Guru Ayurveda

बुधवार, 2 नवंबर 2022

कब्ज Constipation किसे कहते है?हिंदी में.

 #कब्ज Constipation किसे कहते है?हिंदी में.

What is called Constipation?In hindi.



#क्यों होता है कब्ज?

Why does constipation happen?

#मलावरोध होने से क्या नुकसान होता है?

What are the disadvantages of having constipation?

कब्ज|मलावरोध|Constipation|बद्धकोष्ठता

* कब्ज Constipation किसे कहते है?

कब्ज पाचन तंत्र की वह स्थिति हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में परेशानी होती है। मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, 

*क्यों होता है कब्ज?

(कब्ज होने के कारण )

- मैदे से बने एवं तले हुए  -मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन करना।

- समय पर भोजन ना करना।

- पानी कम पीना या तरल पदार्थों का सेवन कम करना।

- रात में देर से भोजन करना।

- अधिक मात्रा में चाय, कॉफी, तंबाकू या सिगरेट आदि का सेवन करना।

- देर रात तक जागने की आदत।

- भोजन में रेशेदार आहार की कमी होना।

* कब्ज के नुकसान — Side Effects of Constipation.

- पेट में भारीपन व जलन होना

- भूख न लगना

- उलटी होना

- छाती में जलन होना

- बवासीर, भगंदर, फिशर रोग होने की संभावना बढ़ जाना

- आंतों में जख्म व सूजन हो जाना

#कब्ज के आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय:-

- त्रिफला, काली हरड,सनाय, गुलाब के फुल, मुन्नका, बादाम गिरी, काला दाना, बनफशा, 

सभी 25-25 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें।रात्रि में सोते समय 6 ग्राम दवा गर्म दूध के साथ फांक लें।प्रातःकाल मे पेट साफ हो जाता है।कुछ दिनो तक लेने से कब्ज समूल नष्ट हो जाती है।

- प्रतिदिन 10-15 मुन्नका दूध मे उबालकर लेने से कब्ज ठीक हो जाती है।

-- एक काबली हरड (पीली हरड) रात्रि में पानी में भिगोकर रख दें प्रातः हरड को थोड़ा सा पानी मे घीसकर पी जाये (एक हरड 6-7 दिनों तक पर्याप्त होती है) इससे कब्ज दूर हो जाती है।इसका प्रयोग एक माह तक करना चाहिए।

-20 ग्राम केस्ट्रोल आईल मिश्री से मीठे दूध मे पीने से मलावरोध ठीक हो जाता है।

#कब्ज के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा?

- दशमूल क्वाथ,

- त्रिफला,

- वैश्वनार चूर्ण,

- पंचसकार चूर्ण,

- कब्जहर चूर्ण,

- हिंगु त्रिगुणा तेल,

- अभयारिष्ट और

- इच्छाभेदी रस शामिल हैं. 

*सावधानी:-

व्यक्ति की प्रकृति और कारण के आधार पर चिकित्सा पद्धति चुनी जाती है. उचित औषधि और रोग के निदान के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए.

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान.

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

आयुर्वेदिक रसोन सुरा क्या है?In hindi.

 आयुर्वेदिक रसोन सुरा क्या है?In hindi.



रसोन सुरा एक वात रोगों की उत्तम औषधि है।

By:-Dr.VirenderMadhan.

आयुर्वेद में लहसुन को रसोन कहते है यह एक रसायन होता है।इसकी सुरा बनाकर रोगी के लिऐ बहुत तेज औषधि का काम करती है। आयुर्वेद के अनुसार बनाई गई सुरा मे सेल्फ जरनेटीड ऐल्कोहल बनती है जो मात्रा के अनुसार देने से शरीर को किसी प्रकार की हानि नही होती है।

#भैषज्य रत्नावली के अनुसार रसोन सूरा बनाने की विधि:-

सामग्री व विधि:-

2- 5 लिटर बक्कल नामक सूरा,

2- निस्तुष लहसुन-2500 ग्राम,

3- पीपल- 12ग्राम,

4-पीपलामूल- 12ग्राम,

5- जीरा- 12ग्राम,

6- कूठ- 12ग्राम,

7- चित्रक- 12ग्राम,

8- सौठ- 12ग्राम,

9- मरिच- 12ग्राम,

10 - चव्य - 12ग्राम,

इन सब को कुट पीसकर लहसुन, सुरा सहित एक बडे बर्तन कांच या चीनीमिट्टी के बर्तन में भर लें।बर्तन का मुंह अच्छी तरह से बन्द कर लें।इस बर्तन को 10- 15 दिन रख दे देते है ।बाद मे कपडे से छानकर किसी सुरक्षित कांच के बर्तन मे रख ले।

रोगी को 10-10 मि०ली० खाने के खाने के बाद बराबर पानी मिलाकर सवेरे शाम दे दे।

उपयोग:- 

रसोन सूरा-वातरोग, आमवात, कृमि, क्षय, अनाह, गुल्मरोग, अर्श, प्लीहारोग, 

प्रमेह, और पाण्डू रोगो को नष्ट कर देता है।यह अग्निबर्द्धक है।

मात्रा:- 10-10 मि०ली०,

अनुपान:-जल से

गंध:- मधगंधी

स्वाद:-तीक्ष्ण,

उपयोग:- आमवात, समस्त वातरोग।

ग्रंथ:- भैषज्य रत्नावली।

डा०वीरेंद्र मढान.

गुरु आयुर्वेद फरीदाबाद,

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.

 गुल्मरोग ( पेट मे वायु का गोला बनना)रावण संहिता के अनुसार. हिंदी में.



#DrVirenderMadhan.

#गुल्मरोग|वायुका गोला,

गुल्मरोग प्रतिकूल आहार-विहार के कारण वायु के प्रदूषित होने के कारण पेट में गांठ के समान गोला सा बन जाता है ।इसे वायु का गोला भी कहते है।

इसके लिए  रोगी को दीपन,स्निग्ध, अनुलोमन, लंघन, एवं बृंहण (पुष्टिकारक)पदार्थ का सेवन लाभकारी होता है।

गुल्म रोगी के शारिरिक स्रोतों का स्निग्धीकरण से कोमल होने , प्रचण्ड वात को दबाने तथा विबन्ध तोडने के पश्चात स्वेदन कर्म लाभप्रद सिद्ध होता है।

तदनंतर देशकाल और अवस्था अनुसार स्नेहन,सेंक, निरुहबस्ति और आनुवासन वस्तिकर्म के द्वारा उपचार करें।

इसके बाद मंद उष्ण उपनाहन कर्म करने तथा सान्त्वना देने चाहिए।फिर आवश्यकता अनुसार रक्तमोक्षण तथा भुजा क मध्य भाग में शिराभेदन ,स्वेदन, तथा वायु का अनुलोमन करना चाहिए।

इस प्रकार सभी गुल्म जड से समाप्त हो जाते है।

#रावणसंहिता के अनुसार गुल्मरोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा,

- बिरौजा नीबूं का रस, हींग, अनार,विड्नमक, तथा सेंधानमक, इन्हें मधमण्ड के सार अथवा 

- अरण्डी के तैल को मधमण्ड या दूध के साथ पान करने से वातज गुल्म समूल नष्ट हो जाता है।

- सज्जीखार और केतकीखार (क्षार ) को कुठ के साथ अरण्डी तैल मे पान करने से वातज गुल्म का नाश हो जाता है।

- वातज गुल्म के चिकित्सा काल मे कफ प्रकोप होने पर उष्ण व उष्ण पदार्थों के मिश्रित चूर्ण आदि का प्रयोग करना चाहिए। पित्त की प्रकोप अवस्था में विरेचन देना चाहिए।



- काकोल्यादिगण , बकायन,तथा वासादि द्रव्यों से पकाये तैल पान से स्निग्धत पैत्तिक गुल्मी मे विरेचन के बाद बस्तिकर्म का प्रयोग उपयोगी है।

-जब रोगी को जलन, शूल, वेदना, विक्षोभ, निद्रानाश, अरोचकता तथा ज्वरादि के लक्षण हो उस समय उपनाहन कर्म के द्वारा परिपक्व बनाना चाहिए।इसके बाद भेदन, लेपन, आदि कर्म करे. बिना भेदन ही दोष के ऊध्वगामी या अधोगामी होने पर बारह दिनों तक शोधन कर्म न करके उत्पन्न लक्षणो (दोष)का शमन करत रहे।

-पैतिक गुल्म मे लंघन, लेखन, और स्वेदन कर्म को पुर्ण करें। तथा अग्निबर्द्धन ,भूखे होने पर त्रिकटु, जवाखार कल्क मिला कर पकाया हुआ घृतका पान कराये।

अथवा वचा 2भाग, हरड 3भाग, विड्नमक 6 भाग, सौंठ 4 भाग, हींग 1 भागकुडा  8भाग, चीता5 भाग,तथा अजवायन 4 भाग,इन का चूर्ण खाने से,अफारा, औदरिक रोग,शूल, बवासीर, साँस, खाँसी,और ग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।

वातगुल्म प्रयोग को कफगुल्म मे भी अपनाना चाहिए।

अथवा पंचमूल मे पकाये जल, पुरानी मध या महुए के फुलों से निर्मित मध का सेवन करना चाहिए। अथवा

- मठ्ठे मे अजवाइन चूर्ण विड्नमक मिलाकर पीना चाहिये इससे क्षुधाग्नि बढती है। मल,मूत्र और वायु का अनुलोमन होता है । ईति.

#डा०वीरेंद्र मढान.

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

अदरक खाने के 5 फायदे.हिंदी में.

 अदरक खाने के 5 फायदे.हिंदी में.



#Dr.Virender Madhan.

#अदरक से पाचनशक्ति कैसे बढायें?

अदरक एक स्वास्थ्यवर्धक हर्ब है,  

- अदरक  छोटी और बड़ी आंतों को मजबूत बनाकर पाचन शक्ति को बेहतर बनाता है। अदरक खाने से-पेट में ऐंठन, पेट फूलना, कब्ज और डायरिया जैसी आंतों से संबंधित समस्याएं ठीक रहती है.

- अदरक के सेवन से एसिड के कारण आपको सीने में जलन नहीं होती। साथ ही अदरक उन नुकसानदायक बैक्टीरिया को भी नहीं बनने देता, जो एसिड के बनने की वजह होते हैं।

#क्या अदरक के सेवन से इम्यूनिटी बढती है

-अदरक रस और शहद मिलाकर खाने से ईम्यूनिटी बढती है जुकाम खांसी मे आराम मिलता है

- अदरक कालीमिर्च पीपल का काढा बदलते मौसम में बहुत कारगर होता है।

-अदरक, हल्दी, लहसुन को चाय की तरह पकाकर लेने से तुरंत इम्यूनिटी मे लाभ मिलता है।

- ईम्यूनिटी बढाने के लिए अदरक और आंवले को काढा बना कर पीते हैं।

#क्या अदरक से ब्लड शुगर मे राहत मिलती है?

अदरक के तत्व इंसुलिन के प्रयोग के बिना ग्लूकोज को स्नायु कोशिकाओं तक पहुंचाने की प्रक्रिया बढ़ाने में मदद करते हैं. इससे हाई ब्लड शुगर लेवल को काबू में करने में मदद मिलती है.

 शोध में माना गया कि यह बढ़े हुए ब्लड शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के साथ ही इन्सुलिन की सक्रियता को बढ़ाने का भी काम कर सकता है। अदरक में लिवर, किडनी को स्वच्छ और सुरक्षित रखने के गुण पाएं जाते है।

#क्या शरीर दर्द मे अदरक अच्छा उपाय है? 

-बदलते मौसम में किसी भी प्रकार के दर्द मे अदरक एक अच्छा साधन है इसका काढा बना कर पीने से लाभ मिलता है

अपने दैनिक भोजन में अदरक को शामिल करें या शरीर के दर्द और सूजन को कम करने के लिए अदरक की चाय तैयार करें।

अदरक की चाय बनाने के लिए अदरक को छीलकर पानी में दस मिनट तक उबालें। गर्मी से हटाएँ। स्वादानुसार निम्बू का रस और शहद मिलाएं।#अदरक कोलेस्ट्रॉल को करे कंट्रोल?


कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में अदरक आपकी मदद कर सकता है।  दरअसल, अदरक में कुछ एक्टिव एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जैसे कि जिंजरोल (gingerols) और शोगोल (shogaols) होता है। ये दोनों ही तत्व ब्लड में लिपिड की मात्रा को कम करते हैं और प्लॉक जमा होने से रोकते हैं। इसके अलावा जिंजरोल को थ्रोम्बोक्सेन को बनने से रोकता है  

- अदरक का सेवन करने वाले ज्यादातर लोगों में बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड की मात्रा कम होती है।  

* अदरक का सेवन 5 तरीकों से कर सकते है।

1. अदरक का पानी 

अदरक का पानी पीने से सीधी मात्रा में शरीर को इसका अर्क मिलता है, जिससे कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद मिलती है।  इसके लिए आपको खाना खाने के बाद बस आधा कप अदरक का पानी पीना है।  इस पानी को बनाने के लिए 10 से 20 मिनट तक ताजी अदरक को गर्म पानी में डाल कर उबाल लें। फिर अदरक को छान लें और पानी को चाय की तरह पी लें। 

2. नींबू और अदरक की चाय

नींबू और अदरक का सेवन कई तरह से शरीर को फायदे पहुंचाता है। 

3. अदरक का पाउडर

अदरक के पाउडर का आप कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं। 

4. खाने के बाद अदरक चबाएं

अगर आपने बहुत भारी-भरकम तेल मसाले वाली चीजों को खाया है और आपको कुछ और खाने-पीने या मेहनत करने का मन नहीं है तो, आप ऐसे में अदरक का सेवन कर सकते हैं। 

5. अदरक, लहसुन और नींबू का काढ़ा

अदरक की तरह ही लहसुन भी कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में बहुत मदद करती है। आप इन दोनों को मिला कर एक काढ़ा बना सकते हैं और इसका सेवन कर सकते हैं। इसे बनाने के लिए इन एक कप पानी में अदरक और लहसुन डाल कर उबाल लें। फिर इसका पानी छान लें और इसमें दो बूंद नींबू का रस डाल कर इसका सेवन करें।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

पीलिया रोग क्यों होता हैऔर क्या करें उपाय?जाने हिन्दी में.


 #पीलिया #Health care #पांडू रोग #लीवर विकार #प्लीहा #घरेलू उपाय #आयुर्वेदिक चिकित्सा #लाईफ स्टाइल,

#पीलिया रोग क्यों होता हैऔर क्या करें उपाय?जाने हिन्दी में.

Why is jaundice and what to do?

#पीलिया|jaundice,क्या है?

#Dr.VirenderMadhan.

पीलिया एक बीमारी है जो शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा अधिक होने के कारण होती है। बिलीरुबिन का निर्माण शरीर के उत्तकों और खून में होता है। आमतौर पर जब किसी कारणों से लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं तो पीले रंग के बिलीरुबिन का निर्माण होता है।

आयुर्वेद के अनुसार पित्त कुछ कारणों से अपने स्थान से भ्रष्ट हो कर रक्त के द्वारा शाखाओं में फैल जाता है।तो पीलिया रोग उत्पन्न हो जाता है।


आयुर्वेद में पाण्डू का 5 प्रकार का माना है 

1- वातज पाण्डू

2- पित्तज पाण्डू

3- कफज पाण्डू

4- सन्निपातज पाण्डू

6- मिट्टी खाने से उत्पन्न पाण्डू

#पीलिया होने का मुख्य कारण क्या है? 

 - Causes of Jaundice:-

- खट्टे पदार्थों के खाने से, 

- अधिक शराब पीने से,

- मिट्टी खाने से

- गंदा भोजन, बासी भोजन के कारण,

- दिन मे सोने से,

- चिन्ता करने से, 

- तला भुना, फ्राईड,तेज मसालों के खाने से,

- मल मूत्र के रोकना,



*पीलिया के वायरस मरीज के मल में मौजूद होते हैं जिसके कारण इस बीमारी का प्रसार हो सकता है। 

- दूषित पानी, दूध और दूषित भोजन से पीलिया रोग फैल सकता है।

#पीलिया रोग के लक्षण:-

- बुखार रहना।

- भूख न लगना।

- भोजन से अरूचि।

- जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियॉं होना।

- सिर में दर्द होना।

- आंख व नाखून का रंग पीला होना।

- पेशाब पीला आना।

- अत्‍यधिक कमजोरी और थकान रहना.

#पीलिया की अच्छी व घरेलू  दवाई :-

- रोज नीम के ताजे पत्तों का रस निकाल कर रोगी को देने से सप्ताह भर में पीलिया उतर जाता है। 

- पपीता, आमला, तुलसी, अनानास, छाछ और दही आदि का सेवन करने से भी पीलिया को दूर करने में मदद मिलती है।

- मूली के रस मे मिश्री मिला कर पीने से 15-20 दिनों में पीलिया नष्ट हो जाता है।

मात्रा :- 25-30 ग्राम

बच्चों के लिए 6 से 10 ग्राम दें।

- सुहागा की भस्म( सुहागा का फूला) 250 mg. सवेरे शाम मक्खन मे लपेटकर दे।

-मूली के पत्तों का रस 40 ग्राम चीनी मिला कर प्रातः खाली पेट देने से पीलिया नष्ट हो जाता है यह रामबाण दवा है।

पीलिया 7 दिनों में ठीक हो जाता है।

हल्दी व अकेले दूध का सेवन न करें।

- एरण्ड के पत्तों का रस 30 ml  खाली पेट देने से पीलिया 3 दिनो मे.ठीक हो जाता है।

रोगी को खिलायें।

-अनार, पपीता, अंजीर, मुन्नका खाने को दें।

- साबुत धनिया रात भर भोगोकर रखें सवेरे उसका पानी पीने को दें।

-त्रिफला क्वाथ सवेरे शाम पीने से भी पीलिया मे आराम होता है।

- नीमपत्र का रस 10- 25ग्राम पीने से पीलिया शीध्र ठीक हो जाता है।


#पीलिया है तो क्या करें क्या न करें ?

- रोगी को गरिष्ट भोजन नही देना चाहिए।

- रोगी को तरल पदार्थ पर रहना चाहिए।

- ठीक होने तक विश्राम करना चाहिए।

-  साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, खानपान की चीजों का सेवन करने से पहले उन्हें अच्छी तरह धोना चाहिए

धन्यवाद

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

भूमि आंवला एक आयुर्वेदिक दिव्य औषधि.जाने हिंदी में.

भूमि आंवला एक आयुर्वेदिक दिव्य औषधि.जाने हिंदी में.

#भूमि आंवला का परिचय लाभ क्या क्या है?



#डा०वीरेंद्र मढान.

भूमि आंवला,लीवर के साथ शरीर में अनेक बीमारीयों के लिए चमत्कारिक औषधि है।

- भुई आंवला एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के अनुसार, भुई आंवला के फायदे।

 से अनेक बीमारियों को ठीक किया जाता है। 

- भूमि आंवला से भूख की कमी, और

 -कामोत्तेजना बढ़ाने में मदद मिलती हैं। 

- भूमि आंवला लीवर की सूजन, सिरोसिस, फैटी लिवर, बिलीरुबिन बढ़ने पर, 

- पीलिया में, हेपेटायटिस B और C में, किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर, मधुमेह आदि में बहुत लाभदायक हैं।

* भूमि आंवला का पौधा लीवर व किडनी के रोगो मे बहुत लाभ करता है। 

#यह कहाँ मिलता है?

यह बरसात मे अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानो पर पूरा साल मिलता है। इसके पत्ते के नीचे छोटा सा फल लगता है जो देखने मे आंवले जैसा ही दिखाई देता है। इसलिए इसे भुई आंवला कहते है। इसको भूमि आंवला या भू धात्री भी कहा जाता है। 

इसका सम्पूर्ण भाग, पंचांग प्रयोग किया जाता है

 *  कई बाज़ीगर भूमि आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं।

मात्रा:-

साधारण सेवन मात्रा

आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ दिन मे 2-3 बार तक। या पानी मे उबाल कर छान कर भी दे सकते हैं। 

* लीवर की सूजन, बिलीरुबिन और पीलिया में फायदेमंद।

- लीवर की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है। लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा। बिलीरुबिन बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पौधे को जड़ों समेत उखाडकर, उसका काढ़ा सुबह शाम लें। सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ बाईलीरुबिन ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी। 

इसे अन्य दवाइयो के साथ भी दे सकते (जैसे कुटकी/रोहितक/भृंगराज) अकेले भी दे सकते हैं। पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है।

या इसके पेस्ट को बकरी के दूध के साथ मिलाकर भी दिया जाता है। 

- पीलिया के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर भी इसकी पत्तियों को सीधे खाया जाता है।

अगर वर्ष में एक महीने भी इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी।

- LIVER CIRRHOSIS जिसमे यकृत मे घाव हो जाते हैं यकृत सिकुड़ जाता है उसमे भी बहुत लाभ करता है।

- Fatty LIVER जिसमे यकृत मे सूजन आ जाती है पर बहुत लाभ करता है।

-हेपेटायटिस B और C में. Hepatitis b – hepatitis c

हेपेटायटिस B और C के लिए यह रामबाण है। भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें। ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी ठीक हो जाती है।

- डी टॉक्सिफिकेशन

इसमें शरीर के विजातीय तत्वों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।

- मुंह में छाले और मुंह पकने पर पत्तों का रस चबाकर निगल लें या बाहर निकाल दें। यह मसूढ़ों के लिए भी अच्छा है 

- स्तन में सूजन या गाँठ।

स्तन में सूजन या गाँठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लें पूरा आराम होगा।

– जलोदर या असाईटिस

जलोदर या असाईटिस में लीवर की कार्य प्रणाली को ठीक करने के लिए 5 ग्राम भुई आंवला +1/2 ग्राम कुटकी +1 ग्राम सौंठ का काढ़ा सवेरे शाम लें।

- खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर लें .

- यह किडनी के इन्फेक्शन को भी खत्म करती है। इसका काढ़ा किडनी की सूजन भी खत्म करता है। 

– SERUM CREATININE बढ़ गया हो,तो भी लाभदायक होता है।

- प्रदर या प्रमेह की बीमारी भी इससे ठीक होती है। 

*रक्त प्रदर की बीमारी होने पर इसके साथ दूब का रस मिलाकर 2-3 चम्मच प्रात: सायं लें। 

- पेट में दर्द हो और कारण न समझ आ रहा हो तो इसका काढ़ा ले लें। पेट दर्द तुरंत शांत हो जाएगा। ये पाचन प्रणाली को भी अच्छा करता है।

- शुगर की बीमारी में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें . इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर की बीमारी भी ठीक होती है।

– पुराना बुखार हो और भूख कम लगती हो तो , इसके साथ मुलेठी और गिलोय मिलाकर, काढ़ा बनाकर लें। इसका उपयोग घरेलू औषधीय के रूप में जैसे ऐपेटाइट, कब्ज. टाइफाइट, बुखार, ज्वर एवं सर्दी किया जाता है। 

* मलेरिया के बुखार में इसके संपूर्ण पौधे का पेस्ट तैयार करके छाछ के साथ देने पर आराम मिलता है।

- आँतों का इन्फेक्शन होने पर या अल्सर होने पर इसके साथ दूब को भी जड़ सहित उखाडकर , ताज़ा ताज़ा आधा कप रस लें . रक्त स्त्राव 2-3 दिन में ही बंद हो जाएगा .

- खुजली होने पर इसके पत्तों का रस मलने से लाभ होता है।

- प्लीहा एवं यकृत विकार के लिये इसकी जडों के रस को चावल के पानी के साथ लिया जाता है।

इसे अम्लीयता, अल्सर, अपच, एवं दस्त में भी उपयोग किया जाता है।

- इसे बच्चों के पेट में कीडे़ होने पर देने से लाभ पहुँचाता है।

- यह एनीमिया, अस्थमा, ब्रोकइटिस, खांसी, पेचिश, सूजाक, हेपेटाइटिस, पिलिया एवं पेट में ट्यूमर होने की दशा में उपयोग किया जाता है।

#डा०वीरेंद्र मढान.

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

शिलाजीत के आयुर्वेदिक गुण व उपयोग क्या है जाने हिंदी में।.

शिलाजीत के आयुर्वेदिक गुण व उपयोग क्या है जाने हिंदी में।.

शिलाजीत

By:-Dr.VirenderMadhan.

#शिलाजीत के नाम.



शिलाजीत,शिलाजतु,आद्रिजतु,शैलनिर्यास, गैरेय,अश्मज,गिरिज,शैलधातुज आदि नामों से जाना जाता है।

#कैसा होता है शिलाजीत?

शिलाजीत एक गाढ़ा भूरे रंग का, चिपचिपा पदार्थ है जो मुख्य रूप से हिमालय की चट्टानों से पाया जाता है। इसका रंग सफेद, गाढ़ा भूरा रंग का होता है।

#शिलाजीतका उपयोग:-

 शिलाजीत का उपयोग आमतौर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। आयुर्वेद ने शिलाजीत की बहुत प्रशंसा की है जहाँ इसे बलपुष्टिकारक, ओजवर्द्धक, दौर्बल्यनाशक एवं धातु पौष्टिक अधिकांश नुस्खों में शिलाजीत के प्रयोग किये जाते है।

शिलाजीत के गुण:-

चरपरा, कडवा, गर्म , पाक मे चरपरा, रसायन , मलछेदन करने वाला ,योग वाही और कफ,मेद ,पथरी, शर्करा, मूत्रकृच्छ, क्षय, श्वास, वातरोग, बवासीर, पाण्डू, मृगी, उन्माद, सूजन, कुष्ठ, उदररोग, तथा उदरक्रमि  नाशक होता है।

#शिलाजीत के खाने से क्या क्या लाभ होते है?

-पेट साफ करता है।

-रसायन होने से यह जराव्याधि को दूर करता है।

- ऊर्जा और पुनरोद्धार प्रदान करता है।

-मस्तिष्क बल को बढ़ावा देता है।

- मोटापा करने मे लाभदायक है।

- बलदायक है,क्षयरोग,श्वास रोग मे लेने से लाभ मिलता है।

- हार्मोन और इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करता है।

- प्रमेह,मधुमेह को दूर करने में मदद करता है।

- कैंसर जैसे रोगों में बचाव और रक्षा में मदद करता है।

- सूजन कम करता है 

- पेट के कीडो को नष्ट करता है।

- बवासीर रोग में लाभकारी है।

- वात रोगों में भी बहुत कारगर है।

(इसके खाने से कोई हानि नहीं होती फिर भी शिलाजीत खाने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर करें)

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान.