Guru Ayurveda

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

#Viral Fiver #वायरल बुखार का आयुर्वेदिक इलाज।in.hindi.


 #Viral Fiver #वायरल ज्वर क्या है?

#Dr_Virender_Madhan.

> वायरल Fiver आमभाषा मे इसे मौसमी बुखार कहते है।

वायरल बुखार का मतलब है वायरस से होनेवाला बुखार या वायरल संक्रमण, 

* इसमें वायरस रोगी के ऊपर श्वसनतंत्र को प्रभावित करता है।जब रोगी खांसता है या छिंकता है तो वायरस वायु के द्वारा समीप दुसरे व्यक्ति को प्रभावित कर देता है।यह श्वसनतंत्र की कोशिकाओं मे पहुंच कर ज्वर ,कास,जुकाम उत्पन्न कर देता है।

*उसके शुरुआती दौर में शरीर के बहुत ज्यादा थक जाने का अहसास होता है

*मसल या शरीर में तेज दर्द का एहसास हो सकता है. 

* वायरल बुखार वायु जनित बीमारी है.

- ये बाहरी वायरस किसी भी स्वस्थ इंसान के अंदर तेजी से फैल सकता है. वायरल बुखार को रोकने के लिए आप इस तरह देखभाल कर सकते हैं. शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करना, उसके अलावा, अपनी रोजाना की डाइट में पौष्टिक पोषक तत्वों को शामिल कर सकते है।

*मौसम में बदलाव, खान-पान में गड़बड़ी या फिर शारीरिक कमजोरी की वजह से भी वायरल बुखार होता है। वायरल बुखार हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक तंत्र को कमजोर कर देता है, जिसकी वजह से वायरल के संक्रमण बहुत तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंच जाते हैं। आमतौर पर वायरल बुखार के लक्षण आम बुखार जैसे ही होते हैं लेकिन इसको उपेक्षा करने पर व्यक्ति की हालत काफी गंभीर हो सकती है।

*आयुर्वेद के अनुसार वायरल फीवर होने पर शरीर के तीनों दोष प्रकूपित होकर विभिन्न लक्षण दिखाते है। विशेषकर इसमें कफ दोष कूपित होकर जठराग्नि को मंद या भूख मर जाती है।

#वायरल फीवर के लक्षण :-

(Symptoms of Viral Fever)

-थकान।

-पूरे शरीर में दर्द होना ।

-शरीर का तापमान बढ़ना ।

- खाँसी ।

- जोड़ो में दर्द ।

- दस्तहोना।

- त्वचा के ऊपर रैशेज होना।

- सर्दी लगना।

- गले में दर्द व खराश होना।

- सिर दर्द

- आँखों में लाली तथा जलन रहना।

- उल्टी और दस्त का होना।

- वायरल बुखार ठीक होने में 5-6 दिन भी लग जाते है। शुरूआती दिनों में गले में दर्द, थकान, खाँसी जैसी समस्या होती है।


#वायरल बुखार मे घरेलू उपाय क्या करें?

1-हल्दी और सौंठ का पाउडर -

 

सौंठ यानी कि अदरक का पाउडर और अदरक ज्वरध्न होते है।

* इसलिए एक चम्मच काली मिर्च के चूर्ण में एक छोटी चम्मच हल्दी, एक चम्मच सौंठ का चूर्ण और थोड़ी सी चीनी मिलाएं। अब इसे एक कप पानी में डालकर गर्म करें, फिर ठंडा करके पिएं। इससे वायरल फीवर खत्म होने में मदद मिलेगी।

 2 तुलसी क्वाथ इस्तेमाल करें - तुलसी में एंटीबायोटिक गुण होते हैं जिससे शरीर के अंदर के वायरस खत्म होते हैं। इसके लिए एक चम्मच लौंग के चूर्ण में 10-15 तुलसी के ताजे पत्तों को मिलाएं। अब इसे 1 लीटर पानी में डालकर इतना उबालें जब तक यह सूखकर आधा न हो जाए। अब इसे छानें और ठंडा करके दिन में 2-3 बार पिएं। ऐसा करने से वायरल से जल्द ही आराम मिलेगा।


3 धनिये की चाय(क्वाथ)पीऐ -

 - धनिये में कई औषधीय गुण होते हैं। इसको चाय तरह बनाकर पीने से भी वायरल में जल्द आराम मिलता है। 


4 मेथी का(कषाय)पानी पिएं -

 एक कप मेथी के दानों को रातभर भिगों लें और सुबह इसे छानकर हर एक घंटे में पिएं।


 5 नींबू और शहद मिश्रण:-

 नींबू का रस और शहद भी वायरल फीवर के असर को कम करते हैं। आप शहद और नींबू का रस का सेवन भी कर सकते हैं।

#बुखार मे उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी - 

** गुडूची​

गुडूची प्रमुख तौर पर परिसंचरण और पाचन तंत्र से संबंधित रोगों का इलाज और उन्‍हें रोकने का काम करती है।

ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और तीनों दोषों को शांत करती है।

गुडूची पित्त रोगों, बुखार, कफ के कारण हुए पीलिया और जीर्ण मलेरिया के बुखार में उपयोगी है। 

 ** पिप्‍पली

ये पाचन, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। पिप्‍पली बुखार के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। इसमें वायुनाशी और ये बुखार के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। 

 

** वासा;-

ये श्‍वसन, परिसंचरण, तंत्रिका और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है। ये मूत्रवर्द्धक, मांसपेशियों में ऐंठन दूर करने और कफ निस्‍सारक (बलगम खत्‍म करने वाले) कार्य करती है।

खांसी, ब्रोंकाइल अस्‍थमा, कफ विकारों, डायबिटीज और मसूड़ों से खून आने की समस्‍या में भी वासा उपयोगी है।

 ** आमलकी:-

आमलकी परिसंचरण, पाचन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें पोषण देने वाले शक्‍तिवर्द्धक, ऊर्जादायक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं जो कि त्रिदोष को शांत करने में सक्षम है।

ये सभी प्रकार के पित्त रोगों, बुखार, गठिया, कमजोरी, आंखों या फेफड़ों में सूजन, लिवर और पाचन मार्ग से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। 

** अदरक:-

अदरक शरीर के पाचन और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। ये दर्द से राहत दिलाती है और वायुनाशक,पाचक और कफ निस्‍सारक कार्य करती है। इस प्रकार अदरक बुखार से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती है।

वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने के लिए अदरक का इस्‍तेमाल किया जाता है। शुंठी (सूखी अदरक) अग्‍नि को बढ़ाती है और कफ को कम करती है।

 ** मुस्‍ता:-

मुस्‍ता पाचन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। ये वायुनाशी, उत्तेजक, मूत्रवर्द्धक, भूख बढ़ाने, फंगसरोधी और कृमिनाशक कार्य करती है।

मुस्‍ता के मूत्रवर्द्धक गुण खासतौर पर बुखार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं क्‍योंकि इससे बार-बार पेशाब आता है जिससे शरीर से अमा निकल जाता है।

 ** भूमि आमलकी:-

पाचन, प्रजनन और मूत्र प्रणाली से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में भूमि आमलकी उपयोगी है।

भूमि आमलकी से पीलिया, बाहरी सूजन और मसूड़ों से खून आने का इलाज किया जा सकता है।

#बुखार के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

~ मृत्‍युंजय रस

ये बुखार पैदा करने वाले कई बैक्‍टीरियल संक्रमण में उपयोगी है।

 ~संजीवनी वटी

ये टाइफाइड बुखार, सिरदर्द और पेट की गड़बड़ी को भी ठीक करने में उपयोगी है।

 ~त्रिभुवनकीर्ति रस

ये शरीर पर पसीना लाकर और दर्द से राहत दिलाकर बुखार का इलाज करती है। इसके अलावा त्रिभुवनकीर्ति रस से माइग्रेन, इंफ्लुएंजा, लेरिन्जाइटिस (स्‍वर तंत्र में सूजन), फेरिंजाइटिस (गले में सूजन), निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, खसरा और टॉन्सिलाइटिस को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।

 ~सितोपलादि चूर्ण

सितोपलादि चूर्ण बुखार, फ्लू, माइग्रेन और श्‍वसन विकारों के इलाज में असरकारी है।  औषधि से फ्लू के लक्षणों से शुरुआती तीन से चार दिनों में ही राहत मिल जाती है जबकि फ्लू को पूरी तरह से ठीक होने में आठ सप्‍ताह का समय लगता है। 

> व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।


#क्याकरे क्या न करें?

अगर आपको बुखार हो गया है तो 

*पूरी तरह आराम करें। जब तक ठीक नहीं हो जाते तो भी

*गर्म और तरल भोजन, जैसे सूप और खिचड़ी खाएं। 

* अगर आपको तेज बुखार और शरीर में दर्द हो रहा हो, तो अपने डॉक्टर को फौरन दिखाएं।  

*बीमार होने पर खुद बुखार दूर करनेवाली दवा, एंटीबायोटिक दवा और दर्द दूर करनेवाली दवाएं ना लें।

*शाली चावल, जौ और दलिया खाएं।

*फल और सब्जियां जैसे कि परवल, करेला, शिग्रु (सहजन), गुडुची, जीवंती, अंगूर, कपित्थ (बेल) और अनार को अपने आहार में शामिल करें।

*हल्‍का भोजन करें। 

*मालिश और आराम से व्‍यक्‍ति की हालत में सुधार लाया जा सकता है।

*छोले, तिल और जंक फूड न खाएं। 

*दूषित पानी न पीएं। 

*भारी भोजन न करें या पेट में *एसिडिटी और जलन पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ खाने से बचें।

*प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल निष्‍कासन और पेशाब आदि न रोकें।

*दिन सोने से बचें। *खाने के बीच में उचित अंतराल रखें और ओवरईटिंग न करें। 

#Dr_Virender_Madhan.




मंगलवार, 25 जनवरी 2022

#Epilepsy अपस्मार[ मिर्गी ]का आयुर्वेद मेही ईलाज.in hindi.

#Epilepsy, #अपस्मार, #मिर्गी, #मिरगी

#Treatment of epilepsy in ayurveda.

 #अपस्मार (मिर्गी)क्या है?

#Dr_Virender_Madhan.



#अपस्मार के क्या क्या नाम है?

- अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी, मिरगी, अंग्रेजी मे (Epilepsy)कहते है।

अपस्मार का अर्थ है- 

अप+स्मार।

अप = नष्ट, स्मार=स्मृति, यानि स्मृति का नष्ट होना।

मृगी ऐसा रोग है जिसमे स्मृति का ह्रास होता है और रोगी ज्ञान हीन हो जाता है।

- यह एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है।

सुश्रुत के अनुसार:-

चिंता, शोक, क्रोध, मोह , लोभ आदि से वात, पित्त और कफ कुपित हो जाता है फिर हृदय और मनोवह संस्थान मे जाकर स्मृति का नाश करके अपस्मार (मिर्गी ) रोग उत्पन्न कर देते हैं।

चरकानुसार:-

जिसका चित रजोगुण और तमोगुण से घिरा रहता है।जिसके दोष(वात,पित्त, कफ) विकृत होते है।

जो भोजन के नियमों और शास्त्रो के नियम विरुद्ध कार्य करता है।जिसका शरीर कमजोर हो जाता है उसके कुपित दोष और रजोगुण-तमोगुण के अत्यधिक वशीभूत होकर अन्तरात्मा व हृदय मे डेरा डाल लेते है। काम,क्रोध आदि के वशीभूत होकर वही दोष उत्तेजित होकर स्मृति को नष्ट कर देता है इस अवस्था को मृगी कह देते है।यह चार प्रकार के होते हैं।

वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज,

#अपस्मार उत्पन्न के क्या कारण हो सकते है?

अधिकांश अपस्मार के कारण अज्ञात है।परंतु कुछ कारण इस प्रकार होता है।

- स्त्रियों में मासिकधर्म सम्बंधित विकार के कारण

-अधिक वीर्य नाश।

- बच्चों में दांतों का निकलना।

- आंत्र मे कृमि तथा पेट मे आंव होना।

- अचानक डर जाना।

- चोट लगना।

- अत्यधिक शारिरिक व मानसिक परिश्रम करना।

-अधिक शराब पीना।

- मानसिक सदमा लगना।

- चिंता करते रहना।

- विटामिन बी 6 की कमी।

- अत्यधिक टी.वी. देखना।

- मैनिनजाईटिस, क्षयरोग, तीव्र ज्वर होना 

-मस्तिष्क मे संक्रमण के कारण से अपस्मार रोग हो जाते है।

#अपस्मार (मृगी )के लक्षण क्या क्या होते है?

-मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।

- दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। रोगी प्राय:चीख मार कर जमीन पर गिर जाता है।

- इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि 

 - बेहोश होना

- झटके लगना

- बॉड़ी लड़खड़ाना

- मुंह से झाग आना और डेढा मेढा हो जाना।

-  गिर पड़ना,

- हाथ-पांव में झटके आना

-मल मूत्र निकल जाना

- जीभ का कट जाना 

- आंखों की पुतली का घुम जाना।

-हाथों की मुठ्ठी भिंच जाना 

- मुंह से आओओओ गोगो जैसी आवाज निकलना आदि मृगी के लक्षण होते है।

#Epilepsy मृगी की चिकित्सा सूत्र व निर्देश:-

[क्या करें क्या न करें?]

*रोग के कारणों को दूर करें।

*रोगी को तनाव और मनोविकार से बचने की सलाह दें।

*यदि रोगी को आन्त्रकृमि हो तो उपचार करें।

 *मिर्गी के मामूली दौरे आयु बढने के साथ साथ रोग ठीक हो जाता है।युवावस्था के बाद होनेवाला अपस्मार बिना चिकित्सा के ठीक नहीं होता है।

*रोगी की मस्तिष्क दुर्बलता दूर करने के लिए पौष्टिक आहार का प्रयोग करना लाभप्रद होता है।

*खाने के लिए लाल व सांठी चावल,गेहूं, बथुआ, मीठेअनार,आंवला ,पेठा ,फालसा , परवल, ,संहजन ,पुराना घी , दुध  आदि का प्रयोग करें।

*रोगी को शराब ,मछली ,पत्तों वाला शाक,अरहर ,उडद ,गरिष्ठ भोजन नही करना चाहिए।तीखें , गरम ,और विरूद्ध आहार नही करना चाहिए।

*नारियल का पानी, ब्राह्मी का प्रयोग इस रोग में बहुत लाभकारी होता है।

* दौरे के समय मुख पर पानी के छिटे मारने चाहिए।रोगी के हाथ पैर पर हल्के गर्म सेक करने चाहिए।

#आयुर्वेदिक औषधियों।

*ब्रेनिका सीरप (गुरू फार्मास्युटिकल)

*पुष्टि कैपसूल (गुरु फार्मास्युटिकल)

शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक औषधियां:-

*शंख पुष्पादि घृत(ग०नि०)

*कुष्माण्डघृत व कुष्माण्ड योग(यो०र०)

*सारस्वत चूर्ण -1मासा दिन मे तीन चार बार लें।

*ब्राह्मी धृत १० ग्राम दिन में2 बार।

*वृहतवातचिन्ता मणी रस १-१ गोली दिन में २ बार ले।

अश्वगंधारिष्ट ३-३चम्मच बराबर पानी मिलाकर दिन में २बार भोजन के बाद लें।

अन्य उपयोगी शास्त्रीय औषधियों

वातकुलान्तक रस

सर्वांग सुंदर रस 

अष्टमूर्ति रसायन

त्रिफला घृत

शतावरी चूर्ण

शंख पुष्पी चूर्ण 

पंचगव्यघृत

महाचैतसघृत

बिल्वादि तैल(कान मे डालने के लिए)

#अनुभूत आयुर्वेदिक योग प्रयोग।

* हिंग 10ग्राम.

वच 20ग्राम.

सौठ 40 ग्राम.

सेन्धव नमक 80 ग्राम

वायविडंग100ग्राम.

इन सब का महीन चूर्ण कर के 3-5ग्राम सवेरे शाम प्रयोग करने से मिर्गी मे लाभ मिलता है।

*कूठ व बच का चूर्ण करके 1-3 ग्राम सेवन रोज करने से स्थाई लाभ मिलता है।

**लहसुन10ग्राम

काले तिल30ग्राम मिलाकर

सवेरे खाने से मिर्गी मे लाभ मिलता है।

*शुद्ध हिंग, सौंठ, काली मिर्च, इन्द्रायन , जो भी उपलब्ध हो पानी मे मिलाकर नाक मे1-2 बूंद डालने से मिर्गी के दौरे के समय दौरा आना बन्द हो जाता है।

*शुद्ध हिंग को गघी के दूध में घोलकर नाक मे2-3 बूंद रोज एक महीना डालने से मिर्गी के दौरे आने बन्द हा जाते है।

*हिंग 1-5 ग्राम लेकर मुध मे मिलाकर सवेरे शाम चाटने से मिर्गी मे आराम मिलता है।

Dr_Virender_Madhan


रविवार, 23 जनवरी 2022

#रतौंधी का आयुर्वेद में ईलाज सम्भव in hindi.


 #रतौंधी_रोग क्या है ?

#Dr_Virender_Madhan.

रतौंधी, आंखों की एक बीमारी है। इस रोग के रोगी को दिन में तो अच्छी तरह दिखाई देता है, लेकिन रात के वक्त वह नजदीक की चीजें भी ठीक से नहीं देख पाता। 

आँखों का कॉर्निया(कनीनिका) सूख-सा जाता है और आई बॉल (नेत्र गोलक) धुँधला व मटमैला-सा दिखाई देता है।

- इस रोग के रोगी को दिन में तो अच्छी तरह दिखाई देता है, लेकिन रात के वक्त वह नजदीक की चीजें भी ठीक से नहीं देख पाता। 

- जांच से उपतारा (आधरिस) महीन छिद्रों से युक्त दिखता है तथा कॉर्निया के पीछे तिकोनी सी आकृति नजर आती है। आँखों से सफेद रंग का स्त्राव होता है।

#रतौंधी के लक्षण - Symptoms of Night Blindness In Hindi?


रतौंधी का एकमात्र लक्षण है, अंधेरे में देखने में कठिनाई होना। रतौंधी होने पर सूरज ढलने के बाद रोगी को दूर की वस्‍तुएं धुंधली दिखने लगती है। कई बार दिन में भी देखने में समस्‍या होने लगती है। एक समय के बाद आंखों के किनारों वाले हिस्‍सों से दिखना बंद हो जाता है।


* जब यह रोग पुराना होने लगता है, तो आँखों के बाल कड़े होने लगते हैं। आँखों की पलकों पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ व सूजन दिखाई पड़ती हैं। इसके साथ ही दर्द भी महसूस होने लगता है। ज्यादा लापरवाही करने पर आँख की पुतली अपारदर्शी हो जाती है और कभी कभी क्षतिग्रस्त भी हो जाती है।


* रतौंधी की इस स्थिति के शिकार ज्दायातर छोटे बच्चे होते हैं। अक्सर ऐसी स्थिति के दौरान रोगी अन्धेपन का शिकार हो जाता है। यह इलाज की जटिल अवस्था होती है और एसी स्थिति में औषधियों से इलाज भी बेअसर साबित होता है।

#रतौंधी रोग के कारण?


विटामिन ए की कमी से रतौंधी रोग होता है।

यदि आपको लगता है कि आपके शरीर में विटामिन-ए की कमी है तो हरी सब्जियां व फल आदि खाकर इसकी पूर्ति की जा सकती है, क्योंकि फलों, सब्जी तथा अन्य खाद्य पदार्थो में विटामिन-ए पाया जाता है। विटामिन-ए की कमी से आंखों में रतौंधी (रात में दिखाई देने में मुश्किल), आंख के सफेद हिस्से में धब्बे तथा कॉर्निया सूखना शुरू हो जाता है।

#रतौंधी के कारण - Causes of Night Blindness In Hindi?

कुछ आंखों की स्थितियां रतौंधी का कारण बन सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:

- दूर की वस्तुओं को देखते समय निकट दृष्टिदोष, या

 - धुंधली दृष्टि

- मोतियाबिंद या आंख के लेंस का धुंधला हो जाना

- रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (Retinitis pigmentosa), यह तब होता है जब आपके रेटिना में डार्क पिगमेंट जमा हो जाते हैं और टनल विजन (Tunnel vision) बनाता है।

- अशर सिंड्रोम (Usher syndrome), यह एक आनुवंशिक स्थिति है जो सुनने की क्षमता और दृष्टि दोनों को प्रभावित करती है।

#रतौंधी को रोकने के लिए क्याकरे क्या न करें?

क्या खांए?

*प्रतिदिन काली मिर्च का चूर्ण घी या मक्खन के साथ मिसरी मिलाकर सेवन करने से रतौंधी नष्ट होती है।

*प्रतिदिन टमाटर खाने व रस पीने से रतौंधी का निवारण होता है।

*आंवले और मिसरी को बारबर मात्रा में कूट-पीसकर 5 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करें।

हरे पत्ते वाले साग पालक, मेथी, बथुआ, चौलाई आदि की सब्जी बनाकर सेवन करें।

*अश्वगंध चूर्ण 3 ग्राम, आंवले का रस 10 ग्राम और मुलहठी का चूर्ण 3 ग्राम मिलाकर जल के साथ सेवन करें।

*मीठे पके हुए आम खाने से विटामिन ‘ए’ की कमी पूरी होती है। इससे रतौंधी नष्ट होती है।

*सूर्योदय से पहले किसी पार्क में जाकर नंगे पांव घास पर घूमने से रतौंधी नष्ट होती है।

शुद्ध मधु नेत्रों में लगाने से रतौंधी नष्ट होती है।

*किशोर व नवयुवकों को रतौंधी से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें भोजन में गाजर, मूली, खीरा, पालक, मेथी, बथुआ, पपीता, आम, सेब, हरा धनिया, पोदीना व पत्त * गोभी का सेवन कराना चाहिए।


*क्या न खाएं?

- चाइनीज व फास्ट फूड का सेवन न करें।

- उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन से अधिक हानि पहुंचती है।

- अधिक उष्ण जल से स्नान न करें।

- आइसक्रीम, पेस्ट्री, चॉकलेट नेत्रो को हानि पहुंचाते है।

अधिक समय तक टेलीविजन न देखा करें। 

- रतौंधी के रोगी को धूल-मिट्टी और वाहनों के धुएं से सुरक्षित रहना चाहिए।

- रसोईघर में गैंस के धुएं को निष्कासन करने का पूरा प्रबंध रखना चाहिए।

- खट्टे आम, इमली, अचार का सेवन न करें।

#रतौंधी का आयुर्वेदिक ईलाज?

*आयुर्वेदिक औषधियों से रतौंधी को कंट्रोल करने के काफी अच्छे व उत्साहवर्धक नतीजे देखने को मिलते हैं। आयुर्वेदिक दवाओं द्वारा इसका सफल इलाज संभव है।


आँखों में लगाने वाली औषधियाँ:-

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* शंखनाभि, विभीतकी, हरड, पीपल, काली मिर्च, कूट, मैनसिल, खुरासानी बच ये सभी औषधियाँ समान मात्रा में लेकर बारीक कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बकरी के दूध में मिलाकर बत्तियाँ बना लें। दवा इतनी बारीक हो कि बत्तियाँ खुरदरी न होने पाएँ। इन बत्तियों को चकले या चिकने पत्थर पर रोजाना रात को पानी में घिसकर आँखों में लगाने से रतौंधी रोग ठीक हो जाता है।


* चमेली के फूल, नीम की कोंपल (मुलायम पत्ते), दोनों हल्दी और रसौत को गाय के गोबर के रस में बारीक पीस कपड़े से छानकर आँखों में लगाने से रतौंधी रोग दूर हो जाता है।


* रीठे की गुठली को यदि स्त्री के दूध में घिसकर आँखों में लगाएँ तो यह भी रतौंधी में काफी फायदेमंद होता है।


* सौंठ, हरड़ की छाल, कुलत्थ, खोपरा (सूखा नारियल), लाल फिटकरी का फूला, माजूफल नामक औषधियाँ पाँच-पाँच ग्राम लेकर बारीक पीस लें। अब इसमें ढाई-ढाई ग्राम की मात्रा में कपूर, कस्तूरी और अनवेधे मोती को मिलाकर नींबू का रस डालकर पाँच-सात दिन खरल करें। फिर इसकी गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें। इस गोली को गाय के मूत्र में घिसकर लगाने से रतौंधी रोग में फायदा होता है। यदि इसे स्त्री के दूध में घिसकर लगाया जाए तो आँख का फूला (सफेद दाग) व पुतली की बीमारियाँ भी दूर हो जाती हैं।


* करंज बीज, कमल केशर, नील कमल, रसौत और गैरिक 5-5 ग्राम लेकर पावडर बना लें। इस पावडर को गो मूत्र में मिलाकर बत्तियां बनाकर रख लें। इसे रोजाना सोते समय पानी में घिसकर आंखों में लगाने से रतौंदी रोग में काफी लाभ होता है।


खाने वाली औषधियाँ:-

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* 50 ग्राम अमलकी, 50 ग्राम मुलैठी, 25 ग्राम बहेड़ा, 12.5 ग्राम हरीतकी, 5 ग्राम पीपल, 5 ग्राम सेंधा नमक और 150 ग्राम शकर लेकर बारीक पावडर बनाकर कपड़छान कर लें। इसमें से 3 से 5 ग्राम की मात्रा लेकर गाय के घी या शहद के साथ लगभग 6 से 8 हफ्ते तक सेवन करें। इसका सेवन आँखों की कई बीमारियों (रतौंधी, फूला, जलन व पानी बहना आदि) में काफी फायदेमंद होता है। जरूरत के मुताबिक इस औषधि को 8 हफ्ते से भी ज्यादा समय तक सेवन किया जा सकता है।


* इसके अलावा कुपोषणजन्य या विटामिन 'ए' की कमी से होने वाले रतौंधी रोग में अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश, शतावरीघृत, शतावरी अवलेह, अश्वगंधाघृत व अश्वगंधा अवलेह काफी फायदेमन्द साबित हुए हैं।


लाभकारी पत्ते:-

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* रतौंधी के रोगी को चाहिए कि वह अतिमुक्त, अरंड, शेफाली, निर्र्गुण्डी व शतावरी के पत्तों की सब्जी देसी घी में अच्छी तरह पकाकर खाएँ। अगधिया के पत्ते की सब्जी भी रतौंधी में काफी फायदेमंद होती है।


* बबूल के पत्ते व नीम की जड़ का काढ़ा पीना भी रतौंधी में काफी लाभ पहुंचाता है। यह काढ़ा बना बनाया बाजार में भी मिलता है।


शनिवार, 1 जनवरी 2022

#त्रिफला चूर्ण" के अद्वैत आयुर्वेदिक गुण in hindi.

 #त्रिफला #आयुर्वेदिक दवा #घरलूउपाय #रसायन



 #त्रिफला चूर्ण" के अद्वैत आयुर्वेदिक गुण *

#Dr_Virender_Madhan.

#त्रिफला क्या है ?

त्रिफला अर्थात् तीन फल।

1) आँवला

2) बहेड़ा एवं

3) हरड़

इन तीनों से बनता है त्रिफला चूर्ण ।

● आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में जितने भी रोग होते हैं वो त्रिदोष: वात, पित्त, कफ के बिगड़ने से होते हैं।

● ज्यादातर सिर से लेकर छाती के मध्य भाग तक जितने रोग होते हैं वो कफ के बिगड़ने के कारण होते है, और छाती के मध्य से पेट खत्म होने तक जितने रोग होते हैं तो पित्त के बिगड़ने से होते हैं जबकि पेडू से शरीर के दम निचले भाग तक जितने भी रोग होते हैं वो वात (वायु) के बिगड़ने से होते हैं।

● लेकिन कई बार गैस होने से सिरदर्द होता है तब ये वात के बिगड़ने से माना जाएगा।

जैसे जुकाम होना, छींके आना, खाँसी होना।

●● ये कफ बिगड़ने के रोग हैं अतः ऐसे रोगों में आयुर्वेद में तुलसी लेने को कहा जाता है

क्योंकि तुलसी कफ नाशक है,

ऐसे ही पित्त के रोगो के लिए जीरे का पानी लेने को कहा जाता है

● क्योंकि जीरा पित्त नाशक है।

● इसी तरह मेथी को वात नाशक कहा जाता है

●● लेकिन मेथी ज्यादा लेने से वात तो संतुलित हो जाता है पर ये पित्त को बढ़ा देती है।

#त्रिफला के लाभ:-

● आयुर्वेदिक दवाओं में से  ज़्यादातर औषधियाँ वात, पित्त या कफ में से कोई एक को ही नाश करने वाली होती हैं लेकिन त्रिफला ही एक मात्र ऐसी औषधि है जो वात, पित, कफ तीनों को एक साथ संतुलित करती है ।

–त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है.

● वागभट जी इस त्रिफला की इतनी प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने आयुर्वेद में 150 से अधिक सूत्र मात्र (त्रिफला को इसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा त्रिफला को उसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा आदि) त्रिफला पर ही लिखे हैं ।

  - आमतौर पर लोग त्रिफला को कब्ज निवारक के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इसका सेवन करने के कई फायदे हैं. यदि आपको किसी भी प्रकार की पेट संबंधी समस्या है तो आपके लिए त्रिफला चूर्ण का सेवन बहुत ही गुणकारी रहेगा.

 -आयुर्वेद में त्रिफला चूर्ण को शरीर के लिए बहुत ही गुणकारी माना गया है. आमतौर पर लोग त्रिफला को कब्ज निवारक के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इसका सेवन करने के कई फायदे हैं. यदि आपको किसी भी प्रकार की पेट संबंधी समस्या है तो आपके लिए त्रिफला चूर्ण का सेवन बहुत ही गुणकारी रहेगा. पेट के अलावा भी इसे खाने से कई रोगों में राहत मिलती है. 

[चिकित्सकों की यह भी सलाह होती है कि त्रिफला का सेवन बिना चिकित्सीय परामर्श के नहीं करना चाहिए. ]

#त्रिफला_के_अद्भुत_लाभ।


#कमजोरी दूर करें

शारीरिक दुर्बल व्यक्ति के लिए त्रिफला का सेवन रामबाण साबित होता है. इसके सेवन करने वाली व्यक्ति की याद्दाश्त भी अन्य लोगों के मुकाबले तेज होती है. इसका सेवन करने से दुर्बलता कम होती है. दुर्बलता को कम करने के लिए त्रिफला को हरड़, बहेड़ा, आंवला, घी और शक्कर को मिलाकर खाना चाहिए.

#रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए

त्रिफला चूर्ण का सेवन मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है. यदि आपके शरीर में दुर्बलता है तो भी त्रिफला चूर्ण का सेवन कर आप अपने शरीर का कायाकल्प कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप इसका कई वर्ष तक नियमित रूप से सेवन करें.

#हाई ब्लड प्रेशर में राहत

त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी.

#कब्ज से राहत

त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी, अनियमित खान-पान और तनाव भरे माहौल में ज्यादातर लोग कब्ज व शारीरिक सुस्ती से ग्रस्त रहते हैं. ऐसे लोगों को त्रिफला का सेवन नियमित गुनगुने पानी के साथ करना चाहिए.

#नेत्र रोग से राहत मिले

त्रिफला के चूर्ण को पानी में डालकर आखों को धोने से आखों की परेशानी दूर होती है. मोतियाबिंद, आखों की जलन, आखों का दोष और लंबे समय तक आखों की रोशनी को बढ़ाए रखने के लिए 10 ग्राम गाय के घी में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण और पांच ग्राम शहद को मिलाकर सेवन करें.

#चर्म रोग दूर करें

चर्म रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुन्सी की समस्या में सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण खाने से फायदा होता है. एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी में दो-तीन घंटे के लिए भिगो दें. अब इस पानी की घूंट भरकर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दें. इससे मुंह की समस्या में राहत मिलेगी.

#सिर दर्द में गुणकारी

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के अंदर की छाल और गिलोय को मिला कर बनें मिश्रण को आधा किलो पानी में पकाएं. ध्यान रहे इसे 250 ग्राम रहने तक पकाते रहें. अब इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह व शाम के समय गुड़ या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर होती है.

#मोटापे से राहत

यदि आप भी मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं तो त्रिफला का सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा. मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर लें. इसके अलावा त्रिफला चूर्ण को पानी में अच्छे से उबालकर, शहद मिलाकर पीने से शरीर की चर्बी कम होती है.

#त्रिफला चूर्ण कैसे लेना चाहिए?

-त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होती है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें।


#त्रिफला चूर्ण कब और कैसे खाना चाहिए?

-भोजन से आधा घंटा पहले या आधा घंटा बाद में लें। लाभ: ऋतुओं के अनुसार सालभर लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होने के साथ त्वचा संबंधी परेशानियां भी दूर होती हैं। पेट से जुड़े रोग जैसे कब्ज, अपच और दर्द में आराम मिलता है।

त्रिफला का सेवन करने से हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है. यदि आप भी उच्च रक्तचाप या मुधमेह के बढ़ते स्तर से परेशान हैं तो तीन से चार ग्राम त्रिफला के चूर्ण का सेवन प्रतिदिन रात को सोते समय दूध के साथ कर लें. राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण का सबसे पहला यही गुण है कि यह कब्ज से राहत देता है.

● रात को त्रिफला चूर्ण लेंगे तो वो रेचक है अर्थात पेट की सफाई करने वाला, बड़ी आँत की सफाई करने वाला।

● शरीर के सभी अंगो की सफाई करने वाला।

● कब्जियत दूर करने वाला 30-40 साल पुरानी कब्जियत को भी दूर कर देता है।

● प्रातःकाल त्रिफला लेने को पोषक कहा गया, सुबह का त्रिफला पोषक का काम करेगा.!

#त्रिफला की मात्रा :-

रात को कब्ज दूर करने के लिए त्रिफला ले रहे है तो एक टी-स्पून अथवा आधा बड़ा चम्मच, गर्म पानी के साथ लें और ऊपर से गर्म दूध पी लें।

सुबह त्रिफला का सेवन करना है तो शहद या गुड़ के साथ लें।

● तीन महीने त्रिफला लेने के बाद 20 से 25 दिन छोड़ दें फिर दुबारा सेवन शुरू कर सकते हैं।

● इस प्रकार त्रिफला चूर्ण मानव शारीर के बहुत से रोगों का उपचार कर सकता है।


** इसके अतिरिक्त अगर आप आयुर्वेद के अन्य नियमों का भी पालन करते हैं तो त्रिफला और अधिक शीघ्र लाभ पहूँचाता है।

● जैसे मैदे से बने उत्पाद बर्गर, नूडल, पीजा आदि ना खाएँ, ये कब्ज के मुख्य कारण हैं।

● रिफाईन तेल एवं वनस्पति घी कभी ना खाएँ।

● यथा संभव घाणी से पिरोया हुआ सरसों, नारियल, मूँगफली, तिल आदि तेलों का ही सेवन करें।

● शक्कर का सेवन न करें व नमक के स्थान पर सैंधा नमक का उपयोग करें।


#त्रिफला चूर्ण नुकसान त्रिफला के बहुत अधिक सेवन से आपको कुछ पेट संबंधित समस्याएं (Triphala Khane ke Nuksan) भी हो सकती हैं। पेट में सूजन, दबाव भी महसूस हो सकता है। हालांकि, इसका इस्तेमाल कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है, लेकिन इस चूर्ण का सेवन अत्यधिक करते हैं डायरिया, आंव, पेचिश आदि की समस्या भी हो सकती है।

#Guru_Ayurveda.

#Dr_Virender_Madhan.


मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

धनकुबेर पीयूष जैन परिचय.in hindi.

 #धनकुबेर #पीयूष जैन #गुदडी_मे_लाल.#इत्र का कारोबारी #जीएसटी का छापा.

#पीयूष जैन कौन है?



पीयूष जैन उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। वह आनंदपुरी के रहने वाले हैं और कन्नौज के चिप्पट्टी के रहने वाले हैं। जैन कन्नौज में एक परफ्यूम फैक्ट्री, कोल्ड स्टोर और पेट्रोल पंप के मालिक हैं।

#कारोबारी पीयूष जैन की कितनी संपत्ति जब्द की गई है ?

24 दिसंबर 2021 को पीयूष जैन के घर से नकदी से भरे बोरी, कंटेनर जब्त किए गए। आयकर अधिकारियों ने बताया कि अब तक 150 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई है।

#पीयूष जैन की जीवन-शैली?

>> 15 साल में पूरी तरह बदल गई पीयूष जैन की जिंदगी, 

#कन्नौज के धनकुबेर की पूरी कहानी

* पीयूष जैन कन्नौज के बड़े व्यापारियों में शुमार हैं। पीयूष जैन इत्र के बड़े कारोबारी हैं। जब से उनकी सम्पत्ति जब्त की गई तब से इन्हें कन्नौज का धनकुबेर भी कहा जाता है।

#समाजवादी इत्र बनाने वाले कारोबारी के यहां छापा.

> पीयूष जैन का कारोबार वैसे तो कानपुर में ही है, लेकिन उनकी पैदाइश कन्नौज की है। पीयूष जैन के पुरखे कई पीढ़ियों से कन्नौज में ही रहते आए हैं। इत्र के कारोबार की दुनिया में पीयूष जैन का भले ही बड़ा नाम था, लेकिन उनकी

चर्चा इनकम टैक्स की रेड के बाद ही मिली है। कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ले से निकल मुंबई और मध्य पूर्व तक में इत्र का कारोबार करने वाले पीयूष जैन का नाम आज देश भर में चर्चा में है।

- पीयूष के ठिकानों से बरामद रुपयों को लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि यह करीब 290 करोड़ के आस-पास हो सकता है। आपको बता दें कि पीयूष जैन के कन्नौज स्थित आवास से आठ बोरों में मिली नकदी की गिनती शुरू हो गई है। फिलहाल हर कोई यह जानना चाहता है कि पीयूष आखिर कौन हैं,  

#कन्नौज के धनकुबेर की कहानी-

पीयुष जैन ःपिता थे केमिस्ट: स्थानीय लोगों के मुताबिक पीयूष जैन के पिता महेंश चंद्र जैन पेशे से केमिस्ट हैं। दो साल पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था। बताया जाता है कि उनके दोनों बेटों पीयूष और अंबरीष ने इत्र और खाने-पीने की चीजों में मिलाए जाने वाले एसेंस (कंपाउंड) बनाने का तरीका महेश से ही सीखा था। आपको बता दें कि कन्नौज की जैन स्ट्रीट में पीयूष जैन का पुश्तैनी घर है, जो काफी छोटा हुआ करता था। लेकिन अब यह घर एक आलीशान कोठी में तब्दील हो गया है। जैन स्ट्रीट के उनके पड़ोसी बताते हैं कि उन्हें भी इस बात का इल्म नहीं था कि जैन परिवार इतना रईस है।

#आलीशान कोठी मे बदला घर।

जयपुर से आये थे कारीगर:

समाचार के अनुसार जब पीयूष की माली हालत बदली तो बगल के ही दो मकानों को खरीदकर एक कर दिया गया। बाद में करीब 700 वर्ग गज के इस मकान को बनवाने के लिए जयपुर से कारीगर बुलवाए गए थे। इस आलिशान घर में मोटी-मोटी दीवारें, महंगे एयरकंडिशनर, स्टील की बालकनी और दरवाजें इस कोठी को बाकी मकानों से एकदम अलग बनाते हैं। इतना बड़ा कारोबार और जोखिम होने के बावजूद घर के किसी भी बाहरी हिस्से में एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं दिखा। घर भी ऐसा बना है कि दूसरे मकानों से बालकनी के अलावा कुछ नहीं दिखता।

कन्नौज में नहीं रहता परिवार: समाचार के अनुसार इस मकान में मुख्यतौर पर महेश चंद्र जैन और उनका स्टाफ रहता है। पीयूष और अंबरीष यहां अक्सर आते-जाते रहते थे। पड़ोसियों के अनुसार, पीयूष और अंबरीष के 6 बेटे-बेटियां हैं। सभी कानपुर में पढ़ते हैं और कन्नौज में कम ही आते-जाते थे।

#कारोबार.

40 से ज्यादा कंपनियों के मालिक: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीयूष जैन 40 से ज्‍यादा कंपनियों के मालिक हैं। इनमें से दो कंपनियां मिडिल ईस्ट में हैं।

जबकि कन्‍नौज में पेट्रोल पंप, परफ्यूम फैक्‍ट्री और कोल्‍ड स्‍टोरेज भी हैं। 

पीयूष जैन इत्र का सारा बिजनेस मुंबई से करते थे जो विदेशों तक फैला है।

#साधारण भैष मे घनकुबैर।

घर में भरा पड़ा था कैश, पर बाहर नहीं करते थे ऐश... कन्नौज के धनकुबेर पीयूष जैन 

कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ले से निकल मुंबई और मध्य पूर्व तक में इत्र का कारोबार करने वाले पीयूष जैन का नाम आज देश भर में चर्चा में है। तिजोरियों और बेसमेंट से निकल रहे कैश को गिनने में मशीनें जुटी हैं। अब तक करीब 257 करोड़ रुपये पीयूष जैन के ठिकानों से मिल चुके हैं। फिलहाल हर कोई यह जानना चाहता है कि पीयूष आखिर कौन हैं, 


#पीयूष जैन का स्टाईल।

चप्पल और पायजामा पहनकर ही शादियों में पहुंच जाते थे ।

पीयूष जैन का परिवार भले ही धनकुबेर था, लेकिन कन्नौज के लोग बताते हैं कि वे सादगीपूर्ण जिंदगी ही जीते रहे हैं। इससे अंदाजा ही नहीं लग पाया कि वह इतने अमीर हो सकते हैं। कई बार तो वह चप्पल और पायजामा पहनकर ही शादी-पार्टियों में पहुंच जाते थे। पीयूष जैन पर आरोप है कि कई फर्ज़ी फर्मों के नाम से बिल बनाकर कंपनी ने करोड़ों रुपयों की जीएसटी चोरी की। पीयूष के घर से 200 से अधिक फर्जी इनवॉइस और ई-वे बिल मिले हैं।  घर में बड़ी तादाद में बक्से मंगवाये गए हैं। छापेमारी के दौरान जीएसटी चोरी का भारी खेल सामने आया है।

#सियासी रंग

 *यूपी चुनाव से पहले सियासत के केंद्र में पीयूष जैन,

*बीजेपी-सपा में राजनीति तेज। 


शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

खुद से अपना आयुर्वेदिक इलाज न करें।in hindi.

 

#खुद से अपना आयुर्वेदिक ईलाज न करें?

By- #Dr_Virender_Madhan.

#क्यों न करें आप अपना आयुर्वेदिक इलाज।

*अत्यंत गुणों को समेटे आयुर्वेदिक औषधियौं मे हर तरह के रोगों को जड़ से खत्म करने की क्षमता है। लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं के गलत प्रयोग से घातक भी साबित हो सकती हैं, अगर आप इसका खुद से सेवन करते हैं। 


#आयुर्वेदिक दवाएं कब और कैसे नुकसान पहुंचा सकती हैं?

समय के साथ-साथ लोगों का रहन-सहन भी बदल चुका है,लाईफ स्टाईल बदल चुका है।लेकिन आयुर्वेद आज भी लोकप्रिय है विश्वास है कि आयुर्वेदिक दवा कभी भी नुकसान नहीं करती। शरीर की किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए आयुर्वेदिक दवा से अच्छी कोई चिकित्सा पध्दति नही है इसी कारण आजकल आयुर्वेदिक दवाओं की मांग भी खूब है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो आयुर्वेदिक इलाज पर इस कदर भरोसा करते हैं कि खुद से भी आयुर्वेदिक दवाएं खाने लगते हैं। 

इस कारण से कुछ लोग आयुर्वेद के नियम न जानते हुए गलत तरीकों से प्रयोग कर बैठते है।

औषधी हो या आहार, उनके बनाने के खाने के कुछ नियम होते है।

#कब खाना है?#कितना खाना है?#कैसे खाना है?#किसे खाना है?#किसेनहींखाना है ?

इन सब पर विचार करना चाहिए।

बिना सोचे समझे आहार या आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग करना हानिकारक हो जाता है


#आयुर्वेदिक औषधियौं के नियम है जरूरी.

>> अगर आप खुद ही आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करते हैं, तो सबसे पहले किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से,चिकित्सक से सलाह जरुर ले लेनी चाहिए।

>>आपको खास सावधानी बरतने की जरूरत है। इन दवाओं के भी अपने कुछ खास नियम होते हैं। अगर नियमों को ध्यान में रखकर आप आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन नहीं करते हैं, तो यही दवाएं आपके लिए मुश्किलें भी खड़ी कर सकती हैं। आप चाहे जिस वजह से आयुर्वेदिक दवा का सेवन कर रहे हैं, अपनी इच्छा से दवाएं खाते रहने से आपके शरीर पर दवाओं का असर कम होने लगता है और जरूरत पड़ने पर संबंधित बीमारी की सही दवाओं के सेवन से भी आपको लाभ नहीं होता।


>>ऐसे नियमों को जानना है जरूरी.

आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने के लिए आयुर्वेद ऋषि ऋषियों ने कुछ नियम तय किये हैं,

 जिसके अनुसार, सूर्योदय के समय, दिन के समय भोजन करते समय, शाम के भोजन करते समय और रात में इन दवाओं को लेने का सही समय तय है। कुछ लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती, इस कारण वे इसका नुकसान भी उठाते हैं। इसलिए ऐसी दवाओं का सेवन आपकी बीमारी का उपचार कर रहे आयुर्वेदाचार्य के निर्देशानुसार ही करना चाहिए।

>>ज्यादा अति हमेशा बुरी होती है।

 सेहत को दुरुस्त रखने वाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते समय हमें उसकी सही मात्रा के बारे में जानकारी नहीं होती और इसकी ज्यादा मात्रा हमारे लिए नुकसानदेह हो सकती है।


** निर्देशों का रखें ध्यान.

आयुर्वेदिक दवाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं,मगर 

दोष,धातु की समता-विषमता,काल(ऋतु, रात,दिन,आयु),रोग अवस्थाआदि की अवहेलना कर के प्रयोग की गई औषधियां लाभ के स्थान पर हानिकारक हो सकती है।

#विरुद्ध औषधियां और विरूद्ध आहार क्या है?

*कुछ आहार, औषधि दुसरे आहार, औषधि के साथ प्रयोग करने से विपरीत प्रभाव दिखाती है। फलस्वरूप रोग,कलेश, मृत्यु तक हो जाती है।उदाहरण के लिये- 

**मछली और दूध का एक साथ प्रयोग करना।

**मूली और दूध का एक साथ प्रयोग करना।

**धी और शहद का सम मात्रा मे प्रयोग करना घातक होता है।

उसी प्रकार कुछ द्रव्यो का प्रयोग एक साथ नही होता है

>>किसी भी आयुर्वेदिक औषधी के योग संयोग का ज्ञान आयुर्वेदिक चिकित्सक,आचार्यो,आयुर्वेदिक विशेषज्ञो को ही होता है अतः आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग से पहले उनकी सलाह लेना ही उचित रहता है।

आयुर्वेद मे रसायन के प्रयोग करने से पहले शरीर के शोधन (पंचकर्म) करने का विधान है 

लेकिन अधिकतर लोग बाजार से रस-रसायन लेकर प्रयोग कर लेते है बाद मे लाभ न होने पर या किसी प्रकार की हानि होने पर आयुर्वेद को बदनाम करने लगते है।


#अति मात्रा ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल के नुकसान

अकसर आयुर्वेदिक दवाओं की उपयोगिता के बारे में सभी लोग बात करते हैं, लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं के बीच अन्य दवाओं से होने वाले रिएक्शन के बारे में ज्यादा लोगों को समझ नहीं है। ऐसे लोग किसी खास तत्व की अधिकता या किसी के दुष्परिणामों की फिक्र नहीं करते, जो गलत है।

न ही मात्रा का ध्यान रखते है

न ही काल ऋतु का मान रखते है शीत गुण वाले शीत काल मे, उष्ण पदार्थ उष्ण काल मे प्रयोग करेंगे तो हानि तो होगी ही।

>>ठीक नहीं ज्यादा कुछ औषधियो का सेवन।

*आयुर्वेद में गिलोय को अमृत भी कहा जाता है, जिसमें डायबिटीज से लड़ने के गुण होते हैं। लेकिन इसे भी किसी आयुर्वेदाचार्य के परामर्श से ही इस्तेमाल में लाना चाहिए, क्योंकि इसका सेवन शुगर लेवल को प्रभावित करके पाचन-तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे कब्ज की समस्या हो सकती है।

*जामुन से -

ज्यादातर लोग डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए जामुन का सेवन करते हैं। आयुर्वेद के नजरिये से जामुन को सेहत के लिए सबसे बड़ा वरदान माना जाता है। लेकिन यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि इसके ज्यादा सेवन से व्यक्ति का पाचन-तंत्र कमजोर हो जाता है।

*मेथी दाना - 

डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और पेट संबंधी समस्याओं के लिए सबसे फायदेमंद मेथी दाना होता है। आयुर्वेदिक औषधियों में से एक मेथी दाने के इस्तेमाल की सलाह खुद आयुर्वेदाचार्य भी देते हैं, लेकिन मेथी का स्वभाव काफी गर्म होता है। इसकी ज्यादा मात्रा से पित्त, गैस, दस्त और खून पतला होने का जोखिम बना रहता है।


*दालचीनी का इस्तेमाल में -

गर्म मसालों और आयुर्वेदिक औषधि में दालचीनी का इस्तेमाल कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है, लेकिन दालचीनी में लगभग 5 प्रतिशत कामरिन पाया जाता है। यह कामरिन लिवर को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए इसे इस्तेमाल करने से पहले आपको इसकी सही मात्रा की जानकारी होनी ही चाहिए, ताकि आप इसके दुष्प्रभाव से बचे रहें।

*करेले का इस्तेमाल -

करेले को आयुर्वेदिक नजरिये से शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है, लेकिन यह आपके पाचन-तंत्र को पूरी तरह खराब करने में भी सक्षम होता है। इसके बीजों में एक ऐसा तत्व पाया जाता है, जो आंतों तक प्रोटीन के संचार को रोक सकता है। इसके रस में मौजूद मोमोकैरीन नाम का तत्व पीरियड्स के फ्लो को बढ़ा देता है।

सावधानी:-

न असर करे, तो सावधान हो जाएं

*अगर आप खुद बिना किसी की सलाह के आयुर्वेदिक दवाएं लेते हैं, तो आपको खास सावधानी बरतने की जरूरत है। जब ये दवाएं आपको लाभ देना बंद कर देती हैं, तो इसका मतलब यही होता है कि या तो आप इसे लेने का सही समय नहीं जानते या फिर इन दवाओं की मात्रा में अधिकता या कमी हो रही है।

अगर आप किसी छोटी या बड़ी बीमारी से पीड़ित हैं और आयुर्वेदिक उपचार को सबसे पहले वरीयता देना चाहते हैं, तो विशेषज्ञ की सलाह के बिना दवाओं का सेवन भूलकर भी ना करें। आम लोगों की सलाह से ज्यादा सफल सलाह किसी योग्य आयुर्वेदाचार्य की ही हो सकती है। इसलिए इसका लाभ उठाएं और सही दवा खाएं।

किसी की सलाह लेने पहले देख ले कि सलाह देनवाला उस विषय में कितना जानता है कितना उस विषय मे अनुभवी है।

धन्यवाद!

#Dr_Virender_Madhan.





  

 

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

#खांसी_की_उत्तम #औषधिBensip syrup.in hindi.

 #खांसी_की_उत्तम#औषधि। #Bensip Syrup. In Hindi.

#Dr_virenderMadhan.

#Bensip Syrup के लाभ कैसे मिलता है?

</>Bensip Syrup is pure herbal product.

*Manufactured by GMP certified company.

*Use all kinds of Cough, bronchitis, and asthma,

*Completely safe ayurvedic medicine.

*No any side effects.

* शीध्र प्रभावशाली है।

*Bensip syrup is alsocough expectorant.

#Bensip syrup का Formulation#Dr_Virender_madha ने 15 वर्षों तक ट्रायल, परिक्षण करके तैयार किया था तथा अब 21 सोलों से रोगियों को दे कर लाभन्वित कर रहे है।इसके प्रभाव को देखकर रोगी अपनी परिवार व मित्रगणों को #Bensip syrup लेने की सलाह देते है।

Composition of Bensip Syrup 

Each 10ml contain

-Viola aditya (Gulbanfsha) 500mg.

-Terminalis Chebula (Harit ki) 300mg.

-Terminalis Verification (Vibhitika) 300mg.

-Embilca Officialis (Amilki) 300mg.

-Zingiber Offcialis (Saunt) 100mg.

-Piper Nigrum (Marich) 100 mg.

-piper Longam (Pipal) 100 mg.

-Adhatoda Vasica (Vasa) 500mg.

-Glycayrrhiza Glabira (Yesthimadhu) 300mg.