आयुर्वेद क्यों विचित्र है||Fact of ayurveda.inhindi.
आयुर्वेद की खुबियां:-
Fact no 1.
- आयुर्वेद पश्चिमी चिकित्सा के विपरीत,आयुर्वेद चिकित्सा और दवाएं दुष्प्रभाव से मुक्त हैं। - पश्चिमी चिकित्सा प्रणाली की रासायनिक ओवरडोज होने से,
या हमारे शरीर में बेमेल होने के कारण विपरीत दुष्प्रभाव होते हैं।
आयुर्वेद प्रणाली की दवाएं रसायन मुक्त होती हैं जड़ी बूटियों की प्रकृति जंतुओं की प्रकृति मेल खाने से प्राकृतिक पूरक होती हैं।पंचमहाभूत से बनी जडीबुटी पंचमहाभूतों से पुर्ण शरीर के अनुकूल होती है.
पंचमहाभूतों से ही श्रृष्टि का निर्माण हुआ है।
Fact no 2.
#आयुर्वेद के 5 महाभूत सिद्धांत क्या हैं?
आयुर्वेद का मानना है कि संपूर्ण ब्रह्मांड पांच तत्वों से बना है: Vayu (वायु), जल water (पानी), खालित्व,आकाश (अंतरिक्ष या ईथर), पृथ्वी Earth (पृथ्वी) और तेज,अग्नि (आग)।
- पंचमहाभूतों से दोषों (वात,पित्त, कफ) की उत्पत्ति
1. वायु महाभूत से शरीरगत वात दोष की उत्पति होती है,
2. अग्नि महाभूत से पित्त दोष की उत्पत्ति होती है,
3. जल तथा पृथ्वी महाभूतों के मिलने से कफ दोष की उत्पति होती है।
* शरीर मे रस,रक्त,मांस, मेद,अस्थि, मज्जा और शुक्र आदि धातु से निर्मित होता है एवं मल (मल,मूत्र, स्वेद आदि)शरीर को स्तंभ की तरह थामे हुये हैं।
- दोष, धातु, मल प्राकृतिक रूप से उचित रहकर ही शरीर को धारण करते है।
- शरीर की क्षय, वृद्धि, शरीरगत् अवयवो द्रव्यों की विकृति, आरोग्यता-रुग्णता, इन दोष धातु मलों पर ही आधारित है
यद्यपि शरीर के लिए दोष, धातु, मल तीनों प्रधान द्रव्य है फिर भी शारीरिक क्रिया के लिए वातादि दोषों के अधिक क्रियाशील होने से शरीर में दोषो की प्रधानता रहती है।
“रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता"
(दोषों की विषमता ही रोग है और दोषों का साम्य आरोग्य है।)
तीनों दोषों में सर्वप्रथम वात दोष ही विरूद्ध आहार-विहार से प्रकुपित होता है यह वात अन्य दोष एवं धातु को दूषित कर रोग पैदा करता है। वात दोष प्राकृतिक रूप से प्राणियों का “प्राण" माना जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सा में जिस जिस धातु दोष आदि की कमी या अधिकता होने पर जो रोग उत्पन्न होते है दोष,धातु के अनुसार जडीबुटी के पंचमहाभूतों को देखकर रोगों की औषधि निर्माण की व्यवस्था की गई है।शरीर के अनुकूल औषधि होने के कारण इनका कोई दूष्यप्रभाव नही होता है।
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