Guru Ayurveda

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

#खांसी_की_उत्तम #औषधिBensip syrup.in hindi.

 #खांसी_की_उत्तम#औषधि। #Bensip Syrup. In Hindi.

#Dr_virenderMadhan.

#Bensip Syrup के लाभ कैसे मिलता है?

</>Bensip Syrup is pure herbal product.

*Manufactured by GMP certified company.

*Use all kinds of Cough, bronchitis, and asthma,

*Completely safe ayurvedic medicine.

*No any side effects.

* शीध्र प्रभावशाली है।

*Bensip syrup is alsocough expectorant.

#Bensip syrup का Formulation#Dr_Virender_madha ने 15 वर्षों तक ट्रायल, परिक्षण करके तैयार किया था तथा अब 21 सोलों से रोगियों को दे कर लाभन्वित कर रहे है।इसके प्रभाव को देखकर रोगी अपनी परिवार व मित्रगणों को #Bensip syrup लेने की सलाह देते है।

Composition of Bensip Syrup 

Each 10ml contain

-Viola aditya (Gulbanfsha) 500mg.

-Terminalis Chebula (Harit ki) 300mg.

-Terminalis Verification (Vibhitika) 300mg.

-Embilca Officialis (Amilki) 300mg.

-Zingiber Offcialis (Saunt) 100mg.

-Piper Nigrum (Marich) 100 mg.

-piper Longam (Pipal) 100 mg.

-Adhatoda Vasica (Vasa) 500mg.

-Glycayrrhiza Glabira (Yesthimadhu) 300mg.


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

#आहार12 हिंदी महीनो के आयुर्वेद के अनुसार in hindi.

 

#आयुर्वेदिक कविता मे आयुर्वेद।

#Dr_virender_madhan.

#पथ्यापथ्य।

>कौन से महीने में क्या खाएं और क्या नही?

आयुर्वेद ने भोजन के लिए बनाया है।

 ये नियम मौसम के अनुकूल अगर आप भोजन करते है। या खाना-पीना खाते है तो बहुत से रोगों से बच जाते है।


चौते गुड़ ,वैशाखे तेल।

 जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।।

 

सावन साग, भादो मही।

 कुवांर करेला, कार्तिक दही।।


अगहन जीरा, पूसै धना।

 माघै मिश्री, फाल्गुन चना।।

 

जो कोई इतने परहेज करें।

 ता घर बैद पैर नहिं धरे।।


 अर्थात इस दोहा के माध्यम से बताया गया है कि जो आदमी इन चीजों पर अमल करेगा यानी कि नहीं खाएगा। वह इंसान कभी बीमार नहीं होगा। चिकित्सक-वैद्य के पास नहीं जाना पड़ेगा।


आयुर्वेद में भोजन के संबंध में बहुत कुछ लिखा है। जैसे किस सप्ताह में क्या खाना है क्या नहीं। किस तिथि को क्या खाना चाहिए अथवा क्या नहीं करें। 

किस महीने में क्या भोजन सही है और क्या नहीं। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। प्रत्येक सप्ताह, तिथि या महीने में मौसम में बदलाव होता है। इस बदलाव को समझकर ही खाना जरूरी है।


#किस माह में क्या खाएं

जिस तरह पूर्वजों को बताया गया है कि 

चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल। 

कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल। माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।

 इस तरह खानें के नियम बताए गए है।


हिन्दू माह बताते हैं मौसम में बदलाव

उल्लेखनीय है कि हिन्दू माह ही मौसम के बदलाव को प्रदर्शित करते हैं।अंग्रेजी माह नहीं। 


* दही रात मे अपथ्य है इसीलिए रात को दही नहीं खाना चाहिए। 

 *दूध के साथ नमक नहीं खाया जाता है। क्योंकि यह भी विरुद्ध आहार है 

दूध के साथ नमक नहीं शक्कर मिलाकर खाना चाहिए।


#12माह में क्या खाएं क्या न खायें।


- चैत्र माह:

चैत्र माह में गुड़ खाना मना है। चना खा सकते हैं।

- वैशाख:

 तेल व तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बेल खा सकते हैं।

- ज्येष्ठ: 

इन महीने में गर्मीं का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए।


-आषाढ़: 

आषाढ़ में पका बेल खाना मना है। इस माह में हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें। लेकिन इस माह में खूब खेल खेलना चाहिए। कसरत करना चाहिए।


- श्रावण: 

सावन माह में साग खाना मना है। साग अर्थात हरी पत्तेदार सब्जियां और दूध व दूध से बनी चीजों को भी खाने से मना किया गया है। 

इस माह में हर्रे खाना चाहिए जिसे  हरड कहते हैं।


- भाद्रपद: 

भादो माह में दही खाना मना है। इन दो महीनों में छाछ, दही और इससे बनी चीजें नहीं खाना चाहिए। 

भादो में तिल का उपयोग करना चाहिए।


- आश्विन: 

क्वार माह में करेला खाना मना है। इस माह में नित्य गुड़ खाना चाहिए।


- कार्तिक: 

कार्तिक माह में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। 

इस माह में मूली खाना चाहिए।


- मार्गशीर्ष: 

अगहन में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। तेल का उपयोग कर सकते हैं।


- पौष: 

पूस मास में दूध पी सकते हैं लेकिन धनिया नहीं खाना चाहिए क्योंकि धनिए की प्रवृति ठंडी मानी गई है और सामान्यत: इस मौसम में बहुत ठंड होती है। इस मौसम में दूध पीना चाहिए।

- माघ: 

माघ माह में मूली और धनिया खाना मना है। मिश्री नहीं खाना चाहिए। 

इस माह में घी-खिचड़ी खाना चाहिए।

- फाल्गुन: 

फागुन माह में सुबह जल्दी उठना चाहिए। इस माह में में चना खाना मना।


बुधवार, 24 नवंबर 2021

#पित्त की थैली से पथरी निकलना है सम्भव ?In hindi.


  #पित्त की पथरी [गालब्लेडर स्टोन]पित्ताश्मरी निदान एवं चिकित्सा।

#Dr_Virender_Madhan.


आजकल आधुनिक युग मे मशीनों का बोलबाला है इसके चलते व्यक्ति शारिरिक कार्यों से दूर हो गया है आलसी हो गया है। आयुर्वेद मे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारिरिक मेहनत,व्यायाम, व अभ्यंग को बहुत महत्व दिया है।ताकि रोग दूर रहें दीर्धायु रहे।

आजकल इन सबका अभाव होने से व्यक्ति अनेकों रोगों से ग्रस्त हो चुका है ।

आलसी होने से हृदय रोग,मोटापा, और पित्ताश्मरी जैस कष्टकारी रोग तेजी से फैल गये है।

*खानपान की गलत आदतों की वजह से भी आजकल लोगों में गॉलस्टोन यानी पित्त की पथरी की समस्या तेजी से बढ़ रही है।

*पित्ताशय हमारे शरीर का एक छोटा सा अंग होता है जो लीवर के ठीक पीछे होता है। पित्त की पथरी गंभीर समस्या है क्योंकि इसके कारण असहनीय दर्द होता है। इस पथरी के निजात पाने के लिए आपको अपने खान-पान की आदतों में कुछ बदलाव करने जरूरी हैं।


#क्यों महत्वपूर्ण है पित्त की थैली?


लिवर से बाइल नामक डाइजेस्टिव एंजाइम का स्राव निरंतर होता रहता है। उसके पिछले हिस्से में नीचे की ओर छोटी थैली के आकार वाला अंग होता है, जिसे गॉलब्लैडर या पित्ताशय कहते हैं। पित्ताशय हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लिवर और छोटी आंत के बीच पुल की तरह काम करता है। इसी पित्ताशय में ये बाइल जमा होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का लिवर पूरे 24 घंटे में लगभग 800 ग्राम बाइल का निर्माण करता है।


#कैसे बनती है पित्त में पथरी?

पथरी के कारणों को मुख्य दो भागों में बांटा है।

1-संक्रमण

किसी रोग के संक्रमण से लीवर पर सूजन होने से पित्तलवण शोषित हो जाता है पित्तलवण कोलेस्ट्रॉल के जमे कणों को अलग करता रहता है इसलिए पथरी का जमाव नही होता है लेकिन जब पित्तलवण की कमी होती है तो कोलेस्ट्रॉल का जमाव हो कर पथरी बन जाती है। आयुर्वेद मे कोलेस्ट्रॉल आमवात का ही रुप है जो हमारे जीवनशैली के बिगडने से बनता है।

2-पित्त का अवरोध हो जाना।

मोटापा, बहु प्रसवा,अधिक वसायुक्त भोजन के कारण पित्ताशय रिक्त नही हो पाता है।पित्ताश्मरी का कारण बन जाता है।

या 

रक्त व पित्त मे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अघिक होने से प्रतिक्रिया स्वरूप पित्त बहुत गाढा हो जाता है फिर पित्ताश्मरी का निर्माण होने लगता है।

कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक न होने पर, या बिलीरूबिन के इक्कठा होने पर कैल्शियम जमकर पथरी बना देती है।

इसमें मौज़ूद चीनी-नमक और अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट तत्व एक साथ जमा होकर छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन्स कहा जाता है।


#पित्त की पथरी के लक्षण क्या है?


शुरुआती दौर में गॉलस्टोन के लक्षण नज़र नहीं आते। 

जबतक पथरी गालब्लेडर मे रहती है तब तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है।

जब समस्या बढ़ जाती है गॉलब्लैडर में सूजन, संक्रमण या पित्त के प्रवाह में रुकावट होने लगती है। तब ऐसी स्थिति में लोगों को पेट के ऊपरी हिस्से की दायीं तरफ दर्द।

* अधिक मात्रा में गैस की फर्मेशन, पेट में भारीपन, वोमिटिंग, पसीना आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं।

पित्ताशय नली मे पथरी होने से अवरोध होने पर रोगी कामला रोग से पीडित हो जाता है।

बदहजमी, खट्टी डकार, पेट फूलना, एसिडीटी, पेट में भारीपन, उल्टी होना, पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं।यकृतशोथ के कारण सर्दी के साथ ज्वर हो सकता है।

काफी समय तक सुजन होने पर ,चिकनाई युक्त भोजन करने पर अपच की शिकायत होती है  जी मचलता है वमन भी होते है।


#पित्त की पथरी में क्या करें परहेज ?

*पित्त की पथरी से पीड़ित लोगों को हाई कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि तला हुआ भोजन, फ्राइड चिप्स, उच्च वसा वाला मांस जैसे बीफ और पोर्क, डेयरी उत्पाद जैसे क्रीम, आइसक्रीम, पनीर, फुल-क्रीम दूध से बचना चाहिए।

*इसके अलावा चॉकलेट, तेल जैसे नारियल तेल से बचा जाना चाहिए। 

*मसालेदार भोजन, गोभी, फूलगोली, शलजम, सोडा और शराब जैसी चीजों से एसिडिटी और गैस का खतरा होता है, इसलिए ये चीजें भी ना खाएं।


*नारियल पानी, लस्सी, आदि का खुब प्रयोग करना चाहिए।


#पित्त की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज?


अगर शुरुआती दौर में लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इस समस्या को केवल दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। 

*पित्ताश्मरी के कारण दर्द हो तो दर्दनिवारक औषधि दे।

*यकृतप्रदेश पर सेक करें।

 1-*अपामार्ग क्षार, सोडाबाई कार्ब,यवाक्षार, नृसार समभाग चूर्ण लेकर हल्के गर्म पानी से या कुमार्यासव एवं दशमुलारिष्ट के साथ देने से दर्द मे राहत मिल जाती है।

2- >>ताम्रभस्म 60 मि०ग्रा० 

निशोथ 3ग्रा०

कुटकी 3 ग्रा०

शंख भस्म 120 मि०ग्रा०


दिन तीन बार करेले के रस से,या मचली के स्वरस से, या फलत्रिकादि क्वाथ से देवें।

3- *अगस्तिशूतराज 60-60 लि०ग्रा० घण्टे घण्टे बाद देने से आराम मिल जाता है।

4-वमन के लिए नींबू पर कालानमक व काली मिर्च का चूर्ण लगाकर चुसने से वमन मे लाभ मिलता है।


#पित्ताश्मरी भंजन मिश्रण.

(विषेश औषधि)

वेरपत्थर भस्म १भाग

यवाक्षार १-भाग

नृसार १-भाग

सोरक १- भाग

अपामार्ग क्षार १-भाग

नारिकेल क्षार १- भाग

कोकिलाक्ष क्षार १- भाग

सभी द्रव्यों को मिलाकर रख लें।

आवश्यकता के अनुसार 5-6 ग्रा०की मात्रा में गर्म पानी से, या गौमुत्र के साथ लेने से पित्ताश्मरी व वृक्काश्मरी दोनों तरह की अवस्था में आराम मिलता है दोनों स्थानों की अश्मरी का शमन होता है।


*ज्य़ादा गंभीर स्थिति में सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है। पुराने समय में इसकी ओपन सर्जरी होती थी, जिसकी प्रक्रिया ज्य़ादा तकलीफदेह थी लेकिन आजकल लेप्रोस्कोपी के ज़रिये गॉलब्लैडर को ही शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है और मरीज़ शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।

<<Dr_Virender_Madhan.>>

#GuruAyurvedaInFaridabad.

#क्रोध या गुस्सा ?आयुर्वेद.In hindi.


 #क्रोध या गुस्सा ?In hindi.

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#Dr.Virender_Madhan

**क्रोध के पर्यायवाचीक्या है?

1.  anger

2. rage

3. fury

4. indignation

5. ire

6. furor

7. dander

8. displeasure

9. resentment

10. indignity

11. furore

12. bate

13. muck

14. malice

15. virulence

16. despite

17. dudgeon

18. spunk

19. ragging

20. flame

21.Krodh

22.Kop

आदि नामों से जाना जाता है "गुस्सा" शब्द भी आमतौर पर क्रोध के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन गुस्सा एक अलग भावना है यह जानकर शायद आपको अजीब लगेगा।

आगे हम क्रोध और गुस्से मे अन्तर बतायेगें।


#क्रोध किसे कहते है?


"क्रोध ,काम (इच्छाओं)की संतान है। काम यानि इच्छाओं की विफलता के भय से विफलता से पुर्व अहंकार के द्वारा क्रोध उत्पन्न होता है।”


*क्रोध या गुस्सा एक भावना है। शरीर पर क्रोध करने/होने पर *हृदय की गति बढ़ जाती है; *रक्त चाप बढ़ जाता है।

*प्यास बढ जाती है।

*शरीर का तापमान बढ जाता है।

यह किसी वस्तु या अधिकार के खो जाने के भय से उपज सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है वह वस्तु या अहंकार की रक्षा हेतु प्रतिक्रिया [क्रोध] करता है।


#आयुर्वेद मे क्रोध के क्या कारण हो सकते है?

जब पित्त दोष या शरीर की अग्नि ऊर्जा बढ़ जाती है। पित्त सही समझ और निर्णय लेने के लिए जरूरी है, लेकिन जब यह संतुलन से बाहर होता है, तो वह गलत निर्णय लेने लगता है, जिससे क्रोध का भाव उत्पन्न होता है।

गुस्सा या क्रोध एक ऐसी भावना है, जिसमें प्रतिक्रिया करना, समझना और सबसे महत्वपूर्ण रूप से नियंत्रण में लाना मुश्किल है। गुस्से के मूल कारणों को समझना थोड़ा

मुश्किल है। 

जब हम गुस्से में होते हैं, तो अक्सर दूसरों की हर बात गलत ही लगती है। जो लोग अधिक गुस्सा करते हैं, वे किसी की भी सुनना नहीं चाहते। ऐसी आदत अक्सर शर्मिंदगी का कारण बनती है।

श्री नानक देव जी कहते है-

*हिंसा, मोह, लोभ और क्रोध,"  ,

 " आग की चार नदियों की तरह हैं; जो उनमें गिरते हैं, वे जलते हैं, और केवल भगवान की कृपा से ही तैर सकते हैं" (जीजी, 147)। 

 श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं, "काम और क्रोध शरीर को भंग कर देते हैं जैसे बोरेक्स सोना पिघला देता है" (जीजी, 932)।

 श्री गुरु अर्जन देव जी , नानक वी, इन शब्दों में jक्रोध की निंदा करते हैं: "हे क्रोध, आप पापी पुरुषों को गुलाम बनाते हैं और फिर एक बंदर की तरह उनके चारों ओर घूमते हैं।"

श्री गुरु राम दास जी , नानक चतुर्थ, चेतावनी देते हैं: "उन लोगों के पास मत जाओ जो अनियंत्रित क्रोध से ग्रस्त हैं" (जीजी, 40) 


#गुस्सा और क्रोध में क्या अन्तर  है?


(1) गुस्सा क्षणिक होता है और 

* क्रोध अंतराल पर होता है।

(2) गुस्सा कभी भी विनाशकारी नहीं होता।

* क्रोध हमेशा विनाशकारी होता है।

(3) क्रोध से इंसान आग बबूला हो जाता है व्यक्ति उछलता नाचता है।

* जब कि गुस्से में नहीं होता।

(4) गुस्सा आने के बाद जब चला जाता है तो पश्चाताप होता है, 

* जब कि क्रोध में नहीं होता।

(5) गुस्सा केवल मिथ्या वचनों से या मिथ्या बातों से आता है तो वह अपने शरीर पर प्रभाव नहीं डालता, 

* जब कि क्रोध अहंकार के कारण आता है और अपने शरीर को भी ज्यादा प्रभावित करता है।

(6) गुस्से पर नियंत्रण पाना आसान है, 

* जब कि क्रोध पर नियंत्रण पाना ही कठिन होता है।

खास तौर पर जब हम अपने किसी परिवारजनों पर जोर से चिल्लाते है तो वह गुस्सा होता है क्रोध नहीं। 

क्रोध होता तो आप तब के बाद उनके साथ रह नहीं पाते। जैसा कि बताया, गुस्सा क्षणिक होता है वैसे ही कभी कभी जिससे हम प्यार या प्रेम करते है उन पर भी गुस्सा ही आता है क्रोध कभी नहीं आता। वरना जीवनसाथी के साथ नहीं रह सकते। 

*क्रोध के साथ जीना अत्यंत कठिन हो जाता है किन्तु गुस्से के साथ इंसान रह सकता है। इसीलिए तो संत जब चिल्लाते है तो वह गुस्सा होते है क्रोधित तो वह कभी नहीं होते। 

यहां पर में असली संत की बात कर रहा हूं। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कई बार गुस्सा किया है। अपने मामा कंस पर, शिशुपाल पर, जरासंध पर, अश्वत्थामा पर इत्यादि कई प्रसंग ऐसे बताए गए है जहां पर भगवान् श्रीकृष्ण ने क्रोध किया है किन्तु वह एक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए है, इसका मतलब क्रोध से तो कतई नहीं है। कैसे भी स्थिति में किसी भी परिस्थिति में जो क्रोध को नियंत्रित कर लेता है वहीं ईश्वर को प्राप्त करता है

 यह बात कई जगह शास्त्रों में लिखी है। तो सोचो अगर क्रोध को नियंत्रित करने से परमात्मा मिल जाता है तो क्या खुद परमात्मा क्या क्रोध कर सकता है? 


#क्रोध शांत करने के उपाय क्या है?

*आयुर्वेद के अनुसार क्रोध को शांत करने के  तरीके। 

इसमें उपलब्ध खाद्य पदार्थ और पेय के साथ कुछ सरल अभ्यास शामिल हैं। 

> क्रोध तब होता है, जब पित्त दोष या शरीर की अग्नि ऊर्जा बढ़ जाती है।  सही समझ और निर्णय के लिए आवश्यक है, लेकिन जब यह परेशान हो जाता है या संतुलन से बाहर होता है, तो वह गलतफहमी और गलत निर्णय लेने लगता है।

>> गुस्से को नियंत्रित करने के आयुर्वेदिक आहार

*डॉ. लाड ने अपनी किताब में एक पूरे अध्याय को 'पित्त-शांततापूर्ण आहार' के रूप में चिह्नित करने के लिए समर्पित किया है, जिसमें उस भोजन से दूर रहने की सलाह दी गई है,

 *जो शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं। इसमें गर्म, मसालेदार और किण्वित पदार्थ (Fermented substance) शामिल हैं। 

*सात्विक आहार का सेवन करें।

*पित को शांत करने के उपाय करें।

*जब तक की पित्त शांत न हो जाए, जब तक उन्होंने नींबू और खट्टे फलों से परहेज करें।

*तेज मिर्च मसाले, लहसुन जैसे गर्म मसाले क्रोध को बढाते है?

*गुस्से में होने पर सरल, नरम और ठंडे खाद्य पदार्थों के लेने की सलाह दी जाती है। 

*इस दौरान शराब एवं कैफीन युक्त खाद्य पदार्थों और पेय से दूर रहना चाहिए। 


*विशेष रूप से अधिक गुस्सा करने वालों को दो पेय पदार्थों का सेवन जरूर करना चाहिए। ये पित्त को शांत करते हैं।

1 तुलसी गुलाब टी

इस चाय को तैयार करने के लिए थोड़ी सी चंदन, तुलसी और थोड़ा सा गुलाब का चूर्ण लें। एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच इस मिश्रण को मिलाने के बाद कुछ समय के लिए रख दें ताकि पानी ठंडा हो जाए। इस चाय को दिन में तीन बार पीने से पित्त संबंधी पीड़ा शांत होती है।


*जीरा, फेनल सीड्स, चंदन द्राक्षा का क्वाथ बनाकर ले।

* अंगूर के रस,या अगुंर खाये।

#जीवनशैली

*सप्ताह मे एक बार मौनव्रत जरुर रखें।

 * सांस के व्यायाम ,प्रणायाम का का अभ्यास डालें।

*ध्यान का अभ्यास करें.ध्यान प्रक्रिया से विचार की सख्या। कम होती है मन शांत रहता है।

*आध्यात्मिक ज्ञान बढाये इससे हमे अपना परिचय मिलता है कि हम कौन है जान जाते है जग मिथ्या है 

याद रखें -काम,क्रोध हमे ही नष्ट करते है।

<Dr_virender_madhan.>


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

#हिचकी क्यों आती है? In.hindi.

 #हिचकी[हिक्का] <Hiccup> [Hiccough]



By:- Dr. Virender Madhan.

{हिचकी तब नही आती जब हमें कोई याद करता है।

<< हिचकी तब नही आती जब कोई गाली देता है।

हिचकी तब आती है जब शरीर में कोई विकृति होती है।}

* प्राण वायु और उदान वायु कुपित होकर। बार बार ऊपर की ओर जाती है इससे हिक्- हिक् शब्द के साथ वायु निकलती रहती है।

#हिचकी क्यों आती है?

सुश्रुत संहिता के अनुसार:-

आमदोष छाती आदि मे चोट लगना,क्षयरोग की पीडा मे, बिषम भोजन करने में, भोजन पर भोजन करने से,यानि भोजन के पचने से पहले ही दुसरी बार भोजन कर लेने से हिक्का रोग हो जाता है।दाहक भोजन करने से,भारी,अफारा करनेवाला, अभिष्यंदी पदार्थ खाने से, शीतल जल व शीतल भोजन करने से, गरमी से, गर्म हवा में घूमने से,अधिक बोझा उठाने से, उपवास, व्रत करने से, मल-मूत्र आदि वेगो को रोकने से मनुष्य को हिक्का, श्वास, कास आदि रोग हो जाते है।

* हिचकी क्यों आती है- हिचकी आने की कई वजहें हो सकती हैं, इसमें कुछ शारीरिक होती हैं तो कुछ मानसिक. ऐसा इसलिए होता है कि तंत्रिका में आई दिक्कत दिमाग और डायाफ्राम से जुड़ी है. बहुत ज्यादा और जल्दी खाने की वजह से भी हिचकी आती है. ज्यादा नर्वस या उत्साहित होने, कार्बोनेटेड ड्रिंक या बहुत अधिक शराब पीने से भी हिचकी आती है.

* हिचकी आने का सबसे बड़ा कारण पेट और फेफड़े के बीच स्थित डायफ्राम और पसलियों की मांसपेशी में संकुचन है। डायफ्राम के सिकुड़न से फेफड़ा तेजी से हवा खींचने लगता है, जिसकी वजह से किसी को भी हिचकी आ सकती है। इसके अलावा खाना खाने या गैस के चलते पेट बहुत ज्यादा भरा हुआ महसूस होता है तब भी हिचकी आ सकती है।

हिक्का के भेद :-

१-अन्नजा-

स्वस्थ व्यक्ति के अनापशनाप खाने से होता है।अन्नजा हिक्का मे चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है कुछ देर बाद स्वम् शांत हो जाता है।

२-यमला:-

जिस रूक रुक कर २-२हिचकी आती है यह सिर और गर्दन को कपकपा देती है।यमला का अर्थ है दो-दो।यह कष्टसाध्य होती है।इसके साथ प्रदाह,दाह,प्यास,मुर्छा आती है जो रोगी के लिये घातक होती है।

३-क्षुद्र

जो हिचकी कण्ठ व हृदय के बीच स्थान मे उत्पन्न होती है मन्द वेग से और देर से निकलती है।हिचकी धीरे धीरे उठती है।

४-गम्भीर

यह हिक्का नाभि प्रदेश से उठती है ।इसमे प्यास, श्वास, व पसलियों मे दर्द होता है।रोगों के कारण भी उत्पन्न होती है जीवन के अंत मे गम्भीर हिक्का रोगी का अंत कर देती है।

५-महती

इसमे वस्ति,हृदय आदि मर्म सभी पीडित होते है।यह हिक्का लगातार होती है सारे शरीर मे पीडा होती है।यह हिक्का भी मृत्यु का कारण बन जाती है।

#आयुर्वेदिक चिकित्सा:-

आयुर्वेदिक पेटेंट औषघियों

* मुकोजाईम सीरप ( गुरु फार्मास्युटिकल)
* गैंस्ट्रो चूर्ण
* स्वादिष्ट पाचन चूर्ण (गुरु फार्मास्युटिकल )

शास्त्रीय योग

चन्द्रसूर रस,पिप्पल्यादि लौह , हिंस्राद्ध धृत, अष्टादशांग क्वाथ, द्राक्षारिष्ट तथा आंवले के मुरब्बे की चासनी आदि के प्रयोग से हिक्का मे लाभ मिलता है।

<<घरेलू नुस्खे>>

#अनुभुत प्रयोग -

* आंंवला व कैंथ का रस शहद मे मिला कर दिन में २-३ बार देने से आराम मिल जाता है।
* तेज गर्म दूध में घी मिलाकर गर्म गर्म पी से आराम मिलता है।
* भोजन के बाद अगर हिचकी आये तो अजमोदा चूसे।
*पीपल और मिश्री मिला कर दिन में दो बार लेने से हिचकी दूर हो जाती है।
* सौठं का चूर्ण शहद मे मिला कर दिन में दो तीन बार चाटें।
* गिलोय और सौंठ के चूर्ण को सुंघाने से हिक्का शांत हो जाता है।
* पोदिने के पत्तों को बूरे के साथ चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
* मोर के चंदो की भस्म शहद से चाटने से आराम हो जाता है।
* सूखी मूली का काढा बना कर पीने श्वास और हिचकी मे आराम हो जाता है।
* नारियल की जटा की राख पानी मे धोल कर छानकर पीने से आराम हो जाता है।
* पीपल के वृक्ष की छाल की राख भी पानी में धोलकर छान कर पीयें।

#हिचकी है तो क्या करें क्या न करें ?

पथ्य:-

- तैल मालिस [अभ्यंग] कराकर स्वेदन करें।
- निन्द्रा , स्निग्ध आहारो का सेवन, सुपाच्य पदार्थो का सेवन ,पुराना गेहूँ, कुलथी , सांठीं चावल , जौ , लहसुन ,परवल ,कच्ची मूली ,काली तुलसी , गर्म पानी , बिरोजा नींबू , वातकफ नाशक ,आश्चर्य जनक दृश्य देखना , प्राणायाम करना 
हिचकी के रोगी को लाभप्रद है।

अपथ्य:-

अपान वायु, मल,मूत्र, डकार, खांंसी , आदि अधारणीय वेगोंं को रोकना नही चाहिए।धुल ,धुप,अधिक श्रम , विरुद्ध आहार, कब्ज करने वाले पदार्थ, कफ बर्द्धक ,आलू आदि कन्द फ्राईड चीजों को त्याग देना चाहिए।

#Dr.Virender Madhan.




रविवार, 14 नवंबर 2021

#Exercise व्यायाम क्यो नहीं करें?In hindi.

 #What is exercise ?

#व्यायाम क्या है?



By:- Dr.Virender Madhan


- जिस कर्म मे शरीर के कर्म के सार मन का योग हो उस व्यायाम कहते है।

 - व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी बढाती है। मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाता है, या वजन घटाने के लिए जो कर्म किया जाता है वही व्यायाम कहलाता है।

#व्यायाम के प्रकार:-

खेलना, दौडना, कूदना, डंडबैठक लगना आदि व्यायाम के रूप होते है।

#व्यायाम के क्या लाभ है ?

- व्यायाम करने से शारिरिक शक्ति बढती है।

- जठराग्नि ,पाचकाग्नि बढती है।

- व्यायाम से मोटापा कम होता है।

- मांसपेशियां मजबूत होती है।

- क्लेश सहने की शक्ति बढती है।

 #किसको व्यायाम नही करना चाहिए?

-वातज व पित्तज रोगों से पीडित रोगी को
-अजीर्ण रोग से ग्रस्त व्यक्ति को व्यायाम नही करना चाहिए।
-वृध्द (सत्तर वर्ष से अधिक व्यक्ति) को व्यायाम नही करना चाहिए।
- ६ साल से छोटे बच्चों को भी व्यायाम नही करना चाहिए ।

* अर्ध्दबल से अधिक व्यायाम कभी नही करना चाहिए।
* व्यायाम के बाद सभी अंगों को मसलना चाहिए।

#अधिक व्यायाम से क्या हानि हो सकती है?

-राजयक्ष्मा
- तमक श्वास
- रक्तपित्त 
-श्रम (थकान)
-क्लेम,
- कास
-ज्वर
छर्दि आदि रोग अतिव्यायाम से हो जाते है।

जो व्यक्ति अचानक व्यायाम छोड देता है उन्हें वृध्दावस्था मे आमवात , उरुस्तम्भ ,अर्श (बवासीर) अण्डकोष बृध्दि हो जाती है।

[Dr_virender_madhan]



बुधवार, 10 नवंबर 2021

#नाक का मस्सा [नेजल पोलिपस]in hindi.

 #क्या है नेजल पोलिप [Nasal polipus]



By:- <#Dr_Virender_Madhan.

नाक व साइनस की श्लेष्मा फूलकर रसौली की तरह गांठ बन जाती है जिसमें द्रव्य बढऩे पर यह फूलने लगती है। ऐसा नाक के एक या दोनों तरफ हो सकता है, 

नाक के भीतर नेजल पैसेज या साइनस में कोमल, बिना दर्द वाली, गैर कैंसर वाली गांठ को नेजल पॉलिप्स कहा जाता है। अस्थमा, इंफेक्शन के दोबारा होने, एलर्जी, दवा के प्रति संवेदनशीलता या कुछ इम्यून सिस्टम की बीमारियों की वजह से नेजल पॉलिप्स (मस्सा)होती है।

नाक में मस्सा (Nasal polyps) होना किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। नाक में मस्सा होने के कारण कुछ लोगों को सिरदर्द होता है या उन्हें गंध आना कम हो जाता है। वहीं कुछ लोगों को कुछ महसूस ही नहीं होता है। 

कारण :- इस रोग का प्रमुख कारण वातादि दोषो के विकृत होने से,लगातार जुकाम रहने से अर्श बन जाता है।


लक्षण

- नाक बन्द होना।

- छिंकें आना।

- नाक बहते रहना।

- सिर दर्द रहना।

- सांस लेने मे परेशानी होना

- सांस मे दुर्गंध आना पोलिपस के लक्षण है।


#आयुर्वेदिक चिकित्सा -

*लक्ष्मीविलासरस - १ से २ गोली दिन में ३बार लें।

*अग्निकुमार रस - १-२ गोली दिन में ३बार लें।

* आन्नदभैरव रस १-२ गोली दिन में २-३ बार लें।


*हरितिकी पाक-

-----------–---

गोक्षुर चूर्ण 500 ग्राम

गुड 20 कि०

हरितिकी 12 कि०

सोठं 748 ग्राम.

इनका गुडपाक कर के रख ले 6 से 10 ग्राम. प्रतिदिन खाये।


* नस्य-

- षडबिन्दू तैल या

- अणु तैल को नाक मे १-३ बूंद दिन में दो या तीन बार डाले।

 - त्रिकटु चूर्ण का कषाय बनाकर 3-4 बूंद नाक मे डालें।

- बादाम रोगन की 2-3 बूंदें नाक मे डालने से आराम मिलता है।


<< घरेलू ईलाज-

- सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है

< 5 बादाम 5 काली मिर्च रोज चबाकर खाएं या पेस्ट बनाकर शहद से मिलाकर खायें ।

गुरु आयुर्वेदिक चाय [ हर्बल टी ] रोज पीयें।

#पोलिपस है तो जीवनशैली कैसी हो?

* कभी सर्द गर्म न होने दे ठंड से गर्म और गर्म से ठंड मे यकायक न जाये।

* ठंडा चिल्ड , फ्रिज का ठंडा, कोल्डड्रिंक, आदि से बचे।

* दिन मे सोने से बचे।

ठंड मे सिर को ढककर रखें।

* विषेशकर बदलते मौसम मे सावधान रहें।

* कफ बर्द्धक आहार जैसे दही आदि न ले।

*प्रतिदिन शरीर की मालिस करें।

#Dr_Virender_Madhan.