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मंगलवार, 5 अक्तूबर 2021

आयुर्वेद क्या है?

 >आयुर्वेद चिकित्सा>देशी ईलाज>घरेलु उपाय>आयुर्वेदिक ज्ञान।

#आयुर्वेद क्या है?

आयु+विज्ञान

आयु ( जीवन ) का विज्ञान=[आयुर्वेद]

* यह चिकित्सा विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। 'आयुर्वेद' नाम का अर्थ है, 'जीवन से सम्बन्धित ज्ञान'। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।

आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है जिसमें औषधियों और दर्शन दोनों का अद्भुत मिश्रण है। इसके 5000 से अधिक पुराने इतिहास में, इसने लोगों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में बहुत योगदान दिया है। 

- आयुर्वेद डॉक्टर सदियों से आयुर्वेद की प्रैक्टिस करते आ रहे हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान करते आ रहे हैं और लगभग हर बीमारी का सफलतापूर्वक इलाज किया है। केरल में सफल आयुर्वेद समुदाय है जो दुनिया भर के लोगों की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करते आ रहा है।

- आयुर्वेद

 ऐसी ही एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसका शब्दिक अर्थ है जीवन का विज्ञान और यह मनुष्य के समग्रतावादी ज्ञान पर आधारित है। दुसरे, शब्दों में, यह पद्धति अपने आपको केवल मानवीय शरीर के उपचार तक ही सीमित रखने की बजाय, शरीर मन, आत्मा व मनुष्य के परिवेश पर भी निगाह रखती है।


> आयुर्वेद संहिता को कितने भागों में विभक्त किया गया है?


* आयुर्वेद को आठ भागों (अष्टांग आयुर्वेद) में विभक्त किया गया है 

 ये आठ अंग ये हैं-

-कायचिकित्सा,

- शल्यतन्त्र, 

-शालक्यतन्त्र, 

-कौमारभृत्य, 

-अगदतन्त्र,

- भूतविद्या, 

-रसायनतन्त्र और 

-वाजीकरण।


१- { कायचिकित्सा} (Internal medicine)


इसमें सामान्य रूप से औषधिप्रयोग द्वारा काय की चिकित्सा की जाती है। प्रधानत:

- ज्वर, रक्तपित्त, शोष, उन्माद, अपस्मार, कुष्ठ, प्रमेह, अतिसार आदि रोगों की चिकित्सा इसके अंतर्गत आती है। 


"कायचिकित्सानाम सर्वांगसंश्रितानांव्याधीनां ज्वररक्तपित्त-

शोषोन्मादापस्मारकुष्ठमेहातिसारादीनामुपशमनार्थम्‌। (सुश्रुत संहिता १.३)”


२- {शल्यतंत्र } (Surgery)


 शल्यतंत्र अनेक प्रकार के शल्यों को निकालने की विधि एवं अग्नि, क्षार, यंत्र, शस्त्र आदि के प्रयोग द्वारा की गई चिकित्सा को शल्य चिकित्सा कहते हैं। किसी व्रण में से तृण के हिस्से, लकड़ी के टुकड़े, पत्थर के टुकड़े, धूल, लोहे के खंड, हड्डी, बाल, नाखून, शल्य, अशुद्ध रक्त, पूय, मृतभ्रूण आदि को निकालना तथा यंत्रों एवं शस्त्रों के प्रयोग एवं व्रणों के निदान, तथा उसकी चिकित्सा आदि का समावेश शल्ययंत्र मे  किया गया है।


"शल्यंनाम विविधतृणकाष्ठपाषाणपांशुलोहलोष्ठस्थिवालनखपूयास्रावद्रष्ट्व्राणां-तर्गर्भशल्योद्वरणार्थ यंत्रशस्त्रक्षाराग्निप्रणिधान्व्राण विनिश्चयार्थच। (सु.सू. १.१)।”


३- {शालाक्यतंत्र } E.N.T.


 शालाक्य

गले के ऊपर के अंगों की चिकित्सा में अधिकतर 'शलाका' सदृश यंत्रों एवं शस्त्रों का प्रयोग होने से इसे शालाक्यतंत्र कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रधानतः मुख, नासिका, नेत्र, कर्ण आदि अंगों में उत्पन्न व्याधियों की चिकित्सा आती है।


"शालाक्यं नामऊर्ध्वजन्तुगतानां श्रवण नयन वदन घ्राणादि संश्रितानां व्याधीनामुपशमनार्थम्‌। (सु.सू. १.२)।”


४- कौमारभृत्य [ Paediatrics ]


 कौमारभृत्य -बच्चों, स्त्रियों विशेषतः गर्भिणी स्त्रियों और  स्त्रीरोग के साथ गर्भविज्ञान का वर्णन इस तंत्र में है।


"कौमारभृत्यं नाम कुमारभरण धात्रीक्षीरदोषश् संशोधनार्थं

दुष्टस्तन्यग्रहसमुत्थानां च व्याधीनामुपशमनार्थम्‌॥ (सु.सू. १.५)।"


५- अगदतंत्र [Toxicology]

 अगदतंत्र- इसमें विभिन्न स्थावर, जंगम और कृत्रिम विषों एवं उनके लक्षणों तथा चिकित्सा का वर्णन है।कुत्तों का काटना,सर्प का काटना,मक्खी,बिच्छुओं का काटना व भोजन मे विष आदि का वर्णन इसमे है।


"अगदतंत्रं नाम सर्पकीटलतामषिकादिदष्टविष व्यंजनार्थं

विविधविषसंयोगोपशमनार्थं च॥ (सु.सू. १.६)।”



६-भूतविद्या (यह अब प्रचलित नही है)


इसमें देवाधि ग्रहों द्वारा उत्पन्न हुए विकारों और उसकी चिकित्सा का वर्णन है।


"भूतविद्यानाम देवासुरगंधर्वयक्षरक्ष: पितृपिशाचनागग्रहमुपसृष्ट

चेतसांशान्तिकर्म वलिहरणादिग्रहोपशमनार्थम्‌॥ (सु.सू. १.४)।”


7- रसायनतंत्र  


दीर्धकाल तक वृद्धावस्था के लक्षणों से बचते हुए उत्तम स्वास्थ्य, बल, पौरुष एवं दीर्घायु की प्राप्ति एवं वृद्धावस्था के कारण उत्पन्न हुए विकारों को दूर करने के उपाय इस तंत्र में वर्णित हैं।


"रसायनतंत्र नाम वय: स्थापनमायुमेधावलकरं रोगापहरणसमर्थं च। (सु.सू. १.७)।”


८-वाजीकरण

वाजीकरण

शुक्रधातु की उत्पत्ति, पुष्टता एवं उसमें उत्पन्न दोषों एवं उसके क्षय, वृद्धि आदि कारणों से उत्पन्न लक्षणों की चिकित्सा आदि विषयों के साथ उत्तम स्वस्थ संतोनोत्पत्ति संबंधी ज्ञान का वर्णन इसके अंतर्गत आते हैं।


"वाजीकरणतंत्रं नाम अल्पदुष्ट क्षीणविशुष्करेतसामाप्यायन

प्रसादोपचय जनननिमित्तं प्रहर्षं जननार्थंच। (सु.सू. १.८)।"



> आयुर्वेदिक औषधि के जनक ऋषि कौन थे?

- भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक हैं। वे देवताओं के वैद्य के रूप में भी जाने जाते हैं।

> आयुर्वेदिक दवा कैसे बनता है?

आयुर्वेदिक औषधियों जडी-बूटीयों ,स्वर्ण,लोह,चांदीआदि को विशेष विधियों से तैयार की जातीहै।


> आयुर्वेद के मुख्य सिध्दांत क्या है?

- आयुर्वेद जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। 


- आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर चार मूल तत्वों से निर्मित है -

 दोष, धातु, मल और अग्नि। 

आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व है। इन्हें ‘मूल सिद्धांत’ या आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत’ कहा जाता है।


> दोष

दोषों के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं।

 वात, पित्त और कफ, जो एक साथ अपचयी और उपचय चयापचय को नियंत्रित करते हैं। 

> वात,पित्त, कफ, की समानता स्वास्थ्य है और विषमता रोग है।

- इन तीन दोषों का मुख्य कार्य है 

पूरे शरीर में पचे हुए खाद्य पदार्थों के प्रतिफल को ले जाना, जो शरीर के ऊतकों के निर्माण में मदद करता है। इन दोषों में कोई भी खराबी बीमारी का कारण बनती है।


> धातु

जो शरीर को धारण करने के कारण  इन्हें धातु का नाम दिया हैं। शरीर में सात  धातु होती हैं। वे हैं।

रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र जो क्रमशः प्लाज्मा, रक्त, वसा ऊतक, अस्थि, अस्थि मज्जा और वीर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

-धातुएं शरीर को केवल बुनियादी पोषण प्रदान करते हैं। और यह मस्तिष्क के विकास और संरचना में मदद करती है।

> मल

मल का अर्थ है अपशिष्ट उत्पाद या गंदगी। यह शरीर मे दोषों और धातु में तीसरा है। मल के तीन मुख्य प्रकार हैं, जैसे मल, मूत्र और पसीना। मल मुख्य रूप से शरीर के अपशिष्ट उत्पाद हैं इसलिए व्यक्ति का उचित स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए उनका शरीर से उचित उत्सर्जन आवश्यक है। मल के दो मुख्य पहलू हैं अर्थात मल एवं कित्त। मल शरीर के अपशिष्ट उत्पादों के बारे में है 


> अग्नि

शरीर की चयापचय और पाचन गतिविधि के सभी प्रकार शरीर की जैविक आग की मदद से होती हैं जिसे अग्नि कहा जाता है। अग्नि को आहार नली, यकृत तथा ऊतक कोशिकाओं में मौजूद एंजाइम के रूप में कहा जा सकता है।




 


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