Guru Ayurveda

रविवार, 31 अक्तूबर 2021

दुबले_पतले है तो क्या करें? In hindi

हैल्थ_Ayurveda_Tips_घरेलू_उपचार.

 #दुबलापन>>



By:-Dr_Virender_Madhan.

#क्या है कृशता?In hindi.

कृश- दुबले व्यक्ति के नितम्ब, पेट और ग्रीवा शुष्क होते हैं। अंगुलियों के पर्व मोटे तथा शरीर पर शिराओं का जाल फैला होता है, जो स्पष्ट दिखता है। शरीर पर ऊपरी त्वचा और अस्थियाँ ही शेष दिखाई देती हैं।

#कृशता-स्थुलता से श्रेष्ठ क्यों है?

अष्टांगसंग्रह अनुसार अतिकृश होना महान रोग है,तथापि अतिस्थुलता से- अतिकृशता श्रेष्ठ है क्योंकि स्थुलता की कोई  चिकित्सा नही है। स्थुलता के लिये न तो लंघन पर्याप्त है न ही वृंहण पर्याप्त है।क्योंकि इसके लिए मेद,अग्नि और वात नाशक औषधि ही उपयुक्त है लंघन से मेद तो कम होगा लेकिन अग्नि और वात का नाश नही होता, वृंहण से वात और अग्नि शमन होता है परन्तु मेद का नाश नही होता।कृशता मधुर,स्निग्ध पदार्थो  को तृप्ति होने तक खाते रहने से कृशता नष्ट हो जाती है।इसके स्थुलता मे अत्यंत तिक्त-कटू-कषाय बहुल रुक्ष ,अन्नपान औषधियौं के लम्बे समय तक उपयोग करने से ठीक होते है।

इसलिए कृशता ,स्थुलता से श्रेष्ठ है।

#दुबलेपन के क्या क्या कारण है?

[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]

*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। 

इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है। 

इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा 

*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।

*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। 

*अधिक शोक, 

*जागरण तथा 

*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। 

*अनेक रोगों के कारण भी धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है।

*आज की टी.वी. संस्कृति, *युवक-युवतियों में यौनजनित कुप्रवृत्तियाँ (हस्तमैथुन आदि) तथा नशीले पदार्थों के सेवन से निरंतर धातुओं का क्षय होता है। 

-कृशता को 2भागो मे वर्गीकृत किया जाता है।

1. सहज कृशता 2. जन्मोत्तर कृशता


-सहज कृशता : माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है। 

गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं। 


जन्मोत्तर कृशता :-

-अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा -कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के कारण अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है। 

जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-

अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों सेदीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है। 

-शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता।

-मधुमेह,राजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में  कृशता उत्पन्न होती है। -अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है,

-जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार [हाइपरथायरायडिज्म ] कहते हैं।

#अतिकृश के लक्षण क्या है?

"शुष्क स्फिगुदरग्री्वः स्थुल पर्वासिराततः।।

उच्यतेअतिकृशस्तत्र प्रागुक्तोवृहंणोविधि।”अष्टांग संग्रह,


जिसके नितम्ब,उदय,ग्रीवा सुख जायें ,अंगुलियों के पर्व मोटे हो जाये, शरीर पर बा र ही शिराएं फैली हो, इस प्रकार के पुरुषों को अतिकृश कहते है।


#दुबलेपन से होने वाली हानियाँ क्या है?

* कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले लक्षण के अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें -अग्निमांद्य, 

-चिड़चिड़ापन, 

-मल-मूत्र का अल्प मात्रा में -विसर्जन, 

-त्वचा में रूक्षता, 

-शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, -कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं। 

-कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से रोग से पीड़ित रहता है।

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#अतिकृशता [दुबलेपन] की क्या चिकित्सा करें ?

अष्टांग संग्रह में निर्देश है कि 

"वृहंणोविधीः ।

अश्वगंधाविदार्याद्घा वृष्याश्चौषधयो हिताः ।।

अचिन्तया हर्षणेन ध्रुवं संतर्पणेन च।

स्वप्न प्रसंंगाच्च कृशो वराह इव पुष्यति।।”


वृहंण विधी बरतनी चाहिए।अश्वगंधा,विदारी,आदि मधुर वृहंण (वृष्य) औषधियां कृश के लिये हितकारी है।

-चिन्ता न करने से,

-प्रसन्न रहने से 

-सन्तर्पण लगातार करते रहने से, तथा अधिक नींद लेने से 

कृशता दूर हो जाती है।

संतर्पण : 

सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।


पंचकर्म : 

कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है। 

[कृश व्यक्ति के लिए स्वेदन व धूम्रपान वर्जित है। ]

स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।


#क्या कृशव्यक्ति के लिए रसायन एवं वाजीकरण उपयोगी है?

कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है। 

वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।


#औषधि चिकित्सा कैसे करें?


सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है। 

-अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।


#कृशता में उपयोगी औषधियाँ :-

*मुकोलिव सीरप और टेबलेट

*ग्रोविटा सीरप

*पुष्टि कैप्सूल

*लवणभास्कर चूर्ण, 

*हिंग्वाष्टक चूर्ण, 

*अग्निकुमार रस, 

*आनंदभैरव रस, 

*लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार), 

*संजीवनी वटी, 

*कुमारी आसव, 

*द्राक्षासव, 

*लोहासव, 

*भृंगराजासन, 

*द्राक्षारिष्ट, 

*अश्वगंधारिष्ट, 

*सप्तामृत लौह, 

*नवायस मंडूर, 

*आरोग्यवर्धिनी वटी, *च्यवनप्राश, 

*मसूली पाक, 

*बादाम पाक, 

*अश्वगंधा पाक, 

*शतावरी पाक, 

*लौहभस्म, 

*शंखभस्म, 

*स्वर्णभस्म, 

*अभ्रकभस्म तथा 

मालिश के लिए:-

-बला तेल, 

-महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।


भोजन में:-

 गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।


चेतावनी:-कीसी भी प्रकार की औषधि या कोई द्रव्य के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।


[Dr.Virender Madhan]


शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

सिंधाडा क्या है?सिंधाडे के अद्भुत लाभ?In hindi.

 <सिंधाडा>

Shingade 

By:-Dr.Virender Madhan.


सिंधाडे के नाम:-

Sanskritशृङ्गाटक, जलफल, त्रिकोणफल, पानीयफल;

Hindi-सिंघाड़ा, सिंहाड़ा;

Urdu-सिंघारा (Singhara);

Odia-पानीसिंगाड़ा (Panisingada);

Kannada-सगाड़े (Sagade); गुजराती-शीघ्रोड़ा (Shingoda);

Tamil-चिमकारा (Cimkhara), सिंगाराकोट्टाई (Singarakottai);

Telugu-कुब्यकम (Kubyakam);

Bengali-पानिफल (Paniphal), सिंगारा (Singara);

Panjabi-गॉनरी (Gaunri);

Marathi-सिंगाडा (Singada), सिघाड़े (Sigade), शेगाडा (Shegada);

Malayalam-करीमपोलम (Karimpolam)।

English-इण्डियन वॉटर चैस्टनट (Indian water chestnut), सिंगारा नट (Singara nut)।


#सिंघाड़े के फायदे  (Singhara Fruit Benefits and Uses in Hindi)


सिंघाड़े (Shingade fruit) में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। 

*दंतरोग में फायदेमंद सिंघाड़ा (Singhada Benefits for Tooth Diseases in Hindi)

अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन (Singada in hindi) से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान पर लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी,  सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।


*तपेदिक के लक्षणों से दिलाये राहत सिंघाड़ा (Shingade Fruit to Fight Tuberculosis in Hindi)

तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन (singada in hindi) इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। 

-समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से 

राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है।


#सिंधाडे की तासीर गर्म है या  ठंडी ?

वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल (shingade fruit) होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला, कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।

सर्दी के मौसम में एक से बढ़कर एक पौष्टिक फल और सब्जियां मिलती हैं। इन्हीं में से एक है 'सिंघाड़ा'। इसका सेवन करना सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।


[सेहत के लिए सिंधाडा पोष्टिक होता है।]

 यह एक जलीय सब्‍जी है 

पोषक तत्वों से भरपूर 'सिंघाड़ा' सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन-ए, सी, कर्बोहाईड्रेट, प्रोटीन जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे कच्चा, उबालकर या फिर हलवा बनाकर खाया जाता है। 

-वहीं सिंघाड़े का आटा व्रत में इस्तेमाल किया जाता है। 

-एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण सिंघाड़ा गले की कई समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करता है। खराश और टॉन्सिल से राहत पाने के लिए आप इसका सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा -सिंघाड़े के सेवन से अनिद्रा की समस्या भी दूर हो सकती है। 

-अस्थमा 

सर्दियों के मौसम में अस्थमा मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। नियमित रूप से सिंघाड़े का सेवन करने से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिल सकता है। 


#सिंघाड़े में शुगर होती है क्या?

-इस मौसम में सिंघाड़ा जरूर खाएं। ये मौसमी फल है जिसे खाने से हड्डियां मजबूत होंगी। डायबिटीज रोगियों के लिए सिंघाड़ा फायदेमंद होता है। ये डायबिटीज होने पर शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करता है।

-एसिडिटी, गैस और अपच

पेट से जुड़ी समस्याएं बहुत आम हैं। गैस, एसिडिटी, कब्ज और अपच लोग अक्सर परेशान रहते हैं। सिंघाड़े का सेवन पेट से जुड़ी समस्याओं में राहत दिला सकता है। 

-साथ ही इसका सेवन करने से भूख न लगने की समस्या भी दूर हो सकती है। 

- सिंघाड़ा, फटी एड़ियों को ठीक करने में कारगर है। शरीर के किसी हिस्से में दर्द या सूजन से राहत पाने के लिए भी आप इसका पेस्ट बनाकर उस जगह पर लगा सकते हैं। 

- गर्भवती महिलाओं के लिए 

गर्भवती महिलाओं के लिए सिंघाड़ा एक हेल्दी ऑप्शन है। इसे खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है। 

- मजबूत दांत और हड्डियां

सिंघाड़े का सेवन करने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं क्योंकि इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह शरीर की कमजोरी को दूर करने में भी सहायक है।


#सिंधाडा पाक [सिंधाडे का हलवा] खाने के लाभ:-

-इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है. सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है. 

- सिंघाड़ा यौन दुर्बलता को भी दूर करता है. 2-3 चम्मच सिंघाड़े का आटा खाकर गुनगुना दूध पीने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है.


सिंघाड़ा खाने के नुकसान - Singhare Ke Nuksan In Hindi

सिंघाड़ा खाने के नुकसान निम्न हैं -

जैसे सिंघाड़े खाने के फायदे हैं वैसे ही सिंघाड़े को अधिक मात्रा में सेवन करने से नुकसान भी हैं।

अधिक मात्रा में सिंघाड़े का सेवन करने से पाचन तंत्र ख़राब होता है।

अधिक मात्रा में इस के सेवन से कब्ज, पेट दर्द, आँतों की सूजन की समस्या हो सकती है। 

सिंघाड़े के सेवन के बाद कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे सर्दी खांसी की समस्या हो सकती है।

सिंघाड़े का अधिक मात्रा में सेवन से कफ जैसी समस्या भी हो सकती है।


#सिंघाड़े कैसे खाएं?

सिंघाड़े का आटा का प्रयोग पॅनकेक, पुरी और चपाती बनाने के लिए किया जाता है, खासतौर पर उपवास के दिनों में। इसका खाना बनाने में मुख्य रुप से प्रयोग खाने को गाढ़ा बनाने के लिए और पनीर और सब्ज़ीयों को घोल में डुबोकर तलने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ब्रेड, केक और कुकीस् बनाने के लिए किया जाता है।


#सिंघाड़े में कौन कौन से विटामिन पाए जाते हैं?

पोषक तत्वों से भरपूर – सिंघाड़े में विटामिन-ए, सी, मैंगनीज, थायमाइन, कर्बोहाईड्रेट, टैनिन, सिट्रिक एसिड, रीबोफ्लेविन, एमिलोज, फास्फोराइलेज, एमिलोपैक्तीं, बीटा-एमिलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.


Disclaimer: यह जानकारी आयुर्वेदिक नुस्खों के आधार पर लिखी गई है। इनके इस्तेमाल से पहले चिकित्सक का परामर्श जरूर लें।  

धन्यवाद!

Dr_Virender_Madhan.]


शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

#मोटापा [Obesity]क्या है और क्या करें उपाय? In hindi.


 <Obesity><मोटापा>

#Obesity,मोटापा क्या है?

#मोटापा क्यों होता है?

#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा होता है?

#मेदोरोग की सम्प्राप्ति?

#आयुर्वेद के अनुसार मोटापे से होने वाली हानियाँ क्याक्या है ?

#मोटापे से कैसे बचें ?

#आयुर्वेदिक औषधियां क्या क्या है?

#मेदोरोग मे घरेलू उपाय क्या करें ?

#मोटापा कम करने के लिए जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?

[स्थौल्यता,मोटापा]

मोटापे के बारे मे बताने से पहले जान लें कि

अष्ठांग हृदय मे ऋषि वांग्डभट्ट के अनुसार सभी रोगों को दो भागों में बांटा है

१-सामरोग (आमयुक्त)

२-निरामरोग(आम दोष रहित)

इन सबकी चिकित्सा को भी दो भागों मे बांटा है

१-संतर्पण (बृंहण)शरीर की बृद्धि व संतृप्त करना।

२-अपतर्पण (लेखन ) शरीर को हल्का व अतृप्त करना।

इनके जानने के बाद चिकित्सा करने मे सुविधा मिलेगी।

चिकित्सा के दो प्रकार

१-शोधन ( शरीर का शोधन करना)

२-शमन (रोगों का शमन कर देना।

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*मोटापा अधिक संतर्पण के फलस्वरूप होता है।और

*कृशता अधिक अपतर्पण के कारण होता है।

https://youtube.com/shorts/saw3LJP6bmk?feature=sha

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#मोटापा Obesity:-

 वह स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह आयु संभावना को भी घटा सकता है।


#मोटापा क्यों होता है ?

कारण:-

*आजकल लोगो में मोटापे की समस्या बहुत हो रही है।  

*आदमी का व्ययाम नहीं हो पाता है व कैलोरी कम नहीं होती और मोटापा बढ़ने लगता है। 

*ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है। 

*अधिक चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापे का कारण है। 

*कम व्यायाम करना और स्थिर जीवन-यापन मोटापे का प्रमुख कारण है। 

*असंतुलित व्यवहार औऱ मानसिक तनाव की वजह से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, जो मोटापे का कारण बनता है।

*मोटापा का कारण कुछ लोगो में जेनेटिक अनुवांशिक होता है।

उदाहरण – अगर माता-पिता मोटे है तो उनका बच्चा भी मोटा रहता है।

*मीठा व गरिष्ठ भोजन अधिक। करना।

*सही पोषक आहार ना लेने के कारण भी मोटापा होने लगता है।

*अधिक तैलीय पदार्थ व फास्टफूड खाने के कारण मोटापा होने लगता है।

*अधिक धूम्रपान करने के कारण मोटापा शुरू हो जाता है।

*दिन में सोने के अभ्यास से ।

*थायोरोयड जैसी बीमारीयों के कारण भी मोटापा बढ जाता है।


#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा बढ़ता है?


*मीट, मक्खन, घी, चीज और क्रीम मोटापे को तेजी से बढ़ाते हैं. 

*आलू का परांठा, आलू की टिक्की, फ्रेंच फ्राइज, दम आलू की सब्जी।


[मेदोरोग की सम्प्राप्ति]

मेद के बढ जाने से धातुओं के मार्ग रुक जाते है फिर अन्य धातुओं का पौषण नही होता है।मेद इक्कठा होता जाता है।मनुष्य अपने कार्यों में असमर्थ हो जाता है।

यह रोग पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है।

मेद से वात के मार्ग रूक जाते है वह कोष्टो मे धुमती है वह अग्निप्रदीप्त करती है जिसके कारण रोगी की भुख बढती है।इसी कारण से रोगी बार बार कुछ न कुछ खाता रहता है फल स्वरूप अनेकों प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता जाता है।

*छोटे-छोटे कार्यों को करने में सांस फूलना तथा 

*पसीना आना, 

*आवश्यकता से ज्यादा या कम सोना, 

*थोड़ा सा चलने पर सांस में रूकावट पैदा होना या सांस तेजी से चलना,

*शरीर के अलग अलग हिस्सो में सूजन होना, 

*शरीर के विभन्न भागो में वसा जमना, 

*मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान, आत्मविश्वास में कमी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। 

*खर्राटें लेना

*अचानक शारीरिक गतिविधि में असमर्थता

*बहुत थका हुआ महसूस करना

*पीठ और जोड़ों में दर्द

*अकेला महसूस करना, इत्यादि।


#आयुर्वेद के अनुसार मेदोरोग के कारण होने वाली हानियां:-

< मोटापा बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है जैसे- बवासीर, भगंदर , कुष्ठ ,ज्वर , अतिसार ,प्रमेह (शुगर आदि ), श्लीपद (हाथीपांव) , अपची, कामला,उच्च रक्तचाप( हाइ ब्लड प्रेशर), हृदयदौर्बल्यं (दिल की बीमारिया, स्ट्रोक), अनिद्रा, किडनी की बीमारी, फैटी लिवर, आर्थराइटिस- जोड़ों की बीमारी, आदि।  

शरीर के निर्माण में रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र कुल सात धातुओं का योगदान होता है। इनमें से सभी धातुओं का अलग अलग महत्वपूर्ण कार्य होता है। मेद का कार्य शरीर में स्नेह गुण बनाए रखना है और इसी मेद से अस्थियां बनती हैं। अस्थियों के अंदर रहने वाले लाल वर्ण के मेद से रक्त यानी ब्लड का निर्माण होता है। 

आचार्य सुश्रुत के अनुसार मेद के क्षय से संधियों यानी जोड़ो में दर्द होने लगता है, खून की कमी होने लगती है और शरीर में रुक्षता होने लगती है। इसी मेद की वृद्धि से पेट के ऊपर और कमर पर चर्बी इकट्ठा होने लगती है और शरीर से दुर्गंध आने लगती है।

* इसी बात को आयुर्वेद के महान आचार्य चरक ने बताया है की अत्यधिक मेदवर्धक आहार लेने से मनुष्य में स्थूलता की वृद्धि होने लगती है 


#मोटापा रोग से कैसे करें बचाव?

●मेदोरोग व मधुमेह मे कफनाशक उपाय करें।

●मेदोरोग रोग मे लेखन कर्म व द्रव्यों का प्रयोग करें।

●उपवास व लघंन करें।

* जौ की रोटी खायें ।

#आयुर्वेदिक औषधियां क्या है ?

*कैप्सूल-सील्म-सी [ गुरु फार्मास्युटिकल] १-२ कैप० दिन में २-३ बार लें।

* फैटकोन सीरप -२-३ चम्मच दिन में २-३ बार ।

* ओबेनिल ( चरक )१-१ गोली दिन में दो-तीन.बार लें।

#शास्त्रीय योग:-

- अमृतादि गुग्गुल

- नवक गुग्गुल

- बडवानल रस

-लौह रसायन

-मेदोहर गुग्गुल

-आरोग्यबर्द्धिनी वटी

अन्य -

1. गुडूची, नागरमोथा, त्रिफला का सेवन मधूदक यानी शहद के पानी के साथ लेने से मोटापा कम होता है।

2. आमला के चूर्ण, शुंठी, क्षार आदि के प्रयोग से मोटापा कम किया जा सकता है।

3. जौ के आटे, बृहद पंचमूल के सेवन से लाभ मिलता है।

4. अग्निमंथ का सेवन शिलाजीत के साथ करने से भी मोटापा दूर होता है।

5. खान पान के अलावा रातभर जागने से, व्यायाम से और मानसिक परिश्रम से भी वजन कम होता है।

6. पंचकर्म चिकित्सा  जैसे वमन, विरेचन, उपवर्तन, स्वेदन और वस्ति द्वारा भी मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है।

7. कम प्रोटीन और वसा वाली हल्की दालों मूंग, मसूर को प्राथमिकता देनी चाहिए। उड़द राजमा छोले आदि से परहेज करना चाहिए।

#मेदोरोग मे घरेलू उपाय:-

-धतूरे के पत्तों का रस निकाल कर बढी हुई फैट (पेट-कुल्हो ) पर लगा कर मालिस करें।

-ताड के पत्तों का क्षार और हींग चावलों के मांड के साथ लें।

- पीपल का चूर्ण शहद के साथ प्रतिदिन खायें।

-कुलथी की दाल पका कर खाये।

-प्रतिदिन त्रिफला और गिलोय का काढा पीयें।

- जवासे का क्वाथ सवेरे शाम पीने से आराम मिलता है।

<<इन सभी उपायों का लगातार कुछ दिन तक प्रयोग करने से ही आराम मिलेगा>>

#मोटापे मे क्या परहेज़ करें?

- जितने भी कफवर्ध्दक पदार्थ है,

चिकनाई, दूध, दही, मक्खन,मांस , धी से बने पदार्थ, पका केला, नारियल, पुष्टदायक भोजन, दिन में सोना, हमेशा आराम से रहने से परहेज करें।

-रसायन द्रव्यों व औषधियो का प्रयोग, उडद ,गेहूं, ईख के प्रोडक्ट खाना बन्द कर देना चाहिए ।

#मोटापा कम करने के लिए आपकी जीवनशैली (Your Lifestyle for Weight Loss)कैसा हो ?

- साप्ताहिक उपवास करें।

-तमगुण को जीतने से मोटापा कम हो जाता है। अतः दिन में न सोयें।

- उदार बने।

-परिश्रम करें।

- सुबह उठकर सैर पर जाएँ, और व्यायाम करें।अधिक पैदल चलें।

- सोने से दो घण्टे पहले भोजन कर लेना चाहिए।

- रात का खाना हल्का व आराम से पचने वाला होना चाहिए।

- संतुलित और कम वसा वाला आहार लें।

- वजन घटाने के लिए आहार योजना में पोषक तत्वों को शामिल करें।

#चेतावनी:-किसी भी औषधि या द्रव्यों के प्रकार से पहले आप किसी आयुर्वेदिक विषेशज्ञ से सलाह जरूर ले क्योंकि प्रतिएक व्यक्ति की प्रकृति, दोष ,अवस्था आदि अलग अलग होती है यहां यह लेख केवल ज्ञान अर्जन हेतू है।


धन्यवाद!

<डा०वीरेंद्र मढान>

आप अपनी सलाह कोमेंट मे जरूर लिखे हमे खुशी होगी।







सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

शरीर पर सुजन [ Inflammation ] है तो क्या करें?In hindi


 #शोथ [Inflammation]  के प्रश्न-उत्तर ।

Dr.Virender Madhan.

#सुजन#शोथ [ Inflammation] कैसे होती है और उसके क्या उपाय है?

<< शोथ के और क्या क्या नाम है ?

#Inflammation शोथ क्यों [कारण]होता है ?

#आयुर्वेद में सुजन के भेद ?

*शोथ का  आयुर्वेदिक निदान क्या है ?

*शोथ की सम्प्राप्ति ?

#आयुर्वेद मे शोथ के लक्षण ?

#सुजन की आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करे ?

<<शोथ [सुजन]के घरेलू उपाय क्या है?

*सुजन हो तो जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?


*शोथ के नाम :- 

#शोथ, #सुजन,#lnflammation,शोफ, आदि नामों से सुजन को जानते है।

#Inflammation शोथ क्यों होता है क्या क्या कारण है?

हमारे जीवनशैली के बिगडने ,आहार विधि के बिगडऩे पर तीनों दोष अपने स्वयं के कारणों से कुपित एवम बिगडने से, और रक्त के स्वम के कारणों दूषित होकर कुपित व दूषित वात के द्वारा पित्त, कफ दोष ऊपरी शिराओं मे आकर रुक जाते है तथा त्वचा और माँस धातु मे उभार (उत्सेध) ,संहत (ठोस) होता है।इस सम्पूर्ण संचय को शोफ या शोथ कहते है। 

आयुर्वेद मे सुजन के भेद?

*कारण भेद से:-
१-वातज २-पित्तज ३-कफज ४-वातकफज५-वातपित्तज ६-पित कफज ७-सन्निपातज ८-अभिधातज ९- विषज।

*विधि भेद से शोथ के भेद:-
१-निज ( दोषों [वात-पित आदि के ] कारण ।
२-आगंतुज :- चोट से, विष के स्पर्श आदि के कारण ।
*पुनः दो भेद:- 
१-सर्वांगज(सारे शरीर में होना)
२-एकांगज ( एक अंग मे होना)
*अन्य शोथ के तीन भेद:-
१-पृथु (चौडा)
२-उन्नत (उठा हुआ)
३-ग्रंथित
इस प्रकार से ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

#शोथ का आयुर्वेद मे क्या क्या निदान है?

*ज्वर ,श्वास, कास,आतिसार, बवासीर, उदर रोगों में गलत खाना-पीन करने से शरीर में शोथ हो जाता है।

*वमन,विरेचन आदि चिकित्सा कर्मो के कारण।
गलत चिकित्सा करने से।

*रोगों में भारी ,तला भुना,शीतल, नमकीन व क्षार के गलत प्रयोग से भी शरीर में सुजन आ जाती है।
*दिन में सोना रात को जागना,सीलन भर जगह पर रहने से, अजीर्ण रोगों मे अधिक श्रम करने से,
*बहुत अधिक पैदल चलने से, अपथ्य करने से शोथ उत्पन्न हो जाता है।
*कुछ गम्भीर रोगों में भी सुजन आ जाती है जैसे हृदय रोग, किडनी रोग ,उदरोगो मे सुजन आ जाती है।
*आधुनिक औषधियों (एलौपैथीक) के साईड ईफेक्ट के कारण बहुत से व्यक्तियो को शोथ उत्पन्न हो जाता है।

#शोथ रोग की सम्प्राप्ति:-

-उपरोक्त कारणों से वातादि दोष अगर छाती आदि ऊपरी अंगों में हो तो शोथ शरीर के उपरी भाग मे होता है।
- अगर दोष मध्य अंगों मे हो तो शोथ शरीर के मध्यम भाग मे या सर्वांग शोथ हो जाता है।
-अगर दोष वस्ति आदि में है तो शोथ शरीर के नीचले भागों में यानि पैरादि मे होता है।

#आयुर्वेद मे शोथ के लक्षण?

वातज शोथ:-

इसमे वात दोष के कारण रूक्षता , लाल व सफेद रंग होना, पीडा होना ,फडकन होना और कभी कभी सुन्न होना। 
यदि रोगी के.शोथ स्थान को दबा कर छोड दे तो दबा हुआ स्थान शीध्र उपर उठ जाता है।
रात मे सुजन कम और दिन मे बढ जाती है।
*इसमे तैँल और सौठ मल देने से सुजन कम हो जाती है।

#पितज शोथ के लक्षण :-

इसमे शोथ का रंग पीला, लाल होता है। पीडा होती है ।रोगी को ज्वर भी हो सकता है। इस शोथ के बीच में तांबे के रंग के रोम ( रोवें )मिलते हैं। यह शीध्र फैलता है और शीध्र पकता है। यह शरीर के बीच अंगों में होता है।

#कफज शोथ के लक्षण:-

इसमे खुजली होती है। शोथ के स्थान पर, व रोम का वर्म पीलपन पर.होता है।यह स्थान ठंडा, व कठोर होता है।यहाँ स्निग्धंता दिखाई देती है । यह देर से पकने वाला होता है।यह दबाने से शीध्र नही उठता है।

**द्वन्द्वज शोथ के लक्षण:-

जब दो दोष मिल कर शोथ उत्पन्न करते है तो उन दोनों दोषो के शोथ मे लक्षण मिलते है।

#सन्निपातज शोथ के लक्षण:-

इसमे तीनों दोषो के मिले जुले लक्षण मिलते है।

#अभिधातज शोथ के लक्षण :-

डंडा, मुक्का , तलवार, कांटा, शूल या एक्सीडेंट आदि तरह की दुर्घटना से होनेवाले शोथ फैलने वाले होते है। इन मे गर्मी बहुत होती है। स्थान का वर्ण लाल होता है।

#विषज शोथ के लक्षण:-

विषैले पशु, कीट-पतंगे ,आदि के दांत बाल आदि के स्पर्श से ,विषेली हवा से ,औषधि के दुष्प्रभाव से ये शोथ हो जाते है। ये स्पर्श से कोमल होते है, लटकने वाले. होते है। ये "चल" यानि कभी कहीं कभी कहीं होता है।

#सुजन की आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करें?

ऋषि वांग्डभट के अनुसार 

दोषज शोथ मे दोष व आम के लिये

 पहले उपवास करके फिर हल्का भोजन कराऐ। साथ मे 
*सौठ, अतीस, देवदारू , वायविंडग , इन्द्रजौ , कालीमिर्च।
अथवा
*हरड, सौठ , देवदारू ,पुनर्नवा का चूर्ण गुनगुने पानी से।
अथवा
*नवायस योग का सेवन करें।

मल का संग्रह होने पर

*हरड का गोमूत्र के साथ सेवन करें।
अरवा
*कुटकी, निशोथ , लौहभस्म , सौठं , मिर्च, पीपल का चूर्ण।
अथवा
*शिलाजीत का सेवन करें।

मन्दाग्नि, आतिसार या मलबन्ध होने पर,

इन सभी परिस्थितियों मे ,
*सैन्धव नमक, सौंठ, मिर्च, पीपल के चूर्ण को मधु से साथ लें। साथ मे मठ्ठा ले सकते है ।
अथवा
*गुडहरीतकी योग  या
*गुडशुण्ठी योग का सेवन करें।

अन्य योग:-

-वर्ध्दमान गुडार्द्रक ,
-आद्रकधृत,
-यवानकादि धृत,
-दशमुलहरीतकी,

#शोथ के घरेलू उपाय क्या है?

>लधुपंचमूल, सौंठ ,पुनर्नवा ,एरण्ड मूल, को जल मे चाय की तरह पका कर पीने से शोथ मे लाभ मिलता है।
>कालाजीरा, पाठा ,मोथा ,पंचकोल ,कटेली और हल्दी इन सबका चूर्ण लेने से पुराना शोथ (सुजन ) भी दूर हो जाती है।
>अदरक का रस गुड मिलाकर पीये बाद मे बकरी का दूध पीयें इससे सभी प्रकार के शोथ ठीक हो 
जाते है।
<लेप:-

>शोथ नाशक लेप:-

*पुनर्नवा(गदधपुना) , देवदारू, सौंंठ , सरसौ ,यथा संहिजन ,की छाल, सभी को कांजी मे पीस कर लेप करने से सभी प्रकार के शोथ शांत हो जाता है।
*दशांग लेप के लगाने से  शोथ ठीक हो जाता है।

अन्य औषधियों:-
अजमोदादि चूर्ण
लवणभास्कर चूर्ण
नवायस चूर्ण
योगराज गुग्गुल
त्रिफला गुग्गुल
कुटजारिष्ट
लोहासव

#सुजन मे जीवनशैली ,क्या करें क्या न करें?

*दिन मे न सोयें। भुख लगे तो ही खायेंं।
*थकने का काम न करें ।
*तले हुये भोजन न करें।सुखे शाक , तिल गुड से बनी चीजें न खायें।
*दही ,पीठी  की चीचें ,खट्टा ,भुने जौ , सुखा माँस ,विदाही (जलन करनेवाले) पदार्थ न लें।

#डा०वीरेन्द्र मढान
#Guru_Ayurveda_in_faridabad.
#drvirender.bolgspot.com


शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

निद्रा क्या है?Slumber नींद के बारे main आप kyaजानते hain.in hindi.

 

#निद्रा [Slumber]क्या है?

By:-<Dr.Virender Madhan > 

>> निद्रा  किसे कहते है?

>> निद्रा के लाभ और हानि क्या है?

>> Nind कितने प्रकार की होती है?

>>कौन से समय सोना चाहिए?

>>दिन में सोना वर्जित क्यों है?

>>दिन मे कौन सो सकता है?

>>विकृत नींद {Insomnia} से बचने के उपाय क्या है?

>>उत्तम नींद के लिए जीवनशैली कैसी हो ?

>>अनिद्रा के लिए घरेलू व आयुर्वेदिक उपचार बतायें?

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#निद्रा क्या है निद्रा किसे कहते है?

#what is Sleep ? In hindi.

नींद#रात्रिनिद्रा को "भूताधात्री"कहा जाता है। संस्कृत मे अर्थ है " सम्पूर्ण सृष्टि की माता संतान की तरह पालने वाली ,विश्राम देने वाली…”
*जब मन आज्ञा चक्र पर आता है तो दो स्थिति बनती है।
-१- जब मन आज्ञाचक्र पर आता है और साक्षी भाव का अनुभव करता है इस स्थिति को  "ध्यान ” कहते है।
-२- जब मन आज्ञाचक्र पर आता है और साक्षीभाव को अनुभव नही होता शरीर व इन्द्रियों शांत हो जाती है इस स्थिति को "निद्रा ” कहते है।
इस स्थिति  [ निद्रा ] में अंग प्रत्यंगो को आराम मिलता है। तथा नई ऊर्जा मिलती है।
#निद्रा एक ऊर्जा है। नींद लेने से मन , बुद्धि , इंद्रियों मे नयापन आता है। वैसे नींद से शरीर में तमोगुण बढता है।
#सत्वगुण से नीदं कम होते है और जागना अधिक होता है। सत्व गुणी व्यक्ति को थोडी और स्वभाविक नींद ही आती है। स्वभाव से जागता है थोड़ी नींद से ही तृप्त हो जाता है।

>>नीदं के लाभ व हानि क्या क्या होती है ?

*निद्रा से शरीर में नयापन आता है।
*शरीर को ऊर्जा मिलती है।
*निद्रा से शरीर को पोषण मिलता है।
*नींद न आने से शरीर और मन दोनों बीमार हो जाते हैं।
*नीदं न आने से अनेकों रोग लग जाते है। कब्ज, गैस, भुख न लगना, अपच , एसिडिटी आदि रोग हो जाते है
* वजन घटने या बढने लगता है।
* हार्मोन्स इम्बैलेंस हो जाते है ।

#दिन में सोना वर्जित क्यों है?

#आयुर्वेद मे ,दिन मे सोना प्रकृति विरूद्ध माना है। कयोंकि दिन मे सोने से दौष विषमता होते है।शरीर की हानि होती है और आयु का ह्रास होता है।
#नींद कितने प्रकार की होती है?

#नीदं कितने प्रकार की होती है ?

नीदं तीन प्रकार की होती है ।
१- स्वाभाविक निंद्रा :-
यह नीदं रात मे स्वभाविक रूप से आने वाली निद्रा होती है।

२- तामसिक निद्रा :-
यह निद्रा कभी भी ,रातमें, दिन में सवेरे शाम कभी भी आ जाती है इसमे व्यक्ति उठने के बाद फिर से सो जाता है। इसमे व्यक्ति उठने के बाद भी आलस्य मे रहता है यह नीदं व्यक्ति की सबसे बड़ी शत्रु है ।

३- विकारी निद्रा :-
जब व्यक्ति बीमार हो जाता है तब बार निद्रा आती है विकारी निंद्रा कहते है।

#सोने के लिए कौनसा समय उत्तम है?

<< Time to sleep well .In hindi.

ऋषियों ने दिन रात के सयम को चार-चार यमो मे विभाजित किया है। 
1- 6:30 pm to 9:00pm
2- 9:00 pm to 12:00 am
3- 12:00 am to 3:30 am
4-  3:30am to 6:00am

रात का पहला और चौथा यम समय  ध्यान, अध्ययन,प्रार्थना का समय होता है । ये दोनों समय दिन रात के मिलन का समय होता है।
कोई भी काल का समय प्राप्ति का समय होता है प्रभु की कृपा का समय होता है। ज्ञान प्राप्त करने का समय है इसलिए काल मिलन के समय आलस्य त्याग कर ध्यान योग ,प्रार्थना करना चाहिए उत्सव मनाने चाहिए।

रात में 9:00 बजे से सवेरे 3:30 बजे तक सोने का सर्वश्रेष्ठ समय होता है।
 शास्त्रों के अनुसार रात्रि के 1 बजे से 3 बजे तक राक्षसी काल होता है इस समय जागते रहने से व्यक्ति का पतन होता है यथा धन ,स्वास्थ्य, और आयु की हानि होती है।

#दिन मे कौन कौन सो सकता है?

दिन मे सोने की अनुमति कुछ परिस्थितियों के अनुसार दी है।
१- बालक जो पैदा होने के 7-8 वर्षों तक दिन मे सो सकता है।
२-बुड्ढे जो ६५ वर्षों के हो गये है।
३- जो व्यक्ति रात मे काम करते है।
४- जो लोग श्रम करते है भारी काम करते है जो पैदल यात्रा करते है।
५ - जो दिनभर मानसिक कार्य करते है या मानसिक रोग से ग्रस्त है ।
डर, चिन्ता, तनाव ,उदासी सेग्रस्त है वे लोग दिन मे सो सकते है।
६ -आयुर्वेदिक पंचकर्म जिसने कराया हो वह दिन में सो सकता है।
७- अत्यधिक गर्मी पड रही हो तो सभी व्यक्तियोंं को दिन मे सोने की अनुमति है।

#किन लोगों को दिन मे सोने की सख्त मनाही है?

> कफ प्रकृति के व्यक्ति , कफ के रोगी ,मोटापे के रोगी को दिन मे सोने की सख्त मनाही है।
> जिस व्यक्ति को विष दिया, या खाया हो।
> जिस व्यक्ति ने विषाक्त औषधि एलोपैथीक दवाईयां अधिक खाई हो उन्हें दिन मे सोना सख्त मना है।

# विकृत नीदं [Insomnia] से बचने के क्या क्या उपाय है

<< Prevention tips of sleep ?

* जीवनशैली को ठीक करें।
* आहार में बदलाव करें।
* अपने भोजन में बादाम, अखरोट, दूध ,दलिया ,चन , केला ,किवी, दही, पनीर शामिल करें।
* सलाद ,हरी सब्जियों खाये।
* जिसे नीदं नही आती उसे सवेरे ब्रैकफास्ट मे केला और दूध लेना चाहिए।
* सोने से एक घण्टा पहले दूध पीना चाहिये।
* अल्कोहल, कैफिन न ले।
* चाय की जगह गुरु हर्बल टी पीयें।

#उत्तम नीदं के लिए जीवनशैली कैसी हो ?

जीवनशैली:-
> जल्दी उठे जल्दी सोयें।
> नियमित ध्यान, प्रणायाम करें।
> ठहलने जरूर जाये।
> मधुर संगीत सुने ।
> पौष्टिक भोजन करें। फ्राईड, तेज मसाले, फास्ट फूड न खाये।
> रात को हल्का भोजन करें।
> हल्के व ढीले कपडे पहने कर सोयें।
>दिन में शरीर की मालिस जरुर करें।

#अनिद्रा मे घरेलू और आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

* पैर के तलवों पर तैल मालिस करें।
* सोते समय पैरों को धो कर सोयें।
* दिन मे कले का प्रयोग जरूर करें।
* नीदं न आने पर शरीर की मालिस, अभ्यंग, शरीर को दबाना, थपथपाना चाहिए।
* मैथी के पत्तों का जूस मे शहद मिलाकर पीये।
* दूध मे चूटकी भर दालचीनी पकाकर पी सकते है।
*दूध के साथ आधा चम्मच से १ चम्मच जायफल चूर्ण ले सकते है।
* दूध मे शहद मिलाकर पीयें।

>आयुर्वेदिक औषधी#Brainica Syrup.की १-२ चम्मच दिन मे दो तीन बार लेने से अनिद्रा का रोग ठीक हो जाता है।
> गुरु अश्वगंधा चूर्ण व सर्पगंधा चूर्ण मिलाकर रख लेउसमे से १-१ चम्मच रात में लेने से अच्छी नीदं आती है।
>अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, शतावर, मुलहठी ,आंवला, अजवाइन आदि का प्रयोग करें या इनके योगो का प्रयोग करें।
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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

अपामार्ग_चिरचिटा परिचय।


 #अपामार्ग

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By_Dr.Virender



#अपामार्ग क्या है ?

नाम:-

*अपामार्ग {apamarga plant} को चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा भी बोलते हैं। 

यह एक बहुत ही साधारण पौधा है।

* अपामार्ग [चिरचिटा]के उपयोग से विकारों को ठीक किया जाता है, बीमारियों की रोकथाम की जाती है। आप दांतों के रोग, घाव सुखाने, पाचनतंत्र विकार, खांसी, मूत्र रोग, चर्म रोग सहित अन्य कई बीमारियों में अपामार्ग का लाभ ले सकते हैं।


#चिरचिटा की पहचान:-

- आयुर्वेद में अपामार्ग के अनेक गुणों का वर्णन किया गया है। यह वर्षा ऋतु में पैदा होता है। इसके पत्ते अण्डकार, एक से पांच इंच तक लंबे और रोम वाले होते हैं। यह सफेद और लाल दो प्रकार का होता है। सफेद अपामार्ग के डण्ठल व पत्ते हरे व भूरे सफेद रंग के होते हैं। इस पर जौ के समान लंबे बीज लगते हैं।


- लाल अपामार्ग के डण्ठल लाल रंग के होते हैं और पत्तों पर भी लाल रंग के छींटे होते हैं। इसकी पुष्पमंजरी 10-12 इंच लंबी होती है, जिसमें विशेषत: पोटाश पाया जाता है।

#आयुर्वेद की अपामार्ग के अदभुत 20 लाभ।


अपामार्ग खाने से ताकत आती है। यह पाचनशक्ति ब़ढाने के लिए यह पौधा काफी फायदेमंद है। 

- अपामार्ग मूल चूर्ण 6 ग्राम रात में सोने से पहले लगातार तीन दिन जल के साथ पीने से रतौंधी में लाभ होता है। 

 - जलोदर (पेट फूलने की समस्या) में अपामार्ग क्वाथा एवं कुटकी चूर्ण सेवन करने से लाभ होता है। 

- अपामार्ग को दूध के साथ सेवन करने से गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है।


(1) #विष_चढ़नें_पर अपामार्ग।


जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले की़डों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है। इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है।


(2) #दांतों_का_दर्द।


अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वाले तेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है। अपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं।


(3) #मुंह_के_छाले मे उपयोग।


अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।


(4) #संतान_प्राप्ति_के_लिए लाभकारी।


अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।


(5) #मोटापा घटायें।


अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन ब़ढ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।


(6) #कमजोरी भगाये।


अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। एक कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।


(7) #सिर_में_दर्द को दूर करे।


अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।


(8) #मलेरिया_से_बचाव करें।


अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।


(9) #गंजापन मे उपयोगी।


सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।


(10) #खुजली हटाये चिरचिटा।


अपामार्ग के पंचांग (ज़ड, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।


(11) #आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) मे कारगर औषधि।


इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की ज़डता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।


आंखों के रोग


(13) #आंख_की_फूली दूर करें।


अपामार्ग की ज़ड के २ ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है। धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थो़डा-सा सेंधा नमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।


(14) #खांसी_श्वास मे लाभकारी।


अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है। अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है। न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।


(15) #विसूचिका (हैजा)में।


अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्ते थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है।


(16) #बवासीर भगाये।


अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनाएं और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीएं। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।


(17) #उदर_विकार (पेट के रोग)मे लाभ।


अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है। 8 पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है।


(18) #भस्मक_रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) : 


भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।

>>भस्मक रोग मे खीर:-

अपामार्ग की खीर : इसके बीज छोटे चावल के जैसे होते हैं। इसके छिलका उतरे बीज 5 ग्राम से 10 ग्राम लें, उन्हे मोटा कूट लें, अब उन्हे 250 मिलीलिटर दूध मे डालकर आधा घंटा धीमी आंच पर उबालें। स्वादानुसार चीनी मिलाऐ, व सेवन करें।


(19) #वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) किडनी के लिए:-

 >अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।


(20) #गर्भधारण_करने_के_लिए:-

#महिलाओं के लिए वरदान।


अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के १० ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें। अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।


#अपामार्ग की मात्रा:-

*रस- 10-20 मिली

*जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम

*बीज- 3 ग्राम

*क्षार- 1/2-2 ग्राम

आशा है आपका लेख पसन्द आया होगा। कोमन्ट मे जरूर बतायें।

[डा०वीरेंद्र मढान.]

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

Bhrigaj harb-keshraj.

 Bhringraj

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Dr.virender madhan.

#Name of Bhringraj

[Eclipta Alba]

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* Bhringraj, markav, bhring, angarak, keshraj, bhringaar and keshranjan all are different names of Eclipta Alba. 


This herb has various properties such as it is pungent in taste, have hot potency, dry, pacifies (vata, kapha) and good for hair.


#Bhringraj Health Benefits:-


-Bhringraj Juice for Liver.

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Bhringraj juice is known to clean and detox the liver, balance out the doshas, and enhance liver cell generation to improve the liver’s functioning.


#Bhringraj Benefits for Skin

#Is Bhringraj powder good for face?

#Bhringraj Benefits for Skin

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* Bhringraj has anti-inflammatory properties, which means that it provides a soothing and cooling effect when applied to the skin. 

Studies conclude that bhringraj juice is effective in relieving skin diseases as it has antimicrobial and antibacterial properties.

According to Ayurveda, Bhringraj is known to be a jatharagni deepaka.

 - it stimulates the digestive fire.

* Bhringraj absorbs food, assimilates it, and aids the excretion of waste. Feel free to supplement this with some yoga for digestion. Bhringraj aggravates the Pitta Dosha and keeps digestive issues like gastric ulcers, nausea and dysentery in check.


* Bhringraj for Alzheimer’s

-A lab test shows that Bhringraj and ashwagandha protect the nervous system and reduce oxidative stress, thereby minimizing memory loss faced due to Alzheimer’s.


#How to use Bhringraj powder for hair?


Take ½-1 teaspoon of Bhringraj powder.

Mix with Coconut oil and massage on the scalp.

Leave it for 1-2 hours and wash it with any herbal shampoo.

Repeat this thrice a week to fight hair fall and premature greying of hair.


#Does Bhringraj regrow hair?

When used on our hair, Bhringraj oil is known to have miraculous effects. ... It improves blood circulation and is capable of revitalizing the hair follicles and facilitating hair growth. When applied on the scalp, the results are visible within a week or two of application of the oil.


#What are the benefits of Bhringraj for hair?


Treats dandruff and dry scalp.

* Bhringraj oil is dense and has a higher specific gravity as compared to other oils. 

*Treats baldness and helps in hair growth. 

* Prevents hair fall. 

*Promotes hair growth. 

* Prevents graying of hair. 

* Makes hair lustrous. 

* Repairs hair damage.


#Is Bhringraj powder cooling?

It brings its cooling, rejuvenating benefits to the mind and nervous system while it also supports the liver, circulation, and even healthy skin. 


On the other hand, Bhringraj churna is eaten with ghee, milk or water. It aids digestion, improves liver and kidney health and promotes heart health.


#What are the side effects of Bhringraj?

The active ingredient, Eclipta alba, has a diuretic effect and may cause increased urination if taken orally. Bhringraj oil should be used with caution if taking diuretics (water pills) such as Lasix (furosemide), as this can lead to excessive urination and a drop in blood pressure (hypotension).


#Doses:-

Recommended Dosage of Bhringraj


* Bhringraj Powder - ¼- ½ teaspoon twice a day. 

* Bhringraj Capsule - 1-2 capsule twice a day.

* Bhringraj Juice - 1-2 teaspoon twice a day.

* Bhringraj Tablet - 1-2 tablets twice day.