Guru Ayurveda

रविवार, 3 अक्तूबर 2021

अश्वगंधा [ Winter cherry ]Withanis Somnifera

#Jadi#herbs#ayurvedic herbs#gherelu upchar,

[अश्वगंधा,Winter Cherry,]

#Dr.Virender Madhan.
अश्वगंधा के नाम :- 
जितने भी धौडे के नाम होते है उन सबके पीछे "गन्धा" लगाने से अश्वगंधा के नाम बनते है जैसे-

 अश्वगंधा,  _वाजीगंधा,हयगंधा,किक्यानगंधा,तुरड्गगंधा,सैन्धवगंधा, आदि सब अश्वगंध के नाम है। तथा वाराहकर्णी, वरदा , बलदा ,कूष्ठगंधिनी, ये सब आयुर्वेद मे अश्वगन्धा के नाम मिलते है।

English इंग्लिश मे इसे winter cherry कहते है।
लैटिन नेम :-[Withania Somnifera] वेथानिया सोमनीफेरा, कहते है।

#अश्वगंधा के गुण

<भाव प्रकाश मे इनके गुण

-अश्वगंधा बलदायक,तथा रसायन है।
-कडवी,कषैली, गरम, है तथा वीर्यवर्धक है।
-अश्वगंधा वात,कफ,श्वेत कुष्ठ, शोथ, क्षय,को हरने वाला बताया है।

<मैटीरिया मेडिका ओफ इंडिया- आर०एन०खोरे के अनुसार

-अश्वगंधा मे एक Sominiferin alkaloid होता है।
यह Hypnotic निद्राजनक ,गुण रखता है।
-Ashwagandha is alterative tonic and sedative.
-अश्वगंधा बलदायक ,और सेडेटीव,निद्राजनक गुण रखता है।
-अश्वगंधा की जड का पेस्ट दूध या मक्खन के साथ देने से बच्चों के न्यूट्रिशन हेल्प करता है यानि पोषक है।
-वृध्दावस्था जनक दौर्बल्यता को अश्वगंधा दूर करता है तथा रुमेटिज वात व्याधियों मे लाभदायक है।फोडा-फूंसी,
-Carbuncle मे एरण्ड तैल के साथ अश्वगंध के पत्र का लेप करते हैं।
-बाधिरता Deafness मे अश्वगंधा से से बना नारायण तैल का नस्य [Dropped into the nose]देते है।
इस तैल से पुरे शरीर पर अभ्यंग यानि मालिस की जाती है *हेमिप्जिया, टेटनेस, रूमेटाइम ,लूम्बागो,जोडदर्द, आदि वातरोगों मे इसके तैल का अभ्यंग किया जाता है।
*अतिसार, भगंदर जैसे रोगों में अश्वगंध की वस्ति Anema बना कर देने से लाभदायक है।

अश्वगंधा के उपयोग:--

 *बल्य, रसायन, और अवसादक हर्ब है।

*पुष्टि कारक होने से इसके खाण्ड के साथ लड्डू बना कर खाते है।ये मोदक क्षयरोग, जराकृत दौर्बल्य तथा वातरोगी का प्रयोज्य है।
*स्त्रियों में वातरोग,दौर्बल्यता. प्रदररोगो मे  देते है।
* अश्वगंधा के पत्तों पर एरण्ड तैल लगा कर सेक कर स्फोटकादि फोडे के ऊपर बांध ने से शीध्रता से पूय निकल जाती है और आराम मिल जाता है। 
*सुप्तिवात मे जिस अंग मे सुन्नता रहती है पत्ते बांधने से या अश्वगंधा तैल सिद्ध कर अभ्यंग करने से सुप्तिवात ठीक हो जाता है।
*कटिशूल, पक्षाघात , धनुर्वात , धनुस्तम्भ ,आदि महावात रोगों मे अश्वगंधा तैल या नारायण तैल की मालिस की जाती है।
*अतिसार, भगंदर जैसे रोगों मे इसका क्वाथ बना कर वस्ति 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें