Guru Ayurveda

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

कविता महीनोंनुसार लाईफ स्टाईल.in hindi.


 #आहार-विहार महीनों के अनुसार { Life Style } कैसा होना चाहिये?In hindi.

#Dr_Virender_Madhan.


* वर्ष भर मे मासानुसार क्या करें क्या न करें,?

* क्या खायें क्या न खायें?


“चैत्र माह में गुड मत खाना,

दिन उगते ही चने चबाना।

आये जब वैशाख महीना,

तैल छोड-वेल रस पीना।।”


अर्थात्-

अप्रैल माह मे गुड नही खायें,सवेरे के समय चना चबा चबा कर खाना चाहिए।

मई के महीने मे तैल का प्रयोग खाने मे न करें।

वेल का रस बनाकर लेना चाहिए।


“ जेठ मास राई मत खाओ,

बीस मिनठ दिन मे सो जाओ।

मत आषाढ़ बेल फल खाना,

खेल कूद मे लगन बढाना।।”


अर्थात्..

जून माह मे राई या राई वाली चीजों को नही खाना है।इस माह मे रूक्षता के कारण 20-25 मिनट दिन में सो लेना चाहिए अन्य माह मे दिन मे सोना आयुर्वेद में वर्जित माना है।

जौलाई माह मे बेल फल नही खाना चाहिए और खेल कूद, व्यायाम करना चाहिए।


“सावन नींबू खाना छोडो,

बाल-हरड से नाता जोडो।

भादो माह मही मत खाना,

तिक्त चीचों का लाभ उठाना।


अर्थात् ..

सावन माह (अगस्त) मे नींबू नहीं खाना चाहिए तथा छोटी हरड का प्रयोग करना चाहिए।


सितम्बर माह मे मही (दूध) छोडकर तिक्त स्वाद वाले भोजन भी करने चाहिए।


“क्वार करेला कभी न खाना ,

लेकिन गुड से हाथ मिलना।

कार्तिक मास दही मत खाना,

आंवले को आहार मे लाना ।।”


अर्थात्..

क्वार (अक्टूबर )माह मे करेले का त्याग कर देना चाहिए।तथा गुड का सेवन करना चाहिए।

नवम्बर माह( कार्तिक)में दही नही खाना और आंवला रोज खायें।


“अगहन मे जीरा मत खाना,

तैल युक्त भोजन अपनाना।

पौष माह मे धनिया छोडो,

दुग्धपान से नाता जोडो।।”


अर्थात्..

दिसम्बर माह ( अगहन) मे जीरे का प्रयोग न करें।तैल से बने भोजन करें।

जनवरी माह (पौष) में घनिया खाना छोड दे और दुग्धपान खूब करें।


“माघ माह मिश्री छोडो,

घी-खिचडी से नाता जोडो।

फाल्गुन माह चने मत खाना,

प्रातःकाल अवश्य नहाना।।”


अर्थात्..

फरवरी मास ( माघ माह) मिश्री नही खानी चाहिए ।

फरवरी मे घी खिचड़ी जरूर खानी चाहिए।

मार्च महीने (फाल्गुन मास) मे चने नही खायें और इस महीने नित्य स्नान करना चाहिए।


बारह मास इस प्रकार परहेज़ कर के या मास अनुसार भोजन मे परिवर्तन कर के अनेकों रोगों से बचा जा सकता है।

अपने स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है। यही आयुर्वेद का लक्ष्य भी है।

#Dr_Virender_Madhan.


बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

गोदन्ती (हरताल) भस्म।in hindi.


 


गोदन्ती (हरताल) भस्म

#गोदंती के विषय में आयुर्वेदिक जानकारी।

#Dr_Virender Madhan.


Contains

गोदंती क्या है?

गोदंती का शोधन

गोदंती का मारण

गोदंती भस्म के गुण

* गोदंती:-

यह अपने नाम से प्रसिद्ध है। बाजार में पत्रमय-शीला या पाशेदार टुकड़ों के रूप में यह मिलती है। औषधि के लिऐ दोनों का प्रयोग होता है।

- मुंबई में इसे घापाण तथा दक्षिण भारत के सिद्ध संप्रदाय में इसे कर्पूर शिला एवं अंग्रेजी में से जिप्सम ( Gypsum) कहते हैं।


#गोदंती का शोधन विधि :-

अच्छी गोदंती को गर्म पानी से धोकर साफ करके धूप में सुखाकर रख लें।


#गोदंती भस्म बनाने की विधि :-

जमीन में एक हाथ दे गहरा गड्ढा बना उसका चौथाई भाग कण्डो से भरकर उस पर गोदंती के टुकड़ों को अच्छी तरह बिछा दें और ऊपर कण्डो से शेष भाग को भरकर आँच दें। स्वांग शीतल होने पर कण्डों की राख को सावधानी से हटाकर गोदंती भस्म को निकाल चंदनादि अर्क (उत्तम चंदन का चूर्ण, मौसमी गुलाब तथा केवड़ा, वेदमुश्क का मौलसरी और कमल के फूल सबको एकत्र कर उसमें 8 गुना पानी डालकर भवके से आधा अर्क खींचे) इसमें या ग्वारपाठा (घृतकुमारी) के रस में घोंटकर टिकिया बना कर धूप में सुखाएं, जब टिकिया खूब सूख जाए तो सराब-संपुट में बंद कर लघुपुट में फूँक दें। यह स्वच्छ-सफेद और बहुत मुलायम भस्म तैयार होगी।


दूसरी विधि :-

गोदंती के टुकड़ों के ऊपर-नीचे ग्वारपाठे का गुदा लगाकर हंडिया में रखकर गजपुट में पुट देने से एक-दो पुट में ही उत्तम भस्म बनकर तैयार हो जाती है।


गोदंती भस्म के गुण और उपयोग


गोदन्ती से बनाई गई यह भस्म एक खनिज आधारित आयुर्वेदिक औषधि है। यह प्राकृतिक कैल्शियम और सल्फर सामग्री में समृद्ध है। 


- आयुर्वेद (Ayurveda) के अनुसार, गोदन्ती भस्म तीव्र ज्वर (आयुर्वेद में इसे पित्तज ज्वर के रूप में भी जाना जाता है), 

* सिरदर्द, जीर्ण ज्वर, मलेरिया, योनिशोथ, श्वेत प्रदर, गर्भाशय से अत्यधिक रक्तस्राव, सूखी खाँसी और रक्तस्राव के विकारों के लिए लाभदायक है।आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका उपयोग उच्च रक्तचाप, उच्च रक्तचाप के कारण सिरदर्द, अनिद्रा, रेस्टलेस लेग सिंड्रोम, कब्ज, अपच, निम्न अस्थि खनिज घनत्व, ऑस्टियोपोरोसिस, खाँसी और दमा में भी करते हैं।

सामान्यतया इसका 

 अल्सर, बुखार, कास, सांस की समस्या, सिर दर्द, पुराना बुखार, सफेद पानी की समस्या, कैल्शियम की कमी, आदि में प्रयोग करने से फायदेमंद होता है। गोदन्ती भस्म के सेवन से शरीर ठंड़ा रहता है, पित्त कम रखने जैसे गुण पाए जाते हैं।


चेतावनी:-किसी भी द्रव्य या औषधी का प्रयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।

डा०वीरेंद्र मढान


मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

#गर्दन दर्दNack Pain.dr.virender madhan.in hindi.


 #गर्दन दर्दNack Pain.

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By:-

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#गर्दन और कंधे में दर्द क्यों होता है?

कारण:-

 पीठ के ऊपरी हिस्‍से यानि गर्दन और कंधे में दर्द होने का सबसे बड़ा कारण है सही से न बैठना, सही से आसन से न सोना।

 *रात को सोते समय गलत तकिया की वजह से यह दर्द हो सकता है ।

*कई बार हमारी दिनचर्या भी गर्दन में दर्द का कारण बन जाती है.

* कोई पुरानी चोट भी इसकी वजह हो सकती है.

- इसके अलावा गलत तरीके से उठना-बैठना, लेटना या फिर बहुत मोटी तकिए का इस्तेमाल करना इस दर्द और अकड़ का कारण हो सकता है. इसके अलावा कई घंटों तक एक ही मुद्रा में बैठे रहने से भी गर्दन में दर्द हो सकता है.


** गर्दन, कंधों और आसपास की मांसपेशियों में दर्द सामान्य या गंभीर होता है। इससे सिर में दर्द, सुन्नता, कठोरता, अकड़ जाना, झुनझुनी, कुछ भी निगलने में दर्द होना और सूजन आदि जैसी समस्याएं हो सकती हैं। 

*मांसपेशियों में तनाव और खिचाव आना, बिना ब्रेक लिए घंटों तक काम करते रहना, *सोते समय गर्दन की अवस्था गलत हो जाना और व्यायाम के समय गर्दन में मोच आ जाना आदि शामिल हैं।


अन्य कारण-

 जैसे पोषक तत्वों की कमी, गर्दन की चोट, सर्विकल स्पोंडिलोसिस आदि शामिल हैं। कही कही मामलों में ये समस्या स्पाइन के संक्रमित होने के कारण और स्पाइन में कैंसर होने की वजह से भी होती है। 


#सर्वाइकल के क्या क्या लक्षण होते हैं?

 

- हाथ-पैरों में कमज़ोरी और 

- सूजन 

- चलने-फिरने में दिक्कत 

- ऐंठन होना 

- आंतों की प्रक्रिया में बदलाव 

- गर्दन में झटका या दबाव 

- चोट के कारण 

- रीढ़ में खिंचाव


#गर्दन के दर्द होने पर क्या करें उपाय ?


- जब गर्दन के पीछे दर्द ज्यादा बढ़ जाए, तो पानी को हल्का गर्म कर लें और उसमें नमक डालकर सूती कपड़े से गर्दन की सिकाई करें।  

» [आप डॉक्टर से भी सलाह ले सकते हैं]

- घर पर आप हिंग और कपूर बराबर मात्रा में ले थोडे से सरसों के तैल मे मिला कर रगडकर क्रीम सी बनाकर गर्दन पर लगाये।

- अदरक का पानी में पेस्ट बना कर गर्दन पर दर्द वाले स्थान पर. लगा सकते है।

- किसी तैल से गर्दन पर हल्के हाथों से मालिस कर सकते है।

- गर्म पानी मे कपडा भिगोकर सेक सकते है .

- गर्म पानी से ही स्नान करें।

-किसी एक्सपर्ट से पुछ कर गर्दन की एक्सरसाइज करें।

#गर्दन दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियों:-

*अभ्यगं- 

- न्यूमोस आयल (गुरु फार्मास्युटिकल)

- महानारायण तैल

-प्रसारिणी तैल आदि की गर्दन पर हल्के हाथों से मालिस करें।


* रुक्ष स्वेदन:-

-गर्म कपडे से.

- गर्म पानी की बोतल से.

-हथेली रगड कर सेक कर सकते है।

* नस्य:-

वेल, कालीमिर्च, बला का तैल मे नस्य बनाकर रोगी को नस्य दे।

-षडबिंदूतैल का नस्य दे सकते है।

*अन्य औषधीय प्रयोग:-

रसौनाक्षीर का प्रयोग

दशमूल क्वाथ या

दशमूलारिष्ट का प्रयोग

- लाक्षादिगुग्गुल-

- महायोगराज गुग्गुल

- महावातविध्वंन रस

-वृहतवातचिन्ता मणी रस

#क्या करें क्या न करें?

{पथ्यापथ्य}

-आहार में मटर, गोभी, करेला, - दालें न खायें।

- जामुन-सुपारी न खाये।

अधारणीय वेग धारण न करें यानि जैसे 

- छींक, 

डकार,जम्भाई,मल-मूत्र आदि वेगों को न रोकें।

- दिन मे न सोये

- रात्रि मे देर तक न जागे।

-व्यायाम, व्रत, अधिक पैदल न चलें।

- सिर या हाथ से वजन न उठायें।


#drvirendermadhan




बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

#मोटापा की वास्तविकता। in hindi


 #मोटापा की वास्तविकता।in hindi

#Fact of ayurveda

By:- Dr.Virender Madhan.

» बहुत से लोगों के मन में यह गलतफहमी होती है कि वह किसी एक प्रकार के भोजन की वजह से मोटापे का शिकार हो रहे हैं। यह खाने से मोटापा बढ़ता है यह खाने से कम होता है। मोटापा कम करने के लिए चावल खाना छोड़ें या रोटी?

» मोटापा बढ़ता है जरूरत से ज्यादा खाना खाने से मतलब अगर आप दिन भर में अपनी जरूरत के मुकाबले ज्यादा खाना खाएंगे तो फिर आपका मोटा होना निश्चित है।

- पूरी,कचौरी, चावल हो या रोटी  भी खाएं मगर अपनी रोजाना की कैलोरीज के मुताबिक खायें तो आप मोटे नहीं होंगे।

- कुछ खानों में दूसरों के मुकाबले अत्यधिक कैलोरीज होती हैं ।आप इस प्रकार के भोजन को ज्यादा ना खाएं अगर आप वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

» सेहतमंद होने के बावजूद अगर बदाम, मूंगफली अखरोट, काजू इत्यादि ज्यादा मात्रा में खाए जाएं तो यह वजन कम करने में परेशानी का कारण बन सकते हैं क्योंकि इनमें भी कैलोरी अच्छी मात्रा में पाई जाती हैं और इन्हें एक साथ अधिक मात्रा में खाने से पेट भी नहीं भरता।

- बाहर का तला हुआ खाना कैलोरीज में अधिक होने के साथ-साथ आपकी सेहत के लिए भी ज्यादा अच्छा नहीं होता। इसके कुछ उदाहरण है समोसा, पकोड़ा, छोले भटूरे, पावभाजी, अन्य जंक फूड इत्यादि इत्यादि।

- बहुत से लोग दिन भर में कई बार चाय पीने के शौकीन होते हैं जिसमें वह अच्छी मात्रा में दूध और चीनी डालते हैं। अगर आप घर की बनी चाय दिन भर में 3 बार पीते हैं तो इससे लगभग आपको 500कैलोरीज के करीब मिल जाती हैं जिसे लोग अक्सर गिनते भी नहीं है।


#मोटापा बढने लगे तो क्या करें?

जब फैट (मेद)बढने लगता है तब-चिकनाई, दूध, दही, मक्खन,मांस , धी से बने पदार्थ, पका केला, नारियल, पुष्टदायक भोजन, दिन में सोना, हमेशा आराम से रहने से परहेज करें।

-रसायन द्रव्यों व औषधियो का प्रयोग, उडद ,गेहूं, ईख के प्रोडक्ट खाना बन्द कर देना चाहिए ।


#मोटापा कम करने के लिए आपकी जीवनशैली (Your Lifestyle for Weight Loss)कैसा हो ?

- साप्ताहिक उपवास करें।

-तमगुण को जीतने से मोटापा कम हो जाता है। अतः दिन में न सोयें।

- उदार बने।

-परिश्रम करें।

- सुबह उठकर सैर पर जाएँ, और व्यायाम करें।अधिक पैदल चलें।

- सोने से दो घण्टे पहले भोजन कर लेना चाहिए।

- रात का खाना हल्का व आराम से पचने वाला होना चाहिए।

- संतुलित और कम वसा वाला आहार लें।

- वजन घटाने के लिए आहार योजना में पोषक तत्वों को शामिल करें।


#चेतावनी:-

किसी भी औषधि या द्रव्यों के प्रकार से पहले आप किसी आयुर्वेदिक विषेशज्ञ से सलाह जरूर ले क्योंकि प्रतिएक व्यक्ति की प्रकृति, दोष ,अवस्था आदि अलग अलग होती है ।







रविवार, 13 फ़रवरी 2022

सुबह की जीवनशैली? In hindi.

 सुबह की जीवनशैली? In hindi.

By:- #Dr_Virender_Madhan.

#सुबह की जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?

अपने जीवन को सुखमय व स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली, आहार,निद्रा आदि का ठीक होना बहुत आवश्यक है जीवनशैली एक जीवन जीने की एक व्यवस्था है मैनेजमेंट है।

मैनेजमेंट जितना अच्छा होगा उतना ही जीवन मे आनंद होगा । सुखी व स्वस्थ होगा।

जीवन को मैनेज करने के लिए कुछ नियमो पर चलना होता है।


स्वस्थ व सुखी रहने के लिये आयुर्वेद के अनुसार आहार, विहार , और निद्रा ये तीनों को व्यवस्थित करना बहुत अनिवार्य है। इन तीनों को आयुर्वेद के अनुसार वय(आयु), काल-दिन-रात,ऋतु काल,बल, आदि का विचार कर के प्रयोग मे लाये तो हम आने वाले रोगों से, दुखों से बच सकते है तथा उत्तम जीवन जी सकते है।

#जीवनशैली मे सवेरे के ५ नियम.

*1- ब्रह्ममुहर्त में उठ कर अमृत पान करना।

*2- मलत्याग,व ईन्द्रिय प्रज्ञालन।

*3- तैल मालिस और व्यायाम।

* 4- स्नान ,ध्यान, प्रार्थना, और दैनिक कार्यों की रूपरेखा।

* 5- नाश्ता Breakfast.

1- ब्रह्म मुहूर्त मे उठकर अमृतपान करना।

सुर्य उदय से १ घण्टे पहले उठना आयुर्वेद मे सर्वोत्तम माना है। सबसे पहले निद्रा पूर्ण हो गई है ऐसा विचार कर शैय्या का त्याग कर देना चाहिए।
सबसे पहले उठकर ब्रह्म मुहूर्त मे आयुर्वेद के अनुसार नासिका (नाक) से जल पीना चाहिए।
अगर नाक से न पी सके तो मुख से ही जल पीलेंं शुरू मे जितना पी सकते सके उतना पीयें बाद में अभ्यास करते हुये जल की मात्रा १ से १/२ लिटर तक पीने की आदत बना ले।
ब्रह्म मुहूर्त मे पीया हुआ जल अमृत समान होता है इसलिए इस जलपान को अमृत पान बोला है।

*ब्रह्म मुहूर्त में जल पीने के लाभ:-

ब्रह्म मुहूर्त मे पानी पीने से सेहत को होने वाले फायदे
1 - विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालें
विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने मे कारगर है।
 सुबह जो लोग गुनगुने पानी का सेवन करते हैं उनके शरीर में लार एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है और शरीर को डिटॉक्स करने में भी मददगार है।
2 - किडनी को रखे तंदुरुस्त
किडनी को तंदुरुस्त बनाए रखने में सवेरे पानी पीना बेहद उपयोगी है। 
3 - त्वचा के लिए उपयोगी
त्वचा की कई समस्या को दूर करने में सुबह उठकर सवेरे पानी पीना बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। 
4 - मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मददगार होता है।
5 - पाचनतंत्र ठीक रहता है
6 - वजन कम करने में उपयोगी है।

2- मलत्याग और इन्द्रियों को साफ करना।

मलत्याग के बाद अपने आंख,मुंह ,दांत आदि  साफ करें।
स्वच्छता से स्वास्थ्य की बृध्दि होती है। अरुचि दूर होती है।कांति बढती है।

3-तैल-मालिस(अभ्यगं),योग और व्यायाम करें।

अभ्यंग (मालिश) शरीर और मन की ऊर्जा का संतुलन बनाता है। वातरोग के कारण त्वचा के रूखेपन को कम कर वात को नियंत्रित करता है। शरीर का तापमान नियंत्रित करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और दूसरे द्रवों के प्रवाह में सुधार करता है।

- प्रतिदिन अभ्यंग के लाभ:-

  1. वृद्धावस्था रोकता है
  2. नेत्र ज्योति में सुधार
  3. शरीर का पोषण
  4. आयु बढ़ती है
  5. अच्छी नींद आती है
  6. त्वचा में निखार
  7. मांसपेशियों का विकास
  8. थकावट दूर होती है
  9. वात संतुलन होता है
  10. शारीरिक व् मानसिक आघात सहने की क्षमता बढ़ती है।

*व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है।
 यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है। जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाने का काम करती है।
क्लेश को सहन करने की शक्ति प्रदान करता है।

* 4- स्नान ,ध्यान, प्रार्थना, और दैनिक कार्यों की रूपरेखा।

स्नान

हर रोज नहाने से चेहरे पर गंदगी जमने नहीं पाती, जिससे बैक्टीरिया नहीं पनपते। 
अगर आप नहीं नहाते हैं तो खतरनाक बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं त्वचा के रोग होने लगते है।

स्नान करने से क्या लाभ होता है?

1 नहाने से कम होता है हृदय रोग का खतरा कम होता है।
2 नियमित स्‍नान से श्वसन तंत्र मज़बूत होता है।
3 मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में भी होता है सुधार होकर तनाव मे कमी हो जाती है।
4 नहाने से मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों को फायदा हो सकता है।
5 नहाने से हॉर्मोन संतुलित रहते हैं।
6 त्वचा के लिए फायदेमंद है नहाना।
7 स्नान करने से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है

ध्यान:-

ध्यान से मानसिक लाभ : 

- गहरी से गहरी नींद से भी अधिक लाभदायक होता है ध्यान।
- विशेषतःआपकी चिंताएं कम हो जाती हैं। आपकी समस्याएं छोटी हो जाती हैं। ध्यान से आपकी चेतना को लाभ मिलता है।  
- ध्यान करने से आपको भीतर से स्वच्छ, निर्मल और शांत करते हुए हिम्मत और हौसला बढ़ाता है।
- ध्यान से शरीर को भी लाभ मिलता है।

ध्यान विधि:-

 योगशास्त्र में ध्यान का स्थान बहुत ऊंचा है। ध्यान के प्रकार बहुत से हैं। ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। बस आंखें बंद करके किसी भी साफ-सुथरे और शांत वातावरण में बैठ जाएं। पांच मिनट तक बंद आंखों के सामने के अंधेरे को देखते रहें या श्वासों के आवागमन को महसूस करें। बस यही है ध्यान की शुरुआत।

प्रार्थना : 

प्रार्थना में शक्ति होती है। प्रार्थना करने से मन में विश्‍वास और सकारात्मक भाव जाग्रत होते हैं, जो जीवन के विकास और सफलता के अत्यंत जरूरी हैं।
पूजा या प्रार्थना करने का तौर तरीका बहुत मायने नहीं रखता है ईश्वर के लिए। उसके लिए तो आपके मन में भक्ति भाव का होना ही काफी है
नित्य भाव से प्रार्थना करने से मानसिक श्रम तथा सुख-दुख, असफलता, निराशा और द्वंद्व इत्यादि से उत्पन्न आघातों के प्रभाव दूर होते हैं और स्नायुओं में फिर से शक्ति भर जाती है। 

* 5- नाश्ता Breakfast.

नाश्ता है बेहद जरूरी ।
 सुबह के समय किया गया नाश्ता आपके शरीर में ऊर्जा और शक्ति भर देता है। नाश्ता शरीर के लिए इंधन की तरह काम करता है। ... शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा और पोषण का 25 प्रतिशत भाग केवल नाश्ते से मिलता है।

ब्रेकफास्ट क्यों जरूरी है?

- दिन का सबसे जरूरी भोजन Breakfast होता है दिन में 6-6 घण्टे बाद भोजन की आवश्यकता होती है 
अगर Breakfast न किया जाये तो शक्ति का ह्रास होने लगता है। इसलिए सवेरे का भोजन करना बहुत जरुरी होता है। जिससे हमे कार्य करने की ताकत बनी रहती है एनर्जेटिक रहते हैं। ... हेल्दी भोजन से और समय से नाश्ता करने से मोटापे की आशंका कम हो जाती है क्योंकि इससे आप ओवर इटिंग करने से बच जाते हैं।
आपको यह लेख कैसा लगा कृपा कोमेंट करके बताये।

धन्यवाद!

डा०वीरेंद्र मढान।

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

#खांसी क्यों होती है |खांसी कैसे होगी ठीक?In hindi.


#खांसी क्यों होती है |खांसी कैसे होगी ठीक?In hindi.

#Dr_Virender_Madhan.

#आयुर्वेद में खाँसी को क्या कहते है ?

* खांसी को संस्कृत मे कास बोलते है।
> कण्ठ मे होने वाली उदान वात विपरीत हो जाती है और कफ के साथ प्राणवायु मिल जाती है तब कांसे के बर्तन की तरह आवाज आती है छाती का जमा कफ कण्ठ मे आ जाता है इस रोग को कास कहते है।(हरित संहिता )

#Synonyms of cough / कास के पर्यायवाची :-

1. खाँसी
2. खांसी
3. खोंखी
4. कास रोग
5. काश रोग
6. कास
7. काश
8. धंगा
9कफ Cough

* खांसी होना एक बहुत ही आम समस्या है। यह बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी को भी हो सकती है। मौसम में जरा से भी बदलाव के कारण खांसी की समस्या हो सकती है। इसमें व्यक्ति को गले में खराश होती है तथा खांसी के साथ गले में दर्द भी हो सकता है। यदि जल्दी खांसी का उपचार न किया जाए तो खाँसते-खाँसते सीने में दर्द होने लगता है।
* खाँसी होना हमारे शरीर की एक रक्षात्मक प्रणाली है जो वायु मार्ग से धूल, धुएँ या बलगम को साफ करने के लिए होती है। इन कारकों से गले में इरिटेशन होती है और खाँसी के प्रकार के रूप में शरीर इनको बाहर निकालता है।
* अनुचित भोजन एवं जीवनशैली के कारण वात एवं कफ विकार होकर खाँसी का कारण बनते हैं। 
* कास मुख्यतः कफ दोष के कारण होता है। 

#खांसी के प्रकार (Types of Cough)


खांसी मुख्यतः दो प्रकार की होती हैः-
• सूखी खाँसी (Dry cough)
• बलगम युक्त खाँस (Wet cough)

खांसी के अन्य प्रकार
-तेज खाँसी (Acute cough)
-पुरानी खाँसी (chronic cough)

#आयुर्वेद मे कास के भेद

*वातज, *पित्तज *कफज * त्रिदोषज *क्षयज

#क्यों होती है खांसी?


कफज कास के कारण व लक्षण:-

स्निग्ध , भारी , अभिष्यन्दी ,तले भोजन करने से , श्रम का अभाव होने से , दिन मे सोने से कफज कास उत्पन्न होता है।
अग्निमान्द हो जाती है।अरूचि होती है।साथ में जुकाम होता है और शरीर के रोंगटे खडे होते है।मुंह मे कफ लिहसा रहता है।

*पित्तज कास के कारण व लक्षण :-

*आग व घूप का अधिक सेवन करने से.
*कडवे, गरम ,दाहकारक , खट्टे, खारे पदार्थो का अधिक खाने से पित्तज कास उत्पन्न हो जाता है।
लक्षण:- 
*खांसी में पीला कफ अर्थात पित्त युक्त कफ आता है।
*रोगी की आंखें , नाखुन , कफ, चेहरा, ये सब पीले हो जाते है।
*मुख का.स्वाद कडवा हो जाता है।
*ज्वर आ जायेगा ऐसा प्रतीत होता है।
* मुख सुखा हो जाता है प्यास लगती है।
*अधिक गर्मी अनुभव होती है।
*गले मे जलन होती है।
*मुर्छा हो सकती है।
*आवाज बिगड़ जाती है।

>> वातज कास के कारण व लक्षण:-

*चरकानुसार वातज कास 
शीतल व कसैले पदार्थ खाने से ,
*लगातार एक रस के सेवन करने से.
*अधारणीय वेगो को धारण करने से .
*बल से अधिक कार्य करने से वातज कास उत्पन्न हो जाता है।
लक्षण:-
छाती, कनपटी, पसलियों मे, पेट, व सिर मे दर्द बन जाता है।
*शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते है।
*चेहरे की कांति नष्ट हो जाती है।
*गला बैठ जाता है
*खांसी हमेशा सूखी आती है।

>> अन्य खांसी के कारण (Causes of Cough acording to allopathy)

* खांसी की बीमारी होने के निम्न कारण हो सकते हैंः-
• वायरल संक्रमण के कारण
• सर्दी या फ्लू के कारण
• प्रदूषण और धूल-मिट्टी से युक्त वातावरण के कारण।
• अधिक धूम्रपान करने के कारण।
• टीबी (Tuberculosis) या दमा रोग होने के कारण।

#आयुर्वेदिक पेटंट औषधि

*बेनसीप सिरप (गुरु फार्मास्युटिकल) की 1-1 चम्मच दिन में 3-4 बार लें।
*बेनकफ सिरप (गुरु फार्मास्युटिकल) की 1-1 चम्मच दिन मे 3-4बार ले।

#शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक औषधियां:-

*सितोपलादि चूर्ण*कासन्तक लेह,*वासावलेह , *कण्टकारी घृत.*क्षहाकालेश्वर , *समशर्करा लौह, कफकर्तरी रस, *कफचिन्तामणी रस ,*कफकतु रस, *श्वास चिन्तामणी रस, *चन्द्रामृत रस, *एलादि वटी, *लवंगादि वटी, *तालिसादि चूर्ण, *अगस्त हरीतकी,

#घरेलू अनुभूत औषधियां :-

*काले धतुरे की जड का धुम्रपान करने से श्वास, कास मे लाभकारी है।
*कटहरी की जड व छोटी पिप्पली का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर शहद से चाटने से राहत मिलती है।
*ईमली के पत्तों का काढा बनाकर उसमें हिंग मिलाकर पीने से खांसी मे आराम मिलता है।
*3 रत्ती अपामार्ग का क्षार शहद मे मिलाकर चाटने से जमा हुआ कफ बाहर निकल जाता है।
*सौंठ, कालीमिर्च, पिपली, वायविंडग का सम चूर्ण बनाकर शहद से चाटने से खांसी मे आराम मिलता है।
*तुलसी के पत्ते, अदरक,1लौंग को साथ मे रखकर चबाने से खांसी ठीक हो जाती है।
*काकडासिंगी के बारीक चूर्ण बनाकर बराबर गुड मे 250 मि०ग्राम की गोली बना ले इन गोली को मुख मे रख कर चुसें खांसी में आराम मिलता है।

#Dr_Virender_Madhan.

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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

#सिर दर्द Headache क्या है और क्या है उपाय?In hindi.


 #सिर दर्द Headache क्या है और क्या है उपाय?In hindi.

सिर दर्द क्या है?

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#Dr_Virender_Madhan.


* सिर दर्द सिर के किसी भी हिस्से में होने वाला दर्द है। सिरदर्द, सिर के एक या दोनों तरफ हो सकते हैं। यह सिर में एक बिंदु से शुरू होकर पूरे सिर में फैल जाता है या फिर किसी एक निश्चित स्थान पर होने लगता है।

सिर मे शूल की तरह दर्द होना।यह शिरोरोग मे आता है।आमभाषा मे इसे सिर दर्द कहते है।यह कोई रोग नही होता है केवल किसी रोग का लक्षण मात्र होता है।सिरदर्द क्यों होता यह जानना जरुरी होता है।

सिर दर्द का सबसे आम प्रकार तनाव (टेंशन) के कारण होने वाला सिरदर्द है। तनाव सम्बन्धित सिरदर्द आपके कंधों, गर्दन, खोपड़ी और जबड़े की मांसपेशियों के कसने (तंग होने) के कारण होते हैं। ये सिरदर्द अक्सर तनाव, अवसाद या चिंता से सम्बन्धित होते हैं। बहुत ज्यादा काम करने, पर्याप्त नींद न लेने, भोजन में अनियमितता बरतने या शराब का सेवन करने पर आपको तनाव सम्बन्धित सिरदर्द होने की अधिक संभावना है।


11प्रकार के सिरदर्द [आयूर्वेद के अनुसार]

१-वातज    २- पित्तज

३-कफज     ४-सन्निपातज

५-रक्तज      ६ -क्षयज

७-कृमिज     ८-सुर्यावर्त

९-अनन्तवात १०-शंखक

११-अर्ध्दावभेदक

ये ११प्रकार के सिरशूल के भेद है।

लक्षण :-

वातज सिरदर्द :- 

अगर बिना कारण यकायक तेज सिरदर्द हो जाये और रात्रि मे और भी तेज हो तथा बांधने से , तैल लगाने से आराम मिल जाये तो.इसे वातज सिरशूल समझना चाहिए।

पित्तज सिरशूल:-

अगर सिरदर्द के साथ मस्तक आग की तरह गर्म हो, नेत्र ,नाक से गर्म सांस निकले तो पित्तज सिरदर्द समझे।

कफज सिरदर्द:-

यदि रोगी को सिर कफ भर अनुभव हो ,सिर जकड़ा हुआ लगे,सिर ठंडा भी लगे,आंखों के कोर सुजे लगे तो यह कफज सिर दर्द के लक्षण होते है।इसमें रोगी उदास दिखता है।

त्रिदोषज सिरशूल:-

वात, पित्त, कफ,तीनो दोषो के लक्षण मिले तो त्रिदोषज सिर शूल होता है।


आधुनिक विज्ञान के अनुसार:-

सिरदर्द के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं –


1. तनाव आधारित सिरदर्द – इसके लक्षणों में सिर के दोनों हिस्सों में दबाव और हल्के से मध्यम सिरदर्द शामिल हैं। दर्द आमतौर पर गर्दन और सिर के पिछले हिस्से से चारों ओर फैलता है।


2. माइग्रेन सिरदर्द का प्रकार – यह सिर के एक तरफ अक्सर मध्यम से तीव्र दर्द पैदा करता है। सिरदर्द के साथ मतली, उल्टी, और प्रकाश और ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है। 


3. क्लस्टर (cluster) सिरदर्द  – क्लस्टर सिरदर्द बहुत तीव्र होता है, जो आमतौर पर सिर के एक तरफ स्थित आँख या कान के आसपास होता है। चेहरे के एक तरफ स्थित आँख का लाल होना और पानी निकलना, नाक का बहना और पलक का सूख जाना या सूजन भी हो सकते हैं।


4. रिबाउंड (rebound) सिरदर्द – इससे गर्दन में दर्द, बेचैनी, नाक का बंद होना और नींद में कमी आ सकती है। रीबाउंड सिरदर्द अनेक लक्षणों का कारण हो सकता है और इसका दर्द हर दिन अलग हो सकता है।


5. थंडरक्लैप (thunderclap) सिरदर्द – जो लोग इस अचानक होने वाले गंभीर सिरदर्द का अनुभव करते हैं, उन्हें तुरंत चिकित्सकीय जाँच करवानी चाहिए। इस दर्द को अक्सर "मेरे जीवन का सबसे खराब सिरदर्द" कहा जाता है।


सिरदर्द के कारण - Headache Causes 

सिरदर्द क्यों होता है?


सिर में उपस्थित दर्द-संवेदी ढाँचों (pain-sensing structures) में जलन या चोट लगने के कारण सिरदर्द  होता है। जो संरचनाएँ दर्द को महसूस कर सकती हैं, उनमें खोपड़ी, माथा, सिर का ऊपरी भाग, गर्दन और सिर की मांसपेशियों, सिर की प्रमुख धमनियों और नसों, साइनस और मस्तिष्क के चारों ओर मौजूद ऊतकों को शामिल किया जा सकता है।


सिरदर्द तब हो सकता है, जब इन संरचनाओं में दबाव, ऐंठन, तनाव, सूजन या जलन होती है। हल्के सिरदर्द को शुरू करने वाली घटनायें उन लोगों के बीच व्यापक रूप से होती हैं, जिन्हे सिरदर्द की बीमारी होती है। 

#शास्त्रोंक्त आयुर्वेदिक ओषधियाँ:-

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*षड्बिन्दु तैल -नस्य के लिए

*महादशमूल तैल - शिरोरोग मे मालिस के लिए.

*शिरशूलव्रजरस -सभी शिरोरोग के लिए.

*महालक्ष्मीविलास रस 

*चन्द्रकान्त रस

अन्य:-

*महावातविध्वंन रस

*स्वर्णभूपति रस

*पंचामृत रस

*नवजीवन रस

*वेदांन्तक रस

*जयावटी

*स्वर्णसुतशेखर रस

*पथ्यादि क्वाथ

*च्यवनप्राश

*ब्रह्मरसायन


#घरेलू अनुभूत प्रयोग:-

*100 बार धोया हुआ धी सिर पर लगाने से पित्तज सिरशूल ठीक हो जाता है।

*सौंठ और केशर अथवा दालचीनी को पीसकर लेप बनाकर लगाते है।

*पुराना गुड और सौंठ इक्कठा पीस कर नस्य लेने से लाभदायक रहता है।

*मिश्री, दाख,और मुलहठी पीसकर नस्य लेने से पित्तज सिरशूल मे लाभ मिलता है।

*गाय के घी और दूध को मिलाकर नस्य लेने से पित्तज सिरशूल मे आराम मिलता है।

*कायफल के चूर्ण का नस्य से कफज सिरशूल नष्ट होता है।

*दशमूल को दूध मे औटा कर नस्य लेने से त्रिदोषज सिरशूल ठीक हो जाता है।

*करंज, सहजने के बीज, त्रिकूटा सबको बकरी के दूध में मिलाकर नस्य लेने से सब प्रकार के सिरशूल ठीक होते है।

*तिल को दूध मे पीसकर नस्य लेने से सूर्यावर्त्त रोग मेआराम मिलता है।

*गाय के घी मे सैधवनमक मिलाकर नाक मे डालने से आधासीसी का दर्द ठीक हो जाता है।

#सिरदर्द मे क्या करें और क्यानकरें?

*कफ से उत्पन्न सिर मे बासी व मीठा भोजन, कफबर्ध्दक पदार्थों का सेवन न करें।

*दिन में न सोयें।

*अधारणीय वेगों -छींक, जंभाई, मूत्र, आंसू, नींद, अधोवायु न रोकें।

*पसीना देना,नस्य देना, जुलाब देना,लंघन करना, रक्तमोक्षण, करना पथ्य है।

*पुराना धी, पुराना चावल, युष,दूध, संहजना, दाब , बरूआ ,करेला ,आंवला ,अनार ,आम , खस, नारियल, सुगंधित पदार्थ, ग्वारपाठा, भांगरा, कूठ, हरड आदि सब सिरदर्द मे पथ्य है अर्थात लेने चाहिए।


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