतं गत्वा वामपार्श्वेन संविशेत्।। (सु.सू.46.487): 

    भोजन के बाद राजा की तरह सीधा तन कर बैठना चाहिये ताकि भोजन का क्लम हो जाये। फिर सौ कदम चल कर बायें करवट लेट जाना चाहिये।

→29. आहारः प्रीणनः सद्यो बलकृद्देहधारकः। आयुस्तेजः समुत्साहस्मृत्योजोऽग्निविवर्द्धनः। (सु.चि., 24.68):

   आहार से संतुष्टि, तत्क्षण शक्ति, और संबल मिलता है, तथा आयु, तेज, उत्साह, याददाश्त, ओज, एवं पाचन में वृद्धि होती है। सन्देश यह है कि साफ़-सुथरा, प्राकृतिक और पौष्टिक भोजन शरीर, मन और आत्मा की प्रसन्नता और स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है।

→30.हिताशीस्यान्मिताशीस्यात्कालभोजीजितेन्द्रियः| पश्यन्रोगान्बहून्कष्टान्बुद्धिमान्विषमाशनात्|| (च.नि.6.11): 


    विषम भोजन से उत्पन्न तमाम अति-कष्टकारी रोगों को देखते हुये बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर काबू पाकर हिताशी (हितकारी भोजन करने वाला), मिताशी (अपनी पाचनशक्ति के अनुसार नपा-तुला भोजन करने वाला) और कालभोजी (नियत समय पर सुबह और शाम केवल दो बार भोजन करने वाला) होना चाहिये|

डा०वीरेन्द्र मढान

के

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