#जीवन शैली कैसी होनी चाहिए? In hindi.
#स्वस्थ जीवनशैली:-
आयुर्वेद मे जीवन को स्वस्थ एवं सुख पूर्वक व्यतीत करने की विधि विधान का वर्णन है ।
जिस प्रकार सडक पर चलने के नियम होते है उनका पालन कर सुरक्षित रहते है । अधिकतर दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहते है ।
आयुर्वेद मे दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या आदि भागों मे बांट कर जीवनशैली के नियमों का निर्देश दिया है ।
#Lifestyle|जीवनशैली का वर्णन---
#दिनचर्या
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- ब्रह्ममुहूर्त मे उठे
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#ब्रह्ममुहूर्त:-
रात्रि के अन्तिम दो घडी को ब्रह्ममुहूर्त कहते है यानि सूर्योदय से डेढ घण्टे पहले का समय ब्रह्मा का समय है क्योंकि उस समय के स्वामी ब्रह्मा होते है ऐसा माना जाता है। इस समय उठ कर जो व्यक्ति जल पीता है, ध्यान -पूजा आदि करता है वह सुख और आरोग्यता को प्राप्त कर लेता है
सरल भाषा में-
सुबह के 4 बजे से लेकर 5:30 बजे तक का जो समय होता है उसे ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- प्रातः काल में दिनचर्या का पालन करने से आप की दिन की शुरुआत आनंदमय होती है। आपकी सुबह ताज़गीमय हो जाती है।
ध्यान करने से मानसिक कर्मो में सुधार होता है। यह सत्वगुण बढ़ाने में सहायक है।
- फिर परमात्मा का या जिसे शक्ति को आप मानते है उसका नाम,जप, मन्त्र करें।
> सफाई |
व्यक्तिगत स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के लिए शुद्व जल शुद्व वायु, संतुलित आहार के साथ-साथ शारीरिक स्वच्छता पर नियमित रूप से ध्यान देना अति आवश्यक है। शरीर की बाहरी स्वच्छता में त्वचा, बाल, नाखुन, मुंह, मसूढे, दांत, जीभ, ऑंख, कान, नाक आदि की नियमित सफाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।
ठंडे पानी से कुल्ला कर ले। ठंडे पानी से या मौसमानुसार जल से हाथ, चेहरा, मुंह और आँखों को धो ले। नाक, दांत और जीभ को साफ कर ले।
प्राणायाम,ध्यान और व्यायाम करें :--
– प्राणायाम तब तक करे जब तक दोनों नासिकाओं से श्वास बराबरी से प्रवाहित होना शुरू हो जाये। अपनी ऊर्जा को हृदय के चक्र या तीसरी आँख की ओर केंद्रित करके ध्यान करे।
--छोटी और धीमी गति से सुबह की ताज़ी हवा में चले। अपने आप को सरल और सुखदायक दृश्यों में अनुभव करें ।
व्यायाम या शारीरक कसरत में सामान्यता कुछ योग मुद्रायें होती है जैसे
- सूर्यनमस्कार और श्वास प्रक्रियायें जैसे नाड़ीशोधन प्राणायाम। इसमें सैर करना और तैरना भी सम्मलित हो सकता है।
- सुबह के व्यायाम से शरीर और मन की अकर्मण्यता समाप्त होती है,
- पाचन अग्नि मजबूत होती है, वसा में कमी आती है। आपके शरीर में अच्छे प्राण की वृद्धि हो जाने से आपको हल्केपन और आनंद की अनुभूति होती है।
व्यायाम अर्धबल तक करना चाहिए यानि जब हल्का सा पसीना आने लगे व्यायाम धीरे धीरे बन्द कर दे।
-- मालिस|
अपने शरीर की तिल के तेल या सरसौ तैल से मालिश करे (अभ्यंग)। खोपड़ी, कनपटी, हाथ और पैर की २-३ मिनिट की मालिश पर्याप्त है।
- स्नान:-
-- ठीक से स्नान करे |
ऐसे पानी से स्नान करे जो न तो ज्यादा गर्म या ठंडा हो।
#दोपहर के समय की चर्या|
दोपहर का भोजन १२ से १ बजे के बीच करना चाहिये क्योंकि यह समय उस उच्च समय से मेल खाता जो पाचन के लिये जिम्मेदार है। आयुर्वेद पूरे दिन में दोपहर के भोजन को सबसे भारी पुष्ट करने का निर्देश करता है।
भोजन के उपरांत थोड़े देर चलना अच्छा होता है जिससे भोजन के पाचन में सहायता मिलती है।
-- दोपहर की नींद को टालना चाहिये क्योंकि आयुर्वेद में दिन में सोना प्रतिबंधित है।
-- संध्या का समय |
दिन और रात के संतुलन के लिये यह विशेष समय है। यह समय शाम की प्रार्थना और ध्यान के लिये होता है।
रात्रि चर्या
- रात्रि का भोजन | Dinner
रात का भोजन शाम को ६-७ बजे करना चाहिये। यह दोपहर के भोजन से हल्का होना
चाहिये। रात्रि का भोजन सोने से करीब तीन घंटे पहले लेना चाहिये जिससे भोजन के पाचन के लिये पर्याप्त समय मिल सके। रात्रि के भोजन के तुरंत बाद भारी पेट से साथ सोना नही चाहिये। भोजन के बाद १०-१५ मिनिट चलने से पाचन में सहायता मिलती है।
- सोने का समय | Bedtime
रात्रि १० बजे तक सो जाने का सबसे आदर्श समय है। तंत्र को शांत करने के लिये, सोने से पहले पैर के तलवे की मालिश की जा सकती है।
*अच्छी नींद के लिए-
- सोने और जागने का समय निर्धारित करें .
- माहौल ऐसा बनाये जिसमे आपको आसानी से नींद आ जाये .
- आरामदायक बिस्तर पर सोएँ .
- नियमित व्यायाम करे .
कैफीन वाली चीजों को कम लें .
- जरूरत से ज्यादा खाना न खायें .
धन्यवाद!