#MUKOLIV SYRUP
*A pure herbal product
#Mukoliv is useful for diseases of liver and spleen.
Health and fitness यह ब्लॉग आयुर्वेदिक ज्ञान , औषधियों और जडी-बूटी की पूरी जानकारी के बारे में है ।
#Mukoliv is useful for diseases of liver and spleen.
जाने:-
नवरात्रि और आयुर्वेद में गहरा संबंध, मां दुर्गा का स्वरूप है ये 9 औषधियां
*संदिग्ध आने वाले कोरोना वायरस के बुरे दौर से बचने के लिए लोगों को मास्क पहनना, हाथों को सेनैटाइज करना और इम्यूनिटी बढ़ाने जैसी मुख्य हिदायतें दी जा रही हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बताएंगे, जिसमें नवदुर्गा के 9 रुप विराजते हैं। नवदुर्गा यानि मां दुर्गा के नौ रूप मानी जाने वाली ये 9 औषधियां अपने भोज्य पदार्थों में लेने से ना सिर्फ इम्यूनिटी बढ़ेगी बल्कि शरीर को कैंसर जैसी कई बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलेगी।
* इन औषधि को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति और ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है।
ये कई रोगों के प्रति एक कवच का काम करती हैं, इसलिए इन्हें दुर्गाकवच कहा जाता है।
हिमावती औषधि हरड़ या हरीतकी देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं।
- जो सात प्रकार की होती है। इससे पेट संबंधी समस्याएं नहीं होती और ये अल्सर में काफी फायदेमंद है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए सर्दियों में इसका सेवन कई रोगों से बचाने में मदद करता है।
नवदुर्गा का दूसरा रूप है।
ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ब्राह्मी औषधी याददाश्त बढ़ाने में मदद करती है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। वहीं, इसका नियमित सेवन पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है।
चन्दुसूर या चमसूर धनिए के समान दिखने वाला ऐसा पौधा है, जिसकी पत्तियां सब्जी बनाने के लिए प्रयोग होती है। नियमित इसका सेवन मोटापा कम करने के साथ इम्यूनिटी बढ़ाता है। साथ ही यह पौधा स्मरण शक्ति बढ़ाने, दिल को स्वस्थ रखने में भी मददगार है।
पेठा को कुम्हड़ा भी कहते हैं इसलिए इसे नवदुर्गा का चौथा रूप माना जाता है।
- यह औषधि शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के साथ रक्तपित्त, रक्त विकार को दूर करती है। पेट के लिए भी यह औषधि किसी रामबाण से कम नहीं है। रोजाना इसका सेवन मानसिक, दिल की बीमारियों से भी बचाता है।
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती या देवी उमा भी कहा जाता है।
यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होता है। अलसी का सेवन कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम का खतरा घटाती है।
-आयरन, प्रोटीन और विटामिन-B6से भरपूर अलसी एनीमिया, जोड़ों के दर्द, तनाव, मोटापा घटाने में भी फायदेमंद है।
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है, जिन्हें मोइया या माचिका भी कहा जाता हैं।
यह औषधि कफ, पित्त की समस्याओं को दूर रखती है। इसके अलावा यह औषधि कैंसर का खतरा भी घटाती है।
दुर्गा के सांतवे रूप कालरात्रि को नागदोन औषधि के रूप में जाना जाता है। इससे ब्रेन पावर बढ़ती है और तनाव, डिप्रेशन, ट्यूमर, अल्जाइमर जैसी समस्याएं दूर रहती हैं। वहीं, इसकी 2-3 पत्तियां काली मिर्च के साथ सुबह खाली पेट लेने से पाइल्स में फायदा मिलता है। साथ ही इसके पत्तों से सिंकाई करने पर फोड़े-फुंसी की समस्या भी दूर होती है।
नवदुर्गा का आंठवा रूप महागौरी को औषधि नाम तुलसी के रूप में भी जाना जाता है।
- घर में तुलसी लगाना शुभ माना जाता है।सेहत के लिए भी यह रामबाण औषधी है। तुलसी का काढ़ा या चाय रोजाना पीने से खून साफ होता है। साथ ही इससे दिल के रोगों का खतरा भी कम होता है। इससे कैंसर का खतरा भी कम होता है।
नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री जिसे शतावरी भी कहा जाता है।
शतावर स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन औषधि है। यह रक्त विकार को दूर करने में मदद करती है। वहीं रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं पनपती। शतावर में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लामेट्री और घुलनशील फाइबर होता है, जो पेट को दुरुस्त रखने के साथ कई रोगों से बचाने में मददगार है।
** इस कारण इस नवरात्र का सर्वाधिक महत्त्व है।
> अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दुर्गा पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं।
-इस कारण इस नवरात्र का सर्वाधिक महत्त्व है
- नवरात्र व्रत का मूल उद्देश्य है इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचय।
-इन दिनों में शरीर दबे हुए रोगों को निकालने का प्रयास करता है।
इसीलिए इन दिनों रोग बढ़ जाते हैं। आयुर्वेद इस अवसर को शरीर शोधन के लिए विशेष उपयोगी मानता है।
- नौ दिन का व्रत-उपवास प्राकृतिक उपचार के समतुल्य माना जा सकता है। इसमें प्रायश्चित के निष्कासन और पवित्रता की अवधारणा दोनों भाव हैं।
नवरात्र के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। व्रत में हम कई चीजों से परहेज करते हैं और कई वस्तुओं को अपनाते हैं। आयुर्वेद की धारणा है कि पाचन क्रिया की खराबी से ही शारीरिक रोग होते हैं। क्योंकि हमारे खाने के साथ जहरीले तत्व भी हमारे शरीर में जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि व्रत से पाचन प्रणाली ठीक होती है। व्रत उपवास का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केेंद्रित कर सकेें।
- मनोविज्ञान यह भी कहता है कि कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास एक शुद्ध भावना के साथ रखता है। उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं।
व्रत या उपवास भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। यह धर्म से तो जुड़ा ही है, सेहत के लिए भी बहुत कारगर है।
< जितने भी हमारे उत्सव, त्यौहार है कहीं न कहीं इन सबका सम्बंध हमारी मानसिक, शारिरीक खुशियों व स्वास्थ्य से सम्बंध होता है।
* उपवास से पाचन तंत्र को फायदा पहुंचता और इससे वजन घटाया जा सकता है। इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
* जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या रहती है, उनके लिए उपवास फायदेमंद हो सकता है। साथ ही यह हार्ट को स्वस्थ्य रहता है।
* शरीर में संतुष्टि का भाव जगाता और व्यक्ति तरोताजा महसूस करता है।
* उपवास शरीर के सिस्टम को साफ करता है।
* स्वास्थ्य बेहतर होता है।
* नींद का चक्र सुधरता है।*पाचन तंत्र को थोड़ा आराम मिलने से शारिरिक प्रणालियां संतुलित हो जाती हैं।
* मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है
वैसे उपवास कभी भी रखा जा सकता है, लेकिन यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो इससे बचना चाहिए।
- उपवास के दौरान लोग तरह-तरह की चीजें खाते हैं या खाली पेट बहुत अधिक चाय पीते हैं। इससे फायदा होने के बजाए नुकसान हो सकता है।
- उपवास में सबकुछ खाना छोड़ सकते हैं या कुछ खाद्य पदार्थ छोड़ सकते हैं। उपवास एक दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक का हो सकता है। उद्देश्य के अनुसार उपवास कई तरह के हो सकते हैं जैसे
- कुछ लोग केवल पानी का सेवन करते हैं, कुछ पानी के साथ जूस और चाय का सेवन करते हैं।
परंतु जो उपवास रखा जाता है, उसमें लोग अन्न व मांसाहार से दूर रहते हैं। धार्मिक आस्था और मान्यताओं को ध्यान में रखकर किए जाने वाले उपवास में खाने-पीने की कुछ चीजें चलती हैं, कुछ नहीं।
-अगर उपवास का अर्थ पूरे समय भूखा रहना नहीं है तो उपवास के दौरान कुछ खास तरह की चीजें खाना सेहत के लिए फायदेमंद होता है। जैसे शकरकंद खाने से शरीर को विटामिन सी और पोटेशियम मिलता है।
सेब -उपवास के दौरान खाया जाने वाला बेहतरीन फल है। इससे न केवल वजन कम होता है बल्कि पेट भी भरा-भरा महसूस करता है।
- इसी तरह दूध का सेवन करने से शरीर को कैल्शियम मिलता है और हड्डियां मजबूत होती हैं।
-व्रत में अखरोट भी खाया जाता है। अन्य ड्राइ फ्रूट्स की तरह यह कैलोरी से भरपूर होता है।
-एक कप स्ट्राबेरी में 50 कैलोरी और तीन ग्राम फाइबर होता है। उपवास में इसका सेवन फायदेमंद है।
- उपवास में टमाटर का जूस कैंसर से बचाव करता है।
- सलाद खाना भी फायदेमंद है।
उपवास के दौरान सबसे बड़ा खतरा शरीर में पानी की कमी का होता है।
- कई लोग व्रत के दौरान सिर दर्द का अनुभव करते हैं।
- कुछ को सीने में जलन और कब्ज की शिकायत होती है।
-डायबिटीज के मरीजों को उपवास नहीं करना चाहिए।
- जिन लोगों को लो ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है, उन्हें भी सावधान रहना चाहिए।
- नवरात्रि में कुछ लोग 9 दिनों तक उपवास (Fasting) रखते हैं लेकिन कई दिनों तक लगातर उपवास रखने के कई दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।
-इम्यून सिस्टम को सबसे बड़ा नुकसान होता है।
- जिगर और गुर्दे सहित शरीर के कई अंगों पर नकारात्मक रूप से प्रभाव पडता है।
- कई लोग उपवास के दौरान पूरे दिन भूखे रहते हैं, जिसका सेहत पर बुरा असर हो सकता है।
- व्रत के दौरान खानपान का जो तरीका अपनाया जाता है, वह सेहत के लिहाज से कहीं से भी फायदेमंद नहीं होता क्योंकि व्रत में हम ज्य़ादातर हाई कैलरी वाली चीजों का सेवन करते हैं इसलिए अगर लगातार लंबे समय तक व्रत रखा जाए तो यह सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होता है. उपवास महत्वपूर्ण शारीरिक कार्य में रुकावट पैदा कर सकता है।
- खाने से परहेज उन लोगों में भी खतरनाक हो सकता है जो पहले से कुपोषित हैं।
* सूखा उपवास (या सभी तरल पदार्थ और भोजन के सेवन न करना )
- विशेष रूप से खतरनाक है. शुष्क उपवास (जल्दी से निर्जलीकरण को जन्म दे सकता है)
- गर्मी, शारीरिक काम जैसे कारक कुछ ही घंटों में शुष्क उपवास को घातक बना सकते हैं।
अन्य:-
1. चिड़चिड़ापन:-
2. कमजोरी या चक्कर आना।
3. घबराहट
4. ज्यादा भूख लगना
5. मोटापा बढ़ सकता है
उनसे ओवर ईटिंग हो ही जाती है. ऐसे में अंत:स्रावी ग्रंथियों से इंसुलिन का अधिक मात्रा में सिक्रीशन होता है.
1. उपवास वाले दिन हल्का भोजन लें।उपवास के बाद एक बार में अधिक या भारी भोजन लेने से पाचन तंत्र को नुकसान हो सकता है।
2. व्रत के दौरान अत्यधिक शारीरिक मेहनत से बचें। इससे आपकी कैलोरी जल्दी खर्च होती है और भूख भी तेजी से लगती है।
3. अगर आप उपवास वाले दिन स्ट्रेस में रहते हैं, तो यह आपका ब्लड प्रेशर गड़बड़ कर सकता है। ऐसे में उपवास वाले दिन मन को शांत रखें.
4. व्रत वाले दिन ऑयली फूड का सेवन न करें। उपवास का असली फायदा फलाहार में ही है. हेल्दी चीजों का सेवन कर ही एनर्जी लें।
5. उपवास वाले दिन जल्दी पचने वाली चीजों का सेवन करें।
* फलाहार नहीं करना चाहते हैं, तो आप फलों का जूस भी ले सकते हैं.
* अगर आप फलों या जूस का सेवन नहीं करना चाहते तो आंशिक उपवास में 2 से 3 घंटे में एक गिलास पानी में नींबू और एक चम्मच शहद डालकर इसका सेवन कर सकते हैं।
* उपवास वाले दिन ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं. क्योंकि यह आपके शरीर को हाइड्रेट रखता है.
* उपवास में आप साबूदाने की जगह मोरधन, कूट्टू के आटे या राजगिरे की बनी चीजें या फिर आलू या शकरकंद से बने व्यंजन हेल्दी उपवास का ऑप्शन हैं।
* अगर आप उपवास कर रहे हैं और इस दौरान सिर्फ फल पर ही निर्भर हैं, तो आप हर तीन घंटे में कोई फल खा सकते हैं.
उम्मीद करता हूँ लेख आपको पसन्द आया होगा ।
>आयुर्वेद चिकित्सा>देशी ईलाज>घरेलु उपाय>आयुर्वेदिक ज्ञान।
आयु+विज्ञान
आयु ( जीवन ) का विज्ञान=[आयुर्वेद]
* यह चिकित्सा विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। 'आयुर्वेद' नाम का अर्थ है, 'जीवन से सम्बन्धित ज्ञान'। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।
आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है जिसमें औषधियों और दर्शन दोनों का अद्भुत मिश्रण है। इसके 5000 से अधिक पुराने इतिहास में, इसने लोगों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में बहुत योगदान दिया है।
- आयुर्वेद डॉक्टर सदियों से आयुर्वेद की प्रैक्टिस करते आ रहे हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान करते आ रहे हैं और लगभग हर बीमारी का सफलतापूर्वक इलाज किया है। केरल में सफल आयुर्वेद समुदाय है जो दुनिया भर के लोगों की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करते आ रहा है।
ऐसी ही एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसका शब्दिक अर्थ है जीवन का विज्ञान और यह मनुष्य के समग्रतावादी ज्ञान पर आधारित है। दुसरे, शब्दों में, यह पद्धति अपने आपको केवल मानवीय शरीर के उपचार तक ही सीमित रखने की बजाय, शरीर मन, आत्मा व मनुष्य के परिवेश पर भी निगाह रखती है।
* आयुर्वेद को आठ भागों (अष्टांग आयुर्वेद) में विभक्त किया गया है
ये आठ अंग ये हैं-
-कायचिकित्सा,
- शल्यतन्त्र,
-शालक्यतन्त्र,
-कौमारभृत्य,
-अगदतन्त्र,
- भूतविद्या,
-रसायनतन्त्र और
-वाजीकरण।
इसमें सामान्य रूप से औषधिप्रयोग द्वारा काय की चिकित्सा की जाती है। प्रधानत:
- ज्वर, रक्तपित्त, शोष, उन्माद, अपस्मार, कुष्ठ, प्रमेह, अतिसार आदि रोगों की चिकित्सा इसके अंतर्गत आती है।
"कायचिकित्सानाम सर्वांगसंश्रितानांव्याधीनां ज्वररक्तपित्त-
शोषोन्मादापस्मारकुष्ठमेहातिसारादीनामुपशमनार्थम्। (सुश्रुत संहिता १.३)”
शल्यतंत्र अनेक प्रकार के शल्यों को निकालने की विधि एवं अग्नि, क्षार, यंत्र, शस्त्र आदि के प्रयोग द्वारा की गई चिकित्सा को शल्य चिकित्सा कहते हैं। किसी व्रण में से तृण के हिस्से, लकड़ी के टुकड़े, पत्थर के टुकड़े, धूल, लोहे के खंड, हड्डी, बाल, नाखून, शल्य, अशुद्ध रक्त, पूय, मृतभ्रूण आदि को निकालना तथा यंत्रों एवं शस्त्रों के प्रयोग एवं व्रणों के निदान, तथा उसकी चिकित्सा आदि का समावेश शल्ययंत्र मे किया गया है।
"शल्यंनाम विविधतृणकाष्ठपाषाणपांशुलोहलोष्ठस्थिवालनखपूयास्रावद्रष्ट्व्राणां-तर्गर्भशल्योद्वरणार्थ यंत्रशस्त्रक्षाराग्निप्रणिधान्व्राण विनिश्चयार्थच। (सु.सू. १.१)।”
शालाक्य
गले के ऊपर के अंगों की चिकित्सा में अधिकतर 'शलाका' सदृश यंत्रों एवं शस्त्रों का प्रयोग होने से इसे शालाक्यतंत्र कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रधानतः मुख, नासिका, नेत्र, कर्ण आदि अंगों में उत्पन्न व्याधियों की चिकित्सा आती है।
"शालाक्यं नामऊर्ध्वजन्तुगतानां श्रवण नयन वदन घ्राणादि संश्रितानां व्याधीनामुपशमनार्थम्। (सु.सू. १.२)।”
कौमारभृत्य -बच्चों, स्त्रियों विशेषतः गर्भिणी स्त्रियों और स्त्रीरोग के साथ गर्भविज्ञान का वर्णन इस तंत्र में है।
"कौमारभृत्यं नाम कुमारभरण धात्रीक्षीरदोषश् संशोधनार्थं
दुष्टस्तन्यग्रहसमुत्थानां च व्याधीनामुपशमनार्थम्॥ (सु.सू. १.५)।"
अगदतंत्र- इसमें विभिन्न स्थावर, जंगम और कृत्रिम विषों एवं उनके लक्षणों तथा चिकित्सा का वर्णन है।कुत्तों का काटना,सर्प का काटना,मक्खी,बिच्छुओं का काटना व भोजन मे विष आदि का वर्णन इसमे है।
"अगदतंत्रं नाम सर्पकीटलतामषिकादिदष्टविष व्यंजनार्थं
विविधविषसंयोगोपशमनार्थं च॥ (सु.सू. १.६)।”
इसमें देवाधि ग्रहों द्वारा उत्पन्न हुए विकारों और उसकी चिकित्सा का वर्णन है।
"भूतविद्यानाम देवासुरगंधर्वयक्षरक्ष: पितृपिशाचनागग्रहमुपसृष्ट
चेतसांशान्तिकर्म वलिहरणादिग्रहोपशमनार्थम्॥ (सु.सू. १.४)।”
दीर्धकाल तक वृद्धावस्था के लक्षणों से बचते हुए उत्तम स्वास्थ्य, बल, पौरुष एवं दीर्घायु की प्राप्ति एवं वृद्धावस्था के कारण उत्पन्न हुए विकारों को दूर करने के उपाय इस तंत्र में वर्णित हैं।
"रसायनतंत्र नाम वय: स्थापनमायुमेधावलकरं रोगापहरणसमर्थं च। (सु.सू. १.७)।”
वाजीकरण
शुक्रधातु की उत्पत्ति, पुष्टता एवं उसमें उत्पन्न दोषों एवं उसके क्षय, वृद्धि आदि कारणों से उत्पन्न लक्षणों की चिकित्सा आदि विषयों के साथ उत्तम स्वस्थ संतोनोत्पत्ति संबंधी ज्ञान का वर्णन इसके अंतर्गत आते हैं।
"वाजीकरणतंत्रं नाम अल्पदुष्ट क्षीणविशुष्करेतसामाप्यायन
प्रसादोपचय जनननिमित्तं प्रहर्षं जननार्थंच। (सु.सू. १.८)।"
- भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक हैं। वे देवताओं के वैद्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों जडी-बूटीयों ,स्वर्ण,लोह,चांदीआदि को विशेष विधियों से तैयार की जातीहै।
- आयुर्वेद जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
दोष, धातु, मल और अग्नि।
आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व है। इन्हें ‘मूल सिद्धांत’ या आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत’ कहा जाता है।
दोषों के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं।
वात, पित्त और कफ, जो एक साथ अपचयी और उपचय चयापचय को नियंत्रित करते हैं।
> वात,पित्त, कफ, की समानता स्वास्थ्य है और विषमता रोग है।
- इन तीन दोषों का मुख्य कार्य है
पूरे शरीर में पचे हुए खाद्य पदार्थों के प्रतिफल को ले जाना, जो शरीर के ऊतकों के निर्माण में मदद करता है। इन दोषों में कोई भी खराबी बीमारी का कारण बनती है।
जो शरीर को धारण करने के कारण इन्हें धातु का नाम दिया हैं। शरीर में सात धातु होती हैं। वे हैं।
रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र जो क्रमशः प्लाज्मा, रक्त, वसा ऊतक, अस्थि, अस्थि मज्जा और वीर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
-धातुएं शरीर को केवल बुनियादी पोषण प्रदान करते हैं। और यह मस्तिष्क के विकास और संरचना में मदद करती है।
मल का अर्थ है अपशिष्ट उत्पाद या गंदगी। यह शरीर मे दोषों और धातु में तीसरा है। मल के तीन मुख्य प्रकार हैं, जैसे मल, मूत्र और पसीना। मल मुख्य रूप से शरीर के अपशिष्ट उत्पाद हैं इसलिए व्यक्ति का उचित स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए उनका शरीर से उचित उत्सर्जन आवश्यक है। मल के दो मुख्य पहलू हैं अर्थात मल एवं कित्त। मल शरीर के अपशिष्ट उत्पादों के बारे में है
शरीर की चयापचय और पाचन गतिविधि के सभी प्रकार शरीर की जैविक आग की मदद से होती हैं जिसे अग्नि कहा जाता है। अग्नि को आहार नली, यकृत तथा ऊतक कोशिकाओं में मौजूद एंजाइम के रूप में कहा जा सकता है।