Guru Ayurveda

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

धनकुबेर पीयूष जैन परिचय.in hindi.

 #धनकुबेर #पीयूष जैन #गुदडी_मे_लाल.#इत्र का कारोबारी #जीएसटी का छापा.

#पीयूष जैन कौन है?



पीयूष जैन उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। वह आनंदपुरी के रहने वाले हैं और कन्नौज के चिप्पट्टी के रहने वाले हैं। जैन कन्नौज में एक परफ्यूम फैक्ट्री, कोल्ड स्टोर और पेट्रोल पंप के मालिक हैं।

#कारोबारी पीयूष जैन की कितनी संपत्ति जब्द की गई है ?

24 दिसंबर 2021 को पीयूष जैन के घर से नकदी से भरे बोरी, कंटेनर जब्त किए गए। आयकर अधिकारियों ने बताया कि अब तक 150 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई है।

#पीयूष जैन की जीवन-शैली?

>> 15 साल में पूरी तरह बदल गई पीयूष जैन की जिंदगी, 

#कन्नौज के धनकुबेर की पूरी कहानी

* पीयूष जैन कन्नौज के बड़े व्यापारियों में शुमार हैं। पीयूष जैन इत्र के बड़े कारोबारी हैं। जब से उनकी सम्पत्ति जब्त की गई तब से इन्हें कन्नौज का धनकुबेर भी कहा जाता है।

#समाजवादी इत्र बनाने वाले कारोबारी के यहां छापा.

> पीयूष जैन का कारोबार वैसे तो कानपुर में ही है, लेकिन उनकी पैदाइश कन्नौज की है। पीयूष जैन के पुरखे कई पीढ़ियों से कन्नौज में ही रहते आए हैं। इत्र के कारोबार की दुनिया में पीयूष जैन का भले ही बड़ा नाम था, लेकिन उनकी

चर्चा इनकम टैक्स की रेड के बाद ही मिली है। कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ले से निकल मुंबई और मध्य पूर्व तक में इत्र का कारोबार करने वाले पीयूष जैन का नाम आज देश भर में चर्चा में है।

- पीयूष के ठिकानों से बरामद रुपयों को लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि यह करीब 290 करोड़ के आस-पास हो सकता है। आपको बता दें कि पीयूष जैन के कन्नौज स्थित आवास से आठ बोरों में मिली नकदी की गिनती शुरू हो गई है। फिलहाल हर कोई यह जानना चाहता है कि पीयूष आखिर कौन हैं,  

#कन्नौज के धनकुबेर की कहानी-

पीयुष जैन ःपिता थे केमिस्ट: स्थानीय लोगों के मुताबिक पीयूष जैन के पिता महेंश चंद्र जैन पेशे से केमिस्ट हैं। दो साल पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था। बताया जाता है कि उनके दोनों बेटों पीयूष और अंबरीष ने इत्र और खाने-पीने की चीजों में मिलाए जाने वाले एसेंस (कंपाउंड) बनाने का तरीका महेश से ही सीखा था। आपको बता दें कि कन्नौज की जैन स्ट्रीट में पीयूष जैन का पुश्तैनी घर है, जो काफी छोटा हुआ करता था। लेकिन अब यह घर एक आलीशान कोठी में तब्दील हो गया है। जैन स्ट्रीट के उनके पड़ोसी बताते हैं कि उन्हें भी इस बात का इल्म नहीं था कि जैन परिवार इतना रईस है।

#आलीशान कोठी मे बदला घर।

जयपुर से आये थे कारीगर:

समाचार के अनुसार जब पीयूष की माली हालत बदली तो बगल के ही दो मकानों को खरीदकर एक कर दिया गया। बाद में करीब 700 वर्ग गज के इस मकान को बनवाने के लिए जयपुर से कारीगर बुलवाए गए थे। इस आलिशान घर में मोटी-मोटी दीवारें, महंगे एयरकंडिशनर, स्टील की बालकनी और दरवाजें इस कोठी को बाकी मकानों से एकदम अलग बनाते हैं। इतना बड़ा कारोबार और जोखिम होने के बावजूद घर के किसी भी बाहरी हिस्से में एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं दिखा। घर भी ऐसा बना है कि दूसरे मकानों से बालकनी के अलावा कुछ नहीं दिखता।

कन्नौज में नहीं रहता परिवार: समाचार के अनुसार इस मकान में मुख्यतौर पर महेश चंद्र जैन और उनका स्टाफ रहता है। पीयूष और अंबरीष यहां अक्सर आते-जाते रहते थे। पड़ोसियों के अनुसार, पीयूष और अंबरीष के 6 बेटे-बेटियां हैं। सभी कानपुर में पढ़ते हैं और कन्नौज में कम ही आते-जाते थे।

#कारोबार.

40 से ज्यादा कंपनियों के मालिक: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीयूष जैन 40 से ज्‍यादा कंपनियों के मालिक हैं। इनमें से दो कंपनियां मिडिल ईस्ट में हैं।

जबकि कन्‍नौज में पेट्रोल पंप, परफ्यूम फैक्‍ट्री और कोल्‍ड स्‍टोरेज भी हैं। 

पीयूष जैन इत्र का सारा बिजनेस मुंबई से करते थे जो विदेशों तक फैला है।

#साधारण भैष मे घनकुबैर।

घर में भरा पड़ा था कैश, पर बाहर नहीं करते थे ऐश... कन्नौज के धनकुबेर पीयूष जैन 

कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ले से निकल मुंबई और मध्य पूर्व तक में इत्र का कारोबार करने वाले पीयूष जैन का नाम आज देश भर में चर्चा में है। तिजोरियों और बेसमेंट से निकल रहे कैश को गिनने में मशीनें जुटी हैं। अब तक करीब 257 करोड़ रुपये पीयूष जैन के ठिकानों से मिल चुके हैं। फिलहाल हर कोई यह जानना चाहता है कि पीयूष आखिर कौन हैं, 


#पीयूष जैन का स्टाईल।

चप्पल और पायजामा पहनकर ही शादियों में पहुंच जाते थे ।

पीयूष जैन का परिवार भले ही धनकुबेर था, लेकिन कन्नौज के लोग बताते हैं कि वे सादगीपूर्ण जिंदगी ही जीते रहे हैं। इससे अंदाजा ही नहीं लग पाया कि वह इतने अमीर हो सकते हैं। कई बार तो वह चप्पल और पायजामा पहनकर ही शादी-पार्टियों में पहुंच जाते थे। पीयूष जैन पर आरोप है कि कई फर्ज़ी फर्मों के नाम से बिल बनाकर कंपनी ने करोड़ों रुपयों की जीएसटी चोरी की। पीयूष के घर से 200 से अधिक फर्जी इनवॉइस और ई-वे बिल मिले हैं।  घर में बड़ी तादाद में बक्से मंगवाये गए हैं। छापेमारी के दौरान जीएसटी चोरी का भारी खेल सामने आया है।

#सियासी रंग

 *यूपी चुनाव से पहले सियासत के केंद्र में पीयूष जैन,

*बीजेपी-सपा में राजनीति तेज। 


शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

खुद से अपना आयुर्वेदिक इलाज न करें।in hindi.

 

#खुद से अपना आयुर्वेदिक ईलाज न करें?

By- #Dr_Virender_Madhan.

#क्यों न करें आप अपना आयुर्वेदिक इलाज।

*अत्यंत गुणों को समेटे आयुर्वेदिक औषधियौं मे हर तरह के रोगों को जड़ से खत्म करने की क्षमता है। लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं के गलत प्रयोग से घातक भी साबित हो सकती हैं, अगर आप इसका खुद से सेवन करते हैं। 


#आयुर्वेदिक दवाएं कब और कैसे नुकसान पहुंचा सकती हैं?

समय के साथ-साथ लोगों का रहन-सहन भी बदल चुका है,लाईफ स्टाईल बदल चुका है।लेकिन आयुर्वेद आज भी लोकप्रिय है विश्वास है कि आयुर्वेदिक दवा कभी भी नुकसान नहीं करती। शरीर की किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए आयुर्वेदिक दवा से अच्छी कोई चिकित्सा पध्दति नही है इसी कारण आजकल आयुर्वेदिक दवाओं की मांग भी खूब है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो आयुर्वेदिक इलाज पर इस कदर भरोसा करते हैं कि खुद से भी आयुर्वेदिक दवाएं खाने लगते हैं। 

इस कारण से कुछ लोग आयुर्वेद के नियम न जानते हुए गलत तरीकों से प्रयोग कर बैठते है।

औषधी हो या आहार, उनके बनाने के खाने के कुछ नियम होते है।

#कब खाना है?#कितना खाना है?#कैसे खाना है?#किसे खाना है?#किसेनहींखाना है ?

इन सब पर विचार करना चाहिए।

बिना सोचे समझे आहार या आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग करना हानिकारक हो जाता है


#आयुर्वेदिक औषधियौं के नियम है जरूरी.

>> अगर आप खुद ही आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करते हैं, तो सबसे पहले किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से,चिकित्सक से सलाह जरुर ले लेनी चाहिए।

>>आपको खास सावधानी बरतने की जरूरत है। इन दवाओं के भी अपने कुछ खास नियम होते हैं। अगर नियमों को ध्यान में रखकर आप आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन नहीं करते हैं, तो यही दवाएं आपके लिए मुश्किलें भी खड़ी कर सकती हैं। आप चाहे जिस वजह से आयुर्वेदिक दवा का सेवन कर रहे हैं, अपनी इच्छा से दवाएं खाते रहने से आपके शरीर पर दवाओं का असर कम होने लगता है और जरूरत पड़ने पर संबंधित बीमारी की सही दवाओं के सेवन से भी आपको लाभ नहीं होता।


>>ऐसे नियमों को जानना है जरूरी.

आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने के लिए आयुर्वेद ऋषि ऋषियों ने कुछ नियम तय किये हैं,

 जिसके अनुसार, सूर्योदय के समय, दिन के समय भोजन करते समय, शाम के भोजन करते समय और रात में इन दवाओं को लेने का सही समय तय है। कुछ लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती, इस कारण वे इसका नुकसान भी उठाते हैं। इसलिए ऐसी दवाओं का सेवन आपकी बीमारी का उपचार कर रहे आयुर्वेदाचार्य के निर्देशानुसार ही करना चाहिए।

>>ज्यादा अति हमेशा बुरी होती है।

 सेहत को दुरुस्त रखने वाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते समय हमें उसकी सही मात्रा के बारे में जानकारी नहीं होती और इसकी ज्यादा मात्रा हमारे लिए नुकसानदेह हो सकती है।


** निर्देशों का रखें ध्यान.

आयुर्वेदिक दवाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं,मगर 

दोष,धातु की समता-विषमता,काल(ऋतु, रात,दिन,आयु),रोग अवस्थाआदि की अवहेलना कर के प्रयोग की गई औषधियां लाभ के स्थान पर हानिकारक हो सकती है।

#विरुद्ध औषधियां और विरूद्ध आहार क्या है?

*कुछ आहार, औषधि दुसरे आहार, औषधि के साथ प्रयोग करने से विपरीत प्रभाव दिखाती है। फलस्वरूप रोग,कलेश, मृत्यु तक हो जाती है।उदाहरण के लिये- 

**मछली और दूध का एक साथ प्रयोग करना।

**मूली और दूध का एक साथ प्रयोग करना।

**धी और शहद का सम मात्रा मे प्रयोग करना घातक होता है।

उसी प्रकार कुछ द्रव्यो का प्रयोग एक साथ नही होता है

>>किसी भी आयुर्वेदिक औषधी के योग संयोग का ज्ञान आयुर्वेदिक चिकित्सक,आचार्यो,आयुर्वेदिक विशेषज्ञो को ही होता है अतः आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग से पहले उनकी सलाह लेना ही उचित रहता है।

आयुर्वेद मे रसायन के प्रयोग करने से पहले शरीर के शोधन (पंचकर्म) करने का विधान है 

लेकिन अधिकतर लोग बाजार से रस-रसायन लेकर प्रयोग कर लेते है बाद मे लाभ न होने पर या किसी प्रकार की हानि होने पर आयुर्वेद को बदनाम करने लगते है।


#अति मात्रा ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल के नुकसान

अकसर आयुर्वेदिक दवाओं की उपयोगिता के बारे में सभी लोग बात करते हैं, लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं के बीच अन्य दवाओं से होने वाले रिएक्शन के बारे में ज्यादा लोगों को समझ नहीं है। ऐसे लोग किसी खास तत्व की अधिकता या किसी के दुष्परिणामों की फिक्र नहीं करते, जो गलत है।

न ही मात्रा का ध्यान रखते है

न ही काल ऋतु का मान रखते है शीत गुण वाले शीत काल मे, उष्ण पदार्थ उष्ण काल मे प्रयोग करेंगे तो हानि तो होगी ही।

>>ठीक नहीं ज्यादा कुछ औषधियो का सेवन।

*आयुर्वेद में गिलोय को अमृत भी कहा जाता है, जिसमें डायबिटीज से लड़ने के गुण होते हैं। लेकिन इसे भी किसी आयुर्वेदाचार्य के परामर्श से ही इस्तेमाल में लाना चाहिए, क्योंकि इसका सेवन शुगर लेवल को प्रभावित करके पाचन-तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे कब्ज की समस्या हो सकती है।

*जामुन से -

ज्यादातर लोग डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए जामुन का सेवन करते हैं। आयुर्वेद के नजरिये से जामुन को सेहत के लिए सबसे बड़ा वरदान माना जाता है। लेकिन यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि इसके ज्यादा सेवन से व्यक्ति का पाचन-तंत्र कमजोर हो जाता है।

*मेथी दाना - 

डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और पेट संबंधी समस्याओं के लिए सबसे फायदेमंद मेथी दाना होता है। आयुर्वेदिक औषधियों में से एक मेथी दाने के इस्तेमाल की सलाह खुद आयुर्वेदाचार्य भी देते हैं, लेकिन मेथी का स्वभाव काफी गर्म होता है। इसकी ज्यादा मात्रा से पित्त, गैस, दस्त और खून पतला होने का जोखिम बना रहता है।


*दालचीनी का इस्तेमाल में -

गर्म मसालों और आयुर्वेदिक औषधि में दालचीनी का इस्तेमाल कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है, लेकिन दालचीनी में लगभग 5 प्रतिशत कामरिन पाया जाता है। यह कामरिन लिवर को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए इसे इस्तेमाल करने से पहले आपको इसकी सही मात्रा की जानकारी होनी ही चाहिए, ताकि आप इसके दुष्प्रभाव से बचे रहें।

*करेले का इस्तेमाल -

करेले को आयुर्वेदिक नजरिये से शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है, लेकिन यह आपके पाचन-तंत्र को पूरी तरह खराब करने में भी सक्षम होता है। इसके बीजों में एक ऐसा तत्व पाया जाता है, जो आंतों तक प्रोटीन के संचार को रोक सकता है। इसके रस में मौजूद मोमोकैरीन नाम का तत्व पीरियड्स के फ्लो को बढ़ा देता है।

सावधानी:-

न असर करे, तो सावधान हो जाएं

*अगर आप खुद बिना किसी की सलाह के आयुर्वेदिक दवाएं लेते हैं, तो आपको खास सावधानी बरतने की जरूरत है। जब ये दवाएं आपको लाभ देना बंद कर देती हैं, तो इसका मतलब यही होता है कि या तो आप इसे लेने का सही समय नहीं जानते या फिर इन दवाओं की मात्रा में अधिकता या कमी हो रही है।

अगर आप किसी छोटी या बड़ी बीमारी से पीड़ित हैं और आयुर्वेदिक उपचार को सबसे पहले वरीयता देना चाहते हैं, तो विशेषज्ञ की सलाह के बिना दवाओं का सेवन भूलकर भी ना करें। आम लोगों की सलाह से ज्यादा सफल सलाह किसी योग्य आयुर्वेदाचार्य की ही हो सकती है। इसलिए इसका लाभ उठाएं और सही दवा खाएं।

किसी की सलाह लेने पहले देख ले कि सलाह देनवाला उस विषय में कितना जानता है कितना उस विषय मे अनुभवी है।

धन्यवाद!

#Dr_Virender_Madhan.





  

 

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

#खांसी_की_उत्तम #औषधिBensip syrup.in hindi.

 #खांसी_की_उत्तम#औषधि। #Bensip Syrup. In Hindi.

#Dr_virenderMadhan.

#Bensip Syrup के लाभ कैसे मिलता है?

</>Bensip Syrup is pure herbal product.

*Manufactured by GMP certified company.

*Use all kinds of Cough, bronchitis, and asthma,

*Completely safe ayurvedic medicine.

*No any side effects.

* शीध्र प्रभावशाली है।

*Bensip syrup is alsocough expectorant.

#Bensip syrup का Formulation#Dr_Virender_madha ने 15 वर्षों तक ट्रायल, परिक्षण करके तैयार किया था तथा अब 21 सोलों से रोगियों को दे कर लाभन्वित कर रहे है।इसके प्रभाव को देखकर रोगी अपनी परिवार व मित्रगणों को #Bensip syrup लेने की सलाह देते है।

Composition of Bensip Syrup 

Each 10ml contain

-Viola aditya (Gulbanfsha) 500mg.

-Terminalis Chebula (Harit ki) 300mg.

-Terminalis Verification (Vibhitika) 300mg.

-Embilca Officialis (Amilki) 300mg.

-Zingiber Offcialis (Saunt) 100mg.

-Piper Nigrum (Marich) 100 mg.

-piper Longam (Pipal) 100 mg.

-Adhatoda Vasica (Vasa) 500mg.

-Glycayrrhiza Glabira (Yesthimadhu) 300mg.


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

#आहार12 हिंदी महीनो के आयुर्वेद के अनुसार in hindi.

 

#आयुर्वेदिक कविता मे आयुर्वेद।

#Dr_virender_madhan.

#पथ्यापथ्य।

>कौन से महीने में क्या खाएं और क्या नही?

आयुर्वेद ने भोजन के लिए बनाया है।

 ये नियम मौसम के अनुकूल अगर आप भोजन करते है। या खाना-पीना खाते है तो बहुत से रोगों से बच जाते है।


चौते गुड़ ,वैशाखे तेल।

 जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।।

 

सावन साग, भादो मही।

 कुवांर करेला, कार्तिक दही।।


अगहन जीरा, पूसै धना।

 माघै मिश्री, फाल्गुन चना।।

 

जो कोई इतने परहेज करें।

 ता घर बैद पैर नहिं धरे।।


 अर्थात इस दोहा के माध्यम से बताया गया है कि जो आदमी इन चीजों पर अमल करेगा यानी कि नहीं खाएगा। वह इंसान कभी बीमार नहीं होगा। चिकित्सक-वैद्य के पास नहीं जाना पड़ेगा।


आयुर्वेद में भोजन के संबंध में बहुत कुछ लिखा है। जैसे किस सप्ताह में क्या खाना है क्या नहीं। किस तिथि को क्या खाना चाहिए अथवा क्या नहीं करें। 

किस महीने में क्या भोजन सही है और क्या नहीं। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। प्रत्येक सप्ताह, तिथि या महीने में मौसम में बदलाव होता है। इस बदलाव को समझकर ही खाना जरूरी है।


#किस माह में क्या खाएं

जिस तरह पूर्वजों को बताया गया है कि 

चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल। 

कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल। माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।

 इस तरह खानें के नियम बताए गए है।


हिन्दू माह बताते हैं मौसम में बदलाव

उल्लेखनीय है कि हिन्दू माह ही मौसम के बदलाव को प्रदर्शित करते हैं।अंग्रेजी माह नहीं। 


* दही रात मे अपथ्य है इसीलिए रात को दही नहीं खाना चाहिए। 

 *दूध के साथ नमक नहीं खाया जाता है। क्योंकि यह भी विरुद्ध आहार है 

दूध के साथ नमक नहीं शक्कर मिलाकर खाना चाहिए।


#12माह में क्या खाएं क्या न खायें।


- चैत्र माह:

चैत्र माह में गुड़ खाना मना है। चना खा सकते हैं।

- वैशाख:

 तेल व तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बेल खा सकते हैं।

- ज्येष्ठ: 

इन महीने में गर्मीं का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए।


-आषाढ़: 

आषाढ़ में पका बेल खाना मना है। इस माह में हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें। लेकिन इस माह में खूब खेल खेलना चाहिए। कसरत करना चाहिए।


- श्रावण: 

सावन माह में साग खाना मना है। साग अर्थात हरी पत्तेदार सब्जियां और दूध व दूध से बनी चीजों को भी खाने से मना किया गया है। 

इस माह में हर्रे खाना चाहिए जिसे  हरड कहते हैं।


- भाद्रपद: 

भादो माह में दही खाना मना है। इन दो महीनों में छाछ, दही और इससे बनी चीजें नहीं खाना चाहिए। 

भादो में तिल का उपयोग करना चाहिए।


- आश्विन: 

क्वार माह में करेला खाना मना है। इस माह में नित्य गुड़ खाना चाहिए।


- कार्तिक: 

कार्तिक माह में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। 

इस माह में मूली खाना चाहिए।


- मार्गशीर्ष: 

अगहन में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। तेल का उपयोग कर सकते हैं।


- पौष: 

पूस मास में दूध पी सकते हैं लेकिन धनिया नहीं खाना चाहिए क्योंकि धनिए की प्रवृति ठंडी मानी गई है और सामान्यत: इस मौसम में बहुत ठंड होती है। इस मौसम में दूध पीना चाहिए।

- माघ: 

माघ माह में मूली और धनिया खाना मना है। मिश्री नहीं खाना चाहिए। 

इस माह में घी-खिचड़ी खाना चाहिए।

- फाल्गुन: 

फागुन माह में सुबह जल्दी उठना चाहिए। इस माह में में चना खाना मना।


बुधवार, 24 नवंबर 2021

#पित्त की थैली से पथरी निकलना है सम्भव ?In hindi.


  #पित्त की पथरी [गालब्लेडर स्टोन]पित्ताश्मरी निदान एवं चिकित्सा।

#Dr_Virender_Madhan.


आजकल आधुनिक युग मे मशीनों का बोलबाला है इसके चलते व्यक्ति शारिरिक कार्यों से दूर हो गया है आलसी हो गया है। आयुर्वेद मे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारिरिक मेहनत,व्यायाम, व अभ्यंग को बहुत महत्व दिया है।ताकि रोग दूर रहें दीर्धायु रहे।

आजकल इन सबका अभाव होने से व्यक्ति अनेकों रोगों से ग्रस्त हो चुका है ।

आलसी होने से हृदय रोग,मोटापा, और पित्ताश्मरी जैस कष्टकारी रोग तेजी से फैल गये है।

*खानपान की गलत आदतों की वजह से भी आजकल लोगों में गॉलस्टोन यानी पित्त की पथरी की समस्या तेजी से बढ़ रही है।

*पित्ताशय हमारे शरीर का एक छोटा सा अंग होता है जो लीवर के ठीक पीछे होता है। पित्त की पथरी गंभीर समस्या है क्योंकि इसके कारण असहनीय दर्द होता है। इस पथरी के निजात पाने के लिए आपको अपने खान-पान की आदतों में कुछ बदलाव करने जरूरी हैं।


#क्यों महत्वपूर्ण है पित्त की थैली?


लिवर से बाइल नामक डाइजेस्टिव एंजाइम का स्राव निरंतर होता रहता है। उसके पिछले हिस्से में नीचे की ओर छोटी थैली के आकार वाला अंग होता है, जिसे गॉलब्लैडर या पित्ताशय कहते हैं। पित्ताशय हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लिवर और छोटी आंत के बीच पुल की तरह काम करता है। इसी पित्ताशय में ये बाइल जमा होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का लिवर पूरे 24 घंटे में लगभग 800 ग्राम बाइल का निर्माण करता है।


#कैसे बनती है पित्त में पथरी?

पथरी के कारणों को मुख्य दो भागों में बांटा है।

1-संक्रमण

किसी रोग के संक्रमण से लीवर पर सूजन होने से पित्तलवण शोषित हो जाता है पित्तलवण कोलेस्ट्रॉल के जमे कणों को अलग करता रहता है इसलिए पथरी का जमाव नही होता है लेकिन जब पित्तलवण की कमी होती है तो कोलेस्ट्रॉल का जमाव हो कर पथरी बन जाती है। आयुर्वेद मे कोलेस्ट्रॉल आमवात का ही रुप है जो हमारे जीवनशैली के बिगडने से बनता है।

2-पित्त का अवरोध हो जाना।

मोटापा, बहु प्रसवा,अधिक वसायुक्त भोजन के कारण पित्ताशय रिक्त नही हो पाता है।पित्ताश्मरी का कारण बन जाता है।

या 

रक्त व पित्त मे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अघिक होने से प्रतिक्रिया स्वरूप पित्त बहुत गाढा हो जाता है फिर पित्ताश्मरी का निर्माण होने लगता है।

कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक न होने पर, या बिलीरूबिन के इक्कठा होने पर कैल्शियम जमकर पथरी बना देती है।

इसमें मौज़ूद चीनी-नमक और अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट तत्व एक साथ जमा होकर छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन्स कहा जाता है।


#पित्त की पथरी के लक्षण क्या है?


शुरुआती दौर में गॉलस्टोन के लक्षण नज़र नहीं आते। 

जबतक पथरी गालब्लेडर मे रहती है तब तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है।

जब समस्या बढ़ जाती है गॉलब्लैडर में सूजन, संक्रमण या पित्त के प्रवाह में रुकावट होने लगती है। तब ऐसी स्थिति में लोगों को पेट के ऊपरी हिस्से की दायीं तरफ दर्द।

* अधिक मात्रा में गैस की फर्मेशन, पेट में भारीपन, वोमिटिंग, पसीना आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं।

पित्ताशय नली मे पथरी होने से अवरोध होने पर रोगी कामला रोग से पीडित हो जाता है।

बदहजमी, खट्टी डकार, पेट फूलना, एसिडीटी, पेट में भारीपन, उल्टी होना, पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं।यकृतशोथ के कारण सर्दी के साथ ज्वर हो सकता है।

काफी समय तक सुजन होने पर ,चिकनाई युक्त भोजन करने पर अपच की शिकायत होती है  जी मचलता है वमन भी होते है।


#पित्त की पथरी में क्या करें परहेज ?

*पित्त की पथरी से पीड़ित लोगों को हाई कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि तला हुआ भोजन, फ्राइड चिप्स, उच्च वसा वाला मांस जैसे बीफ और पोर्क, डेयरी उत्पाद जैसे क्रीम, आइसक्रीम, पनीर, फुल-क्रीम दूध से बचना चाहिए।

*इसके अलावा चॉकलेट, तेल जैसे नारियल तेल से बचा जाना चाहिए। 

*मसालेदार भोजन, गोभी, फूलगोली, शलजम, सोडा और शराब जैसी चीजों से एसिडिटी और गैस का खतरा होता है, इसलिए ये चीजें भी ना खाएं।


*नारियल पानी, लस्सी, आदि का खुब प्रयोग करना चाहिए।


#पित्त की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज?


अगर शुरुआती दौर में लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इस समस्या को केवल दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। 

*पित्ताश्मरी के कारण दर्द हो तो दर्दनिवारक औषधि दे।

*यकृतप्रदेश पर सेक करें।

 1-*अपामार्ग क्षार, सोडाबाई कार्ब,यवाक्षार, नृसार समभाग चूर्ण लेकर हल्के गर्म पानी से या कुमार्यासव एवं दशमुलारिष्ट के साथ देने से दर्द मे राहत मिल जाती है।

2- >>ताम्रभस्म 60 मि०ग्रा० 

निशोथ 3ग्रा०

कुटकी 3 ग्रा०

शंख भस्म 120 मि०ग्रा०


दिन तीन बार करेले के रस से,या मचली के स्वरस से, या फलत्रिकादि क्वाथ से देवें।

3- *अगस्तिशूतराज 60-60 लि०ग्रा० घण्टे घण्टे बाद देने से आराम मिल जाता है।

4-वमन के लिए नींबू पर कालानमक व काली मिर्च का चूर्ण लगाकर चुसने से वमन मे लाभ मिलता है।


#पित्ताश्मरी भंजन मिश्रण.

(विषेश औषधि)

वेरपत्थर भस्म १भाग

यवाक्षार १-भाग

नृसार १-भाग

सोरक १- भाग

अपामार्ग क्षार १-भाग

नारिकेल क्षार १- भाग

कोकिलाक्ष क्षार १- भाग

सभी द्रव्यों को मिलाकर रख लें।

आवश्यकता के अनुसार 5-6 ग्रा०की मात्रा में गर्म पानी से, या गौमुत्र के साथ लेने से पित्ताश्मरी व वृक्काश्मरी दोनों तरह की अवस्था में आराम मिलता है दोनों स्थानों की अश्मरी का शमन होता है।


*ज्य़ादा गंभीर स्थिति में सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है। पुराने समय में इसकी ओपन सर्जरी होती थी, जिसकी प्रक्रिया ज्य़ादा तकलीफदेह थी लेकिन आजकल लेप्रोस्कोपी के ज़रिये गॉलब्लैडर को ही शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है और मरीज़ शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।

<<Dr_Virender_Madhan.>>

#GuruAyurvedaInFaridabad.

#क्रोध या गुस्सा ?आयुर्वेद.In hindi.


 #क्रोध या गुस्सा ?In hindi.

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#Dr.Virender_Madhan

**क्रोध के पर्यायवाचीक्या है?

1.  anger

2. rage

3. fury

4. indignation

5. ire

6. furor

7. dander

8. displeasure

9. resentment

10. indignity

11. furore

12. bate

13. muck

14. malice

15. virulence

16. despite

17. dudgeon

18. spunk

19. ragging

20. flame

21.Krodh

22.Kop

आदि नामों से जाना जाता है "गुस्सा" शब्द भी आमतौर पर क्रोध के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन गुस्सा एक अलग भावना है यह जानकर शायद आपको अजीब लगेगा।

आगे हम क्रोध और गुस्से मे अन्तर बतायेगें।


#क्रोध किसे कहते है?


"क्रोध ,काम (इच्छाओं)की संतान है। काम यानि इच्छाओं की विफलता के भय से विफलता से पुर्व अहंकार के द्वारा क्रोध उत्पन्न होता है।”


*क्रोध या गुस्सा एक भावना है। शरीर पर क्रोध करने/होने पर *हृदय की गति बढ़ जाती है; *रक्त चाप बढ़ जाता है।

*प्यास बढ जाती है।

*शरीर का तापमान बढ जाता है।

यह किसी वस्तु या अधिकार के खो जाने के भय से उपज सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है वह वस्तु या अहंकार की रक्षा हेतु प्रतिक्रिया [क्रोध] करता है।


#आयुर्वेद मे क्रोध के क्या कारण हो सकते है?

जब पित्त दोष या शरीर की अग्नि ऊर्जा बढ़ जाती है। पित्त सही समझ और निर्णय लेने के लिए जरूरी है, लेकिन जब यह संतुलन से बाहर होता है, तो वह गलत निर्णय लेने लगता है, जिससे क्रोध का भाव उत्पन्न होता है।

गुस्सा या क्रोध एक ऐसी भावना है, जिसमें प्रतिक्रिया करना, समझना और सबसे महत्वपूर्ण रूप से नियंत्रण में लाना मुश्किल है। गुस्से के मूल कारणों को समझना थोड़ा

मुश्किल है। 

जब हम गुस्से में होते हैं, तो अक्सर दूसरों की हर बात गलत ही लगती है। जो लोग अधिक गुस्सा करते हैं, वे किसी की भी सुनना नहीं चाहते। ऐसी आदत अक्सर शर्मिंदगी का कारण बनती है।

श्री नानक देव जी कहते है-

*हिंसा, मोह, लोभ और क्रोध,"  ,

 " आग की चार नदियों की तरह हैं; जो उनमें गिरते हैं, वे जलते हैं, और केवल भगवान की कृपा से ही तैर सकते हैं" (जीजी, 147)। 

 श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं, "काम और क्रोध शरीर को भंग कर देते हैं जैसे बोरेक्स सोना पिघला देता है" (जीजी, 932)।

 श्री गुरु अर्जन देव जी , नानक वी, इन शब्दों में jक्रोध की निंदा करते हैं: "हे क्रोध, आप पापी पुरुषों को गुलाम बनाते हैं और फिर एक बंदर की तरह उनके चारों ओर घूमते हैं।"

श्री गुरु राम दास जी , नानक चतुर्थ, चेतावनी देते हैं: "उन लोगों के पास मत जाओ जो अनियंत्रित क्रोध से ग्रस्त हैं" (जीजी, 40) 


#गुस्सा और क्रोध में क्या अन्तर  है?


(1) गुस्सा क्षणिक होता है और 

* क्रोध अंतराल पर होता है।

(2) गुस्सा कभी भी विनाशकारी नहीं होता।

* क्रोध हमेशा विनाशकारी होता है।

(3) क्रोध से इंसान आग बबूला हो जाता है व्यक्ति उछलता नाचता है।

* जब कि गुस्से में नहीं होता।

(4) गुस्सा आने के बाद जब चला जाता है तो पश्चाताप होता है, 

* जब कि क्रोध में नहीं होता।

(5) गुस्सा केवल मिथ्या वचनों से या मिथ्या बातों से आता है तो वह अपने शरीर पर प्रभाव नहीं डालता, 

* जब कि क्रोध अहंकार के कारण आता है और अपने शरीर को भी ज्यादा प्रभावित करता है।

(6) गुस्से पर नियंत्रण पाना आसान है, 

* जब कि क्रोध पर नियंत्रण पाना ही कठिन होता है।

खास तौर पर जब हम अपने किसी परिवारजनों पर जोर से चिल्लाते है तो वह गुस्सा होता है क्रोध नहीं। 

क्रोध होता तो आप तब के बाद उनके साथ रह नहीं पाते। जैसा कि बताया, गुस्सा क्षणिक होता है वैसे ही कभी कभी जिससे हम प्यार या प्रेम करते है उन पर भी गुस्सा ही आता है क्रोध कभी नहीं आता। वरना जीवनसाथी के साथ नहीं रह सकते। 

*क्रोध के साथ जीना अत्यंत कठिन हो जाता है किन्तु गुस्से के साथ इंसान रह सकता है। इसीलिए तो संत जब चिल्लाते है तो वह गुस्सा होते है क्रोधित तो वह कभी नहीं होते। 

यहां पर में असली संत की बात कर रहा हूं। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कई बार गुस्सा किया है। अपने मामा कंस पर, शिशुपाल पर, जरासंध पर, अश्वत्थामा पर इत्यादि कई प्रसंग ऐसे बताए गए है जहां पर भगवान् श्रीकृष्ण ने क्रोध किया है किन्तु वह एक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए है, इसका मतलब क्रोध से तो कतई नहीं है। कैसे भी स्थिति में किसी भी परिस्थिति में जो क्रोध को नियंत्रित कर लेता है वहीं ईश्वर को प्राप्त करता है

 यह बात कई जगह शास्त्रों में लिखी है। तो सोचो अगर क्रोध को नियंत्रित करने से परमात्मा मिल जाता है तो क्या खुद परमात्मा क्या क्रोध कर सकता है? 


#क्रोध शांत करने के उपाय क्या है?

*आयुर्वेद के अनुसार क्रोध को शांत करने के  तरीके। 

इसमें उपलब्ध खाद्य पदार्थ और पेय के साथ कुछ सरल अभ्यास शामिल हैं। 

> क्रोध तब होता है, जब पित्त दोष या शरीर की अग्नि ऊर्जा बढ़ जाती है।  सही समझ और निर्णय के लिए आवश्यक है, लेकिन जब यह परेशान हो जाता है या संतुलन से बाहर होता है, तो वह गलतफहमी और गलत निर्णय लेने लगता है।

>> गुस्से को नियंत्रित करने के आयुर्वेदिक आहार

*डॉ. लाड ने अपनी किताब में एक पूरे अध्याय को 'पित्त-शांततापूर्ण आहार' के रूप में चिह्नित करने के लिए समर्पित किया है, जिसमें उस भोजन से दूर रहने की सलाह दी गई है,

 *जो शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं। इसमें गर्म, मसालेदार और किण्वित पदार्थ (Fermented substance) शामिल हैं। 

*सात्विक आहार का सेवन करें।

*पित को शांत करने के उपाय करें।

*जब तक की पित्त शांत न हो जाए, जब तक उन्होंने नींबू और खट्टे फलों से परहेज करें।

*तेज मिर्च मसाले, लहसुन जैसे गर्म मसाले क्रोध को बढाते है?

*गुस्से में होने पर सरल, नरम और ठंडे खाद्य पदार्थों के लेने की सलाह दी जाती है। 

*इस दौरान शराब एवं कैफीन युक्त खाद्य पदार्थों और पेय से दूर रहना चाहिए। 


*विशेष रूप से अधिक गुस्सा करने वालों को दो पेय पदार्थों का सेवन जरूर करना चाहिए। ये पित्त को शांत करते हैं।

1 तुलसी गुलाब टी

इस चाय को तैयार करने के लिए थोड़ी सी चंदन, तुलसी और थोड़ा सा गुलाब का चूर्ण लें। एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच इस मिश्रण को मिलाने के बाद कुछ समय के लिए रख दें ताकि पानी ठंडा हो जाए। इस चाय को दिन में तीन बार पीने से पित्त संबंधी पीड़ा शांत होती है।


*जीरा, फेनल सीड्स, चंदन द्राक्षा का क्वाथ बनाकर ले।

* अंगूर के रस,या अगुंर खाये।

#जीवनशैली

*सप्ताह मे एक बार मौनव्रत जरुर रखें।

 * सांस के व्यायाम ,प्रणायाम का का अभ्यास डालें।

*ध्यान का अभ्यास करें.ध्यान प्रक्रिया से विचार की सख्या। कम होती है मन शांत रहता है।

*आध्यात्मिक ज्ञान बढाये इससे हमे अपना परिचय मिलता है कि हम कौन है जान जाते है जग मिथ्या है 

याद रखें -काम,क्रोध हमे ही नष्ट करते है।

<Dr_virender_madhan.>


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

#हिचकी क्यों आती है? In.hindi.

 #हिचकी[हिक्का] <Hiccup> [Hiccough]



By:- Dr. Virender Madhan.

{हिचकी तब नही आती जब हमें कोई याद करता है।

<< हिचकी तब नही आती जब कोई गाली देता है।

हिचकी तब आती है जब शरीर में कोई विकृति होती है।}

* प्राण वायु और उदान वायु कुपित होकर। बार बार ऊपर की ओर जाती है इससे हिक्- हिक् शब्द के साथ वायु निकलती रहती है।

#हिचकी क्यों आती है?

सुश्रुत संहिता के अनुसार:-

आमदोष छाती आदि मे चोट लगना,क्षयरोग की पीडा मे, बिषम भोजन करने में, भोजन पर भोजन करने से,यानि भोजन के पचने से पहले ही दुसरी बार भोजन कर लेने से हिक्का रोग हो जाता है।दाहक भोजन करने से,भारी,अफारा करनेवाला, अभिष्यंदी पदार्थ खाने से, शीतल जल व शीतल भोजन करने से, गरमी से, गर्म हवा में घूमने से,अधिक बोझा उठाने से, उपवास, व्रत करने से, मल-मूत्र आदि वेगो को रोकने से मनुष्य को हिक्का, श्वास, कास आदि रोग हो जाते है।

* हिचकी क्यों आती है- हिचकी आने की कई वजहें हो सकती हैं, इसमें कुछ शारीरिक होती हैं तो कुछ मानसिक. ऐसा इसलिए होता है कि तंत्रिका में आई दिक्कत दिमाग और डायाफ्राम से जुड़ी है. बहुत ज्यादा और जल्दी खाने की वजह से भी हिचकी आती है. ज्यादा नर्वस या उत्साहित होने, कार्बोनेटेड ड्रिंक या बहुत अधिक शराब पीने से भी हिचकी आती है.

* हिचकी आने का सबसे बड़ा कारण पेट और फेफड़े के बीच स्थित डायफ्राम और पसलियों की मांसपेशी में संकुचन है। डायफ्राम के सिकुड़न से फेफड़ा तेजी से हवा खींचने लगता है, जिसकी वजह से किसी को भी हिचकी आ सकती है। इसके अलावा खाना खाने या गैस के चलते पेट बहुत ज्यादा भरा हुआ महसूस होता है तब भी हिचकी आ सकती है।

हिक्का के भेद :-

१-अन्नजा-

स्वस्थ व्यक्ति के अनापशनाप खाने से होता है।अन्नजा हिक्का मे चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है कुछ देर बाद स्वम् शांत हो जाता है।

२-यमला:-

जिस रूक रुक कर २-२हिचकी आती है यह सिर और गर्दन को कपकपा देती है।यमला का अर्थ है दो-दो।यह कष्टसाध्य होती है।इसके साथ प्रदाह,दाह,प्यास,मुर्छा आती है जो रोगी के लिये घातक होती है।

३-क्षुद्र

जो हिचकी कण्ठ व हृदय के बीच स्थान मे उत्पन्न होती है मन्द वेग से और देर से निकलती है।हिचकी धीरे धीरे उठती है।

४-गम्भीर

यह हिक्का नाभि प्रदेश से उठती है ।इसमे प्यास, श्वास, व पसलियों मे दर्द होता है।रोगों के कारण भी उत्पन्न होती है जीवन के अंत मे गम्भीर हिक्का रोगी का अंत कर देती है।

५-महती

इसमे वस्ति,हृदय आदि मर्म सभी पीडित होते है।यह हिक्का लगातार होती है सारे शरीर मे पीडा होती है।यह हिक्का भी मृत्यु का कारण बन जाती है।

#आयुर्वेदिक चिकित्सा:-

आयुर्वेदिक पेटेंट औषघियों

* मुकोजाईम सीरप ( गुरु फार्मास्युटिकल)
* गैंस्ट्रो चूर्ण
* स्वादिष्ट पाचन चूर्ण (गुरु फार्मास्युटिकल )

शास्त्रीय योग

चन्द्रसूर रस,पिप्पल्यादि लौह , हिंस्राद्ध धृत, अष्टादशांग क्वाथ, द्राक्षारिष्ट तथा आंवले के मुरब्बे की चासनी आदि के प्रयोग से हिक्का मे लाभ मिलता है।

<<घरेलू नुस्खे>>

#अनुभुत प्रयोग -

* आंंवला व कैंथ का रस शहद मे मिला कर दिन में २-३ बार देने से आराम मिल जाता है।
* तेज गर्म दूध में घी मिलाकर गर्म गर्म पी से आराम मिलता है।
* भोजन के बाद अगर हिचकी आये तो अजमोदा चूसे।
*पीपल और मिश्री मिला कर दिन में दो बार लेने से हिचकी दूर हो जाती है।
* सौठं का चूर्ण शहद मे मिला कर दिन में दो तीन बार चाटें।
* गिलोय और सौंठ के चूर्ण को सुंघाने से हिक्का शांत हो जाता है।
* पोदिने के पत्तों को बूरे के साथ चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
* मोर के चंदो की भस्म शहद से चाटने से आराम हो जाता है।
* सूखी मूली का काढा बना कर पीने श्वास और हिचकी मे आराम हो जाता है।
* नारियल की जटा की राख पानी मे धोल कर छानकर पीने से आराम हो जाता है।
* पीपल के वृक्ष की छाल की राख भी पानी में धोलकर छान कर पीयें।

#हिचकी है तो क्या करें क्या न करें ?

पथ्य:-

- तैल मालिस [अभ्यंग] कराकर स्वेदन करें।
- निन्द्रा , स्निग्ध आहारो का सेवन, सुपाच्य पदार्थो का सेवन ,पुराना गेहूँ, कुलथी , सांठीं चावल , जौ , लहसुन ,परवल ,कच्ची मूली ,काली तुलसी , गर्म पानी , बिरोजा नींबू , वातकफ नाशक ,आश्चर्य जनक दृश्य देखना , प्राणायाम करना 
हिचकी के रोगी को लाभप्रद है।

अपथ्य:-

अपान वायु, मल,मूत्र, डकार, खांंसी , आदि अधारणीय वेगोंं को रोकना नही चाहिए।धुल ,धुप,अधिक श्रम , विरुद्ध आहार, कब्ज करने वाले पदार्थ, कफ बर्द्धक ,आलू आदि कन्द फ्राईड चीजों को त्याग देना चाहिए।

#Dr.Virender Madhan.




रविवार, 14 नवंबर 2021

#Exercise व्यायाम क्यो नहीं करें?In hindi.

 #What is exercise ?

#व्यायाम क्या है?



By:- Dr.Virender Madhan


- जिस कर्म मे शरीर के कर्म के सार मन का योग हो उस व्यायाम कहते है।

 - व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी बढाती है। मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाता है, या वजन घटाने के लिए जो कर्म किया जाता है वही व्यायाम कहलाता है।

#व्यायाम के प्रकार:-

खेलना, दौडना, कूदना, डंडबैठक लगना आदि व्यायाम के रूप होते है।

#व्यायाम के क्या लाभ है ?

- व्यायाम करने से शारिरिक शक्ति बढती है।

- जठराग्नि ,पाचकाग्नि बढती है।

- व्यायाम से मोटापा कम होता है।

- मांसपेशियां मजबूत होती है।

- क्लेश सहने की शक्ति बढती है।

 #किसको व्यायाम नही करना चाहिए?

-वातज व पित्तज रोगों से पीडित रोगी को
-अजीर्ण रोग से ग्रस्त व्यक्ति को व्यायाम नही करना चाहिए।
-वृध्द (सत्तर वर्ष से अधिक व्यक्ति) को व्यायाम नही करना चाहिए।
- ६ साल से छोटे बच्चों को भी व्यायाम नही करना चाहिए ।

* अर्ध्दबल से अधिक व्यायाम कभी नही करना चाहिए।
* व्यायाम के बाद सभी अंगों को मसलना चाहिए।

#अधिक व्यायाम से क्या हानि हो सकती है?

-राजयक्ष्मा
- तमक श्वास
- रक्तपित्त 
-श्रम (थकान)
-क्लेम,
- कास
-ज्वर
छर्दि आदि रोग अतिव्यायाम से हो जाते है।

जो व्यक्ति अचानक व्यायाम छोड देता है उन्हें वृध्दावस्था मे आमवात , उरुस्तम्भ ,अर्श (बवासीर) अण्डकोष बृध्दि हो जाती है।

[Dr_virender_madhan]



बुधवार, 10 नवंबर 2021

#नाक का मस्सा [नेजल पोलिपस]in hindi.

 #क्या है नेजल पोलिप [Nasal polipus]



By:- <#Dr_Virender_Madhan.

नाक व साइनस की श्लेष्मा फूलकर रसौली की तरह गांठ बन जाती है जिसमें द्रव्य बढऩे पर यह फूलने लगती है। ऐसा नाक के एक या दोनों तरफ हो सकता है, 

नाक के भीतर नेजल पैसेज या साइनस में कोमल, बिना दर्द वाली, गैर कैंसर वाली गांठ को नेजल पॉलिप्स कहा जाता है। अस्थमा, इंफेक्शन के दोबारा होने, एलर्जी, दवा के प्रति संवेदनशीलता या कुछ इम्यून सिस्टम की बीमारियों की वजह से नेजल पॉलिप्स (मस्सा)होती है।

नाक में मस्सा (Nasal polyps) होना किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। नाक में मस्सा होने के कारण कुछ लोगों को सिरदर्द होता है या उन्हें गंध आना कम हो जाता है। वहीं कुछ लोगों को कुछ महसूस ही नहीं होता है। 

कारण :- इस रोग का प्रमुख कारण वातादि दोषो के विकृत होने से,लगातार जुकाम रहने से अर्श बन जाता है।


लक्षण

- नाक बन्द होना।

- छिंकें आना।

- नाक बहते रहना।

- सिर दर्द रहना।

- सांस लेने मे परेशानी होना

- सांस मे दुर्गंध आना पोलिपस के लक्षण है।


#आयुर्वेदिक चिकित्सा -

*लक्ष्मीविलासरस - १ से २ गोली दिन में ३बार लें।

*अग्निकुमार रस - १-२ गोली दिन में ३बार लें।

* आन्नदभैरव रस १-२ गोली दिन में २-३ बार लें।


*हरितिकी पाक-

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गोक्षुर चूर्ण 500 ग्राम

गुड 20 कि०

हरितिकी 12 कि०

सोठं 748 ग्राम.

इनका गुडपाक कर के रख ले 6 से 10 ग्राम. प्रतिदिन खाये।


* नस्य-

- षडबिन्दू तैल या

- अणु तैल को नाक मे १-३ बूंद दिन में दो या तीन बार डाले।

 - त्रिकटु चूर्ण का कषाय बनाकर 3-4 बूंद नाक मे डालें।

- बादाम रोगन की 2-3 बूंदें नाक मे डालने से आराम मिलता है।


<< घरेलू ईलाज-

- सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है

< 5 बादाम 5 काली मिर्च रोज चबाकर खाएं या पेस्ट बनाकर शहद से मिलाकर खायें ।

गुरु आयुर्वेदिक चाय [ हर्बल टी ] रोज पीयें।

#पोलिपस है तो जीवनशैली कैसी हो?

* कभी सर्द गर्म न होने दे ठंड से गर्म और गर्म से ठंड मे यकायक न जाये।

* ठंडा चिल्ड , फ्रिज का ठंडा, कोल्डड्रिंक, आदि से बचे।

* दिन मे सोने से बचे।

ठंड मे सिर को ढककर रखें।

* विषेशकर बदलते मौसम मे सावधान रहें।

* कफ बर्द्धक आहार जैसे दही आदि न ले।

*प्रतिदिन शरीर की मालिस करें।

#Dr_Virender_Madhan.



मंगलवार, 9 नवंबर 2021

नजला|छिंकें|जुकाम|प्रतिश्याय है तो क्या करोगे?

 

#नजला,। एलर्जी,। प्रतिश्याम (छिंके आना), ।नाक बंद होना, ।नाशास्त्राव.

#Dr_Virender_Madhan

जुकाम को नजला (Rhinitis या Nasopharyngitis) भी कहते हैं। यह श्वसन तंत्र का संक्रमण के कारण होने वाला रोग है। इसमें व्यक्ति की नाक प्रभावित होती है। सामान्य जुकाम वायरस के संक्रमण के कारण होता है।

अधिक छिंकें आने से कष्ट होता है। अधिक संक्रमण से किसी भी सुगंध या दुर्गंध से भी छिंकें शुरू हो जाती है।कई बार धूल या बाल के नाक मे जाने से छिंकें आती है।

*प्रतिश्याम रोग का निदान व सम्प्राप्ति -

सन्धारणाजीर्वर जोडति भाष्य क्रे द्यर्तुवैषम्यशिरोऽपितापैः।

प्रजागरातिस्वपनाम्बुशीतैरवश्यया मैथुनबाष्पधूमैः।।

संस्व्यादोषे शिरणि प्रवृद्धौ वायुः प्रतिश्याममुदीरयेतु।।

अर्थात:-

मल-मूत्र एवं छींक आदि के वेगों को रोकने से, अजीर्ण होने से, धूल के नाक में जाने से, अधिक बोलने से, अधिक क्रोध करने से, ऋतुओं की विषमता से, शिरःशुल होने से, रात्री जागरण से, अधिक सोने से, ठन्डे जल का उपयोग करने से, ओस के प्रभाव से,अधिक आँसु गिराने से और धुआँ लगने से जब शिर में कफ अधिक संचित हो जाता है तब बढ़कर प्रतिश्याम रोग को उत्पन्न होता हैं।

*प्रतिश्याय के दोषानुसार लक्षण ।

वातज प्रतिश्याम का लक्षण -

वात के कारण होने वाले प्रतिश्याम में नाक में दर्द और सुई चुभाने जैसी पीड़ा, छींक आना, पानी जैसा नाक से स्त्राव होना, शिरःशूल और स्वरभेद होना।


पित्तज प्रतिश्याय का लक्षण -

पित्तज प्रतिश्याय में नासिका का अग्रभाग पक जाता है, ज्वर होता है, मुख सुखता है, प्यास लती है और गरम-गरम पीला द्रव निकलाता हैं।


कफज प्रतिश्याय का लक्षण -

कफज प्रतिश्याय में कास, भोजन में अरूची, गाढे कफ का स्त्रावल होना और नाक में खुजली होना।


सन्निपातजं प्रतिश्याय के लक्षण -

त्रिदोषज प्रतिश्याय या पीनस में तीनों दोषों के जो लक्षण कहे गये हैं, वे सब होते है और इसमें तीव्र पीड़ा होती हैं।


दुष्ट प्रतिश्याम और उसके उपद्रव -

जब प्रतिश्याम रोग की ठीक समय पर उचित चिकित्सा नहीं की जाती है और आहितकर आहार किया जाता है, तब वह उपेक्षित हुआ प्रतिश्याय का रूप धारण कर लेता हैं। उसके बाद उपद्रवस्वरूप अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है। जैसे-छिंके आना, नाक का सुख जाना, प्रतिनाह (नाक का बंद हो जाना), नाक से बहुत पानी निकलते रहना, नाक से सड़न जैसी दुर्गन्ध आना, अपीनस होना (सदैव सर्दी जुकाम बना रहना) नाक का पकना, नाक में सुजन आना, नाक में ग्रन्थि बनना, नाक में पूय जमा होना, नाक से रक्त आना, नाक में छोटी फुन्सियाँ होना, शिर, कान और आँख के रोगों का होना, शिर के बालों का झड़ना (खालित्य), पालित्य(शिर के बालों का सफेद होना, प्यास लगना, दम फूलाना, खाँसी आना, ज्वर होना, रक्तपित्त रोग होना, स्वर भेद होना और राज्यक्षमा होना-ये उपद्रव होते हैं।


दृष्ट प्रतिश्याम के प्रकार -

1. यवथू 2. नाशाशोथ 3. प्रतिनाह 4. परिस्ताव 5. पूतिनस्य 6. अपीनस्य 7. नाशापक 8. नाशाशोथ 9. नाशार्बुद 10. पूयरस 11. अंरूषिका 12. दीप्त


#पुराना जुकाम और नजला के लक्षण

 - बार बार छीके आना । 

 - नाक में से पानी बहना , नाक बंद रहना , नाक में मास बढ़ना 

- गले में रेशा रहना । 

 - सर दर्द रहना । 

 - गला भी खराब हो जाता है और एक - दो दिन तक लगातार नाक से निकलने वाले बलगम गले के नीचे उतर कर कफ बन जाता है जो खांसी का कारण बनता है ।

#आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करें?

* बेनसीप सीरप (गुरु फार्मास्युटिकल) या

*बेनकफ सीरप - 1से 2 चम्मच दिन में 2-3 बार लें।

*लक्ष्मी विलासरस नारदीय 1से 2 दिन में 3बार ले।

* संजीवनी वटी 1-2 गोली दिन में 2-3 बार लें।

*गोदंती मिश्रण का प्रयोग करें।

* रोजाना एक चम्मच च्यवनप्राश का सेवन करे। ... 

* दूध में हल्दी और शिलाजीत डालकर रोजाना पिएं।

* गुरु आयुर्वेदिक चाय पीयें।


#घरेलू ईलाज क्या है ?

- सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है।

- सामावस्था में लंघन कराये,

- सहने योग्य अधिकतम उष्ण जल अधिकतम मात्रा में बारम्बार पिलायें। 

- अधिकतम उष्ण जल का सेवन करें। 

- अदरक का सेवन करें। -

- सिर की पीड़ा में दालचीनी व लंवण में से किसी एक का या दोनों का लेप करें। 

-पक्व प्रतिश्याय में छींक लाये।  - सिर पर तेल रखें। 

- पसीना लाये। 

- कटु पदार्थ आदि, सोंठ, हिंगु आदि से युक्त लघु भोजन करें।

- सुखे चने व कलौंजी को रगड कर कपडें मे बांधकर बार बार सुंघाने से.आराम मिलता है।

- सुहागे को तवे पर फुला कर चूर्ण बना लें। नजला-जुकाम होने पर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से पहले ही दिन, या ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों में जुकाम ठीक हो जाएगा।

- काली मिर्च और बताशे पाव भर जल में पकावें। चौथाई रहने पर इसे गरमागरम पी लें। प्रातः खाली पेट और रात को सोते समय तीन दिन उपयोग करें। नजला-जुकाम से राहत मिलेगी।

- 5 ग्राम अदरक के रस में 5 ग्राम तुलसी का रस मिला कर 10 ग्राम शहद से लें।

- काली मिर्च को दूध में पका कर सुबह-शाम पीएं।

 अमरूद के पत्ते चाय की तरह उबाल कर पीएं।

- षडबिंदु तेल की 4-4 बूंदे दोनों नथुनों में टपकाने से शीघ्र ही सिर के विकार नष्ट हो जाते हैं।

- गर्म दूध के साथ सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करें।

- दिन में 2 बार अनार, या संतरे के छिलकों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

- चूने के पानी में गुड़ घोल कर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।

- दो ग्राम मुलहठी चूर्ण को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से जुकाम ठीक होता है।

#नजले मे जीवनशैली कैसी हो?

* कभी सर्द गर्म न होने दे ठंड से गर्म और गर्म से ठंड मे यकायक न जाये।

* ठंडा चिल्ड , फ्रिज का ठंडा, कोल्डड्रिंक, आदि से बचे।

* दिन मे सोने से बचे।

ठंड मे सिर को ढककर रखें।

* विषेशकर बदलते मौसम मे सावधान रहें।

* कफ बर्द्धक आहार जैसे दही आदि न ले।

*प्रतिदिन शरीर की मालिस करें।

<डा०वीरेंद्र मढान>


गुरुवार, 4 नवंबर 2021

भुलने का रोग [ मेमोरी लोस ] है तो क्या करें ?

 #भुलने का रोग[अल्जाइमर रोग]



#DrVirender Madhan.

(Alzheimer's Disease) 'भूलने का रोग' है। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है,


#याददाश्त[मेमोरी]क्या है ?

घटनाओं को संचित करना व जरूरत पड़ने पर वापस याद करके उपर्युक्त घटनाओं का वर्णन करना याददाश्त कहलाता है। 

#मेमोरी कम क्यों हो जाती है?

यह वृद्धावस्था में होने वाला रोग है।

जब तनाव की समस्या जो धीरे-धीरे अवसाद का रूप ले लेती है। उदासीनता महसूस होना, अकेलेपन का अहसास या समाज से दूरी बना लेना, रोजमर्रा के बर्ताव में बदलाव, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना या शक की भावना का बढऩा प्रमुख है। इसके अलावा बढ़ती उम्र भी कारण है जिसके साथ व्यक्तिमें आक्रोश बढ़ जाता है।

लेकिन युवावस्था में याददाश्त की कमी के कई अन्य कारण सामने आते हैं-

1  कई बार दुर्घटना में सिर में चोट आने से व्यक्ति को मिर्गी की समस्या हो जाती है। और   याददाश्त पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

2- चिकित्सा: कई दवाएँ जैसे अवसादरोधी दवाएँ (एंटीडिप्रेससेंट), एंटीहिसटामाइंस, स्ट्रेस निवारक दवाएँ, मांसपेशियों को ढीला करने वाली दवाएँ, ट्रांक्विलाइज़ेर्स, नींद की गोलियाँ, और सर्जरी के बाद दी जाने वाली दर्द की दवाएँ याददाश्त कमज़ोर कर सकती है। 

3- शिक्षा का बढ़ता बोझ 

-जिसके कारण न्यूरोन्स को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है। कई बार ऐसी परीक्षाओं में विफलता के कारण और मस्तिष्क की निष्क्रियता के चलते याददाश्त की कमीहो जाती है।

4- नशे की लत -शराब या सिगरेट से धीरे-धीरे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का स्त्राव कम होने लगता है। इसकी कमी से याददाश्त कमजोर होने लगती है।

5-मोबाइल का प्रयोग -

कम्प्यूटर व मोबाइल का अधिक प्रयोग भी इसकी एक वजह है 

6-खानपान के कारण -

आधुनिक युवावर्ग फास्ट-जंक फूड व अधिक वसायुक्तखाना पसंद करता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की कमी पाई जाती है। 

#अल्जाइमर के जोखिम को कम करने के लिए क्या करें?

1. उचित वजन बनाए रखें. 

2. सोच समझ कर खाएं. विटामिन युक्त सब्जियों और फलों पर जोर दें. 

3. साबुत अनाज, मछली, लीन पोल्ट्री, टोफू और सेम व अन्य फलियां जैसे प्रोटीन स्रोतों से मिली स्वस्थ वसा पर ध्यान दें.

4. मिठाई, सोडा, सफेद ब्रेड या सफेद चावल, अस्वास्थ्यकर वसा, तले और फास्ट फूड, नासमझीपूर्ण स्नैकिंग जैसी अनावश्यक कैलोरी कम करें. 5-नियमित रूप से व्यायाम करें.तेज चलने के लिए हर सप्ताह ढाई से 5 घंटे का लक्ष्य रखें, जॉगिंग जैसे व्यायाम करने की कोशिश करें.


#मेमोरी लॉस के अलावा अल्जाइनर के और लक्षण क्या है?

1. आंखें कमज़ोर होना.

2. मूड में बहुत जल्द बदलाव आना.

3. रोज़ाना की अपनी मनोरंजक चीज़ों में मन ना लगना.

4. सोशल कामों में भी मन ना लगना,  बाहर हो रही चीज़ों से कटना.

5. चीज़ों को जज ना कर पाना. 

#आप भुलते है तो क्या करें?

#आयुर्वेदिक चिकित्सा :-

*तिल का तेल का नस्य:-

-आयुर्वेद में तिल के तेल का प्रयोग याददाश्त बढ़ाने में उपयोगी है। तिल के तेल को गुनगुना गर्म कर उसकी 3-3 बूंदें अपने नाक के दोनों नथुनों में डाल सकते हैं। 

- सिर व पैरों के तलवों की मालिश के अलावा तेल को भोजन में भी प्रयोग कर सकते हैं।

*अश्वगंधा

अश्वगंधा ऐसी जड़ीबूटी है जो रोग को बढऩे से रोकती है। इसका काम दिमाग को मजबूत करना है।मानसिक कार्यक्षमता बढ़ाते हैं।

* हल्दी व बादाम

हल्दी में मौजूद करक्यूमिन तत्त्व अच्छा एंटीऑक्सीडेंट्स है। रोजाना भोजन में इसके प्रयोग से या फिर दूध में चुटकीभर इसे लेने से दिमाग को ताकत मिलती है। 

* गाजर खाएं

इसमें मौजूद विटामिन-ए से याददाश्त पर हुआ नकारात्मक प्रभाव कम होता है। इसे सब्जी के रूप में, जूस या हलवे (गाजर पाक) के रूप में खा सकते हैं। 

* शंखपुष्पी

ब्रेन टॉनिक है शंखपुष्पी। इसके खास तत्त्व दिमागी कोशिकाओं को सक्रिय कर भूलने की समस्या दूर करते हैं। 3-6 ग्रा. चूर्ण रोज दूध के साथ पीएं।


#[ब्रैनिका सीरप (गुरु फार्मास्युटिकल)के 2-2 चम्मच दिन मे 2 बार ले।

*सारस्वतारिष्ट प्रतिदिन प्रयोग करें।

धन्यवाद!

#डा०वीरेंद_मढान.








मंगलवार, 2 नवंबर 2021

#दूध किसे पीना चाहिए?दूध से किसे होगी हानि ? In hindi.


 

#दुध पीने योग्य व्यक्ति ?

[Dr.Virender Madhan]


*ऋषि वांग्डभट के ग्रंथ अष्टांग संग्रह के अध्याय -2 ज्वर प्रकरण मे वर्णन है कि कौन व्यक्ति या रोगी दूध पी सकते है और कौन नही पी सकते है।

<< किन किन व्यक्ति या रोगी की दूध लाभदायक है किन को करता है हानि?

* जिस व्यक्ति को दूध सात्मय है यानि लगातार दुध पीने की आदत हो ।
*जिस व्यक्ति का कफ दोष क्षीण (कम ) हो गया हो उसे दूध पीना चाहिए।
*जो रोगी दाह, प्यास से पीडित रहता हो वह दूग्ध पान योग्य होता है।
*जो व्यक्ति पित व वात रोगों से ( अम्लपित्त, दाह ,जलन, शरीर दर्द, जोड दर्द, अधरंग,आदि) पीडित रहता हो उसे दूध पीना चाहिए।
*अतिसार मे भी दूध पथ्य है यानि दूध पीना चाहिए।
*लंघन व उपवास जो रोगी तप्त हो उसे दूध अवश्य पीना चाहिए उसके लि दूध जीवन देने वाला होता है।
*ज्वर आदि मे दूध को पिप्पली आदि से सिद्व कर पीना चाहिए।अथवा दोष के आधार पर सिध्द करके देना चाहिए।

रोगानुसार:-

→मलेरिया , सुखी खाँसी, ज्वर ,बवासीर, शारिरिक कमजोरी ,दुर्बलता, दाह , मिर्गी ,वातरोग ,अपस्मार आदि रोग से ग्रस्त व्यक्ति को दूध अवश्य पीना चाहिये।
अधिकतर रोगों के लिए शास्त्रों में संस्कृत (सिद्ध) दूध देने का वर्णन मिलता है ।

#किस व्यक्ति को दूध का प्रयोग नही करना चाहिए?

*जिन व्यक्ति को दूध से अर्जूनता (एलर्जी) होती है वैसे एसे व्यक्ति बहुत ही कम है।
*जिन्होंने मछली खाई है या मुली खाई हो उन्हें दूध नहीं पीना चाहिये।
*जिनका कफ दोष बढा या बिगडा हो।
*नवीन ज्वर मे दूग्ध अपथ्य है।
*प्रवाहिका मे भी हानिकारक हो सकता है।
*अत्यधिक भुखा केवल दूध नही ले सकता भारी पड सकता है।
*खट्टे फल खा कर दूध पीना निषेध है हानिकारक होता है।

#संस्कृत दूग्ध किसे कहते है और इसके क्या लाभ है?

जब दूध मे सौंठ, खजुर, द्राक्षा , शर्करा , धी आदि के साथ पका देते है उस दूध को संस्कृत दूग्ध या सिद्ध दूध कहते है।

सिद्ध दूध के गुण:-

-दूध को मधु मिलाकर देने.से प्यास ,दाह, व ज्वरनाशक हो जाता है।
(ध्यान दे:-मधू को अधिक उष्ण दूध के साथ नही दिया जाता है ) 
*इसीप्रकार  द्राक्षा , बला , मुलहठी , सारिवा , पिप्पली ,चंदन । आदि को चार गुणा जल मिलाकर पकाया हुआ दूध -- प्यास ,दाह ,ज्वरनाशक होता है।
इसके पीते समय शर्करा , मधू मिलाकर लेते है।
* बिल्वादि पंचमुल से सिद्ध दूध --ज्वर ,कास ,श्वास ,सिरशूल ,पार्श्वशुल ,एवं दीर्धकालीन ज्वर छूट जाते है ।
*एरण्ड मूल , या कच्चे बेल से सिद्ध दूध से मनुष्य का रूका हुआ मल, वायु वाले ( वायज्वर) ठीक हो जाते है प्यास , शुल और प्रवाहिका वाले ज्वर से मुक्त हो जाते है।
* सौंठ ,बला ,कटेरी, गोखरु , गुड से सिध्द दूध से --- शोफ ,मूत्र ,मल और वायु के विबन्ध , ज्वर ,एवं कास का नाश हो जाता है।
* पुनर्नवा से सिध्द दूध से ज्वर ,शोथ नष्ट हो जाते है।
आदि आदि।
ये सब प्रयोग करने से पहले अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेंं।
दूध से सम्बंधित ये विचार मेरे नही है महऋषि वांग्डभट के है।
आयुर्वेद मे इनके द्वारा बतायें गये सभी प्रयोग फलदायक होते है यह मै गर्व के साथ कह सकता हूँ।

#आयुर्वेद अपनायें जीवन स्वस्थ बनायेंं।।

आपको लेख कैसा लगा कोमेंट मे बताये ।
धन्यवाद!

#DrVirenderMadhan.




आज #धनतेरस [धन्वंतरि ]पुजा कैसे करें?

 #धनतेरस क्या है?



शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। 

 दिवाली महापर्व का आगाज 2 नवंबर से, 

#Diwali और धनतेरस कब मनायें?2021.

 Diwali : दिवाली के महापर्व को बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। दिवाली का आगाज 2 नवंबर, धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक दिवाली का महापर्व मनाया जाता है।

हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का विशेष महत्व होता है। दिवाली से पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार को पड़ रहा है।

 2 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक का है. वहीं वृषभ काल शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा. धनतेरस पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा.


#क्या खरीदें आज के दिन?


-धनतेरस के दिन वैसे तो कोई भी नई वस्तु खरीदना बेहद शुभ होता है. मान्यता है कि इस दिन सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने चाहिए. इसके अलावा लोग धनतेरस के दिन कार, मोटर साइकिल और जमीन-मकान भी खरीदते हैं. कहा जाता है कि धनतेरस पर जो भी वस्तु खरीदी जाती है उसमें सालभर 13 गुना की बढ़ोत्तरी होती है.

 #धनतेरस के दिन झाड़ू क्यों खरीदा जाता है?

धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने के पीछे मान्यता है कि, इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है, घर से नकारात्मकता दूर होती है, और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।


#इस विधि से करें धनतेरस के दिन दीपदान

धनतेरस के दिन यम देवता को दीपदान करना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको बता दें कि यह कार्य हमेशा प्रदोष काल में करना चाहिए। दीपक चतुर्मुखी प्रतीत हो यानी कि दोनों ही रुई की बत्तियों के चारों सिरे बाहर की ओर दिखें। फिर इस दीपक में तिल का तेल भरने के बाद कुछ काले तिल भी इसमें डाल दें। दीपक का रोली, पुष्प व अक्षत से पूजन करें और इसे प्रज्ज्वलित कर लें। दक्षिण दिशा की तरफ देखते हुए उस ढेर पर इस दीपक को स्थापित कर दें।

#धनतेरस पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि जी को क्या लगाएं भोग?

धनतेरस को भगवान धनवंतरी, कुबेर और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा खरीदकर पूजा घर में उत्तर दिशा में स्थापित करें. भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को विभिन्न फलों का भोग चढ़ाएं.

जय धन्वंतरि!


सोमवार, 1 नवंबर 2021

अचानक #वजन कम क्यों होने लगता है?

 #वजन क्यों घटता है ?

<Dr.virenderMadhan>




#व्यक्ति का सामान्य वजन कितना होता है?

*5 फीट 6 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य तौर पर वजन 53 से 67 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 8 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 56 से 71 किलोग्राम के बीच होना चाहिए. 

*5 फीट 10 इंच लंबे व्यक्ति का सामान्य वजन 59 से 75 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.


#कम वजन से होने वाली बीमारियां?


* बिना किसी कोशिश के वजन कम होना, वजन घटना और थकान बहुत सी बीमारियों के लक्षण हैं। अचानक वजन घटना शरीर में गंभीर बीमारियों के लक्षण होते हैं।  

>मानक वजन से 10 प्रतिशत से ज्यादा वजन कम होने पर कार्यक्षमता कम होने लगती है। 

> वजन बहुत कम हो तो संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। वास्तव में वजन ज्यादा घट जाने का सीधा मतलब है कि शरीर में पोषक तत्त्वों की भी कमी है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

>त्वचा के नीचे चर्बी कम हो तो जरा-सी चोट भी सीधे हड्डियों पर असर करती है।

>अचानक वजन में कमी आ जाए तो असर त्वचा पर दिखता है।


#वजन घटने का क्या कारण है?

भोजन-

- वजन कम होने का एक कारण है कि आप पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं कर रहे हैं। 

बृद्धावस्था

- जैसे -जैसे उम्र बढ़ती है, आपको अपना पेट भरा हुआ लगता है। इसके अलावा भूख और परिपूर्णता को कंट्रोल करने वाले मास्तिष्क के कुछ संकेत डैमेज हो जाते हैं।

थायोरोयड

- शरीर में थायराइड हार्मोन की अधिकता तेजी से वजन घटने का कारण बन जाती है और इसकी कमी वजन बढ़ने का। यदि काफी प्रयास करने के बाद भी आप अपना वजन कम नहीं कर पा रहीं हैं, तो संभव है कि आपको हाइपोथाइरॉएडिज्म हो, जिसकी वजह से आपका वजन बढ़ रहा है। हाइपोथाइरॉएडिज्म का मतलब है मेटाबॉलिज्म का धीमे काम करना।

डायबिटीज़

डायबिटीज़ एक मेटाबॉलिक समस्या है जिसमें आपके शरीर में ब्लड शुगर स्तर उच्च होता है। इसके दो कारण हो सकते हैं, या तो ये कि आपके शरीर में इंसुलिन का निर्माण न हो पा रहा हो या फिर ये कि आपका शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर पा रहा हो, या फिर ये दोनों ही कारण हो सकते हैं।

ट्यूबरक्लॉसिस यानी टीबी

टीबी रोग को तपेदिक, क्षय और यक्षमा जैसे कई नामों से जाना जाता है। तपेदिक संक्रामक रोग होता है।

इसमे भी रोगी का वजन कम होता है।

डिप्रेशन

डिप्रेशन एक ऐसा मूड डिसॉर्डर है जिसमें कई कई दिनों तक उदासी, परेशानी, चिंता या चिड़चिड़ापन महसूस होता रहता हैऔर वजन कम होता है।

#आयुर्वेद के अनुसार वजन कम [कृशता] होने के कारण क्या है?

[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]

*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता [वजन कम होने] का प्रमुख कारण है। *अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। 

*इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश [वजन कम ]होता जाता है। 


*इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा 

*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।


*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। 

*अधिक शोक, 

*जागरण तथा 

*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। 


#वजन कम न हो ऐसा क्या करें?

*पाचन ठीक रखें।

*भोजन समय पर करें ।

*जिसे भोजन के करने से तृप्ति हो ऐसा भोजन करें।

*भोजन मे उडद,मीठा, धी,तैल से स्निग्ध भोजन करें।

*रात्रिजागरण न करें।

*रात्रि में खुब अच्छे से सोयें।

*अश्वगंधा,विधारा आदि के उत्पादन प्रयोग करें?

*ग्रोविटा सीरप व कैपसूल पुष्टि (गुरु फार्मास्युटिकल) का प्रयोग करें।

धन्यवाद!

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रविवार, 31 अक्तूबर 2021

दुबले_पतले है तो क्या करें? In hindi

हैल्थ_Ayurveda_Tips_घरेलू_उपचार.

 #दुबलापन>>



By:-Dr_Virender_Madhan.

#क्या है कृशता?In hindi.

कृश- दुबले व्यक्ति के नितम्ब, पेट और ग्रीवा शुष्क होते हैं। अंगुलियों के पर्व मोटे तथा शरीर पर शिराओं का जाल फैला होता है, जो स्पष्ट दिखता है। शरीर पर ऊपरी त्वचा और अस्थियाँ ही शेष दिखाई देती हैं।

#कृशता-स्थुलता से श्रेष्ठ क्यों है?

अष्टांगसंग्रह अनुसार अतिकृश होना महान रोग है,तथापि अतिस्थुलता से- अतिकृशता श्रेष्ठ है क्योंकि स्थुलता की कोई  चिकित्सा नही है। स्थुलता के लिये न तो लंघन पर्याप्त है न ही वृंहण पर्याप्त है।क्योंकि इसके लिए मेद,अग्नि और वात नाशक औषधि ही उपयुक्त है लंघन से मेद तो कम होगा लेकिन अग्नि और वात का नाश नही होता, वृंहण से वात और अग्नि शमन होता है परन्तु मेद का नाश नही होता।कृशता मधुर,स्निग्ध पदार्थो  को तृप्ति होने तक खाते रहने से कृशता नष्ट हो जाती है।इसके स्थुलता मे अत्यंत तिक्त-कटू-कषाय बहुल रुक्ष ,अन्नपान औषधियौं के लम्बे समय तक उपयोग करने से ठीक होते है।

इसलिए कृशता ,स्थुलता से श्रेष्ठ है।

#दुबलेपन के क्या क्या कारण है?

[दुबलापन अपतर्पण का परिणाम है।]

*अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। 

इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है। 

इसके अतिरिक्त [अतिलंघन] करने से,अल्प मात्रा में भोजन तथा 

*रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।

*वमन, विरेचन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। 

*अधिक शोक, 

*जागरण तथा 

*अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। 

*अनेक रोगों के कारण भी धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है।

*आज की टी.वी. संस्कृति, *युवक-युवतियों में यौनजनित कुप्रवृत्तियाँ (हस्तमैथुन आदि) तथा नशीले पदार्थों के सेवन से निरंतर धातुओं का क्षय होता है। 

-कृशता को 2भागो मे वर्गीकृत किया जाता है।

1. सहज कृशता 2. जन्मोत्तर कृशता


-सहज कृशता : माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है। 

गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं। 


जन्मोत्तर कृशता :-

-अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा -कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के कारण अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है। 

जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-

अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों सेदीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है। 

-शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता।

-मधुमेह,राजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में  कृशता उत्पन्न होती है। -अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है,

-जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार [हाइपरथायरायडिज्म ] कहते हैं।

#अतिकृश के लक्षण क्या है?

"शुष्क स्फिगुदरग्री्वः स्थुल पर्वासिराततः।।

उच्यतेअतिकृशस्तत्र प्रागुक्तोवृहंणोविधि।”अष्टांग संग्रह,


जिसके नितम्ब,उदय,ग्रीवा सुख जायें ,अंगुलियों के पर्व मोटे हो जाये, शरीर पर बा र ही शिराएं फैली हो, इस प्रकार के पुरुषों को अतिकृश कहते है।


#दुबलेपन से होने वाली हानियाँ क्या है?

* कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले लक्षण के अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें -अग्निमांद्य, 

-चिड़चिड़ापन, 

-मल-मूत्र का अल्प मात्रा में -विसर्जन, 

-त्वचा में रूक्षता, 

-शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, -कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं। 

-कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से रोग से पीड़ित रहता है।

--- 

#अतिकृशता [दुबलेपन] की क्या चिकित्सा करें ?

अष्टांग संग्रह में निर्देश है कि 

"वृहंणोविधीः ।

अश्वगंधाविदार्याद्घा वृष्याश्चौषधयो हिताः ।।

अचिन्तया हर्षणेन ध्रुवं संतर्पणेन च।

स्वप्न प्रसंंगाच्च कृशो वराह इव पुष्यति।।”


वृहंण विधी बरतनी चाहिए।अश्वगंधा,विदारी,आदि मधुर वृहंण (वृष्य) औषधियां कृश के लिये हितकारी है।

-चिन्ता न करने से,

-प्रसन्न रहने से 

-सन्तर्पण लगातार करते रहने से, तथा अधिक नींद लेने से 

कृशता दूर हो जाती है।

संतर्पण : 

सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।


पंचकर्म : 

कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है। 

[कृश व्यक्ति के लिए स्वेदन व धूम्रपान वर्जित है। ]

स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।


#क्या कृशव्यक्ति के लिए रसायन एवं वाजीकरण उपयोगी है?

कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है। 

वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।


#औषधि चिकित्सा कैसे करें?


सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है। 

-अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।


#कृशता में उपयोगी औषधियाँ :-

*मुकोलिव सीरप और टेबलेट

*ग्रोविटा सीरप

*पुष्टि कैप्सूल

*लवणभास्कर चूर्ण, 

*हिंग्वाष्टक चूर्ण, 

*अग्निकुमार रस, 

*आनंदभैरव रस, 

*लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार), 

*संजीवनी वटी, 

*कुमारी आसव, 

*द्राक्षासव, 

*लोहासव, 

*भृंगराजासन, 

*द्राक्षारिष्ट, 

*अश्वगंधारिष्ट, 

*सप्तामृत लौह, 

*नवायस मंडूर, 

*आरोग्यवर्धिनी वटी, *च्यवनप्राश, 

*मसूली पाक, 

*बादाम पाक, 

*अश्वगंधा पाक, 

*शतावरी पाक, 

*लौहभस्म, 

*शंखभस्म, 

*स्वर्णभस्म, 

*अभ्रकभस्म तथा 

मालिश के लिए:-

-बला तेल, 

-महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।


भोजन में:-

 गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।


चेतावनी:-कीसी भी प्रकार की औषधि या कोई द्रव्य के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।


[Dr.Virender Madhan]


शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

सिंधाडा क्या है?सिंधाडे के अद्भुत लाभ?In hindi.

 <सिंधाडा>

Shingade 

By:-Dr.Virender Madhan.


सिंधाडे के नाम:-

Sanskritशृङ्गाटक, जलफल, त्रिकोणफल, पानीयफल;

Hindi-सिंघाड़ा, सिंहाड़ा;

Urdu-सिंघारा (Singhara);

Odia-पानीसिंगाड़ा (Panisingada);

Kannada-सगाड़े (Sagade); गुजराती-शीघ्रोड़ा (Shingoda);

Tamil-चिमकारा (Cimkhara), सिंगाराकोट्टाई (Singarakottai);

Telugu-कुब्यकम (Kubyakam);

Bengali-पानिफल (Paniphal), सिंगारा (Singara);

Panjabi-गॉनरी (Gaunri);

Marathi-सिंगाडा (Singada), सिघाड़े (Sigade), शेगाडा (Shegada);

Malayalam-करीमपोलम (Karimpolam)।

English-इण्डियन वॉटर चैस्टनट (Indian water chestnut), सिंगारा नट (Singara nut)।


#सिंघाड़े के फायदे  (Singhara Fruit Benefits and Uses in Hindi)


सिंघाड़े (Shingade fruit) में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। 

*दंतरोग में फायदेमंद सिंघाड़ा (Singhada Benefits for Tooth Diseases in Hindi)

अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन (Singada in hindi) से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान पर लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी,  सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।


*तपेदिक के लक्षणों से दिलाये राहत सिंघाड़ा (Shingade Fruit to Fight Tuberculosis in Hindi)

तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन (singada in hindi) इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। 

-समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से 

राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है।


#सिंधाडे की तासीर गर्म है या  ठंडी ?

वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल (shingade fruit) होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला, कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।

सर्दी के मौसम में एक से बढ़कर एक पौष्टिक फल और सब्जियां मिलती हैं। इन्हीं में से एक है 'सिंघाड़ा'। इसका सेवन करना सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।


[सेहत के लिए सिंधाडा पोष्टिक होता है।]

 यह एक जलीय सब्‍जी है 

पोषक तत्वों से भरपूर 'सिंघाड़ा' सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन-ए, सी, कर्बोहाईड्रेट, प्रोटीन जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे कच्चा, उबालकर या फिर हलवा बनाकर खाया जाता है। 

-वहीं सिंघाड़े का आटा व्रत में इस्तेमाल किया जाता है। 

-एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण सिंघाड़ा गले की कई समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करता है। खराश और टॉन्सिल से राहत पाने के लिए आप इसका सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा -सिंघाड़े के सेवन से अनिद्रा की समस्या भी दूर हो सकती है। 

-अस्थमा 

सर्दियों के मौसम में अस्थमा मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। नियमित रूप से सिंघाड़े का सेवन करने से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिल सकता है। 


#सिंघाड़े में शुगर होती है क्या?

-इस मौसम में सिंघाड़ा जरूर खाएं। ये मौसमी फल है जिसे खाने से हड्डियां मजबूत होंगी। डायबिटीज रोगियों के लिए सिंघाड़ा फायदेमंद होता है। ये डायबिटीज होने पर शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करता है।

-एसिडिटी, गैस और अपच

पेट से जुड़ी समस्याएं बहुत आम हैं। गैस, एसिडिटी, कब्ज और अपच लोग अक्सर परेशान रहते हैं। सिंघाड़े का सेवन पेट से जुड़ी समस्याओं में राहत दिला सकता है। 

-साथ ही इसका सेवन करने से भूख न लगने की समस्या भी दूर हो सकती है। 

- सिंघाड़ा, फटी एड़ियों को ठीक करने में कारगर है। शरीर के किसी हिस्से में दर्द या सूजन से राहत पाने के लिए भी आप इसका पेस्ट बनाकर उस जगह पर लगा सकते हैं। 

- गर्भवती महिलाओं के लिए 

गर्भवती महिलाओं के लिए सिंघाड़ा एक हेल्दी ऑप्शन है। इसे खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है। 

- मजबूत दांत और हड्डियां

सिंघाड़े का सेवन करने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं क्योंकि इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह शरीर की कमजोरी को दूर करने में भी सहायक है।


#सिंधाडा पाक [सिंधाडे का हलवा] खाने के लाभ:-

-इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है. सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है. 

- सिंघाड़ा यौन दुर्बलता को भी दूर करता है. 2-3 चम्मच सिंघाड़े का आटा खाकर गुनगुना दूध पीने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है.


सिंघाड़ा खाने के नुकसान - Singhare Ke Nuksan In Hindi

सिंघाड़ा खाने के नुकसान निम्न हैं -

जैसे सिंघाड़े खाने के फायदे हैं वैसे ही सिंघाड़े को अधिक मात्रा में सेवन करने से नुकसान भी हैं।

अधिक मात्रा में सिंघाड़े का सेवन करने से पाचन तंत्र ख़राब होता है।

अधिक मात्रा में इस के सेवन से कब्ज, पेट दर्द, आँतों की सूजन की समस्या हो सकती है। 

सिंघाड़े के सेवन के बाद कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे सर्दी खांसी की समस्या हो सकती है।

सिंघाड़े का अधिक मात्रा में सेवन से कफ जैसी समस्या भी हो सकती है।


#सिंघाड़े कैसे खाएं?

सिंघाड़े का आटा का प्रयोग पॅनकेक, पुरी और चपाती बनाने के लिए किया जाता है, खासतौर पर उपवास के दिनों में। इसका खाना बनाने में मुख्य रुप से प्रयोग खाने को गाढ़ा बनाने के लिए और पनीर और सब्ज़ीयों को घोल में डुबोकर तलने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ब्रेड, केक और कुकीस् बनाने के लिए किया जाता है।


#सिंघाड़े में कौन कौन से विटामिन पाए जाते हैं?

पोषक तत्वों से भरपूर – सिंघाड़े में विटामिन-ए, सी, मैंगनीज, थायमाइन, कर्बोहाईड्रेट, टैनिन, सिट्रिक एसिड, रीबोफ्लेविन, एमिलोज, फास्फोराइलेज, एमिलोपैक्तीं, बीटा-एमिलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.


Disclaimer: यह जानकारी आयुर्वेदिक नुस्खों के आधार पर लिखी गई है। इनके इस्तेमाल से पहले चिकित्सक का परामर्श जरूर लें।  

धन्यवाद!

Dr_Virender_Madhan.]


शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

#मोटापा [Obesity]क्या है और क्या करें उपाय? In hindi.


 <Obesity><मोटापा>

#Obesity,मोटापा क्या है?

#मोटापा क्यों होता है?

#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा होता है?

#मेदोरोग की सम्प्राप्ति?

#आयुर्वेद के अनुसार मोटापे से होने वाली हानियाँ क्याक्या है ?

#मोटापे से कैसे बचें ?

#आयुर्वेदिक औषधियां क्या क्या है?

#मेदोरोग मे घरेलू उपाय क्या करें ?

#मोटापा कम करने के लिए जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?

[स्थौल्यता,मोटापा]

मोटापे के बारे मे बताने से पहले जान लें कि

अष्ठांग हृदय मे ऋषि वांग्डभट्ट के अनुसार सभी रोगों को दो भागों में बांटा है

१-सामरोग (आमयुक्त)

२-निरामरोग(आम दोष रहित)

इन सबकी चिकित्सा को भी दो भागों मे बांटा है

१-संतर्पण (बृंहण)शरीर की बृद्धि व संतृप्त करना।

२-अपतर्पण (लेखन ) शरीर को हल्का व अतृप्त करना।

इनके जानने के बाद चिकित्सा करने मे सुविधा मिलेगी।

चिकित्सा के दो प्रकार

१-शोधन ( शरीर का शोधन करना)

२-शमन (रोगों का शमन कर देना।

----------------

*मोटापा अधिक संतर्पण के फलस्वरूप होता है।और

*कृशता अधिक अपतर्पण के कारण होता है।

https://youtube.com/shorts/saw3LJP6bmk?feature=sha

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#मोटापा Obesity:-

 वह स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह आयु संभावना को भी घटा सकता है।


#मोटापा क्यों होता है ?

कारण:-

*आजकल लोगो में मोटापे की समस्या बहुत हो रही है।  

*आदमी का व्ययाम नहीं हो पाता है व कैलोरी कम नहीं होती और मोटापा बढ़ने लगता है। 

*ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है। 

*अधिक चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापे का कारण है। 

*कम व्यायाम करना और स्थिर जीवन-यापन मोटापे का प्रमुख कारण है। 

*असंतुलित व्यवहार औऱ मानसिक तनाव की वजह से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, जो मोटापे का कारण बनता है।

*मोटापा का कारण कुछ लोगो में जेनेटिक अनुवांशिक होता है।

उदाहरण – अगर माता-पिता मोटे है तो उनका बच्चा भी मोटा रहता है।

*मीठा व गरिष्ठ भोजन अधिक। करना।

*सही पोषक आहार ना लेने के कारण भी मोटापा होने लगता है।

*अधिक तैलीय पदार्थ व फास्टफूड खाने के कारण मोटापा होने लगता है।

*अधिक धूम्रपान करने के कारण मोटापा शुरू हो जाता है।

*दिन में सोने के अभ्यास से ।

*थायोरोयड जैसी बीमारीयों के कारण भी मोटापा बढ जाता है।


#कौन कौन सी चीजें खाने से मोटापा बढ़ता है?


*मीट, मक्खन, घी, चीज और क्रीम मोटापे को तेजी से बढ़ाते हैं. 

*आलू का परांठा, आलू की टिक्की, फ्रेंच फ्राइज, दम आलू की सब्जी।


[मेदोरोग की सम्प्राप्ति]

मेद के बढ जाने से धातुओं के मार्ग रुक जाते है फिर अन्य धातुओं का पौषण नही होता है।मेद इक्कठा होता जाता है।मनुष्य अपने कार्यों में असमर्थ हो जाता है।

यह रोग पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है।

मेद से वात के मार्ग रूक जाते है वह कोष्टो मे धुमती है वह अग्निप्रदीप्त करती है जिसके कारण रोगी की भुख बढती है।इसी कारण से रोगी बार बार कुछ न कुछ खाता रहता है फल स्वरूप अनेकों प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता जाता है।

*छोटे-छोटे कार्यों को करने में सांस फूलना तथा 

*पसीना आना, 

*आवश्यकता से ज्यादा या कम सोना, 

*थोड़ा सा चलने पर सांस में रूकावट पैदा होना या सांस तेजी से चलना,

*शरीर के अलग अलग हिस्सो में सूजन होना, 

*शरीर के विभन्न भागो में वसा जमना, 

*मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान, आत्मविश्वास में कमी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। 

*खर्राटें लेना

*अचानक शारीरिक गतिविधि में असमर्थता

*बहुत थका हुआ महसूस करना

*पीठ और जोड़ों में दर्द

*अकेला महसूस करना, इत्यादि।


#आयुर्वेद के अनुसार मेदोरोग के कारण होने वाली हानियां:-

< मोटापा बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है जैसे- बवासीर, भगंदर , कुष्ठ ,ज्वर , अतिसार ,प्रमेह (शुगर आदि ), श्लीपद (हाथीपांव) , अपची, कामला,उच्च रक्तचाप( हाइ ब्लड प्रेशर), हृदयदौर्बल्यं (दिल की बीमारिया, स्ट्रोक), अनिद्रा, किडनी की बीमारी, फैटी लिवर, आर्थराइटिस- जोड़ों की बीमारी, आदि।  

शरीर के निर्माण में रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र कुल सात धातुओं का योगदान होता है। इनमें से सभी धातुओं का अलग अलग महत्वपूर्ण कार्य होता है। मेद का कार्य शरीर में स्नेह गुण बनाए रखना है और इसी मेद से अस्थियां बनती हैं। अस्थियों के अंदर रहने वाले लाल वर्ण के मेद से रक्त यानी ब्लड का निर्माण होता है। 

आचार्य सुश्रुत के अनुसार मेद के क्षय से संधियों यानी जोड़ो में दर्द होने लगता है, खून की कमी होने लगती है और शरीर में रुक्षता होने लगती है। इसी मेद की वृद्धि से पेट के ऊपर और कमर पर चर्बी इकट्ठा होने लगती है और शरीर से दुर्गंध आने लगती है।

* इसी बात को आयुर्वेद के महान आचार्य चरक ने बताया है की अत्यधिक मेदवर्धक आहार लेने से मनुष्य में स्थूलता की वृद्धि होने लगती है 


#मोटापा रोग से कैसे करें बचाव?

●मेदोरोग व मधुमेह मे कफनाशक उपाय करें।

●मेदोरोग रोग मे लेखन कर्म व द्रव्यों का प्रयोग करें।

●उपवास व लघंन करें।

* जौ की रोटी खायें ।

#आयुर्वेदिक औषधियां क्या है ?

*कैप्सूल-सील्म-सी [ गुरु फार्मास्युटिकल] १-२ कैप० दिन में २-३ बार लें।

* फैटकोन सीरप -२-३ चम्मच दिन में २-३ बार ।

* ओबेनिल ( चरक )१-१ गोली दिन में दो-तीन.बार लें।

#शास्त्रीय योग:-

- अमृतादि गुग्गुल

- नवक गुग्गुल

- बडवानल रस

-लौह रसायन

-मेदोहर गुग्गुल

-आरोग्यबर्द्धिनी वटी

अन्य -

1. गुडूची, नागरमोथा, त्रिफला का सेवन मधूदक यानी शहद के पानी के साथ लेने से मोटापा कम होता है।

2. आमला के चूर्ण, शुंठी, क्षार आदि के प्रयोग से मोटापा कम किया जा सकता है।

3. जौ के आटे, बृहद पंचमूल के सेवन से लाभ मिलता है।

4. अग्निमंथ का सेवन शिलाजीत के साथ करने से भी मोटापा दूर होता है।

5. खान पान के अलावा रातभर जागने से, व्यायाम से और मानसिक परिश्रम से भी वजन कम होता है।

6. पंचकर्म चिकित्सा  जैसे वमन, विरेचन, उपवर्तन, स्वेदन और वस्ति द्वारा भी मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है।

7. कम प्रोटीन और वसा वाली हल्की दालों मूंग, मसूर को प्राथमिकता देनी चाहिए। उड़द राजमा छोले आदि से परहेज करना चाहिए।

#मेदोरोग मे घरेलू उपाय:-

-धतूरे के पत्तों का रस निकाल कर बढी हुई फैट (पेट-कुल्हो ) पर लगा कर मालिस करें।

-ताड के पत्तों का क्षार और हींग चावलों के मांड के साथ लें।

- पीपल का चूर्ण शहद के साथ प्रतिदिन खायें।

-कुलथी की दाल पका कर खाये।

-प्रतिदिन त्रिफला और गिलोय का काढा पीयें।

- जवासे का क्वाथ सवेरे शाम पीने से आराम मिलता है।

<<इन सभी उपायों का लगातार कुछ दिन तक प्रयोग करने से ही आराम मिलेगा>>

#मोटापे मे क्या परहेज़ करें?

- जितने भी कफवर्ध्दक पदार्थ है,

चिकनाई, दूध, दही, मक्खन,मांस , धी से बने पदार्थ, पका केला, नारियल, पुष्टदायक भोजन, दिन में सोना, हमेशा आराम से रहने से परहेज करें।

-रसायन द्रव्यों व औषधियो का प्रयोग, उडद ,गेहूं, ईख के प्रोडक्ट खाना बन्द कर देना चाहिए ।

#मोटापा कम करने के लिए आपकी जीवनशैली (Your Lifestyle for Weight Loss)कैसा हो ?

- साप्ताहिक उपवास करें।

-तमगुण को जीतने से मोटापा कम हो जाता है। अतः दिन में न सोयें।

- उदार बने।

-परिश्रम करें।

- सुबह उठकर सैर पर जाएँ, और व्यायाम करें।अधिक पैदल चलें।

- सोने से दो घण्टे पहले भोजन कर लेना चाहिए।

- रात का खाना हल्का व आराम से पचने वाला होना चाहिए।

- संतुलित और कम वसा वाला आहार लें।

- वजन घटाने के लिए आहार योजना में पोषक तत्वों को शामिल करें।

#चेतावनी:-किसी भी औषधि या द्रव्यों के प्रकार से पहले आप किसी आयुर्वेदिक विषेशज्ञ से सलाह जरूर ले क्योंकि प्रतिएक व्यक्ति की प्रकृति, दोष ,अवस्था आदि अलग अलग होती है यहां यह लेख केवल ज्ञान अर्जन हेतू है।


धन्यवाद!

<डा०वीरेंद्र मढान>

आप अपनी सलाह कोमेंट मे जरूर लिखे हमे खुशी होगी।







सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

शरीर पर सुजन [ Inflammation ] है तो क्या करें?In hindi


 #शोथ [Inflammation]  के प्रश्न-उत्तर ।

Dr.Virender Madhan.

#सुजन#शोथ [ Inflammation] कैसे होती है और उसके क्या उपाय है?

<< शोथ के और क्या क्या नाम है ?

#Inflammation शोथ क्यों [कारण]होता है ?

#आयुर्वेद में सुजन के भेद ?

*शोथ का  आयुर्वेदिक निदान क्या है ?

*शोथ की सम्प्राप्ति ?

#आयुर्वेद मे शोथ के लक्षण ?

#सुजन की आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करे ?

<<शोथ [सुजन]के घरेलू उपाय क्या है?

*सुजन हो तो जीवनशैली कैसी होनी चाहिये?


*शोथ के नाम :- 

#शोथ, #सुजन,#lnflammation,शोफ, आदि नामों से सुजन को जानते है।

#Inflammation शोथ क्यों होता है क्या क्या कारण है?

हमारे जीवनशैली के बिगडने ,आहार विधि के बिगडऩे पर तीनों दोष अपने स्वयं के कारणों से कुपित एवम बिगडने से, और रक्त के स्वम के कारणों दूषित होकर कुपित व दूषित वात के द्वारा पित्त, कफ दोष ऊपरी शिराओं मे आकर रुक जाते है तथा त्वचा और माँस धातु मे उभार (उत्सेध) ,संहत (ठोस) होता है।इस सम्पूर्ण संचय को शोफ या शोथ कहते है। 

आयुर्वेद मे सुजन के भेद?

*कारण भेद से:-
१-वातज २-पित्तज ३-कफज ४-वातकफज५-वातपित्तज ६-पित कफज ७-सन्निपातज ८-अभिधातज ९- विषज।

*विधि भेद से शोथ के भेद:-
१-निज ( दोषों [वात-पित आदि के ] कारण ।
२-आगंतुज :- चोट से, विष के स्पर्श आदि के कारण ।
*पुनः दो भेद:- 
१-सर्वांगज(सारे शरीर में होना)
२-एकांगज ( एक अंग मे होना)
*अन्य शोथ के तीन भेद:-
१-पृथु (चौडा)
२-उन्नत (उठा हुआ)
३-ग्रंथित
इस प्रकार से ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

#शोथ का आयुर्वेद मे क्या क्या निदान है?

*ज्वर ,श्वास, कास,आतिसार, बवासीर, उदर रोगों में गलत खाना-पीन करने से शरीर में शोथ हो जाता है।

*वमन,विरेचन आदि चिकित्सा कर्मो के कारण।
गलत चिकित्सा करने से।

*रोगों में भारी ,तला भुना,शीतल, नमकीन व क्षार के गलत प्रयोग से भी शरीर में सुजन आ जाती है।
*दिन में सोना रात को जागना,सीलन भर जगह पर रहने से, अजीर्ण रोगों मे अधिक श्रम करने से,
*बहुत अधिक पैदल चलने से, अपथ्य करने से शोथ उत्पन्न हो जाता है।
*कुछ गम्भीर रोगों में भी सुजन आ जाती है जैसे हृदय रोग, किडनी रोग ,उदरोगो मे सुजन आ जाती है।
*आधुनिक औषधियों (एलौपैथीक) के साईड ईफेक्ट के कारण बहुत से व्यक्तियो को शोथ उत्पन्न हो जाता है।

#शोथ रोग की सम्प्राप्ति:-

-उपरोक्त कारणों से वातादि दोष अगर छाती आदि ऊपरी अंगों में हो तो शोथ शरीर के उपरी भाग मे होता है।
- अगर दोष मध्य अंगों मे हो तो शोथ शरीर के मध्यम भाग मे या सर्वांग शोथ हो जाता है।
-अगर दोष वस्ति आदि में है तो शोथ शरीर के नीचले भागों में यानि पैरादि मे होता है।

#आयुर्वेद मे शोथ के लक्षण?

वातज शोथ:-

इसमे वात दोष के कारण रूक्षता , लाल व सफेद रंग होना, पीडा होना ,फडकन होना और कभी कभी सुन्न होना। 
यदि रोगी के.शोथ स्थान को दबा कर छोड दे तो दबा हुआ स्थान शीध्र उपर उठ जाता है।
रात मे सुजन कम और दिन मे बढ जाती है।
*इसमे तैँल और सौठ मल देने से सुजन कम हो जाती है।

#पितज शोथ के लक्षण :-

इसमे शोथ का रंग पीला, लाल होता है। पीडा होती है ।रोगी को ज्वर भी हो सकता है। इस शोथ के बीच में तांबे के रंग के रोम ( रोवें )मिलते हैं। यह शीध्र फैलता है और शीध्र पकता है। यह शरीर के बीच अंगों में होता है।

#कफज शोथ के लक्षण:-

इसमे खुजली होती है। शोथ के स्थान पर, व रोम का वर्म पीलपन पर.होता है।यह स्थान ठंडा, व कठोर होता है।यहाँ स्निग्धंता दिखाई देती है । यह देर से पकने वाला होता है।यह दबाने से शीध्र नही उठता है।

**द्वन्द्वज शोथ के लक्षण:-

जब दो दोष मिल कर शोथ उत्पन्न करते है तो उन दोनों दोषो के शोथ मे लक्षण मिलते है।

#सन्निपातज शोथ के लक्षण:-

इसमे तीनों दोषो के मिले जुले लक्षण मिलते है।

#अभिधातज शोथ के लक्षण :-

डंडा, मुक्का , तलवार, कांटा, शूल या एक्सीडेंट आदि तरह की दुर्घटना से होनेवाले शोथ फैलने वाले होते है। इन मे गर्मी बहुत होती है। स्थान का वर्ण लाल होता है।

#विषज शोथ के लक्षण:-

विषैले पशु, कीट-पतंगे ,आदि के दांत बाल आदि के स्पर्श से ,विषेली हवा से ,औषधि के दुष्प्रभाव से ये शोथ हो जाते है। ये स्पर्श से कोमल होते है, लटकने वाले. होते है। ये "चल" यानि कभी कहीं कभी कहीं होता है।

#सुजन की आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे करें?

ऋषि वांग्डभट के अनुसार 

दोषज शोथ मे दोष व आम के लिये

 पहले उपवास करके फिर हल्का भोजन कराऐ। साथ मे 
*सौठ, अतीस, देवदारू , वायविंडग , इन्द्रजौ , कालीमिर्च।
अथवा
*हरड, सौठ , देवदारू ,पुनर्नवा का चूर्ण गुनगुने पानी से।
अथवा
*नवायस योग का सेवन करें।

मल का संग्रह होने पर

*हरड का गोमूत्र के साथ सेवन करें।
अरवा
*कुटकी, निशोथ , लौहभस्म , सौठं , मिर्च, पीपल का चूर्ण।
अथवा
*शिलाजीत का सेवन करें।

मन्दाग्नि, आतिसार या मलबन्ध होने पर,

इन सभी परिस्थितियों मे ,
*सैन्धव नमक, सौंठ, मिर्च, पीपल के चूर्ण को मधु से साथ लें। साथ मे मठ्ठा ले सकते है ।
अथवा
*गुडहरीतकी योग  या
*गुडशुण्ठी योग का सेवन करें।

अन्य योग:-

-वर्ध्दमान गुडार्द्रक ,
-आद्रकधृत,
-यवानकादि धृत,
-दशमुलहरीतकी,

#शोथ के घरेलू उपाय क्या है?

>लधुपंचमूल, सौंठ ,पुनर्नवा ,एरण्ड मूल, को जल मे चाय की तरह पका कर पीने से शोथ मे लाभ मिलता है।
>कालाजीरा, पाठा ,मोथा ,पंचकोल ,कटेली और हल्दी इन सबका चूर्ण लेने से पुराना शोथ (सुजन ) भी दूर हो जाती है।
>अदरक का रस गुड मिलाकर पीये बाद मे बकरी का दूध पीयें इससे सभी प्रकार के शोथ ठीक हो 
जाते है।
<लेप:-

>शोथ नाशक लेप:-

*पुनर्नवा(गदधपुना) , देवदारू, सौंंठ , सरसौ ,यथा संहिजन ,की छाल, सभी को कांजी मे पीस कर लेप करने से सभी प्रकार के शोथ शांत हो जाता है।
*दशांग लेप के लगाने से  शोथ ठीक हो जाता है।

अन्य औषधियों:-
अजमोदादि चूर्ण
लवणभास्कर चूर्ण
नवायस चूर्ण
योगराज गुग्गुल
त्रिफला गुग्गुल
कुटजारिष्ट
लोहासव

#सुजन मे जीवनशैली ,क्या करें क्या न करें?

*दिन मे न सोयें। भुख लगे तो ही खायेंं।
*थकने का काम न करें ।
*तले हुये भोजन न करें।सुखे शाक , तिल गुड से बनी चीजें न खायें।
*दही ,पीठी  की चीचें ,खट्टा ,भुने जौ , सुखा माँस ,विदाही (जलन करनेवाले) पदार्थ न लें।

#डा०वीरेन्द्र मढान
#Guru_Ayurveda_in_faridabad.
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