#कैसी हो ग्रीष्म ऋतुचर्या की जीवनशैली?In hindi.
#How is the lifestyle of summer season?In hindi.
Dr.VirenderMadhan.
#Kaisi ho garmi ke deeno main deen charya?
आयुर्वेदिक प्रसिद्ध “चरक संहिता” में कहा गया है कि जो व्यक्ति ऋतु के अनुसार अनुकूल आहार विहार की जानकारी रखता है और उसके अनुसार आचरण भी करता है, उसके बल और गुणों की वृद्धि होती है।
#ग्रीष्म ऋतु के लक्षण:-
ग्रीष्म ऋतु को आदान काल भी कहा जाता है। इस काल में सूर्य की किरणें और वायु अत्यंत तीखी, रूखी और गर्म होती हैं, जिससे पृथ्वी के सौम्य गुणों में कमी आ जाती है।
इससे तिक्त, कटु और कषाय रस बलवान हो जाते हैं।
#ग्रीष्म ऋतु मे आहार-विहार कैसा होना चाहिये?
ग्रीष्म ऋतु के इस प्रभाव को ध्यान में रखते हुए हमें हितकारी आहार-विहार का पालन करना चाहिए।
मौसम परिवर्तन के साथ अगर आहार परिवर्तन भी कर लिया जाये तो कुछ मौसमी बीमारियों से बचा जा सकता है।
गर्मी में शर्बत, ठंडा, दूध, प्रूट, जूस और आइसक्रीम जैसी वस्तुएं लेना चाहिए।
#ग्रीष्म ऋतु मे खाने योग्य आहार :-
-- मधुर, सुपाच्य, जलीय, ताजे, स्निग्ध व शीत गुणयुक्त पदार्थ :-
-- दूध, घी, लौकी, पेठा, गिल्की, परवल, चौलाई, शकरकंद, गाजर, बीट (चुकंदर), सूरन, पालक, हरा धनिया, पुदीना, हरी पतली ककड़ी, मोसम्बी, मीठे संतरे, शहतूत, खरबूजा, मीठा आम, अनार, फालसा, खीरा, आँवला, करौंदा, कोकम, नारियल आदि।
ड्राईफ्रूट्स:-
मुनक्का, किशमिश (रात को भिगोये हुए)
पेय :-
- ग्रीष्म ऋतु में शरीर में जलीय अंश की कमी हो जाती है। अत: निरापद गुणकारी पेय अवश्य पीना चाहिए।
* नींबू-मिश्री का शरबत, आँवला शरबत, आम का पन्ना, ठंडाई, ठंडा दूध, नारियल पानी, स्वच्छता से निकला गन्ने का रस।
- छाछ पीयें , फलों का जूस लें।
#ग्रीष्म ऋतु मे क्या न खायें?
- बासी, उष्ण, तला, मसालेदार भोजन, फ्रिज का अत्यधिक ठंडा, गरिष्ठ, वातवर्धक भोजन।
#ग्रीष्म ऋतु मे विहार :-
--ग्रीष्म ऋतु में रात को जल्दी सोयें, सुबह जल्दी उठें,
- उष:पान का प्रयोग करें। मुँह में पानी भर पलकों पर छींटें मारें एवं नंगे पैर घास पर चलें।
-- सूती कपड़े व सिर पर टोपी पहनें। धूप में निकलने से पूर्व पानी पीकर जायें।
--आने के तुरंत बाद पानी न पीयें। पसीना सुखाकर ही पानी पियें।
#ग्रीष्म ऋतु मे क्या करें क्या न करें ?
--अति आहार, अति व्यायाम, अति परिश्रम, मैथुन, वात-पित्तवर्धक पदार्थ वर्जित हैं।
- मधपान जैसा कोई भी नशा न करें।
- पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) न होने दें। इसके लिए दिन में पानी पीते रहना चाहिए।
--फ्रिज में रखा पानी पीने से गले के रोग अपच तथा मन्दाग्नि आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
--दिन में एक बार कोई मीठा शरबत या नीबू पानी लेना चाहिए।
--चुस्ती और फुर्ती के लिए पानी में ग्लूकोज डालकर पीने से भी घबराहट कम होती है।
--सत्तु को मीठा और पतला करके सेवन करना भी हितकारी होता है।
--जौ के सत्तू के विषय में आयुर्वेद में कहा है- जौ का सत्तू ठंडा और रुखा खुरचने वाला होता है, सत्तू पीने से वीर्य बढ़ता है, शरीर पुष्ट होता है, कब्ज दूर होती है। यह स्वाद में मधूर और रुचिकर होता है और परिणाम में बल देता है।
--सत्तू कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास, घाव, और नेत्र रोगों को मिटाता है और गरमी, जलन तथा व्यायाम से पीडित प्राणियों के लिए उत्तम होता है।
--रात को सोते समय मीठा दूध घूँट-घूँट करके सेवन करना हितकारी रहता है। दूध में एक दो चम्मच घी डालकर सेवन करने से कब्ज और पेट में बढ़ी हुई गरमी नष्ट हो जाती है।
-- अरहर की दाल खानी हो तो शुद्ध घी का छोंक लगाकर खाएं।
--गर्मी कम करने तथा पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये धनिया, प्याज, पुदीना, की चटनी का सेवन करें इससे जहां खाना जल्दी पचेगा, वहीं भूख भी बढ़ेगी।
-- भोजन ताजा, सुपाच्य और मधुर रसयुक्त करना चाहिए।
-- गर्मी में पाचन क्रिया में पानी की ज्यादा मात्रा में जरुरत होती है।
-- अगर रात में देर तक जागना पड़े तो हर घण्टे में पानी पीते रहना चाहिए ताकि वात और पित्त कुपित न हो।
-- इस मौसम में हरे पत्ते वाली साग सब्जियां जरुर खाएं जैसे लौकी, तुरई, पके लाल टमाटर, छिलका युक्त आलू, चने की सूखी भाजी, बथुआ, परवल करेला सहजन आदि।
-- दोपहर बाद तरबूज, खरबूज, सन्तरा, हरी नरम ककड़ी, केला आदि कोई भी मौसमी फल जरुर खाना चाहिए।
- हरड़ का सेवन, गुड़ के साथ समान मात्रा में करने से वात और पित्त का प्रकोप नहीं होता।
-- इस ऋतुुु में रात में जल्दी सोकर सुबह जल्दी जागना चाहिए।
--सूर्योदय के पहले थोड़ी दूर तक टहलना चाहिए।
-- जीरे की शिकंजी, ठंडाई, कच्चा नारियल और उसका पानी, सौफ, मिश्री, मक्खन आदि सेवन करना हितकारी होता है।
--भोजन के अन्त में कोई मीठा पदार्थ जैसे थोड़ा सा गुड़ आदि अवश्य खाना चाहिए ताकि पित्त का शमन हो सके।
-- ग्रीष्म ऋतुुु में सूर्य की तीखी किरणों के द्वारा शरीर के द्रव तथा स्निग्ध अंश का शोषण होता है, जिससे दुर्बलता, अनुत्साह, थकान, बेचैनी आदि का अनुभव होता है। अत: इस समय शीघ्र बल प्राप्त करने के लिए इस ऋतुु में शीतल, स्निग्ध, मीठा एवं हल्का आहार जैसे:- साठी चावल, जौ, मूंग, मसूर आदि का सेवन करना चाहिए।
--सफाई से तैयार किया गन्ने का रस पीना ठीक रहता है।
-- हाथ व पैरों में प्याज के रस की मालिश करें। आम के पने का प्रयोग करें। प्याज का सेवन अधिक करें और अपने साथ बाहर भी लेकर जाएं।
#ग्रीष्म ऋतुु में गर्मी से बचाव के लिए
-- प्रात: एवं सायं, दिन में कम से कम दो बार स्नान करना चाहिए।
-- दही और शहद सेवन करे। दही में पानी मिलाकर सेवन कर सकते है।
-- रात में दही नहीं खाना चाहिए,
-- सुश्रुत सूत्र स्थान में कहा है ** हीन (अल्प)मात्रा में किया हुआ भोजन अतृप्ति उत्पन्न करता है और शरीर के बल को क्षीण करता है।
** अधिक मात्रा में किया हुआ भोजन आलस्य, भारीपन, मोटापा और मन्दाग्नि (अपच) उत्पन्न करता है।
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