Guru Ayurveda

बुधवार, 23 मार्च 2022

सब रोगों का मूल (कारण) क्या है ?In hindi.

 # सब रोगों का मूल (कारण) क्या  है ?

What is the root cause of all diseases?



“प्रज्ञापराध”

Dr.VirenderMadhan.

«अपने ही जीवन के लिए किया गया अपराध।»

चरक स्थान के शरीर स्थान में आता हैः

“धीधृतिस्मृतिविभ्रष्टः कर्म यत्कुरुते अशुभम्।

प्रज्ञापराधं तं विद्यात् सर्वदोषप्रकोपणम्।।”

'धी, धृति एवं स्मृति यानी बुद्धि, धैर्य और यादशक्ति – इन तीनों को भ्रष्ट करके अर्थात् इनकी अवहेलना करके जो व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक अशुभ कार्यों को करता है, भूलें करता है उसे प्रज्ञापराध या बुद्धि का अपराध (अंतःकरण की अवहेलना) कहा जाता है, जो कि सर्वदोष अर्थात् वायु, पित्त, कफ को कुपित करने वाला है।

प्रज्ञापराधः अधर्मः च॥

प्रज्ञापराध अधर्म है पाप है।

यह 

कायिक । Kayik, 

वाचिक । Vachik and मानसिक । Manasika तीन प्रकार से किया जाता है।


आयुर्वेद की दृष्टि से ये कुपित त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) ही तन-मन के रोगों के कारण हैं।प्रज्ञापराध से दोष बिगड जाते है और रोग उत्पन्न हो जाते है।

उदाहरणार्थः 

* वेगोदीरण । 

वेग (मल,मुत्र, छींक आदि) न होते हुए भी वेगो को बलात् करना जैसे मुत्र का कोई वेग न होते हुए भी मूत्र त्यागने का प्रयास करना।

* वेगावरोधः । 

मल,मूत्रादि का वेग होते हुए बलात् रोकना।

* साहस सेवन । 

दुश्साहस दिखाना, बल से अधिक बल लगाना।

* नारीणाम् अतिसेवनम् । 

* कर्मकालातिपातश्च। 

कालविपरित कर्म करना।

मिथ्यारंभश्च कर्मणाम् । 

* विनयलोपः । 

विनम्रता न होना।(Disappearance of Modesty)

* आचारलोपः । 

दूर्व्यवहार करना


सारांश:- 

जाने या अनजाने में जा कर्म हमें नही करना चाहिए उस कर्म को प्रज्ञापराध कहते है इन कर्मो के कारण ही हम रोगी हो जाते हैं जीवन जो भी दूख आते है वह अधिकतर प्रज्ञापराध के कारण ही आते है।


धन्यवाद


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें