वर्षा ऋतु मे क्या करें, क्या न करें?In hindi.,
वर्षा ऋतुचर्या कैसी होनी चाहिए?
Dr_Virender Madhan.2022.
<वर्षा ऋतु>
वर्षा ऋतु प्रारम्भ 21 जून से 22 अगस्त तक
दोष प्रकोप व संचय:-
वर्षा ऋतु में वायु का विशेष प्रकोप तथा पित्त का संचय होता है ।
वर्षा ऋतु में वातावरण के प्रभाव के कारण स्वाभाविक ही जठाराग्नि मंद रहती है, जिसके कारण पाचनशक्ति कम हो जाने से बहुत सी बीमारियां उत्पन्न हो जाती है।जैस
- बुखार, अजीर्ण,पेट के रोग, कब्जियत, अतिसार,प्रवाहिका, वायुदोष का प्रकोप, सर्दी, खाँसी, आमवात, संधिवात आदि रोग होने की संभावना रहती है ।
- इन रोगों से बचने के लिए तथा पेट की पाचक अग्नि को सुरक्षित रखने के लिए आयुर्वेद के अनुसार उपवास तथा लघु भोजन लाभकारी हैं ।
-- हमारे ऋषि-मुनियों ने इस ऋतु में अधिक-से-अधिक उपवास का उपदेश कर शास्त्रों के द्वारा शरीर के स्वास्थ्य का ध्यान रखा है ।
- वर्षा ऋतु में जल की स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान दें । जल द्वारा उत्पन्न होनेवाले उदर-विकार, अतिसार, प्रवाहिका एवं हैजा जैसी बीमारियों से बचने के लिए पानी को उबालें ।
--जल को उबालकर ठंडा करके पीना सर्वश्रेष्ठ उपाय है ।
--पीने के लिए और स्नान के लिए गंदे पानी का प्रयोग बिल्कुल न करें क्योंकि गंदे पानी के सेवन से उदर व त्वचा-सम्बन्धी व्याधियाँ पैदा हो जाती हैं ।
विषेश-
--500 ग्राम हरड़ और 50 ग्राम सेंधा नमक का मिश्रण बनाकर प्रतिदिन 5-6 ग्राम लेना चाहिए
#वर्षा ऋतु के क्या लाभ है?
वातावरण में शीतलता आती है।और वर्षा से गर्मी का प्रकोप कम होता है
वर्षा होने से खेती हेतु पानी मिलता है और फसलें विकसित होती हैं।
वर्षा पीने के पानी का एक स्रोत भी है। बहुत सी जगह ऐसी हैं जहां वर्षा का पानी संचयन कर उसी को पूरे साल पीने के पानी के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
* पथ्य आहार : -
#वर्षा ऋतु मे क्या खायें?
-- वर्षा ऋतु में वात की वृद्धि होने के कारण उसे शांत करने के लिए मधुर, अम्ल व लवण रसयुक्त, हलके व शीघ्र पचनेवाले तथा वात का शमन करनेवाले पदार्थों एवं व्यंजनों से युक्त आहार लेना चाहिए ।
जैसे:-
-- सब्जियों में मेथी, सहिजन, परवल, लौकी, बथुआ, पालक एवं सूरण,हितकर हैं । सेवफल, मूँग, गरम दूध, लहसुन, अदरक, सोंठ, अजवायन, साठी के चावल, पुराना अनाज, गेहूँ, चावल, जौ, खट्टे एवं खारे पदार्थ, दलिया, शहद, प्याज, गाय का घी, तिल एवं सरसों का तेल,
-- अनार, द्राक्षा, महुए का अरिष्ट, का सेवन लाभदायी है ।
* अपथ्य आहार : --
#वर्षा ऋतु मे क्या न खायें?
वर्षा ऋतु में संचित होने वाला पित्त अगली ऋतु 'शरद ऋतु में ही कुपित होता है। अतः वर्षा काल के अन्तिम दिनों में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पित्त कुपित करने वाला आहार-विहार न किया जाए। तले हुए, खट्टे, नमकीन, तेज़ मिर्च मसालेदार, मांसाहारी, मादक पदार्थों का सेवन इन दिनों में नहीं करना चाहिए।
-- गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर आदि दालें, नदी, तालाब एवं कुएँ का बिना उबाला हुआ पानी न पीना चाहिये।
--पूरी, पकोड़े तथा अन्य तले हुए एवं गरम तासीरवाले खाद्य पदार्थों का सेवन बन्द कर दें ।
-- मैदे की चीजें,आइसक्रीम, मिठाई, ठंडे पेय,केला, मठ्ठा, अंकुरित अनाज, पत्तियोंवाली सब्जियाँ नहीं खाना चाहिए
पथ्य-अपथ्य विहार : -
#क्या करें क्या न करें?
- मालिस(अंगमर्दन), उबटन, स्वच्छ हलके वस्त्र पहनना योग्य है ।
-अतिपरिश्रम,अति व्यायाम, स्त्रीसंग, दिन में सोना, रात्रि जागरण, बारिश में भीगना, नदी में तैरना, धूप में बैठना, खुले बदन घूमना त्याज्य है ।
--वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी रहने के कारण शरीर की त्वचा ठीक से नहीं सूखती है। अतः त्वचा स्वच्छ, सूखी व स्निग्ध बनी रहे इसका उपाय करें ताकि त्वचा के रोग पैदा न हों ।
- इस ऋतु में घरों के आस-पास गंदा पानी इकट्ठा न होने दें, जिससे मच्छरों से बचाव हो सके ।
- इस ऋतु में त्वचा के रोग, मलेरिया, टायफाइड व पेट के रोग अधिक होते हैं । अतः खाने-पीने की सभी वस्तुओं को मक्खियाँ एवं कीटाणुओं से बचायें व उन्हें साफ करके ही प्रयोग में लें ।
- मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए।